10 साल के मोदी राज में महिलाओं की हालत

जब हम इंटरनेट पर मोदी राज में महिलाओं की स्थिति के बारे में सर्च करते हैं तो मोदी सरकार की चाटुकर मीडिया की खबरें फटाफट खुलती चली जाती हैं। टीवी चैनल और अखबार तो मोदी सरकार के हाथ की कठपुतली बने ही हुए हैं। इनकी खबरों में खुद नरेंद्र मोदी द्वारा महिलाओं की दशा सुधारने के दावे होते हैं। महिलाओं के लिए सरकार की योजनाओं की भरमार, महिला सशक्तिकरण के दावे, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे और महिलाओं के लिए सुविधा, सुरक्षा और सम्मान के वादे दिखाई देते हैं। चाटुकार मीडिया की हवाई बातों और भ्रामक प्रचार से अलग महिलाओं की जमीनी हकीकत आज अच्छी नहीं है। 19 अगस्त 2020 को जनरल प्लस में छपेे एक शोध के अनुसार हर साल लगभग 5 लाख बच्चियों की भ्रूण में हत्या कर दी जाती है। केवल यही आँकड़ा सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारे की पोल खोल देता है। केन्द्र… आगे पढ़ें

10 साल बाद मारुति के मजदूर नेताओं की जमानत

लगभग 10 साल के लगातार संघर्षों के बाद कोर्ट ने मानेसर के मारुति सुजुकी विवाद में उम्र कैद की सजा काट रहे 13 में से अधिकांश मजदूर नेताओं को जमानत दे दी है। कम्पनी ने 2006 में अपना नया प्लांट मानेसर में लगाया और उसमें 23 साल से कम आयु के मजदूरों की ही भर्ती की जिससे कम्पनी का उत्पादन अधिक से अधिक हो। इस प्लांट में आधुनिक मशीनें और रोबोट का इस्तेमाल किया गया और जिन मजदूरों से मशीनों के साथ 1 सेकंड भी तालमेल बैठाने में चूक हो जाती, उन्हें काम से निकाल दिया जाता था। इस प्लांट में कुशल मजदूरों को भी 3 साल की ट्रेनिंग पर रखा गया था और बहुत कम वेतन दिया जाता था। यहाँ तक कि वे चाय या खाने के समय के अलावा न टॉयलेट जा सकते थे और न ही पानी पी सकते थे। इन सब परेशानियों को देखते हुए मजदूरों… आगे पढ़ें

10 सालों में रोजगार और वेतन में भारी गिरावट

18वें लोकसभा चुनाव शुरू होने से ठीक एक महीने पहले मार्च में तीन ऐसी रिपोर्टें आयी हैं, जो भारत में रोजगार और वेतन में गिरावट की भयावह स्थिति को उजागर करती हैं और 10 सालों से केन्द्र में सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार के दावों की हकीकत को जनता के सामने लाती हैं। ये रिपोर्टें हैं–– अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) द्वारा जारी की गयी ‘इंडिया एम्पलॉयमेंट रिपोर्ट 2024’य भारत में आर्थिक असमानता पर ‘वर्ल्ड इनइक्वैलिटी डेटाबेस’ का पेपरय और चिन्ताशील नागरिकों और संगठनों के साझा मंच–– बहुत्व कर्नाटक द्वारा जारी ‘रोजगार, वेतन और असमानता रिपोर्ट’। इन रिपोर्टों में खुलासा किया गया है कि 2011–2012 से लेकर 2022–2023 के बीच के 10 सालों में कुल रोजगार में औपचारिक रोजगार की हिस्सेदारी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। दूसरी ओर स्व–रोजगार करने वाले व्यक्तियों की संख्या में भारी वृद्धि देखने को मिली है। यहाँ औपचारिक रोजगार से… आगे पढ़ें

 स्विस बैंक में जमा भारतीय कालेधन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी

पिछले दिनों स्विट्जरलैण्ड के केन्द्रीय बैंक ‘एसएनबी’ ने अपने बैंकों में जमा विदेशी लोगों के पैसों के विवरण से सम्बन्धित एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है कि भारतीयों के जमा धन में 50 फीसदी की अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार 2020 के अन्त में यह जमा राशि बीस हजार सात सौ करोड़ रुपये थी जो अब बढ़कर तीस हजार पाँच सौ करोड़ रुपये के पार पहुँच गयी है। सरकार पिछले समय से काले धन को नियंत्रित करने की बड़ी–बड़ी घोषणाएँ कर रही है, लेकिन इस रिपोर्ट ने सरकार के इन सभी दावों की पोल खोल दी है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में काले धन को एक बड़ा मुद्दा बनाया था। साथ ही यह वादा किया था कि उनकी सरकार बनते ही वह विदेशों में जमा कालाधन भारत वापस लाकर उसमें से सभी भारतीयों को 15–15 लाख रुपये देंगे। इन्होंने देश… आगे पढ़ें

अगले दशक में विश्व युद्ध की आहट

हाल ही में यू–गोव संस्था ने अमरीका में एक नया सर्वे किया है जिसके अनुसार 61 प्रतिशत अमरीकी मानते हैं कि अगले पाँच से दस वर्षों में विश्व युद्ध छिड़ने की बहुत अधिक सम्भावना है। उनमें से लगभग दो–तिहाई लोगों ने कहा कि विश्व युद्ध परमाणु संघर्ष में बदल सकता है। यह इनसानियत के लिए चिन्ता की बात है और आगामी युद्ध में कितना नुकसान होगा, इसकी कल्पना करने से शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है क्योंकि परमाणु हथियारों की मारक क्षमता के घेरे से बाहर धरती की कोई चीज नहीं है। यह भी हो सकता है कि परमाणु युद्ध पूरी धरती को तबाह कर दे या इनसानी नस्ल को ही मिटा दे! यह पूछने पर कि अमरीका के खिलाफ कौन से देश लड़ेंगे, अधिकांश लोगों ने जवाब दिया कि अमरीका के खिलाफ रूस और चीन के साथ उत्तर कोरिया, ईरान, इराक, तुर्की आदि शामिल रहेंगे और हो सकता… आगे पढ़ें

अफगानिस्तान में तैनात और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की आत्महत्या

ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा बल ने अफगानिस्तान में चार साल की कार्रवाई के बारे में अपनी बेहद संशोधित और काट–छाँट कर तैयार की गयी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने अफगानिस्तान के 39 कैदियों, किसानों, और नागरिकों की हत्या की। यह भी सुनने को मिला कि ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री लिण्डा रेनॉल्ड्स इस रिपोर्ट के सदमें में बीमार पड़ गयीं। इस सम्बन्ध में युद्ध अपराध की वारदात के बारे में चल रही जाँच के दौरान ही वहाँ तैनात 9 ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने आत्महत्या की। ऑस्ट्रेलियाई सेना ने सफाई दी कि इसका अफगानिस्तान में की गयी हत्याओं से कोई सम्बन्ध नहीं है। कुछ पुराने सैनिकों ने इसकी वजह युद्ध क्षेत्रों में मानसिक तनाव और खास तौर पर युद्ध अपराध की जाँच के दौरान मीडिया में आने वाली रिपोर्ट है। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसी घटनाओं को दबाने का साम्राज्यवादी देशों द्वारा भरपूर प्रयास किया जाता है… आगे पढ़ें

अब भूल जाइये रेलवे की नौकरियों को!

अब भूल जाइये रेलवे की नौकरियों को! रेलवे में केन्द्र सरकार की अब कोई नयी नियुक्ति नहीं निकलने वाली! रेलवे की नौकरियों में आरक्षण का प्रश्न भी एक झटके में साफ हो जाएगा क्योंकि न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। मोदी सरकार भारतीय रेलवे को निगमीकरण की पटरियों पर दौड़ाने वाली है जिसका आखिरी स्टेशन निजीकरण है। निगमीकरण का मतलब है–– किसी संस्था को निगम का रूप देना। सरकारी नियंत्रण के तहत उसके कार्यों को धीरे–धीरे निजी संस्थानों को सौंपते जाना ताकि आगे चलकर जब वह निगम लाभ बनाने लगेगा तो उसे किसी निजी बोलीदाता को बेचा जा सकेगा। आप कहेंगे कि रेलवे में यह निगमीकरण शब्द कहाँ से आया? दरअसल, जितना हम रेलवे को देखते हैं वह उससे कहीं बड़ा संस्थान है। हमें सिर्फ दौड़ती–भागती ट्रेनें दिखायी देती हैं लेकिन सुचारू ढंग से यह ट्रेनें दौड़ती रहंे, इसके लिए बड़े–बड़े कारखाने हैं, वर्कशॉप हैं, मेंटनेंस की… आगे पढ़ें

अभिव्यक्ति की आजादी का झूठा भ्रम खड़ा करने की कोशिश

“अभिव्यक्ति की आजादी” और “असहमति की आजादी” लोकतंत्र के सबसे बुनियादी मूल्य हैं। आधुनिक समाज में अपने विचारों को जाहिर करने का सबसे बड़ा, आसान और प्रभावी माध्यम पत्रकारिता और सोशल मीडिया है। भारत भले ही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो लेकिन यहाँ पत्रकारिता सबसे खतरनाक पेशों में से एक है। “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स” नामक संस्था पूरी दुनिया के अलग–अलग देशों में प्रेस की स्वतंत्रता का आकलन करती है। इस संस्था ने इसी साल अप्रैल में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2021 जारी किया है। पिछले साल की तरह इस साल भी भारत को 180 देशों में 142 वाँ स्थान मिला है। यानी प्रेस स्वतंत्रता के मामले में भारत दुनिया के सबसे फिसड्डी देशों में शामिल है। पिछले साल यह सूचकांक जारी होने के बाद भारत सरकार ने “इण्डेक्स मोनिटर सेल” नामक एक समिति का गठन किया था। इस समिति का काम “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स” के पैमानों की जाँच पड़ताल… आगे पढ़ें

अमरीकी घुसपैठ के आगे नतमस्तक राष्ट्रवादी सरकार

7 अप्रैल को अमरीका का सबसे बड़ा योद्धपोत–– जॉन पॉल जोन्स–– जबरन भारत की जल सीमा में घुस गया। जिस क्षेत्र में अमरीकी युद्धपोत घुसा वह समुद्री प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न भारत का विशिष्ठ आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है। यह जगह अरब सागर में केरल और लक्षद्वीप के नजदीक है। अमरीका ने इस घुसपैठ को ‘फ्रीडम ऑफ नेवीगेशन ऑपरेशन’ यानी समुद्र में कोई भी कार्रवाई करने की अपनी आजादी बताया है। ईईजेड किसी देश का वह जल क्षेत्र है (सामान्य तौर पर जमीन से लगा 200 नॉटिकल माइल समुद्री क्षेत्र) जिसके संसाधनों का प्रबंधन, दोहन और संरक्षण करने का उस देश को विशेष अधिकार प्राप्त होता है। किसी देश के ईईजेड में घुसपैठ अन्तरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक अपराध है और साथ ही यह उस देश की स्वायत्तता पर हमला भी है। यानी व्यापार के लिए किसी दूसरे देश का जहाज भारत के ईईजेड में तो आ सकता है, लेकिन सैन्य जहाज… आगे पढ़ें

अमीरों की अय्यासी का अड्डा बनते हिमालयी इलाकों में तबाही

वर्ष 2021 के मानसून के मौसम में केवल दो हिमालयी राज्यों, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की 30 बड़ी घटनाएँ और सैकड़ों छोटी–छोटी घटनाएँ हुई हैं। जुलाई और अगस्त में हुई भूस्खलन की आठ घटनाएँ ‘बेहद भयावह’ श्रेणी की हैं। इसी मौसम में ऐसा भी समय आया जब उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में 24 घण्टों में भूस्खलन के कारण 462 सड़कें बन्द करनी पड़ी। इन दो राज्यों में भूस्खलन से 50 से ज्यादा लोगों की जान गयी और 60 से ज्यादा घायल हुए हैं। इन घटनाओं में अरबों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हुई है, जिसमें छोटे–बडे पुल, बिजली के खम्भे, सड़क, मकान आदि शामिल हैं। हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं में हुई बेताहशा बढ़ोतरी आने वाली भयावह तबाही का एक गम्भीर संकेत है। “पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ के भूगोल विभाग ने हिमाचल प्रदेश की भूस्खलन की घटनाओं का अध्ययन कर बताया है कि वर्ष 1971–1979 के दौरान भूस्खलन की 164… आगे पढ़ें

अम्बानी–अडानी का पर्दाफाश करने वाले पत्रकारों पर जानलेवा हमला

अगर किसी देश में पत्रकारों को डराया–धमकाया जाता है, सच को सामने लाने के कारण उन पर जानलेवा हमला होता है, तो यह कैसा लोकतंत्र है ? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले देश में ऐसी ही दो घटनाएँ हाल ही में सामने आयी हैं। एक आईबीएन–24 के पत्रकार आकर्षण उप्पल पर जानलेवा हमला और दूसरा, गाजियाबाद के पत्रकार रविकुमार की बेदर्दी से पिटायी का मामला। दोनों ही पत्रकार किसान आन्दोलन का कवरेज कर रहे थे और संघर्ष के इस दौर में जनता के सम्मुख सच को उजागर करने का काम कर रहे थे। इन्होंने अपनी खबरों के माध्यम से किसान आन्दोलन में जनता का भारी समर्थन और कार्पाेरेट घरानों के साथ सरकार के गठजोड़ को बेनकाब किया। आकर्षण उप्पल ने अपनी रिपोर्ट में दिखाया था कि एक तरफ हरियाणा के पानीपत जिले में अडानी ग्रुप द्वारा किसानों से अनाज खरीदकर स्टोर करने के लिए सौ एकड़ जमीन… आगे पढ़ें

असम में पोक्सो लगाकर जबरन गिरफ्तारी

असम में लगभग 3000 लोगों को पुलिस ने पोक्सो एक्ट लगाकर बाल विवाह के आरोप में गिरफ्तार किया है और जबरन जेल में डाल दिया है और जिन मामलों में पुलिस ने इन लोगों को गिरफ्तार किया है वे एक साल से भी ज्यादा पुराने हैं। वहीं दूसरी ओर, देश के अन्तरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान कई महीनों से भारतीय जनता पार्टी के सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की माँग कर रहे हैं, जिसके ऊपर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा है और पोक्सो एक्ट लगने के बाद भी प्रशासन बृजभूषण को गिरफ्तार नहीं कर रहा है। सवाल यह है कि क्या इस देश में दो तरह के कानून हैं? अमीर–रसूखदार लोगों के लिए एक तरह का कानून और गरीब–बदहाल लोगों के लिए दूसरे तरह का कानून? असम में गिरफ्तार लोगों में कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें परिवार का एकमात्र कमाने वाला भी जेल के… आगे पढ़ें

आईआईटी हैदराबाद के छात्र मार्क एंड्रयू चार्ल्स की आत्महत्या

दो जुलाई को आईआईटी हैदराबाद में मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी (एम टेक) के छात्र मार्क एंड्रयू चार्ल्स ने आत्महत्या कर ली। चार्ल्स का परिवार उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के नरिया लंका इलाके में रहता है। चार्ल्स इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा हो गया है। अपने पीछे वह एक पत्र छोड़कर गया है जिसमें आईटी सेक्टर में काम कर रहे उसके दोस्तों के लिए कुछ नसीहतें हैं। कि यार जी लो! एक ही जिन्दगी है। कंपनियों के चक्कर में बर्बाद मत करो। इस संस्थान की इस साल में यह दूसरी आत्महत्या है। इसी साल 31 जनवरी को मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के छात्र अनिरुद्ध ने हॉस्टल की छत से छलाँग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। आँखों में आँसू लिए चार्ल्स की माँ कहती हैं कि “उनका बेटा सकारात्मकता से भरा हुआ था। वह तेज–तर्रार और खुद पर भरोसा करने वाला था। जो भी है, दो साल में इस… आगे पढ़ें

आजादी के अमृत महोत्सव की चकाचैंध में बीजेपी की असफलताओं को छुपाने की कोशिश

भाजपा ने अपने 2019 के घोषणापत्र में 75 संकल्पों को 15 अगस्त 2022 तक पूरा करने का वादा किया था। 15 अगस्त 2022 इसलिए क्योंकि तब देश आजादी की 75 वीं वर्षगाँठ मना रहा होगा। इसमें किसानों की आय दोगुनी करने, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, पर्यावरण को शुद्ध करने, रेलवे को सुदृढ़ करने और गंगा को पूर्णत: साफ करने जैसे 75 संकल्पों को शामिल किया गया था। अब 15 अगस्त यानी लक्ष्य को पूरा करने में चन्द दिन ही शेष है। लेकिन भाजपा के 75 संकल्पों में महज दो–चार को छोड़कर एक भी संकल्प पूरे नहीं हुए हैं। भाजपा की हमेशा से खूबी रही है कि वह अपने दावे जिस जोर–शोर से लांच करती है, उस जोर–शोर से अपनी योजनाओं की समीक्षा नहीं करती है, क्योंकि सरकार समीक्षा तो तब करती है जब योजनाओं पर कुछ काम हुआ हो। खैर आइये आजादी के अमृत महोत्सव तक पूरे होने वाले संकल्पों… आगे पढ़ें

आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष की असलियत

अमरीका के दक्षिणपंथी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ह्यूस्टन में जैसे ही यह वक्तव्य दिया कि हम इस्लामिक आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे, भारत की भगवा मण्डली गदगद हो उठी। इसी के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने माना कि तालिबान को उनकी जासूसी संस्था आईएसआई और उनकी सेना ने सैन्य प्रशिक्षण दिया। इन दोनों नेताओं के बारे में विस्तार से जानने पर पता चलता है कि किस तरह इन जनविरोधी नेताओं ने आतंकवाद के हौव्वे का इस्तेमाल धार्मिक लोगों को गुमराह करने के लिए किया है। यह एक खुला रहस्य है कि अफगानिस्तान में 1980 के दशक में सोवियत संघ संरक्षित शासन को हटाने के लिए अमरीका ने एक षड्यंत्र के तहत सऊदी अरब और पाकिस्तान के साथ मिलकर तालिबान नामक मिलिशिया का निर्माण किया। इसके लिए धन की व्यवस्था अमरीका और सऊदी अरब ने मिलकर की। अरब में धार्मिक कट्टरता जिन्हें अब वहाँ बहावी या सल्फी कहा जाता है,… आगे पढ़ें

आधार का कोई आधार नहीं

आधार की ‘संवैधानिकता और अनिवार्यता’ पर सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है। आखिरकार आधार को संवैधानिक घोषित करते हुए उसमें कई फेर–बदल किये गये हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आधार को पैन से जोड़ने का फैसला बरकरार रहेगा, परन्तु अब बैंक खाते को आधार से जोड़ना जरूरी नहीं होगा। साथ ही मोबाइल को भी आधार से जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस मामले में सुनवाई करने वाली सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित पीठ का फैसला एक सुर में नहीं था। एक ओर जस्टिस ए के सीकरी, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर का फैसला एक मत में सामने आया। वहीं जस्टिस चन्द्रचूढ़ और ए भूषण की अपनी व्यक्तिगत राय थी। लेकिन जस्टिस ए भूषण ने स्पष्ट किया कि वह बहुमत के फैसले से सहमत हैं। जस्टिस चन्द्रचूढ़ ने पूरे मामले पर अपनी असहमति जताते हुए कहा, आधार का मामला 2009 से ही संवैधानिक तौर पर गलत है… आगे पढ़ें

आयुष्मान भारत योजना : जनता या बीमा कम्पनियों का इलाज?

फरवरी 2018 में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ‘आयुष्मान भारत योजना’ की घोषणा करते हुए कहा था कि इस योजना से 10 करोड़ गरीब जरूरतमन्द परिवारों को इलाज के लिए आर्थिक मदद मिलेगी। यह एक बीमा योजना है, जिसमें 1100–1200 रुपये सालाना प्रीमियम भरना होगा। इसका ज्यादातर हिस्सा सरकार देगी। एक परिवार इलाज के लिए साल में 5 लाख रुपये तक की बीमा राशि ले सकता है। लेकिन इस योजना का लाभ उन नागरिकों को मिलेगा जिनका नाम ‘सामाजिक–आर्थिक और जाति जनगणना’ (एसईसीसी, 2011) में दर्ज होगा। सुनने में यह योजना बड़ी अच्छी लगती है लेकिन वास्तव में यह एक मृग–मरीचिका से ज्यादा कुछ नहीं है। क्योंकि सरकार ने एसईसीसी में दर्ज होने की जो शर्त रखी है, उससे गरीब जनता का 95 फीसदी हिस्सा इस बीमा योजना से बाहर हो जाता है। अगर एसईसीसी की शर्तों को जान लें तो इस पूरी योजना की कलई खुल जाती है। एसईसीसी के… आगे पढ़ें

आरओ जल–फिल्टर कम्पनियों का बढ़ता बाजार

इतिहास में दर्ज सभ्यताएँ सबसे पहले नदियोंे के किनारे विकसित हुर्इं। अगर वहाँ साफ पानी न होता तो शायद यह सभ्यताएँ कभी वहाँ पैदा ही न होती। हमारी पृथ्वी को नीले ग्रह के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहाँ जल का विशाल भण्डार है। इसके चलते ही यहाँ जीवन सम्भव हो पाया है और इनसानी शरीर में भी 71 प्रतिशत हिस्सा पानी है। आप सोच रहे होंगे कि इन सब बातों का यहाँ क्या मतलब है तो मैं बता दूँ कि यही पानी जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती आज बेहद तेजी से अपनी गुणवत्ता और स्तर खो रहा है। यह बात आज किसी न्यूज चैनल या अखबार द्वारा पुख्ता होने का इन्तजार नहीं करती कि हमारे जलस्रोत संकट में है। पानी हद से ज्यादा दूषित हो गया है। पानी रखे–रखे पीला हो जा रहा है और उसे जमीन से निकालने के लिए भी ज्यादा गहराई… आगे पढ़ें

आरटीआई पर सरकार का बड़ा हमला

अक्टूबर महीने के अन्त में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) पर चिन्ता जताते हुए कहा कि केन्द्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग में अधिकारियों के न होने पर यह एक ‘मृत कानून’ बनता जा रहा है। केन्द्रीय सूचना आयोग इस वर्ष सूचना के अधिकार की अट्ठारहवीं सालगिरह पर साढ़े तीन लाख आरटीआई अपीलों और शिकायतों के निपटारे का जश्न मना रहा है। इस जश्न की झूठी रौनक में इस तथ्य को छिपा दिया गया है कि आयोग के पास तीन लाख से ज्यादा मामले और शिकायतें लम्बित पड़ी हैं और इनके निबटान के लिए अधिकारी मौजूद नहीं हैं। आरटीआई अधिनियम 12 अक्टूबर 2005 में लागू किया गया था। खुद शासक वर्ग के लोगों ने भी इसकी तारीफ की थी। उस समय इसकी खासियतों की प्रशंसा करते हुए इसे भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कदम बताया गया था। इसका उद्देश्य… आगे पढ़ें

आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किसके हित में

5 जून को सरकार एक पुराने कानून ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन सहित दो नये कानून लेकर आयी है। दो नये कानूनों–– फार्मर एम्पावरमेण्ट एण्ड प्रोटेक्शन एग्रीमेण्ट ऑन प्राइस एश्युरेंस एण्ड फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस (एफएपीएएफएस–2020) और द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एण्ड कॉमर्स प्रमोशन एण्ड फेसिलिटेशन, (एफपीटीसी–2020) को उसने अध्यादेश के जरिये लागू किया है। इन अध्यादेशों को लागू करते समय कहा गया कि इससे किसानों को उनकी उपज के सही दाम मिलेंगे और उनकी आय में बढ़ोत्तरी होगी। अगर इन अध्यादेशों से किसानों का ही फायदा है तो क्यों देश भर के किसान संगठन, मण्डी समितियों में काम करने वाले छोटे व्यापारी और कर्मचारी इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं और इसे रद्द करने की माँग कर रहे हैं? और क्यों कृषि उत्पाद के व्यापार में लगे बड़े सरमायेदार इस अध्यादेश के लिए सरकार की तारीफ कर रहे हैं? दरअसल, सरकार ने जो कानून बनाये हैं, उनसे किसानों से… आगे पढ़ें

इजराइल–अरब समझौता : डायन और भूत का गठबन्धन

13 अगस्त 2020 को इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने एक शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किया। मिस्र और जॉर्डन के बाद यह तीसरा ऐसा देश है जो औपचारिक रूप से इजराइल के साथ अपने राजनयिक रिश्ते कायम करने के लिए तैयार हो गया है। यूएई ऐसा करने वाला अरब जगत का पहला देश है। इस समझौते में इजराइल, फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक के भूभाग कब्जाने की योजनाओं को टालने पर सहमत हो गया। ऐसा करके इजराइल ट्रम्प की मंशा को ही पूरी कर रहा है। बदले में यूएई अपने यहाँ इजराइल को पूँजी निवेश करने की छूट देगा। इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू अमरीका की कठपुतली है और इसके बदले में अमरीका उसे सत्ता में बने रहने में मदद करता है। नहीं तो पूर्ण बहुमत न होने के बावजूद वह अपनी कुर्सी पर काबिज कैसे रहता? नेतन्याहू पर चुनाव में धाँधली करने के आरोप हैं और इजराइली जनता बड़ी संख्या में… आगे पढ़ें

इण्टरनेट सेवाएँ बन्द करना कितना लोकतांत्रिक है

4 अगस्त 2019 से कश्मीर में धारा 370 के खात्मे के बाद इण्टरनेट सेवाएँ 174 दिनों तक बन्द कर दी गयीं। इतने लम्बे समय तक इण्टरनेट बन्द रहने की यह पहली और एकमात्र घटना है। सीएए के प्रदर्शन के बाद भी कई राज्यों में इण्टरनेट सेवाओं को बन्द किया गया। इस तरह भारत दुनिया भर में इण्टरनेट को बन्द करने के मामले में पहले स्थान पर पहुँच गया है। देश में सरकार विरोधी किसी भी आन्दोलन में इण्टरनेट बन्द कर दिया जाना सरकार के लिए एक जरूरी कदम जैसा हो गया है। यह सरकार की धूमिल होती छवि को भी दिखाता है। टॉप–टेन–वीपीएन वेबसाइट के अनुसार भारत में इण्टरनेट बन्द करने के लिए 100 से ज्यादा लिखित आदेश जारी किये गये। इससे लगभग 9,100 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ। दूरसंचार कम्पनियों के शीर्ष संगठन सीओएआई (सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया) के अनुसार एक घण्टा इण्टरनेट बन्द होने से दूरसंचार… आगे पढ़ें

उत्तर प्रदेश : लव जेहाद की आड़ में धर्मान्तरण के खिलाफ अध्यादेश

25 नवम्बर को टाइम्स ऑफ इण्डिया के पहले पन्ने पर ‘जबरदस्ती धर्मान्तरण’ और ‘लव जेहाद’ से सम्बन्धित तीन खबरें हैं। पहली खबर विधायिका, दूसरी कार्यपालिका और तीसरी न्यायपालिका की कार्यवाही से सम्बन्धित है। जो हमारे देश में लोकतन्त्र को संचालित करने वाली शासन प्रणाली के तीन अंग हैं। देखें कि इन तीनों की गतिविधियों में कितना तालमेल है और व्यवस्था के तीनों अंग एक ही मुद्दे को किस तरह देखते हैं। पहली खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की कैबिनेट ने 24 नवम्बर को एक मसविदा अध्यादेश स्वीकृत किया, जिसका उद्देश्य शादी लिए धर्मान्तरण से निपटना है। पिछले कुछ हफ्तों के भीतर भाजपा शासित राज्यों–– उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश में कथित रूप से शादी की आड़ में हिन्दू महिलाओं को इस्लाम में धर्मान्तरण करने की कार्रवाई को, जिसे हिन्दूवादी संगठन ‘लव जेहाद’ कहते है उसे रोकने के लिए कानून बनाने की चर्चा चल रही थी, सरकार… आगे पढ़ें

उत्तर प्रदेश में गैरकानूनी पोस्टर लगाकर प्रदर्शनकारियों से हरजाना वसूला गया

मार्च में उत्तर प्रदेश की सरकार ने सारे कानूनों को ताक पर रखकर लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर सार्वजनिक तौर पर जारी किये। इन पोस्टरों में 57 लोगों की फोटो, उनका पूरा नाम और पता लिखा गया। सरकार ने बिना किसी कानूनी कार्यवाही के इन्हें दंगाई घोषित कर दिया। इन पर ‘नागरिकता संसोधन कानून’ का विरोध करते हुए सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने और तोड़–फोड़ करने का मनमाना आरोप लगाया गया। पोस्टर में लिखा गया कि इन्हें प्रशासन को एक करोड़ 15 लाख का मुआवजा चुकाना होगा और ऐसा न करने पर उनकी सम्पत्ति तक कुर्क कर ली जायेगी। उत्तर प्रदेश सरकार की बदले की भावना से की गयी कार्रवाई को देखते हुए इलाहबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया और रविवार को ही लखनऊ के पुलिस कमीश्नर और डीएम को उच्च–न्यायलाय में हाजिर होने के आदेश दिया। मुख्य न्यायाधीश… आगे पढ़ें

उत्तर प्रदेश में मीडिया की घेराबन्दी

(पत्रकारों पर हमले के बारे में ‘काज’ समिति की रिपोर्ट) पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (काज) ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान की पूर्व संध्या पर बुधवार को चैंकाने वाले आँकड़े जारी किये। समिति की रिपोर्ट ‘मीडिया की घेराबन्दी’ के अनुसार प्रदेश में पिछले पाँच साल में पत्रकारों पर हमले के कुल 138 मामले दर्ज किये गये जिनमें पचहत्तर फीसदी से ज्यादा मामले 2020 और 2021 के दौरान कोरोनाकाल में हुए। समिति के मुताबिक 2017 से लेकर जनवरी 2022 के बीच उत्तर प्रदेश में कुल 12 पत्रकारों की हत्या हुई। ये मामले वास्तविक संख्या से काफी कम हो सकते हैं। इनमें भी जो मामले जमीनी स्तर पर जाँचें जा सके हैं उन्हीं का विवरण रिपोर्ट में दर्ज है। जिनके विवरण दर्ज नहीं हैं उनको रिपोर्ट में जोड़े जाने का आधार मीडिया और सोशल मीडिया में आयी सूचनाएँ हैं। सबसे ज्यादा हमले राज्य और प्रशासन… आगे पढ़ें

उत्तराखण्ड : थानो जंगल कटान, विकास के नाम पर विनाश

 उत्तराखण्ड का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले जो तस्वीर बनती है वह है हरे–भरे जंगल, पहाड़, जंगली जानवर, बर्फ, ठंडा मौसम और हर वह चीज जो रूह को सुकून दे सके। जहाँ एक तरफ हमारी सरकार हरा–भरा राज्य होने की डींगें हाँकती है, वहीं दूसरी ओर राजधानी से 20 किलोमीटर दूर, उत्तराखंड सरकार ने 243 एकड़ वन भूमि को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) को हस्तान्तरित करने के लिए राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की मंजूरी लेने का फैसला किया है। यदि स्वीकृति दे दी गयी, तो देहरादून के जौलीग्राण्ट हवाई अड्डे के विस्तार के लिए थानो रेंज में 10,000 से अधिक पेड़ों को काट दिया जायेगा।  थानो के जंगल में कुल 9,745 पेड़ हैं जिसमें खैर (3,405), शीशम (2,135), सागौन (185) और गुलमोहर (120) जैसी कीमती प्रजातियाँ शामिल हैं। साथ ही पेड़ों की 25 अन्य प्रजातियाँ भी हैं जिन्हें काटने का प्रस्ताव है। इस क्षेत्र में पक्षियों… आगे पढ़ें

उत्तराखण्ड मेडिकल कॉलेज की फीस वृद्धि के खिलाफ छात्र आन्दोलन

उत्तराखण्ड में पहले एमबीबीएस और उसके बाद आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने फीस वृद्धि के खिलाफ जुझारू आन्दोलन चलाया। आज स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि सरकार और प्रशासन छात्रों की अवाज सुनने के बजाय फीस बढ़ानेवाले निजी कॉलेज मालिकों के सामने नतमस्तक हो रहे हैं। उत्तराखण्ड राज्य में 13 निजी और सिर्फ 3 सरकारी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज हैं। अक्टूबर 2015 में 13 निजी कॉलेज मालिकों ने मनमाने ढंग से छात्रों की फीस 80,000 रुपये से लगभग ढाई गुना बढ़ाकर 2,15,000 रुपये कर दी। हर राज्य में निजी कॉलेजों की फीस निर्धारण के लिए एक “फीस निर्धारण समिति” होती है, जिसका अध्यक्ष हाई कोर्ट का रिटायर्ड जज होता है। सिर्फ यही समिति फीस निर्धारण का फैसला लेती है। लेकिन आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के मालिकों में धन्ना सेठ, रिटायर्ड अधिकारी, उद्योगपति और सरकार में बैठे मंत्री शामिल हैं। फीस बढ़ने से 2000 छात्रों के अभिभावकों पर भारी आर्थिक बोझ… आगे पढ़ें

उनके प्रभु और स्वामी

राजनीति विज्ञान के साहित्य में एक परिचित शब्द है–– लोकतांत्रिक बर्बरता। लोकतांत्रिक बर्बरता अक्सर एक न्यायिक बर्बरता द्वारा कायम होती है। “बर्बर” शब्द के कई रूप हैं। अदालती फैसले लेने में मनमानी इसका पहला रूप है। कानून को लागू करना न्यायाधीशों की मनमानी पर इतना निर्भर हो जाता है कि कानून या संवैधानिक नियमों का कोई मतलब नहीं रह जाता है। कानून दमन का एक साधन बन जाता है या, कम से कम, यह दमन को बढ़ाता है और उसे शह देता है। आमतौर पर इसका मतलब होता है नागरिक स्वतंत्रता और असन्तुष्टों के लिए कमजोर संरक्षण और राजसत्ता के प्रति, खासकर संवैधानिक मामलों में बेहद सम्मान। अदालत भी राजद्रोह की अपनी परिभाषा को लेकर ज्यादा ही सचेत होने लगती है–– एक डरे हुए सम्राट की तरह, अदालत की भी गम्भीरता से आलोचना या मजाक नहीं किया जा सकता। इसकी महिमा इसकी विश्वसनीयता से नहीं बल्कि अवमानना की शक्ति से… आगे पढ़ें

एआई : तकनीकी विकास या आजीविका का विनाश

2 मई 2023 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की प्रसिद्ध जगह, “टाइम्स स्क्वायर” पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते इस्तेमाल के विरोध में एक बड़ी हड़ताल हुई। इस हड़ताल में मुख्य रूप से हॉलीवुड के अभिनेता, लेखक और कर्मचारी शामिल हुए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हॉलीवुड से जुड़े संस्थानों ने भी करना शुरू कर दिया है जिसकी मदद से वह किसी लेखक, अभिनेता और मेकअप आर्टिस्ट के बिना भी कोई फिल्म तैयार कर सकते हैं। नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम, वार्नर ब्रदर्स जैसे बड़े संस्थान इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की तकनीकों का इस्तेमाल व्यवस्था के बहुत से क्षेत्रों में किया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप बहुत से लोगों को नौकरियों से हटाकर उनकी जगह एआई लेता जा रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धि को सामान्य भाषा में मशीनों का दिमाग भी कह सकते हैं। इसके तहत मशीनों में इनसानी अनुभवों और कार्य करने की कुशलता को… आगे पढ़ें

एटलस साइकिल की फैक्ट्री में तालाबन्दी : मसला घाटे का नहीं जमीन का है

कोरोना महामारी के दौर में चारों तरफ से कम्पनियों के बन्द होने की खबरें लगातार आ रही हैं। कई उद्योगों के मालिकों ने घाटे का हवाला देकर अपनी कम्पनियाँ ही बन्द कर दी हैं। एटलस साइकिल कम्पनी ने पिछले दिनों साइकिल दिवस के अवसर पर ही अपना आखिरी बचा साहिबाबाद प्लाण्ट भी बन्द कर दिया। आचनक कम्पनी बन्द हो जाने की घोषणा से काम कर रहे मजदूरों की जिन्दगी में भूचाल आ गया। भविष्य की चिन्ताओं में सभी कर्मचारियों की जीवन धारा विपरीत दिशा में मोड़ दी गयी है, पहले ही टेढ़े–मेढ़े और कठिन रास्तों से गुजर रही थी। एटलस कम्पनी 60 साल से भारत में काम कर रही है। बाकी प्लाण्ट तो कम्पनी ने पहले ही बन्द कर दिये थे। साहिबाबाद का प्लाण्ट आखिरी था जो चल रहा था। इस प्लाण्ट में बहुत से मजदूर 20–25 साल से कम्पनी के लिए काम करते आ रहे थे। इन्होंने अपनी जिन्दगी… आगे पढ़ें

एबीवीपी की अराजकता

26 जून 2018 को गुजरात के कच्छ विश्वविद्यालय में आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के नेताओं ने छात्र चुनाव में धाँधली का आरोप लगाते हुए एक प्रोफेसर के मुँह पर कालिख पोत दी। विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर चन्द्रसिंह जडेजा ने बताया कि एबीवीपी छात्रों का एक समूह चुनाव समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर गीरीन बख्शी के पास उस समय पहुँचा जब वह कक्षा में लेक्चर दे रहे थे। उस समूह ने उन्हें कक्षा से बाहर खींच लिया और उनके मुँह पर कालिख पोतकर रजिस्ट्रार कार्यालय तक जुलूस निकाला। छात्रों ने प्रोफेसर बख्शी पर आरोप लगाया कि वह वोटर रजिस्ट्रेशन फार्मों को जानबूझकर निरस्त कर रहे थे। जाँच में यह आरोप पूरी तरह झूठा साबित हुआ। इसी से मिलती–जुलती एक घटना 10 जनवरी 2018 की गिरडीह कॉलेज की है, जहाँ पर दो सहायक प्रोफेसरों डॉ– बलभद्र सिंह और नीतेश कुमार पर रात करीब साढ़े नौ बजे हमला किया… आगे पढ़ें

एरिक्सन की सर्वोच्च न्यायालय से अपील : अनिल अम्बानी को देश से बाहर न जाने दें

अनिल अम्बानी के देश छोड़कर भागने की आशंका जताते हुए एरिक्सन कम्पनी ने सर्वोच्च न्यायालय में एक अपील दायर करके कहा कि अम्बानी पर कड़ी नजर रखी जाये। अनिल अम्बानी की कम्पनी रिलायंस कम्युनिकेशन (आरकॉम) पर लगभग 45 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। देश के पूँजीपतियों द्वारा बैंकों के कर्ज न चुकाने और देश छोड़कर भाग जाने के सिलसिले को देखते हुए अनिल अम्बानी के देश छोड़कर भाग जाने की सम्भावना चिन्ता का विषय है। अब तक नीरव मोदी 12 हजार करोड़, विजय माल्या 9 हजार करोड़ और ललित मोदी 7 हजार करोड़ रुपये लेकर नौ–दो–ग्यारह हो चुके हैं। देश के ऐसे कई और कारोबारी भी बैंकों के हजारों करोड़ रुपये लेकर रफ्फू–चक्कर हुए हैं। स्वीडन की टेलिकॉम उपकरण निर्माता कम्पनी एरिक्सन ने 2014 में आरकॉम के टेलिकॉम नेटवर्क के परिचालन और प्रबंधन के लिए 7 साल का करार किया गया था। जिसके चलते आरकॉम पर एरिक्सन का 978… आगे पढ़ें

ऑनलाइन कम्पनी फ्लिपकार्ट का वालमार्ट से गठजोड़

खुदरा व्यापार के क्षेत्र में दुनिया भर में दैत्य के नाम से बदनाम वालमार्ट कम्पनी इन्टरनेट के माध्यम से कारोबार करनेवाली कम्पनी फ्लिपकार्ट से गठजोड़ कर रही है। वालमार्ट का यह कदम भारत में ऑनलाइन व्यापार में अपनी जगह बनाने और यहाँ के बाजार पर पूरी तरह से कब्जा करने के इरादे से उठाया गया है। यह करार 1.07 लाख करोड़ रुपये का है जिसमें वालमार्ट का 77 फीसदी शेयर होगा, यानी मालिकाना वालमार्ट का होगा। वही इस नयी कम्पनी को संचालित करेगी। इस सौदे को लेकर छोटे दुकानदारों में काफी गुस्सा है। चेंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री, किसान संगठन और कुछ विपक्षी पार्टियों ने इसे जनविरोधी बताते हुए, इसके खिलाफ प्रदर्शन करने का फैसला किया है। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव ने कहा है कि देश में ऑनलाइन व्यापार के लिए कोई नीति और नियामक नहीं है। इसके चलते खुदरा कम्पनियों द्वारा अधिक छूट देकर कम मूल्य… आगे पढ़ें

ऑस्ट्रेलिया की आग का क्या है राज?

बीते दिसम्बर में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग ने भयानक रूप ले लिया। इसने लगभग सौ करोड़़ जीव–जन्तुओं को जलाकर राख कर दिया। इनमें इनसानों की अट्ठाईस जिन्दगियाँ भी शामिल हैं। ब्रिटेन के विशेषज्ञों का मानना है इस आग के चलते दस हजार करोड़़ जानवरों की जिन्दगी तबाह हो गयी। इस घटना ने दुनिया को झकझोर दिया और सन्देश दिया कि अब जलवायु आपातकाल पर बहस करने के दिन बीत गये हैं। खतरा मुहाने पर नहीं है, बल्कि हम खतरे से घिरे हुए हैं–– “धरती जल रही है।” ऑस्ट्रलियाई जंगल में लगी आग का इतिहास देखें तो पता चलता है कि साल 1920 के बाद से हर साल तापमान में लगातार वृद्धि होती गयी, जिसमें 1990 के बाद बहुत बड़ी छलांग लगी। 2019 सबसे गर्म साल था। यह साल 2018 की तुलना में औसतन डेढ़ डिग्री अधिक गर्म था। वहीं बारिश की भारी कमी ने ऑस्ट्रेलिया के बहुत बड़े हिस्से… आगे पढ़ें

कम्पनी राज : देश की शासन व्यवस्था प्राइवेट कम्पनियों के ठेके पर

30 जनवरी, 2024 को इंडियन एक्सप्रेस ने एक दिलचस्प खबर प्रकाशित की। उन्होंने आरटीआई के जरिये तमाम मंत्रालयों के अलग–अलग विभागों में कार्यरत सलाहकार तथा अन्य कर्मचारियों की संख्या के बारे में जानकारी हासिल की थी। खबर का शीर्षक था ‘कम्पनी राज’। इसके अनुसार भारत सरकार के 44 विभागों में संविदा या ठेके पर काम करने वाले सलाहकारों की संख्या है–– 1499। इन सलाहकारों की नियोक्ता भारत सरकार की कोई संस्था नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय सलाहकार कम्पनियाँ हैं जैसे एर्न्स्ट एंड यंग, पीडब्ल्यूसी, डेलोएट, केपीएमजी, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप आदि। इसके अलावा 76 अलग–अलग विभागों में 1037 यंग प्रोफेशनल, 539 स्वतंत्र सलाहकार, 354 क्षेत्र विशेषज्ञ, 1481 अवकाशप्राप्त सरकारी अफसर तथा 20,376 निम्नपद के कर्मचारी को ठेके पर नियुक्त किया गया है। (इसी सम्बन्ध में फरवरी 2023 को देश–विदेश पत्रिका अंक 42 में ‘प्रशासन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के ठेके पर’ एक लेख प्रकाशित हुआ था। इस लेख में दफ्तरों में… आगे पढ़ें

कश्मीर : यहाँ लाशों की तस्वीर लेना मना है

7 अप्रैल को जम्मू कश्मीर पुलिस ने एक निर्देश जारी कर पत्रकारों पर सेना की मुठभेड़ वाली जगह के नजदीक आने और उसका प्रसारण करने पर रोक लगा दी। कश्मीर के आईजीपी विजय कुमार ने कहा है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि हिंसा को फैलने से रोका जा सके क्योंकि ऐसी रिपोर्टिंग से देश विरोधी भावना भड़कती है और सैन्य बलों की गोपनीयता भंग होती है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया (ईजीआई) ने 17 अप्रैल को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इस निर्देश की कड़ी निन्दा की और इसे लोकतंत्र विरोधी कदम बताते हुए तुरन्त वापस लेने की माँग की है। गिल्ड ने कहा है कि शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर लिया गया पुलिस का यह फैसला अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा बलों की गलत कार्रवाइयाँ छुपाने का एक तरीका है। संघर्ष वाले क्षेत्रों से लाइव रिपोर्टिंग करना, जिसमें सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच एनकाउंटर भी शामिल है, किसी… आगे पढ़ें

किसान आन्दोलन : लीक से हटकर एक विमर्श

–– सुरेन्द्र पाल सिंह  वर्तमान किसान आन्दोलन प्रकट रूप से तीन नये कानूनों के विरोध में हैं। लेकिन कोई भी मुहिम या आन्दोलन का सिलसिला तभी तक ऊर्जापूर्ण रह सकता है जब तक उसके पीछे अव्यक्त कारक सक्रिय हों। समाजशास्त्रीय भाषा में इसे लैटेण्ट फंक्शन कहा जाता है। यह लैटेण्ट फंक्शन ही है जो किसी सामाजिक संस्था या पम्परा को कायम रखते हैं। यह आन्दोलन एक ऐतिहासिक आन्दोलन है क्योंकि यह केवल तीन कानूनों को रद्द करवाने के मुद्दे से ही ऊर्जा ग्रहण नहीं कर रहा है बल्कि दर्जनों आयाम इसको मजबूती प्रदान कर रहे हैं। सन 2014 के बाद से हमारा देश एक नयी राजनीतिक–सामाजिक संस्कृति का न केवल साक्षी है बल्कि भुक्तभोगी भी है। हरेक प्रकरण की एक नये सिरे से व्याख्या की जा रही है जिसका केन्द्रबिन्दु किसी ना किसी प्रकार से हिन्दू बनाम मुसलमान रहा है। यह मुद्दा लगातार जिन्दा रहे उसके लिए मुख्य धारा की… आगे पढ़ें

किसान आन्दोलन के खिलाफ फेसबुक का सरकारपरस्त रवैया

फेसबुक पर पिछले कई हफ़्तों से जारी किसान आन्दोलन के मामले में सरकारपरस्त होने का आरोप लग रहा है। किसान एकता मोर्चा ने अपनी बात ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए फेसबुक पर अपना खाता खोला और लोगों को उससे जुड़ने की अपील की। 20 दिसम्बर को जब इस पेज पर किसानों के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण हो रहा था, तब अचानक इस पेज को बन्द कर दिया गया। हालाँकि सोशल मीडिया पर तमाम लोगों ने इसके खिलाफ जबरदस्त आक्रोश जताया। उनके अभियान के चलते फेसबुक ने किसानों के इस पेज से पाबन्दी हटा दी और साथ सफाई भी दिया है कि स्वचालित प्रोग्राम ने जब पाया की इस पेज पर गतिविधि बहुत ज्यादा बढ़ रही है, तब गलत तथ्य प्रसारित होने से रोकने के लिए प्रोग्राम ने खुद ही इस पेज को निष्क्रिय कर दिया। लेकिन जब मुस्लिम–विरोधी, महिला–विरोधी, दलित–विरोधी और फासीवादी पेज पर गतिविधि बढ़ती है, तब यही… आगे पढ़ें

किसान आन्दोलन को तोड़ने का कुचक्र

13 दिसम्बर 2020 की टाइम्स ऑफ इण्डिया की एक खबर के अनुसार आईआरसीटीसी और अन्य सरकारी विभाग उन लोगों को इमेल भेज रहे हैं जो “पंजाब” से हों और उनके नाम के साथ “सिंह” आता हो। इस इमेल में 47 पेज की एक पीडीएफ फाइल है जो हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेजी भाषा में है। इसका शीर्षक है “मोदी और उनकी सरकार का सिखों के साथ विशेष सम्बन्ध।” आईआरसीटीसी के मुख्य अधिकारी सिद्धार्थ सिंह का भी बयान आया है कि इस तरह के इमेल सरकार के सभी विभागों द्वारा भेजे जा रहे हैं। इस घटना से दो सवाल उठते हैं ? पहला कि यह इमेल केवल उन लोगों को ही क्यों भेजे जा रहे हैं जो पंजाब से सम्बन्ध रखते हैं ? दूसरा सवाल, यह इमेल केवल उन लोगों को ही क्यों भेजे जा रहे हैं जिनके नाम के साथ सिंह आता है ? इन इमेलों के माध्यम से सरकार विशेष… आगे पढ़ें

कुपोषण से बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन

इसी साल जुलाई में पूर्वी दिल्ली के मंडावली इलाके में हुई तीन बच्चियों की मौत की अटॉप्सी रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि तीनों बच्चियों की मौत भूख और कुपोषण के कारण हुई थी। भूख और कुपोषण से मौत का यह सिलसिला बादस्तूर जारी है। मध्यप्रदेश के सतना जिले में दो दशकों से भी अधिक समय से कुपोषण एक बड़ी समस्या बना हुआ है। पिडरा आदिवासी बस्ती में सितम्बर माह में आनन्द नाम के एक मासूम की कुपोषण के चलते मौत हो गयी। माँ और पिता की हालत भी नाजुक है। यहां तक कि इस परिवार को तीन माह से राशन भी नहीं मिला। तीसरी घटना, नवम्बर माह में ही बंगाल के लालगढ़ जिले की है। जंगलखाश गाँव में रहने वाले शबर जनजाति के 7 लोगों की मौत हो गयी। इन में से अधिकतर लोगों की मौत की वजह भूख और कुपोषण है। कुपोषण बच्चों को सबसे अधिक… आगे पढ़ें

कृषि कानून खेत मजदूरों के हितों के भी खिलाफ हैं

पंजाब में 32 प्रतिशत आबादी मजहबी या रामदासिया समुदाय से आनेवाले दलितों की है, लेकिन उनके पास सिर्फ 3 प्रतिशत जमीन का ही मालिकाना है। इतनी बड़ी आबादी के लिए यह जमीन खेती करने के लिए अपर्याप्त है। इसलिए इस समुदाय की बड़ी आबादी बड़े किसानों के खेतों में 350 रुपये दिहाड़ी पर खेती का काम करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में 11 लाख श्रम बल कार्यरत था जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत खेतिहर मजदूर था। इनमें अधिक संख्या दलितों (मजहबी या रामदासिया) की है। इसके अलावा खेती से जुड़े व्यवसाय पर भी बड़ी आबादी का जीवन निर्भर है। लेकिन ये खेत मजदूर, खेती से जुड़े अलग–अलग व्यवसाय करने वाले लोग और छोटे किसान भी बड़ी संख्या में नये कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे देशव्यापी किसान आन्दोलन में बढ़–चढ़कर हिस्सेदारी और समर्थन कर रहे हैं। ऐसा क्यों ? दरअसल सरकार और सरकार पोषित मीडिया लगातार इस… आगे पढ़ें

कोयला खदान मजदूरों की जद्दोजहद

दिसम्बर 2018 में मेघालय की एक 370 फीट गहरी संकरी कोयला खदान में 15 मजदूर फँस गये। उन्हें बचाने के लिए चले बचाव अभियान ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। इस बचाव अभियान के दौरान आधुनिक उपकरणों के अभाव से जूझती राहत और बचाव एजेंसियों की बेबशी तथा जानलेवा खदानों से कोयला निकालने वाले मजदूरों की जिन्दगी की असलियत का पता चला। मजदूरों की कब्रगाह बनीं इन 300 से 400 फीट लम्बी खदानों में मजदूर लेटकर घुसते हैं और कोयला निकालते हैं। 13 दिसम्बर को 15 मजदूर पूर्वी जयन्तिया हिल्स जिले के शान गाँव के पास एक संकरी गुफा के अन्दर कोयला निकालने के लिए गये थे। लेकिन खदान के अन्दर पानी भर जाने  के कारण उसी में फँस गये। किसी तरह एक मजदूर खदान से बाहर निकलने में सफल रहा। उसने बाकी मजदूरों के गुफा में फँसे होने की सूचना स्थानीय लोगों को दी। सरकारी बचाव… आगे पढ़ें

कोयला खदानों के लिए भारत के सबसे पुराने जंगलों की बलि!

पूरी दुनिया जलवायु आपातकाल में पहुँच चुकी है। उसके बावजूद सरकारें इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं। पिछले कई दशकों से पर्यावरण कानूनों की धज्जियाँ उड़ायी गयीं। और तो और तबाह करने वाले नये–नये फरमान जारी किये गये। पर्यावरण मंत्रालय की ‘फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी’ ने ऐसा ही एक फरमान जनवरी 2019 को जारी किया जिसमें उत्तरी छत्तीसगढ़ के ‘हंसदेव अरंद’ जंगलों में स्थित “परसा कोयला खण्ड” की माइनिंग से जुड़े स्टेज फर्स्ट को मंजूरी दे दी गयी। जंगलों को काट कर इस फैसले से इलाके के 40 कोयला खदानों से कोयला निकालने का रास्ता साफ हो गया है। 4,20,000 एकड़ में फैले जंगलों को काटकर चार बड़े कोयला ब्लॉक बनाये जाएँगे। यह जंगल घने साल वृक्षों, दुर्लभ पौधों, साल भर निरन्तर बहने वाली जल धाराओं और दुर्लभ जीव–जन्तुओं की प्रजातियों से सुशोभित है। यहाँ का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी है। हजारोें वर्षों से… आगे पढ़ें

कोरोना और कुम्भ मेला

हाल ही में मध्यप्रदेश के विदिशा में हरिद्वार कुम्भ से लौटे 83 लोगों में से 60 कोरोना संक्रमित पाये गये। जबकि इनमें से 5 गम्भीर से रूप से संक्रमित हो गये। इनके अतिरिक्त 22 लोगों की अभी कोई जानकारी नहीं मिली है जो कुम्भ में शामिल हुए थे। देशभर से कुम्भ में शामिल हुए लोगों ने कुम्भ समाप्त होने पर अपने घरों की और लौटना शुरू कर दिया। विदिशा की यह घटना स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा पूर्व में कुम्भ को लेकर जतायी जा रही चिन्ताओं में से एक है। पहले स्वास्थ से जुड़े विशेषज्ञों ने कोरोना के तेजी से फैलते संक्रमण को देखते हुए सरकार से कुम्भ को रद्द किये जाने की अपील की थी, लेकिन उत्तराखण्ड सरकार ने कुम्भ को रद्द किये जाने के बजाय कहा कि “कोविड–19 के नाम पर किसी को भी मेले में आने से नहीं रोका जायेगा। ईश्वर में आस्था वायरस को खत्म कर देगी। मुझे… आगे पढ़ें

कोरोना जाँच और इलाज में निजी लैब–अस्पताल फिसड्डी

सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर आमादा है, जबकि निजी अस्पताल कोविड–19 के इलाज और जाँच में फिसड्डी साबित हुए हैं। सरकार ने निजी अस्पतालों की जाँच फीस काफी मँहगी तय की, जबकि इन अस्पतालों द्वारा उससे कहीं ज्यादा फीस वसूलने या जाँच में आनाकानी करने के मामले भी सामने आये। निजी अस्पतालों की मुनाफाखोरी तो जगजाहिर है, इस महामारी से निपटने में, इलाज और जाँच के मामले में उनकी लापरवाही भी खुलकर सामने आयी है। देश में कुल कोविड–19 जाँच लैब में 30 प्रतिशत निजी क्षेत्र के हैं, जबकि कुल जाँच में इनकी भूमिका सिर्फ 12–18 प्रतिशत है। दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों को छोड़कर बाकी जगहों में सरकारी लैब की तुलना में इनके जाँच का अनुपात तो बहुत ही कम है। इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक सरकार ने कोविड–19 की जाँच के लिए 607 लैब को अनुमति दी, जिनमें से 180 लैब यानी लगभग 30 प्रतिशत… आगे पढ़ें

कोरोना ने सबको रुलाया

(शरण आलम–ए–इनसानियत में ही मयस्सर है इनसाँ को चैन–ओ–सुकून) देश–भर में कोरोना महामारी को लेकर खौफ का माहौल है। आवाम कोरोना की बढ़ती महामारी को देखकर आलम–ए–हिरमाँ (निराशा की स्थिति) में है। हर रोज लगभग तीन लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं। कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में 42 करोड़ रुपये रिसर्च पर खर्च करने के बाद भी सरकार कोरोना वायरस के सामने पस्त हिम्मत दिख रही है। वैक्सीन लगने के बाद भी लोगों के संक्रमित होने के मामले सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष की कोरोना लहर के खिलाफ तथाकथित राष्ट्रवादी सरकार ताली–थाली, मोमबत्ती, टार्च जैसे आडम्बर रचकर खुद को सच्ची जन हितैषी सरकार साबित करने की जुगत में लगी रही, लेकिन परिणाम ही रहे ढाक के तीन पात। टॉर्च से कोरोना भगाने की घटना से सरकार की कूपमण्डूकता जगजाहिर हो रही है। इस वर्ष की भीषण महामारी को देखकर लगता है कि सरकार ने पिछले… आगे पढ़ें

कोरोना महामारी बनाम अन्य बीमारियाँ

पूरी दुनिया पर कोविड–19 का साया मण्डरा रहा है। हर प्रकार के सर्दी–जुकाम के लिए जिम्मेदार “कोरोनावायरस” नामक विषाणु–परिवार के इस वायरस का असल नाम “सार्स–कॉव–2” है। इस बीमारी ने दुनिया में खास तौर पर अमीर और विकसित देशों को अपना निशाना बनाकर उनकी कमर तोड़ दी है। लेकिन भारत में भी यह बीमारी अब भयानक रफ्तार से बढ़ती जा रही है। इससे निपटने के लिए सरकार तीन लॉकडाउन कर चुकी है। पूरा देश ठप्प है। दुनिया के अधिकतर देशों की ही तरह भारत में भी इस वायरस को लाने वाले अमीर और उच्च वर्ग से लोग हैं, इनसे भी ज्यादा जिम्मेदार वह सरकार है जिसने इन्हें समाज से अलग रखने की जरूरत ही महसूस नहीं की। कोविड–19 के इलाज के लिए अभी तक कोई वैक्सीन या दवाई वैज्ञानिक नहीं खोज पाये हैं। हालाँकि भारत की अधिकांश जनता तो सैकड़ों ऐसी बीमारियों से मरने को मजबूर है, जिनका इलाज सम्भव… आगे पढ़ें

कोरोना वैक्सीन : महामारी के समय मुनाफे का जैकपॉट

15 फरवरी 2022 को ‘मेडिकल प्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2021 तक बनायी गयी कुल वैक्सीन का सिर्फ 0–7 प्रतिशत ही गरीब और कम आय वाले देश के लोगों को दिया गया। दूसरी तरफ, ज्यादा आय वाले देशों को इसका 47 गुना दिया गया। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि वैक्सीन को निजी मालिकाने वाली कम्पनियों ने बनाया। इस तथ्य से एक बात साफ–साफ समझी जा सकती है कि मौत के सौदागरों के सामने गरीब और अमीर की जान की कीमत अलग–अलग है। सरकारों का रवैया अमरीकी राष्ट्रपति ने पेटेण्ट में छूट की बात को मीडिया के सामने कहा और वाह–वाही लूटी। उन्होंने इसे लागू करने के लिए अभी तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया। युरोपियन यूनियन ने पेटेण्ट में छूट की बात को सिरे से नकार दिया। भारत ने भी वैक्सीन के पेटेण्ट में छूट नहीं दी। पेटेण्ट में छूट का मतलब है कि वैक्सीन बनाने… आगे पढ़ें

क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमान होना ही गुनाह है?

पिछले तीन सालों में जब से योगी सरकार सत्ता में आयी है, उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की हालत खास से आम वाली बन गयी हैं। इतना आम कि अब इसे खबरों के बीच जगह भी नहीं मिलती। इताना आम कि पुलिस के लिए भी किसी का मुसलमान होना अपराधी होने के बराबर है। मुस्लिमों पर फिर्जी मुकदमें लगा कर सालों जेल में रखा जाना भी आम बात है। इसकी नयी मिसाल मुख्य धारा की मीडिया के लिए आम बात थी, जो 25 मई 2020 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले के गाँव टपराना में सामने आयी। गाँव के दो युवक अफजल और नौशाद गौ–हत्या के केस में जिला बदर किये गये थे। यह ऐसा केस है जो किसी भी मुसलमान पर कभी भी लगाया जा सकता है। उनकी जिला बदरी का समय पूरा होने में सात, आठ दिन बाकी थे। ईद के त्यौहार के कारण वे दोनों अपने घर आये… आगे पढ़ें

क्या यौन हिंसा को पुलिस हिंसा से खत्म किया जा सकता है?

हैदराबाद में एक पशुचिकित्सक महिला डॉक्टर के साथ सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसको जला दिया गया। इस घटना को लेकर पूरे देश के लोगों में एक आक्रोश व्याप्त था और बलात्कारियों के लिए फाँसी की माँग को लेकर लोग सड़कों पर आ गये। पुलिस ने आनन–फानन में चारों आरोपियों को गिरफ्तार किया और उन्हें गोली मारकर बताया कि वे मुठभेड़ में मारे गये। टीवी चैनलों, अखबारों, सोशल मीडिया पर प्रचारित किया गया कि पीड़िता को सही इनसाफ मिला और पुलिस इंस्पेक्टर की खूब वाह–वाही हुई। क्या हत्या के बदले हत्या वाली इस प्रक्रिया को ठीक कहा जा सकता है? ये तो कबीलाई व्यवस्था–– खून के बदले खून की कार्रवाई है। भारतीय संविधान के अनुसार सजा देने का काम न्यायालय का है। पुलिस का काम उस न्यायालय की प्रक्रिया में सहयोग करना है। यदि पुलिस सजा देने लगेगी तो बिना आरोप सिद्ध हुए भी सजा देगी। कई मामलों में ऐसा… आगे पढ़ें

क्यूबा तुम्हारे आगे घुटने नहीं टेकेगा, बाइडेन

पिछले दिनों क्यूबा में भोजन और दवाई की कमी को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। इन प्रदर्शनों को साम्राज्यवादी मीडिया में ऐसे दिखाया गया मानो क्यूबा में समाजवादी सत्ता का तख्तापलट हो रहा हो। यह सच है कि क्यूबा लम्बे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहा है। कोरोना महामारी और वेनेजुएला से तेल आपूर्ति में भारी कमी ने और भी गम्भीर हालात पैदा कर दिये। इसके साथ ही अमरीकी प्रतिबन्धों के और ज्यादा कठोर हो जाने से देश में भोजन और दवाओं की भारी कमी हो गयी। कोरोना महामारी में हमने देशों को दूसरों की मदद करते देखा है, लेकिन क्यूबा के मामले में स्थिति बिल्कुल उल्टी है। सभी जानते हैं कि कोरोना की पिछली लहर के दौरान क्यूबा ने बहुत से देशों की मदद की थी। क्यूबा से मदद पाने वालें में यूरोपीय देश भी थे। लेकिन संकट की घड़ी में कोई भी यूरोपीय, एशियाई या… आगे पढ़ें

खाली जेब, खाली पेट, सर पर कर्ज लेकर मजदूर कहाँ जायें

कोरोना महामारी के दौरान शहरों से वापस अपने गाँव लौट रहे मजदूरों के सैलाब को अपनी आँखों से नहीं भी, तो मीडिया के मार्फत हम सब ने देखा। कोई इनकी संख्या तीन करोड़ बताता है, कोई 13 करोड़। सही संख्या चाहे जो हो लेकिन यह तय है कि ये सभी लोग मेहनत–मजदूरी करके कमाने वाले लोग हैं। अपनी और अपने परिवार की चिन्ता में मजदूर गाँव में चले तो गये थे, लेकिन वहाँ उनकी जीविका का कोई इन्तजाम नहीं था। मजबूरन उन्हें जल्दी ही उन शहरों की ओर लौटना पड़ा जहाँ नाममात्र के ही काम बचे हैं और महामारी का खतरा पहले से कहीं ज्यादा है। मार्च में लॉकडाउन के तुगलकी फरमान ने मजदूरों को उन्हीं गाँवों की ओर वापस धकेल दिया जिन्हें छोड़कर वे शहर आये थे। इससे पहले गाँव से शहर की ओर हुए पलायन की तमाम वजहों में सबसे महत्त्वपूर्ण थी मजदूरी की दर। आँकडे बताते हैं… आगे पढ़ें

खिलौना व्यापारियों के साथ खिलवाड़

30 अगस्त को मन की बात में प्रधानमंत्री ने खिलौना उद्योग के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में खिलौना उद्योग का कारोबार सात लाख करोड़ से भी अधिक है जिसमें भारत का हिस्सा बेहद कम है, आगे उन्होंने कहा कि खलौना उद्योग में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए छोटे और बड़े व्यापरियों को मिलकर मेहनत करनी होगी। उनकी इस बात से सदर बाजार में बैठे खिलौना व्यापारी नाराज हैं। सदर बाजार एशिया की सबसे बड़ी थोक मार्किट है। वहाँ के व्यापारियों का कहना है कि मोदी सरकार की कथनी–करनी में बड़ा फर्क है। भारत में खिलौनों का जो बाजार है, उसका करीब 80 प्रतिशत चीन से आयात करके पूरा होता है। साथ ही चीनी खिलौनें सस्ते और गुणवत्ता में भी बेहतर माने जाते है। टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, भारत में हर साल चीन से करीब चार हजार करोड़ रुपये के खिलौने आयात किये जाते हैं।… आगे पढ़ें

खुले में शौच के चलते दो बच्चों की हत्या और आँकड़ों की बाजीगरी

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में खुले में शौच के चलते दो बच्चों की पीट–पीटकर हत्या कर दी गयी। इससे स्वच्छ भारत अभियान की कलई खुल गयी। अपराधी व्यक्ति को निश्चित रूप से सजा मिलनी चाहिए, लेकिन इस घटना ने व्यवस्था के ऊपर ढेरों सवालों को जन्म दे दिया है। इंडिया टुडे को दिये अपने बयान में सफाई कर्मचारी आन्दोलन के मैगसेसे पुरस्कार विजेता बिजयार्ड विल्सन ने इस अभियान के चरित्र को गरीब–विरोधी बताया है। अपने बयान में उन्होंने कहा कि “भारत में लगभग 90 लाख बेघर लोग हैं। उनके पास घर कैसे होगा? और इसके बिना भारत खुले में शौच मुक्त कैसे हो सकता है?” ऐसा लगता है कि सरकार की घोषणाएँ महज खोखले दावें हैं जो सच्चाई से कोसों दूर हैं। अगर ऐसा है तो क्या दुनिया के सामने देश की झूठी तस्वीर पेश करने से देश का सम्मान नीचे नहीं गिर रहा है? महात्मा गाँधी के 150वें… आगे पढ़ें

खेल और खिलाड़ियों का इस्तेमाल ‘फेस पॉउडर’ की तरह भी हो सकता है!

8 अगस्त को सम्पन्न टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों ने कुल 7 पदक जीते हैं। भारत के पास इस खेल आयोजन में हिस्सेदारी का 121 साल का अनुभव है। इसके बावजूद बेहद लचर प्रदर्शन भारत में खेलों की दुर्दशा की तस्वीर दिखा देता है। भारत की जनसंख्या लगभग 136 करोड़ है। यह दुनिया की सबसे अधिक युवा अबादी वाला देश है। अगर आबादी और इस साल ओलम्पिक में हासिल पदक का अनुपात निकालें तो लगभग 20 करोड़ लोगों पर एक पदक का औसत आता है। आस्ट्रेलिया में यह औसत 5434 लोगों पर एक पदक का है। इस हिसाब से आस्ट्रेलिया ने भारत से 36,000 गुणा बेहतर प्रर्दशन किया है। पिछले सात सालों में नरेन्द्र मोदी और भाजपा की छवि चमकाने के एक से एक नायाब तरीके खोजे गये हैं। यहाँ तक कि जिन चीजों पर शर्मिन्दा होना चाहिए उनका इस्तेमाल भी छवि चमकाने में हुआ है। ओलम्पिक में भारत का… आगे पढ़ें

गहराता कश्मीर संकट

एक पुरानी अरबी कहावत है कि बादल वादे की तरह होते हैं और बारिश उनका पूरा होना। कश्मीर की सियासत पर बादल तो बहुत छाये लेकिन बारिश का इन्तजार करती आवाम आसमान को ही ताकती रह गयी। 19 जून को भाजपा–पीडपी का अपवित्र गठबन्धन टूट जाने के बाद जम्हूरियत के बादलों के रहे–सहे टुकड़ों ने भी इस अशान्त राज्य से मुँह फेर लिया। सियासत में पहले आओ पहले पाओ का लाभ उठाते हुए भाजपा ने गठबन्धन से हाथ खींच लिए और महबूबा मुफ्ती के सियासी कोकून को मसल कर रख दिया। तीन साल पहले जम्मू कश्मीर राज्य में हुए चुनावों ने राज्य की जो भू–राजनीतिक तस्वीर बनायी थी उसके मुताबिक मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी और आसपास के क्षेत्र से भाजपा के राष्ट्रवाद के घोर विरोध पर जनता ने मुफ्ती सईद की पीडीपी को स्पष्ट बहुमत दिया जबकि दूसरी तरफ हिन्दू बहुल जम्मू क्षेत्र में राष्ट्रवाद के समर्थन में भाजपा को… आगे पढ़ें

गुजरात में उत्तर भारतीय मजदूरों पर हमले

गुजरात में यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश के मजदूरों को लगातार हमले का निशाना बनाया जा रहा है, ये घटनाएँ गुजरात के साबरकंठा जिले में 14 महीने की एक बच्ची के साथ हुए बलात्कार के बाद शुरू हुर्इं। आरोपी रविन्द्र साहू बिहार का निवासी था, उसे घटना के 24 घण्टे के अन्दर ही गिरफ्तार कर लिया गया, फिर भी हिंसा लगातार होती रही। इण्डियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार उत्तर भारतीय मजदूरों को ढाबों में घेरकर, फैक्ट्रियों से निकाल कर और रास्तों में रोककर मारा गया। सूरत के पंडेश्वरा इलाके में 12 अक्टूबर की शाम को काम से लौटते हुए एक मजदूर की उन्मादी भीड़ ने लाठी–डंडांे से पीटकर हत्या कर दी। वह मजदूर बिहार का था और 15 सालोंं से सूरत में परिवार के साथ रहता था। मेहनत से पैसे जमा कर सूरत में अपना घर भी बना लिया था। फिर भी उसके साथ अप्रवासियों जैसा व्यवहार किया गया और उसकी… आगे पढ़ें

गुजरात शिक्षा बोर्ड ही बेच रहा बच्चों का गोपनीय डेटा

अप्रैल में दैनिक भास्कर ने छात्रों के निजी डेटा बेचने वाले डेटा सेण्टर के एजेण्टों के जाँच–पड़ताल की चैकानें वाली रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के अनुसार 10वीं और 12वीं में पढ़ रहे गुजरात के करीब 5 लाख बच्चों के गोपनीय डेटा 2 से 6 हजार रुपये में बेचा जा चुका है। इसमें बच्चे के नाम, माता–पिता के नाम, घर का पता और मोबाइल नम्बर इत्यादि शामिल है। नोएडा, बंगलुरु जैसे बड़े शहरों में बैठे डेटा प्रोवाइडरों का ‘शिक्षा बोर्ड’ के साथ साँठगाँठ है। जब बच्चे बोर्ड परीक्षा के फॉर्म भरते हैं तो स्कूलों में इनके निजी डेटा का इकट्ठे हो जाते हैं। स्कूल ये डेटा बोर्ड को देते हैं और बोर्ड के कर्मचारी/अधिकारी इसको डेटा एजेण्टों को बेच रहे हैं। इसके बाद इस डेटा को एजेण्ट अलग–अलग कोचिंग इंस्टीट्यूट को बेच देते हैं। दैनिक भास्कर ने इसकी पुष्टि करने के लिए 4 डेटा प्रोवाइडर वेबसाइट के एजेण्टों से मैसेज… आगे पढ़ें

गोदी मीडिया का विकल्प

रामधारी सिंह दिनकर के शब्द “जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध” गोदी मीडिया पर कब लागू होंगे यह तो समय बताएगा ही, लेकिन इसी दौर में कुछ चिराग इस अंधेरी रात में लगातार टिमटिमाते हुए हमें आगे बढ़ने का सन्देश और हिम्मत प्रदान कर रहे हैं। अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दू’ 14 मार्च के अपने सम्पादकीय में लिखता है–– “सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून–2019 को चुनाव के कुछ दिन पहले लागू करने का फैसला इस बात का अग्रदूत है कि चुनावी अभियान में ध्रुवीकरण का दोहन किया जाएगा। धर्म पर आधारित तीन चुने हुए पड़ोसी देशों के प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने वाला सीएए कानून सुप्रीम कोर्ट में वैधानिक चुनौती के जरिये विचाराधीन है। 2019 में पास हुए इस कानून के प्रावधानों को सरकार ने अभी तक अधिसूचित नहीं किया था। अधिसूचित करने का समय एक तर्कसंगत शक पैदा करता है कि इसे चुनावी बाण्ड पर आये सुप्रीम कोर्ट के… आगे पढ़ें

गौरी लंकेश की हत्या का खुलासा

5 सितम्बर 2017 को बेंगलुरू की जानी–मानी पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थीं। वे बेंगलुरू से प्रकाशित होनेवाली “लंकेश” पत्रिका की सम्पादक थीं। इस पत्रिका के प्रकाशन का काम उनके पिता लंकेश ने शुरू किया था। उनकी मृत्यु के बाद इस पत्रिका के संचालन का काम गौरी लंकेश ने अपने हाथों में ले लिया। इस काम के अलावा वे कई पत्र–पत्रिकाओं में कॉलम भी लिखती थीं और सच्चाई को बेबाक तरीके से रखती थी। 55 वर्षीय यह वरिष्ठ पत्रकार हिन्दुत्वादी दक्षिणपंथी विचारधारा की कड़ी आलोचक थीं। पत्रिका का संचालन वह स्वयं करती थीं। पत्रिका का खर्च निकालने के लिए वह किसी भी तरह का विज्ञापन नहीं लेती थीं। हत्या से कुछ ही समय पहले उन्होंने राणा अय्यूब द्वारा लिखी किताब ‘गुजरात फाइल्स’ का अनुवाद कन्नड़ में किया, जो गुजरात दंगों पर केन्द्रित है। गौरी लंकेश की हत्या का एक ही कारण है, वह है उनकी… आगे पढ़ें

चिकित्सा उपकरण कम्पनियों की लूटपाट 

चिकित्सा उपकरणों के बाजार में कमाई की दरिया बह रही है। लेकिन यह कमाई गड़बड़ी वाले उपकरणों की खरीद–बिक्री के जरिये हासिल की जा रही है। कई बार मरीजों और उनके परिजनों को जानकारी दिये बिना ही तकनीकी गड़बड़ी वाले उपकरण लगा दिये जाते हैं। निजी क्लीनिकों और अस्पतालों में उपयोग किये जाने वाले आधे से अधिक पुराने चिकित्सा उपकरण आयात किये जाते हैं। इनका सटीकता और सुरक्षा के स्तर पर कोई आकलन नहीं किया जाता है। जिन उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनमें से कई दुनियाभर में प्रतिबन्धित कर दिये गये हैं। एक ही उत्पाद का नाम, क्वालिटी और कीमत अलग–अलग देशों में अलग–अलग है। चिकित्सा उपकरणों के मामले में कहीं कोई आम सहमति नहीं है कि कौन सा उपकरण मरीज के लिए सुरक्षित है और कौन सा नहीं। इस मामले में न तो कहीं कोई चेतावनी प्रणाली है और न ही कोई नियामक संस्था। इन उपकरणों… आगे पढ़ें

छल से वन अधिकारों का दमन

भारतीय वन कानून, 2019 का मसौदा बुनियादी संवैधानिक अधिकारों और सिद्धान्तों का माखौल उड़ाने वाला है। वन अधिकार कानून, 2019 के मसौदे में वन क्षेत्र में काम कर रही नौकरशाही को शासन करने का अधिकार देने का प्रस्ताव है। देश के 7,08,273 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र पर शासन का दायित्व अब इनका होगा। नव–उदारवादी नीतियों पर चलते हुए वनों के व्यवसायीकरण का प्रस्ताव भी इसमें है। नये मसौदे में ऐसे प्रस्ताव किये गये हैं जो 2006 के वन अधिकार कानून के प्रावधानों को नुकसान पहुँचाने वाले साबित होंगे। साथ ही इसमें राज्य सरकारों की वैधानिक और कार्यकारी शक्तियों को प्रभावित करने वाले संशोधन भी सुझाए गये हैं। इस मसौदे को राज्यों के पास उनकी प्रतिक्रिया के लिए भेजा गया है। यहाँ इसका उल्लेख जरूरी है कि यह मसौदा 13 फरवरी के सुप्रीम कोर्ट के उस विवादास्पद आदेश के बाद आया है जब केन्द्र सरकार वन अधिकार कानून का बचाव… आगे पढ़ें

छात्रों के हकों पर डाकेजनी

2023 में ‘राजीव गाँधी स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस’ योजना के तहत 245 छात्रों का चयन हुआ। इनमें से 73 बच्चे आला अफसर, आईएएस, आईपीएस और मंत्रियों के हैं गरीबों के बच्चे कहाँ हैं? 20 अक्टूबर 2021 को राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने जोर–शोर से ‘राजीव गाँधी स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस’ योजना की शुरुआत यह कहकर की कि अब गरीबों के प्रतिभावान बच्चे भी विदेश जाकर पढ़ सकते हैं। इसके लिए हमने विदेश की 150 नामी यूनिवर्सिटी को चुना हैं जिनमें ऑक्सफोर्ड, हावर्ड और कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी शामिल हैं। सरकार ने वायदा किया कि जिन बच्चों का चयन इस योजना के तहत किया जाएगा, उनका पूरा खर्च सरकार के जिम्मे होगा। इस योजना के लाभार्थी वही होंगे जिनकी पारिवारिक आय लाख रुपये से कम है। 30 प्रतिशत सीटें लड़कियों के लिए रिजर्व की गयी थीं। लेकिन 2023 की शुरुआत में ही अफसरों और अधिकारियों ने सरकार के साथ मिलकर यह… आगे पढ़ें

छात्रों को शोध कार्य के साथ आन्दोलन भी करना होगा

भारत में शोध–अनुसन्धान के लिए मूलभूत ढाँचे और संसाधनों की भारी कमी है। देश के विकास के लिए सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों, संस्थानों में शोध के कार्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए था, लेकिन आज वास्तविकता इसके उलट है। शोध छात्र आज अपना शोध बीच में ही छोड़ सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। उनकी मुख्य माँग है कि बढ़ती महँगाई के साथ उनकी फेलोशिप में बढ़ोत्तरी की जाये। “सबसे ऊँची डिग्री, सबसे नीची तनख्वाह”, “बिना पैसे रिसर्च कैसे?”, “मेरे और मेरे परिवार के खर्चों का क्या?”, “फेलोशिप बढ़ाओं, देश का भविष्य बचाओ” जैसे प्लेकार्ड को लेकर छात्र कॉलेज परिसरों में आवाज बुलन्द करते नजर आ रहे हैं। फेलोशिप के नाम पर सरकार इन्हें चन्द सिक्के पकड़ा दे रही है। एचआरए को बढ़ाने के बजाय घटा दिया गया है। जेआरएफ की सीटें घटा दी गयी हैं। हाल यह है कि 2014 से 2021 तक बिना प्रदर्शन किये फेलोशिप में बढ़ोतरी… आगे पढ़ें

जन जन तक जुआ, घर घर तक जुआ

आज हमारा देश एक विराट जुआघर में तब्दील हो चुका है। यहाँ खुलेआम लोगों को जुआ खेलने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके चलते भारत में 36 करोड़ लोग रजिस्टर्ड जुआरी हैं। ये केवल ऐसे लोग हैं जो मोबाइल में गेमिंग एप के जरिये जुआ खेलते हैं। इनकी हर निजी जानकारी कम्पनियों के पास है। खेलने वालों में हर तबके और वर्ग के लोग शामिल हैं। नौकरी करने वाले अपनी हैसियत से बढ़कर अपनी आय का हिस्सा जुए में लगाते हैं और बेरोजगार अपनी हैसियत से बढ़कर उधार लेकर अपनी किस्मत आजमाते हैं। आपको बेहतर इलाज, बेहतर शिक्षा, बेहतर रोजगार मिले न मिले पर जुआ खेलने की बेहतर सुविधा जरूर मिल गयी है। आज जुआ खेलाने वाले दर्जनों मोबाइल गेमिंग एप मौजूद हैं जो पिछले 3–4 वर्षों से कुकरमुत्ते की तरह बढ़ रहे हैं। बड़े–बड़े फिल्मी सितारे और क्रिकेटर इन कम्पनियों के एजेण्ट हैं। विराट कोहली कहते हैं कि… आगे पढ़ें

जनविरोधी यूनियन बजट 2022

आज देश में महँगाई, भुखमरी और बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बन गयी हैं। करोड़ों की संख्या में काम करने वाले हाथ खाली हैं। नोटबंदी और लॉक डाउन की दोहरी मार ने मजदूर वर्ग की कमर तोड़ दी है। ऐसे में बजट का बड़ा हिस्सा देश में नये रोजगार पैदा करने के लिए होना चाहिए था। लेकिन दुर्भाग्य, ऐसा नहीं है। इस बजट से भी हर बार की तरह बड़े पूँजीपति और उद्योगपति खुश हैं। इस बार भी मलाई उनके हाथ लगी है। यहाँ पँूजीपतियों के संगठन फिक्की के अध्यक्ष संजीव मेहता की बजट पर आयी टिप्पणी गौर करने लायक है, “हम वित्तमंत्री को दूरदर्शी, विकासोन्मुखी और विकास के संचालकों को लम्बे समय तक मजबूती देने वाला बजट पेश करने के लिए बधाई देते हैं।” उधर मोदीकाल में रॉकेट की रफ्तार से अमीर बनने वाले अडानी ने भी वित्तमंत्री सीतारमण को धन्यवाद भेजा और बजट की तारीफ में कहा, “जब दुनिया… आगे पढ़ें

जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था, बे–मौत मरती जनता, लाभ किसका

कोरोना के बाद उत्तर प्रदेश में डेंगू, मलेरिया कहर ढा रहे हैं। गाँवों–कस्बों का ऐसा कोई मोहल्ला नहीं बचा है जहाँ बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक बुखार से पीड़ित न हो। फिरोजाबाद जिले में ही एक सप्ताह के अन्दर 150 से अधिक लोगों की जान बुखार से चली गयी जिनमें अधिकतर बच्चे हैंं। फिरोजाबाद के बाद मथुरा का इससे भी बुरा हाल हुआ। सरकार ने इलाज का कोई पुख्ता इन्तजाम कराने के बजाय उल्टे जनता को ही दोषी ठहरा दिया। सरकार ने कूलर में भरे पानी को डेंगू की सबसे बड़ी वजह बताते हुए तुरन्त ही जुर्माना वसूलना शुरू किया और लगभग 65 लोगों के विरुद्ध आवश्यक धाराओं में कार्रवाई भी कर दी। पुराने सरकारी भवनों के आस–पास की भयानक गन्दगी, बरसात के कारण सड़कों, तालाबों, नालों आदि में भरे पानी की तरफ सरकार की नजर नहीं गयी। हो सकता है कि सरकार इन्हें बीमारी का कारण नहीं मानती हो,… आगे पढ़ें

जल संकट पर नीति आयोग की चैकाने वाली रिपोर्ट

हाल ही में नीति आयोग ने ‘समग्र जल प्रबन्धन सूचकांक’ रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट ने जल प्रबन्धन को लेकर भारतीय शासक वर्ग की गम्भीरता की पोल खोलकर रख दी और देश में जल संकट की भयावह तस्वीर प्रस्तुत की। जल प्रबन्धन की दुर्दशा का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश की 60 करोड़ आबादी को दैनिक–जीवन के लिए आवश्यक पानी की एक–एक बूँद के लिए तरसना पड़ रहा है। हालात इतने ज्यादा भयावह हो चुके हैं कि स्वच्छ जल उपलब्ध न होने के कारण हर साल करीब दो लाख लोगों को मौत अपनी चपेटे में ले लेती है। जल की गुणवत्ता के मामले में भारत 122 देशों की सूची में नीचे से तीसरे पायदान पर है। रिपोर्ट की माने तो 2030 तक देश में जल की माँग आपूर्ति के मुकाबले दुगुनी हो जाएगी। जिसका नतीजा जल संकट से प्रभावित लोगों की संख्या में और ज्यादा… आगे पढ़ें

जलवायु परिवर्तन और विस्थापन की व्यथा

विस्थापन के सम्बन्ध में वैश्विक स्तर पर काम करने वाली अन्तरराष्ट्रीय संस्था ‘आईडीएमसी’ द्वारा हाल ही में ‘आन्तरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट’ (जीआरआईडी–2023) प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट में बढ़ते जलवायु संकट और उसके दुष्परिणामों से सम्बन्धित चैकाने वाले तथ्य पेश किये गये हैं। इसमें बताया गया है कि पिछले वर्ष 2022 में जलवायु सम्बन्धित आपदाओं के चलते दुनियाभर में 3 करोड़ 26 लाख लोग आन्तरिक रूप से विस्थापित हुए। आन्तरिक रूप से विस्थापन से मतलब उस संख्या से है जो हमें यह बताये कि साल भर में कुल कितनी बार लोगों को अपना मूल निवास छोड़ देश के अन्दर ही विस्थापित होना पड़ा। बीते पूरे दशक में, 2022 में सबसे अधिक लोग विस्थापित हुए और साथ ही इन दस सालों के औसत विस्थापन से इस साल इकतालीस प्रतिशत अधिक विस्थापन हुआ। इन आँकड़ों से हम स्थिति की गम्भीरता का अन्दाजा लगा सकते हैं। 3 करोड़ 26 लाख में से लगभग… आगे पढ़ें

जहरीली शराब से मरते लोग और सरकार के कुबोल

पिछले साल दिसम्बर में बिहार के छपरा जिले में जहरीली शराब पीने से 77 से ज्यादा लोगों की जान चली गयी, 29 लोग अन्धे हो गये। इनमें से लगभग सभी दिहाडी मजदूर हैं। इससे पहले अगस्त में मन्दौर, मकेर और पानापुर तहसीलों में जहरीली शराब पीने से 23 लोगों की मौत हुई थी। इनमें भी सभी गरीब मजदूर थे। जहरीली शराब से लोग केवल बिहार में ही नहीं मर रहे हैं, बल्कि पूरे देश में हर साल सैकड़ों लोग अपनी जान गवाँ देते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार जहरीली शराब पीने से 2016 से 2021 तक 15 राज्यों में 6,954 लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं। ये सभी गरीब मेहनतकश लोग थे। मृतकों के परिवार वालों के प्रति संवेदना जताने और इसके लिए अपनी सरकार को दोषी मानने के बजाय, बिहार के मुख्य मन्त्री नीतीश बाबू कहते है, “जो शराब पियोगा, वो मरेगा।” क्या कारण है… आगे पढ़ें

जाल–ए–दुनिया1 की बदहाली-- इस तालिब–ए–दुनिया2 का दस्तूर बदलना होगा

 जाहिर न था नहीं सही लेकिन जुहूर था कुछ क्यूँ न था जहान में कुछ तो जरूर था।                       –– नातिक गुलावठी चारों तरफ अजीब से खौफ का मंजर है। रोजी–रोटी की तलाश में दर–ब–दर की ठोकर, फरेब का बोलबाला, मेहनतकशों की बदहाली और मुनाफाखोरों की मौज–ए–बहाराँ। हुक्मराँ ने अपना लक्ष्य तय कर लिया है। उसकी निगाह बाज सी तेज और दिमाग लोमड़ी सा शातिर है। उसका लक्ष्य मुनाफाखोरों, सट्टेबाजों, जालसाजों और नराधम खून के प्यासे भेड़ियों की हिफाजत करना है। वह इतना चालाक है कि अपना घृणित मंसूबा आवाम के बीच उजागर नहीं होने देता। वह दिन प्रतिदिन खुद को आवाम का सबसे बड़ा हितैशी साबित करने की जुगत में अपने प्रचार माध्यम को पूरी ताकत के साथ लगाये रखता है। वह चाहता है कि ये तालिब–ए–दुनिया यूँ ही चलती रहे। मुनाफा मेहनतकश पर हुकूमत करता रहे। इस ख्याली… आगे पढ़ें

जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस की गुपचुप खरीद का खुला रहस्य

हाल ही में प्रकाशित न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुप्त तरीके से 300 करोड़ रुपये में इजराइल से पेगासस नामक जासूसी सॉफ्टवेयर खरीदा है। यह खरीद प्रधानमंत्री ने 2017 में अपनी इजराइल यात्रा के दौरान की थी। उस यात्रा के दौरान भारत और इजराइल के बीच 2 अरब डॉलर का रक्षा समझौता भी हुआ था। दरअसल, पेगासस सॉफ्टवेयर इजरायल की एक कम्पनी (एनएसओ) ने बनाया है। यह सॉफ्टवेयर एक साथ 50 से ज्यादा लोगों का मोबाइल डाटा कण्ट्रोल कर उसकी चैट, ईमेल, फोटो आदि की जानकारी लीक कर सकता है। इस सॉफ्टवेयर की मदद से फोन के कैमरा और ऑडियो को हैक करके फोन के आस–पास होने वाली सभी गतिविधियों को भी रिकॉर्ड किया जा सकता है। यह रिपोर्ट यूपी समेत पाँच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले प्रकाशित की गयी थी। इसलिए विपक्षी पार्टियाँ बीजेपी पर हमलावर हो गयी हैं।… आगे पढ़ें

जी–20 शिखर सम्मलेन : जनता की बर्बादी पर राजनेताओं की अय्याशी

बीते 9–10 सितम्बर को दिल्ली में जी–20 का शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। भारत ने इस सम्मेलन की 18वीं बैठक की मेजबानी की। मुख्यधारा की मीडिया ने इसे एक अभूतपूर्व घटना की तरह जनता के बीच पेश किया। इसे मोदी की वैश्विक नीति की सफलता बताया और भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल किया। इन्होंने चाटुकारिता की हद पार करके इसे भूतो–न–भविष्यती घटना साबित करने की भरपूर कोशिश की। सच्चाई यह है कि हर साल कोई न कोई देश इस सम्मेलन की मेजबानी करता ही है। इस सम्मेलन पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये गये। सवाल यह उठता है कि देश की करोड़ों मेहनतकश जनता का पैसा बरबाद करके सरकार ने इस सम्मलेन से क्या हासिल कर लिया? जी–20 बीस देशों का समूह है। यह साम्राज्यवादी देशों की संस्था जी–7 का विस्तार है जिनमें दूसरी कतार के उनके पिछलग्गू देश शामिल हैं। इनका मकसद देशी–विदेशी… आगे पढ़ें

जेफ बेजोस का भारत दौरा और पीयूष गोयल का विवादास्पद बयान 

नयी दिल्ली में आयोजित वैश्विक संवाद सम्मेलन ‘रायसीना डायलॉग’ में पीयूष गोयल ने कहा, “अमेजन एक अरब डॉलर निवेश कर सकती है––– इसलिए ऐसा नहीं है कि वे एक अरब डॉलर का निवेश कर भारत पर कोई एहसान कर रहे हैं।” इस बयान पर कारोबारी जगत में हलचल मच गयी है। इसे जहाँ एक ओर विदेशी निवेश के लिए घातक माना जा रहा है। वहीं दूसरी ओर, ऑनलाइन कम्पनियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे छोटे दुकानदारों को लुभानेवाला भी बताया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कहना है कि ‘सरकार का यह बयान भारत के कारोबारी हित में नहीं है। यह भारत में होनेवाले विदेशी निवेश पर बुरा असर डालेगा और इससे विदेशी निवेशक देश से पूँजी लेकर जा सकते हैं।’  सरकार का यह बयान देश के हालात के बारे में एक तस्वीर पेश करता है। इस तस्वीर में एक त्रिभुज है, जिसके तीन कोनों पर क्रमश: विदेशी पूँजी… आगे पढ़ें

जड़ी–बूटियों की लूट का धंधा

उत्तराखंड को हर्बल प्रदेश बनाने दावे कितने खोखले और हवाई हैं इसे प्रदेश में जड़ी–बूटी उत्पादन की जमीनी हकीकत को देखकर बहुत आसानी से समझा जा सकता है। उत्तराखंड प्रदेश में मुख्यत: दो तरह की जड़ी–बूटियाँ होती हैं, एक उगायी जाने वाली और दूसरी जंगलों में पायी जाने वाली। उगायी जाने वाली जड़ी–बूटियाँ न के बराबर हैं। 95 प्रतिशत जड़ी–बूटियाँ वे हैं जो प्राकृतिक रूप से यहाँ के जंगलांे में पैदा होती हैं। इन दोनों ही तरह की जड़ी–बूटियों के दोहन की जिम्मेदारी मुख्यत: वन विभाग, भेषज इकाई और जड़ी–बूटी शोध संस्थान की होती है। उगायी जाने वाली जड़ी–बूटियों में कुट, कुटकी, अतीस, जटामाँसी, चिरायता, काला जीरा, तगर, सर्पगंधा, रोजमैरी, बड़ी इलाइची आदि मुख्य हैं। इनकी खेती सर्दियों में गोेपेश्वर से केदारनाथ, चमोली, अल्मोड़ा आदि इलाकों में की जाती है। इन सभी जड़ी–बूटियों को उगाने वाले किसानों का पंजीकरण होता है। फिर ये किसान इन्हें रामनगर, टनकपुर, या ऋषिकेश की… आगे पढ़ें

डार्विन के सिद्धान्त को पाठ्यक्रम से हटाने का फैसला

हाल ही में एनसीईआरटी ने डार्विन के जैविक विकास सम्बन्धी अध्याय को 10वीं के पाठ्यक्रम से हटा दिया है। इसका कारण बच्चों पर पढ़ाई के बोझ को कम करना बताया गया है। लेकिन ऐसा करके सरकार वैज्ञानिक सोच, लोकतान्त्रिक मूल्य–मान्यताओं और क्रान्तियों के इतिहास से सम्बन्धित विषयों को ही पाठ्यक्रम से हटा रही है। ऐसे में सरकार की मंशा साफ है, वह अब अपने विरोधी इन विचारों को किताबों में भी बर्दास्त नहीं कर रही और उन पर हमलावर है। इसी कड़ी में डार्विन के सिद्धान्तों को हटाना एक बहुत भयानक कदम है। लम्बे समय से आरएसएस और भाजपा अपने भगवा एजेण्डे को आगे बढ़ाने के लिए डार्विन के सिद्धान्तों पर लगातार हमला कर रहे थे। समय–समय पर इन्हांेने सार्वजनिक मंचों पर खुलकर इनके बारे में नफरत फैलाया। 2018 में केन्द्रीय मंत्री सत्यपाल ने सार्वजनिक वक्तव्य देकर कहा था कि डार्विन के सिद्धान्त गलत हैं और क्रमिक विकास के चलते… आगे पढ़ें

डिलीवरी ब्वाय की नौकरी

न्यूज चैनल और सोशल मीडिया पर एक वीडियो बार–बार दिखाया गया, जिसमें एक डिलीवरी ब्वाय ग्राहक के खाने में से थोड़ा खाना खाकर वापस पैक कर देता है। मध्मम वर्ग के लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया। उन्हें लगा कि उनका मँगाया खाना सुरक्षित नहीं है। इस घटना से डिलीवरी ब्वाय के प्रति घृणा का बढ़ना और कम्पनी के प्रति भरोसा उठना लाजिमी था। और हुआ भी वैसा ही। लेकिन कम्पनी ने ग्राहकों का भरोसा जीतने के लिए तुरन्त कार्रवाई की और एक न्यूज चैनल के माध्यम से उस डिलीवरी ब्वाय को सरेआम बेइज्जत किया, सार्वजनिक रूप से माँफी मँगवायी और अन्त में उसे नौकरी से निकाल दिया। इसके साथ ही कम्पनी ने अपने ग्राहकों से खाने की टैम्पर्ड पैकिंग का वादा भी किया। इस पूरे घटनाक्रम में कम्पनी का प्रचार भी खूब हुआ। लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी न्यूज चैनल और सोशल मीडिया पर… आगे पढ़ें

डी कम्पनी के जरिये टैक्स चोरी

टैक्स की चोरी पर कार्रवाई का दावा करने वाले भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के दोनों बेटों का नाम हेज फंड कम्पनी खोलने और टैक्स हैवन के जरिये कारोबार में सामने आया है। इस घटना को ‘कारवाँ’ पत्रिका में ‘एक और डी कम्पनी’ के शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। डी कम्पनी का शीर्षक अब तक दाउद इब्राहीम के गैंग को दिया जाता था, आज अजीत डोभाल और उनके बेटों–– विवेक और शौर्य के कारनामों को दिया गया है। एक खोजी पत्रकार ने अमरीका, इंग्लैंड, सिंगापुर और केमैन आइलैंड से व्यापारिक दस्तावेज इकट्ठे करके डोभाल के बेटों की कम्पनियों का खुलासा किया है। ये कम्पनियाँ हेज फंड और ऑफशोर के दायरे में आती हैं। केमैन आइलैंड एक टैक्स हैवन है, जो टैक्स चोरों की जमात का एक अड्डा है। “टैक्स हैवन” ऐसे देश हैं, जहाँ अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम टैक्स लगता है। ऐसे देशों में कम्पनी खोलना… आगे पढ़ें

त्रिपुरा हिंसा की वह घटना जब तस्वीर लेना ही देशद्रोह बन गया!

26 अक्टूबर को त्रिपुरा राज्य के चमटीला में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) ने एक रैली निकाली थी। यह रैली बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे हमलों के विरोध मेंे निकाली थी। जल्द ही हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता मुसलमान विरोधी नारे लगाने लगे और रैली ने उग्र रूप धारण कर लिया। शाम होते–होते हिन्दुत्ववादी गुण्डों ने पानीसागर इलाके में मुसलमानों के धार्मिक स्थलों, दुकानों और घरों में आगजनी व तोड़–फोड़ शुरू कर दी। करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ। जब धर्मान्ध भीड़ तोड़–फोड़ और आगजनी कर रही थी तो त्रिपुरा पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही। त्रिपुरा की भाजपा सरकार हिन्दुत्ववादी गुण्डों का इस हद तक सर्मथन कर रही है कि आज तक एक भी उपद्रवी को गिफ्तार नहीं किया गया है और न ही किसी की पहचान की गयी है। इसके उलट इस साम्प्रदायिक हिंसा को सबके सामने लाने वाले पत्रकारों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर त्रिपुरा पुलिस देशद्रोह के मुकदमें… आगे पढ़ें

द सोशल डिलेमा : सोशल मीडिया के स्याह पहलू से रूबरू कराती फिल्म

फर्ज कीजिये कि आप कोई काम कर रहे हैं और उसे कोई काले शीशे के पीछे से देख रहा हो और आपको इसकी कोई भनक भी न हो, तो क्या होगा। सूचना युग में आज हम अपने को बहुत खुशनसीब समझ सकते हैं कि हमारे पास स्मार्ट फोन है, उस पर एक क्लिक करते ही ढेरों सुविधाएँ उपलब्ध हैं। एक क्लिक करने पर रेस्टोरेण्ट के बढ़िया खाने का आर्डर देने, बस, ट्रेन, टैक्सी की बुकिंग करने, दुनिया भर की सूचना पाने, दुनिया के किसी भी पहाड़, नदी, समन्दर की फोटो देखने, प्रेमी या प्रेमिका की खोज करने और मनोरंजन से अपनी आँखें तर करने का काम कर सकते हैं। हमें इन सबकी क्या कीमत देनी पड़ती है ? यह हम नहीं सोचते। जेफ ओर्लाेवस्की द्वारा निर्देशित डॉक्युमेण्ट्री फिल्म ‘द सोशल डाइलेमा’ इसके बारे में दिखाती है। सूचना के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि हम मुनादी, रेडियो, टेलीविजन… आगे पढ़ें

दिल्ली उच्च न्यायलय ने केन्द्र सरकार को केवल पाखण्डी ही नहीं कहा

27 अगस्त को दिल्ली उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार के सबसे खास कार्यक्रमों–– मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को ढोंग करार दिया। यानी केन्द्र सरकार के जो दावे अब तक जुमलों में तब्दील हुए हैं उसमें दो का इजाफा हो गया है। उच्च न्यायालय के अनुसार केन्द्र की मोदी सरकार की कथनी और करनी में भारी अन्तर है और यह सरकार ढिंढोरे बाज और पाखण्डी है। दिल्ली उच्च न्यायलय के न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमुर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार के बारे में अपनी यह राय जाहिर की। यह याचिका सेण्टर फॅार एविएशन पॉलिसी, सेफ्टी एण्ड रिसर्च ने दाखिल की थी। इस संस्था ने क्षेत्रीय हवाई अड्डों पर ग्राउण्ड हैण्डलिंग सर्विस उपलब्ध कराने के लिए मँगाये गये टंेडरों में केन्द्र सरकार द्वारा कम्पनियों की योग्यता के पैमाने में बदलाव के खिलाफ दाखिल की गयी थी। अब न्यायालय ने केन्द्र सरकार और… आगे पढ़ें

दिल्ली की अनाज मण्डी अग्निकाण्ड से उपजे सवाल

8 दिसम्बर 2019 की सुबह दिल्ली की अनाज मण्डी के पास एक कारखाने में हुए अग्निकाण्ड ने सभी दिल्लीवासियों को स्तब्ध कर दिया। यह हादसा इतना भयावह था कि इसने 43 मजदूरों की जिन्दगी निगल ली और 63 मजदूरों ने जैसे–तैसे यहाँ तक कि छत से कूदकर अपनी जान बचायी। आग पर काबू पाने के लिए आये दमकल कर्मचारियों में से एक नौजवान कर्मचारी की भी मौत हो गयी।  इस हादसे में दो सगे भाइयों को भी जिन्दगी से हाथ धोना पड़ा, जिन पर अपनी चार बहनों की शादी करने की जिम्मेदारी थी। उनके पिता की शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे घर खर्च के लिए काम कर सकें। इसका सहज अन्दाजा लगाया जा सकता कि इस परिवार पर क्या गुजर रही होगी। इसी हादसे में जान गँवाने वाले एक नौजवान मजदूर की कुछ समय पहले ही शादी हुई थी। उसकी पत्नी ने हाल ही में एक बच्चे को… आगे पढ़ें

दिल्ली दंगे का सबक

–– सतीश देशपाण्डे फरवरी के अन्तिम सप्ताह में दिल्ली में जो हुआ वह सतही समानताओं के बावजूद हुबहू दंगा नहीं था। कम से कम इस शब्द से हम जो मतलब समझते हैं वैसा तो कतई नहीं। न ही इसे पुराने जमाने की परिभाषाओं जैसे “साम्प्रदायिक हिंसा” या “जातीय संहार” के जरिये अभिव्यक्त किया जा सकता है। सच्चाई यह है कि अभी तक हमारे पास ऐसा कोई एक शब्द या शब्दयुग्म नहीं है जिससे इस घटना को परिभाषित किया जा सके। दरअसल यह एक जारी परियोजना का नवीनतम चरण है, न कि कोई अलग–थलग घटना। इस परियोजना के बारे में चर्चा करने से पहले यह दर्ज करना शायद ज्यादा मददगार हो सकता है कि इसे पुरानी परिभाषाओं में फिट क्यों नहीं किया जा सकता? विशद चित्रण अगर 2002 का गुजरात दंगा मोबाइल फोन के शुरुआती जमाने की घटना थी, तो उसके बरक्स दिल्ली की हिंसक उन्मादी भीड़ ने स्मार्ट फोन के… आगे पढ़ें

दिल्ली दंगे की जमीनी हकीकत

भारतीय समाज के लिए नासूर बन चुकी साम्प्रदायिकता की समस्या ने देश को अनेकों जख्म दिये हंै। इसकी वजह से भारत के दो टुकड़े हुए और आजाद भारत ने धार्मिक हिंसा के अकथनीय कत्ल–ओ–गारत में अपनी आँखें खोलीं। जख्म का आलम यह है कि एक से समाज उभरता नहीं है तब तक दूसरा सतह पर उभर आता है। आजादी के बाद की किसी भी सरकार ने इसे दूर करने के लिए ईमानदारी से न तो कोई योजना बनायी और न ही उस पर कभी विचार किया। पिछले छ: सालों से जब से भाजपा की हिन्दुत्ववादी सरकार सत्ता में है तब से साम्प्रदायिकता का विस्तार इस हद तक हो चुका है कि इसके चरित्र में गुणात्मक बदलाव आ गया है और यह एकतरफा बन गयी है। फरवरी के अन्त में हुआ दिल्ली दंगा इस बदलाव का ताजा उदाहरण है जिसकी भूमिका भाजपा नेता कई महीने पहले से भड़काऊ बयान और भाषण… आगे पढ़ें

दिल्ली सफाई कर्मचारियों की हड़ताल

पूर्वी दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारी 27 दिन तक हड़ताल पर थे। नगर निगम में 40 हजार सफाई कर्मचारी काम करते हैं। 2015 से अब तक सफाई कर्मियों की आठ हड़तालें हो चुकी हैं। इस बार हड़ताल लम्बी चली। जिसके चलते उनकी चार माँगों में से एक माँग दिल्ली सरकार ने मान ली है। जो सफाई कर्मचारी अस्थायी तौर पर काम कर रहे हैं उनको स्थायी करने की माँग मान ली गयी है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारियों का साथ उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारी तथा अन्य कर्मचारी भी दे रहे थे। जो लोग सुबह से शाम तक दिल्ली को साफ रखने का काम करते हैं उनका वेतन तीन महीने से रुका पड़ा था। जिसके चलते उनके घर की माली हालत बहुत खराब हो गयी। 2003–2004 में जिन लोगों की नौकरी स्थायी हुई थी उनका बैकलॉग एरियर अभी तक नहीं मिला। जो लोग… आगे पढ़ें

देश के बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में

मध्य प्रदेश के अलीराज जिले के गिराला गाँव में झगेले अपनी पत्नी फूला के साथ रहता है, उसके तीन बच्चे हैं। जिनमें एक बच्चा पूरी तरह से कुपोषित है और 15 दिन की लड़की के शरीर पर कपड़े़ के नाम पर फटा बिस्तर मात्र है। उसी गाँव में बच्चों का वजन करने पर पाया गया कि 398 बच्चों का वजन औैसत से कम है और 250 बच्चे कुपोषित हैं। उस गाँव में जब किसी की तबियत खराब होती है तो मरीजों को खाट पर 3 किलोमीटर पैदल ले जाना पड़ता है। इलाज की व्यवस्था न होने के कारण यहाँ महिलाओं की प्रसूति घर पर ही होती है। महिलाएँ ऐनिमिया की शिकार हैं। जब इसका कारण तलाशा गया तो पता चला कि वहाँ बेरोजगारी चरम पर है और जीविका का मुख्य साधन खेती है, लेकिन खेती की बदहाल स्थिति के कारण पेट भरना मुश्किल है। इसके साथ ही आदिवासियों की जमीनों… आगे पढ़ें

देश में तानाशाही की आहट

2014 से अब तक नरेन्द्र मोदी की राजनीति हिन्दुत्व की पैकेजिंग और विकास के ढोल, अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत और साथ ही इन सबको सही ठहराने के लिए इतिहास की विकृति पर टिकी है। 2024 का चुनाव नजदीक आते ही सरकार का प्रयास है कि देश के हर आदमी की जुबान पर नरेन्द्र मोदी का नाम रहे। इसलिए सरकारी बजट को विज्ञापनों की तरफ मोड़ दिया गया है। न केवल टेलीविजन और अखबार में मोदी के पक्ष में खबरों की बाढ़ है, बल्कि पैसा झोंककर गूगल और फेसबुक पर लाखों पेज बना दिये गये हैं। इससे नरेन्द्र मोदी के प्रति एक आस्था और विश्वास पैदा किया जा रहा है जो निहायत झूठ की बुनियाद पर टिका हुआ है। इस तरह के सन्देश बार–बार प्रसारित किये जा रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि अब तक मोदी सरकार ने सार्वजनिक संस्थाओं का बेतहासा निजीकरण किया है तथा कर्मचारियों और मजदूरों के… आगे पढ़ें

देश में ये कैसी खुदकशी की खेती

राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2021 में खुदकशी करने वाले 1,64,033 लोगों में से छात्रों (18 साल से कम उम्र ) की संख्या है 13,089 या 8 फीसदी। रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से ही पता चलता है कि पिछले एक दशक में (2011 से) छात्रों की खुदकशी 70 फीसदी बढ़ चुकी है। नीट, जॉइंट एंट्रेंस जैसे प्रतियोगिता परीक्षा का कोचिंग हब के रूप में परिचित शहर कोटा (राजस्थान) में ही इस साल अब तक 23 छात्र–छात्राओं ने अपनी जान ले ली है। भारत में सफलता का पैमाना माना जाने वाला संस्थान आईआईटी में भी दर्जनों से अधिक छात्रों ने आपनी जान लेकर शिक्षा व्यवस्था में चल रही मौजूदा संकट की नंगी तस्वीर को सबके सामने पेश किया है। आये दिन ऐसे शिक्षा संस्थानों से छात्रों की खुदकशी की खबरें आती रहती है। इतनी बड़ी संख्या में छात्र–छात्राओं के खुदकशी वजहों में एक महत्वपूर्ण वजह है शिक्षा संस्थानों में दाखिले… आगे पढ़ें

देश में राजद्रोह के बढ़ते मुकदमे

फ्रांस के महान दार्शनिक वोल्तेयर ने कहा था–– “मैं जानता हूँ कि आपकी बात गलत है, लेकिन आपका बोलने का अधिकार सुरक्षित रहे, इसके लिए मैं अपनी जान दे सकता हूँ।” फ्रांस में सामन्तवाद के पतन के समय के शासक “लुई चैदहवें” का यह कहना कि “मैं ही राज्य हूँ” इस बात का प्रतीक था कि कोई भी व्यक्ति न तो राजा के खिलाफ कुछ बोल सकता है और न ही कुछ कर सकता है। ऐसा करना राजद्रोह की श्रेणी में आएगा। उसी तर्ज पर 1837 में लार्ड मैकाले ने भारतीय दण्ड संहिता तैयार की। 1857 के विद्रोह के बाद किसी भी विद्रोह की सम्भावना को खत्म करने के लिए 1870 में इसी दण्ड संहिता में धारा 124ए को राजद्रोह के कानून के रूप में शामिल किया गया। इस कानून में लिखा गया कि सरकार के प्रति किसी भी प्रकार की असहमति राजद्रोह के दायरे में आएगी। इस कानून का… आगे पढ़ें

देशभक्ति क्या है?

राष्ट्रवाद या देश प्रेम एक ऐसा विमर्श है जो आजकल सार्वजनिक चर्चा में है। केन्द्र में सरकार चला रही भाजपा के नेता और कार्यकर्ता अपने को सर्वाधिक राष्ट्रभक्त बताने में हमेशा आगे रहते हैं। सर्वप्रथम हम एक बात स्पष्ट कर दें कि राष्ट्र की पहचान अगर सीमाओं से होती है तो दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्व उन सीमाओं के भीतर रहने वाले नागरिकों से बनता है। उन नागरिकों की एक पहचान भारतीय है तो दूसरी पहचान भी हो सकती है जो उनकी बोली रहन–सहन, खान–पान या संस्कृति से होती है। जैसे मलयाली, तमिल, बंगाली, कश्मीरी, पंजाबी, मराठी आदि।  क्या भारतीय पहचान और दूसरी पहचान में कोई अन्तर्विरोध है? कोई टकराहट है? यदि ऐसा है तो उसका समाधान संघवाद है। देश प्रेम क्या है? मेरे आसपास रहने वालों के हित और मेरे कुछ हित साझा हैं एक जैसे हैं उन हितों की रक्षा देश प्रेम है। इतिहास में इसी भावना से प्रेरित होकर… आगे पढ़ें

धड़ल्ले से बढ़ता नकली दवाओं का कारोबार

भारत में नकली दवाओं का कारोबार तेजी से बढ़ता जा रहा है। हाल ही में खबर आयी कि दिल्ली एनसीआर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित देश भर में सात करोड़ रुपये की नकली दवाएँ मेडिकल स्टोरों को सप्लाई की गयी हैं। यह दवाएँ मुख्यत: बीपी, सुगर, दर्द आदि सामान्य बीमारियों की हैं। इसमें यह भी पता चला कि 2022 में दिल्ली में और उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के भगवानपुर इलाके में नकली दवाएँ बनाने की कम्पनियाँ खोली गयी थीं, जहाँ से दवाओं की सप्लाई उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, लखनऊ, बरेली, सहारनपुर आदि शहरों में तथा उत्तराखंड के देहरादून और हरिद्वार जैसे बड़े जिलों के साथ देश में कई अन्य जगहों पर भी की जाती थी। यह सोचने की बात है कि आज कैसे इतने बड़े पैमाने पर हमारे देश में नकली दवाइयों की धड़ल्ले से सप्लाई हो रही है। भारत में नकली दवाओं का कारोबार आज से ही नहीं बल्कि… आगे पढ़ें

नफरती भाषणों के जरिये भारत को रवांडा बनाने की कोशिश

हिन्दुत्ववादियों पर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का नशा सवार हो गया है। ये नशा देश को सिर्फ और सिर्फ तबाही और बर्बादी की तरफ ले जायेगा। हिन्दुत्ववादी संगठनों और उनके नेताओं द्वारा अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के प्रति लगातार नफरत परोसी जा रही है। आइए, हिन्दुत्ववादी संगठनों की गतिविधियों और सरकार की चुप्पी का विश्लेषण किया जाये। पिछले साल 12 जुलाई को हरियाणा के पतोधी में हिन्दू राष्ट्र के लिए महापंचायत का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मुसलमानों के खिलाफ खुलेआम भड़काऊ भाषण दिये और नारे भी लगाये गये। संविधान की धारा 51 साझी विरसत को सम्भाल कर रखने की बात करता है। और इसकी अवहेलना करने वाले को सजा का भी प्रावधान है। फिर भी महापंचायत की गतिविधियों से किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई। 9 अगस्त को दिल्ली के जन्तर मन्तर पर भारत जोड़ों के नाम पर रैली का आयोजन हुआ। अश्वनी उपाध्याय (बीजेपी पूर्व प्रवक्ता) और… आगे पढ़ें

नये आपराधिक कानून : लोकतंत्र के ताबूत में एक और कील

हाल ही में मौजूदा केन्द्र सरकार ने भारतीय दण्ड संहिता, भारतीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदल कर नये कानून लागू किये हैं। सरकार ने दावा किया है कि इनमें किये गये बदलावों का मकसद ब्रिटिश विरासत को समाप्त करना और मौजूदा दौर के हिसाब से कानून गढ़ना है। इन बदलावों पर कानून विशेषज्ञों की राय है कि सरकार के ये दावे भी छलावे से अधिक कुछ नहीं हैं। वरिष्ठ वकील और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल का कहना है कि इन नये कानून का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा पुराना ही है, बस जनता को धोखा देने के लिए सरकार ने धाराओं के क्रम और नाम बदल दिये हैं। ऐसी पेशकश के लिए ही अंग्रेजी में एक कहावत है–– ओल्ड वाइन इन न्यू बॉटल। भारतीय दण्ड संहिता की जगह लायी गयी भारतीय न्याय संहिता में सरकार ने बाईस पुराने प्रावधानों को निरस्त किया है, 175 में… आगे पढ़ें

निगरानी पूँजीवाद का बढ़ता दायरा

इलेक्ट्रोनिक्स और सूचना तकनीक मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने कहा कि वीपीएन कम्पनियाँ अगर साइबर सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन नहीं करती हैं, तो वे “भारत छोड़ने के लिए स्वतंत्र” हैं। मंत्रालय के अनुसार प्राइवेट नेटवर्क उपलब्ध कराने वाली कम्पनियों को जून 2022 से अपने ग्राहकों के नाम, ईमेल आईडी, आईपी एड्रेस, सर्वर उपयोग करने का समय और उद्देश्य सम्बन्धी जानकारी पाँच साल तक सुरक्षित रखनी होगी। इसके बाद नोर्ड वीपीएन, एक्सप्रेस वीपीएन, प्योर वीपीएन और पोपुलर वीपीएन जैसी कई कम्पनियों ने भारत से अपने सर्वर हटा लिये। प्योर वीपीएन कम्पनी के अध्यक्ष ने कहा कि हम अपने किसी भी उपयोगकर्ता का ऐसा कोई डाटा संरक्षित करके नहीं रखते हैं जिससे उसकी पहचान हो, हम अपने उपयोगकर्ता की प्राइवेसी और निजता से समझौता नहीं कर सकते। इसलिए हम भारत से अपने सर्वर हटा रहे हैं। दिग्गज कम्पनी नोर्ड वीपीएन ने कहा कि पहले भी तानशाही वाले अन्य देशों में इस तरह के… आगे पढ़ें

निजीकरण : बेच रहे हैं मोदी दुख तुम्हें क्यों?

जब से केन्द्र सरकार ने निजीकरण की रफ्तार को तेज की है, देश भर में इसके समर्थन और विरोध में बहसें जारी हैं। इन बहसों के बीच आज शायद ही कोई यह बता सके कि तेजी से दौड़ती हुई निजीकरण की गाड़ी कब और किस स्टेशन पर रुकेगी। सवाल यह भी है कि प्रधनमंत्री ने कुछ साल पहले बड़े भावनात्मक अन्दाज में कहा था कि “मैं देश नहीं बिकने दूँगा”, इससे उनका क्या अभिप्राय था? क्या देश की सार्वजनिक सस्थाआंे और सम्पतियों को बेचना देश बेचना नहीं है। अगर ऐसा नहीं है तो देश बेचने का क्या अर्थ है? वह किस्सा हम सभी जानते है कि जब राजा का हाथी मरा, तो सजा के डर से कर्मचारी ने राजा से सीधे नहीं कहा कि हाथी मर गया है। उसने राजा को बताया कि हाथी न तो खा रहा है, न देख रहा है, वह साँस भी नहीं ले रहा है,… आगे पढ़ें

नूंह–मेवात साम्प्रदायिक दंगा

31 जुलाई को हरियाणा के नूंह में बजरंग दल ने धार्मिक यात्रा का आयोजन किया था जिसमें हजारों की संख्या में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद ने इस यात्रा में शामिल होने के लिए हरियाणा के सभी जिलों से अपने कार्यकर्ताओं और श्रद्धालुओं को बुलाया था। जैसे ही यात्रा आगे बढ़ी, उस पर मुस्लिम समुदाय की तरफ से पथराव की बात कही गयी और यात्रा ने साम्प्रदायिक दंगे का रूप ले लिया। देखते ही देखते भीड़ बेकाबू हो गयी और आगजनी शुरू हो गयी। दोनों साम्प्रदायों की तरफ से गोलियाँ भी चलायी गयीं जिसमें कुल 6 लोगों की जान चली गयी। नूंह में साम्प्रदायिक दंगे के बाद रात में गुरुग्राम के एक मस्जिद में आग लगा दी गयी जिसमें इमाम की मौत हो गयी। 2016 में मेवात का नाम बदलकर नूंह कर दिया गया था। मेवात केवल एक जिला ही… आगे पढ़ें

न्यूज चैनल : जनता को गुमराह करने का हथियार

देश की प्रगति के लिए समाचार पत्र–पत्रिकाओं के साथ–साथ न्यूज चैनलों की भी अहम भूमिका होती है। इनका काम जनता के सामने सही चीजों को पेश करना होता है। लेकिन आज ये अपनी मुख्य भूमिका को भूलकर जनता को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। याद कीजिए वर्ष 2014 को जब चैनलों पर पानी की तरह पैसा बहाया गया था। ऐसा कोई न्यूज चैनल नहीं था जहाँ मोदी भावी प्रधानमंत्री के रूप में छाये न रहे हों। चैनलों ने कमाल दिखाया और मोदी पूरे बहुमत से भारत के प्रधानमंत्री बनकर आये। उसके बाद से अब तक इन चैनलों पर जो भी कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं उनका सरोकार आम जनता की मूलभूत जरूरतों से बिलकुल नहीं है। हर दिन ऐसे–ऐसे कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं जो जनता की चेतना को कुन्द कर रहे हैं। इनके जरिये जनता को जातिवादी, साम्प्रदायिक, स्वार्थी और उपभोक्तावादी बनाया जा रहा है। आज अधिकांश… आगे पढ़ें

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नदियाँ मौत परोस रही हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निवासी जल संकट और प्रदूषित नदियों से अपरिचित नहीं हैं। लेकिन यह संकट कितना भयावह रूप ले चुका है, इसकी उन्होंने शायद ही कल्पना की हो। गाजियाबाद आधारित ईटीएस लैब ने मुजफ्फरनगर के भोपा इलाके के पानी का परीक्षण करने पर पाया कि एक लीटर पानी में लेड 2.15 मिलीग्राम है, जिसकी अधिकतम मात्रा 0.01 मिलीग्राम होनी चाहिए। यानी पानी में लेड की मात्रा अधिकतम सीमा से 215 गुना अधिक है। इसी तरह अमोनिया 14 और लोहा 8.19 मिलीग्राम है जो अधिकतम 0.5 और 0.3 मिलीग्राम होने चाहिए। इस इलाके का भूजल पीकर लोग तरह–तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। इनमें त्वचा रोग और कैंसर के रोगी बड़ी संख्या में हैं। बच्चों में मानसिक बीमारियों का प्रकोप फैल रहा है। इस इलाके की काली नदी का पानी प्रदूषण के चलते इतना काला हो चुका है कि स्थानीय निवासी यह मानने लगे हैं कि काले… आगे पढ़ें

पाकिस्तान में चुनाव और दो प्रतिक्रियावादी गिरोहों का टकराव

पाकिस्तान में 8 फरवरी 2024 को राष्ट्रीय और प्रान्तीय असेम्बली के चुनाव में फौजी अफसरों की दखलन्दाजी, नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग–एन के छल फरेब और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी की सौदेबाजी खुलकर सामने आयी। चुनाव से पहले ही इमरान खान पर बहुत से केस लगाकर जेल भेज दिया गया था जिससे वे चुनाव न लड़ सकें। उनकी पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीके इनसाफ’ (पीटीआई) को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। उनके उम्मीदवार निर्दलीय की तरह चुनाव लड़े। जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो इमरान खान की पीटीआई के निर्दलीय उम्मीदवार जीतते नजर आये, लेकिन चुनाव आयोग में धाँधली के दौर चले और पीटीआई को हराने और नवाज शरीफ को जिताने की कोशिशें की गयीं। इसके बावजूद मुस्लिम लीग हार गयी। लेकिन नवाज शरीफ ने एक चाल चली। उन्होंने विजयी भाषण देकर सरकार बनाने का ऐलान ही कर डाला। पीपीपी के नेता बिलावल भुट्टो ने मुस्लिम… आगे पढ़ें

पिछले 45 सालों में बेरोजगारी की सबसे ऊँची दर

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार देश में 2017–18 में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी पहुँच गयी, जिसका खुलासा 31 जनवरी 2019 को ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ अखबार ने किया। बेरोजगारी की यह दर पिछले 45 सालों में सबसे ऊँची है, जिसे सरकार ने छिपाने का भरपूर प्रयास किया। यह आँकड़ा वास्तविक तस्वीर नहीं बताता। स्थिति और भी भयानक है, क्योंकि सांख्यिकी विभाग अपने सर्वे में बेरोजगारों की श्रेणी में उन्हीं लोगों को शामिल करता है, जो सक्रिय रूप से रोजगार खोज रहे हैं। जो लोग निराश होकर नौकरी खोजना बन्द कर देते हैं, उनको बेरोजगार की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। एनएसएसओ भारत के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय का एक विभाग है, जिसके कर्मचारी घर–घर जाकर पूछताछ करके रिपोर्ट पेश करते हैं। यह विभाग सरकार के अधीन है। कोई भी सत्ताधारी पार्टी इसके आँकड़ों में फेरबदल कर सकती है। इसको रोकने के लिए 2005 में एक स्वतंत्र… आगे पढ़ें

पीपीपी मॉडल के चलते कर्ज में डूबी एनएचएआई

मौजूदा सरकार जिस एक काम का प्रचार सबसे जोर–शोर से करती है वह है देश में बन रही सड़कें। लेकिन जिस संस्था से सरकार यह काम करवाती है उसका भट्ठा बैठ चुका है। देश में सड़क निर्माण का काम नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) करती है। यह एक स्वायत्त संस्था है जो सरकार द्वारा बजट में आवंटित राशि और बाजार से कर्ज उठाकर देश में सड़कें बनाती है। पिछले दो साल से सरकार ने एनएचएआई को बाजार से कर्ज लेने से रोक रखा है। सड़क और परिवहन मंत्री का कहना है कि एनएचएआई पर कोई संकट नहीं है और सड़क निर्माण तेज रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, लेकिन आँकड़े बताते हैं कि सड़क निर्माण की गति पिछले चार साल में आधी रह गयी है और अगर एनएचएआई पर कोई संकट नहीं है तो उसे कर्ज लेने से क्यों रोका जा रहा है। पिछले 2 साल से एनएचएआई केवल… आगे पढ़ें

पेंशन बहाली का तेज होता आन्दोलन

पिछले चैदह वर्षों से चल रहे पुरानी पेंशन बहाली का आन्दोलन तेज होता जा रहा है। 6–12 फरवरी तक देश के कई राज्यों के कर्मचारी बड़ी संख्या में हड़ताल पर चले गये। दिल्ली के रामलीला मैदान में करीब दो लाख कर्मचारियों ने हड़ताल की, जिसमें अलग–अलग विभागों के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। 2004 में एक नयी पेंशन स्कीम लागू की गयी थी। लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) कर्मचारियों के हित में नहीं है। उनकी माँग है कि सरकार पुरानी पेंशन स्कीम को ही सभी सरकारी कर्मचारियों पर लागू करें। 1 जनवरी 2004 को सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम की जगह एक नयी पेंशन स्कीम शुरू की, जिसका नाम एनपीएस है। इसे 2009 में सभी निजी और सरकारी कर्मचारियों के लिए शुरू कर दिया गया और सरकारी कर्मचारियों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया। एनपीएस एक तरह का बचत खाता है, जिसमें धारक अपने वेतन… आगे पढ़ें

पेगासस स्पायवेयर: जासूसी हमेशा दुश्मनों की करायी जाती है!

द वाशिगंटन पोस्ट और 16 मीडिया संस्थानों ने एक बड़ा खुलासा किया है–– जिसका नाम है पेगासस स्पायवेयर। जाँच में सामने आया है कि दुनियाभर से 50,000 मोबाइल नम्बरों की एक सूची निकली, इस सूची के कुछ नम्बरों की जासूसी की जा रही थी तथा नम्बरों की जासूसी की जानी थी। भारत में 300 से अधिक, जिनमें 40 से अधिक पत्रकार, उच्चतम न्यायलय के न्यायधीश, चुनाव आयुक्त, शिक्षाविदों, सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के बड़े नेताओं की जासूसी की जा रही थी। लेकिन भारत संचार व तकनीकी मंत्री, अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि इस लीक डेटा से जासूसी साबित नहीं होती, अवैध निगरानी, हमारे सिस्टम में सम्भव ही नहीं है, यह सरकार को बदनाम करने की एक साजिश है। जबकि खुद अश्विनी वैष्णव का नाम इस जासूसी सूची में है। पेगासस ऐसा सॉफ्टवेयर है जो, आप क्या कर रहे हैं, किन लोगों से मिल रहे हैं, क्या बातचीत कर… आगे पढ़ें

प्रधानमंत्री के लिए हर मौत के मायने अलग हैं।

प्रधानमंत्री के ट्विटर एकाउंट पर एक नजर डालिए। उससे साफ पता चलता है कि साहब के पास सूचनाओं की कमी नहीं है। देश–दुनिया की हर महत्त्वपूर्ण घटना की सूचना इनके पास पहुँचती है। राजस्थान के बाड़मेर में पंडाल गिरने से हुई मौत पर माननीय प्रधानमंत्री मौन नहीं रहे, उन्होंने चुप्पी तोड़ी और एक संवेदनशील नागरिक होने का परिचय दिया, जो कि खुशी की बात है। अपने ट्विटर खाते से लिखा कि “राजस्थान के बाड़मेर में एक ‘पंडाल’ का गिरना दुर्भाग्यपूर्ण है। मेरे विचार शोकाकुल परिवारों के साथ हैं और मैं घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ।” 20 जून को कुल्लू में एक बस दुर्घटनाग्रस्त हुई। प्रधानमंत्री ने गहरा दुख व्यक्त किया और अपने व्यस्ततम दिनचर्या से समय निकालकर ट्विटर खाते से कहा, “कुल्लू में बस हादसे से गहरा दुख, जान गँवाने वालों के परिवारों के प्रति संवेदना। मुझे उम्मीद है कि घायल जल्द ठीक हो जाएँगे। हिमाचल… आगे पढ़ें

फोर्टिफाइड चावल जहर या कहर

हाल ही में सरकार फोर्टिफाइड चावल को लेकर फिर से विवादों में घिरने लगी है। विपक्ष ने सरकार पर यह आरोप लगाया कि सरकार फोर्टिफाइड चावल के रूप में देश के 80 करोड़ लोगों को जहर बाँट रही है। दरअसल 15 अगस्त 2021 को आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि 2024 तक देश में गरीब परिवारों को विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत दिये जाने वाले चावल को शत–प्रतिशत फोर्टिफाइड किया जाएगा। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि आयरन, फॉलिक एसिड, विटामिन बी 12 और अन्य पोषक तत्व मानव शरीर के लिए जरूरी हैं और कुपोषण और एनीमिया यानी खून की कमी से लड़ने में मददगार हैं। फोर्टिफाइड चावल फैक्ट्री में निर्मित ऐसा चावल है जिसमें ये तत्व कृत्रिम तरीके से मिलाये जाते हैं। लेकिन ये दावे गलत साबित होते नजर आ रहे हैं। कई जगहों पर इस चावल के दुष्परिणाम सामने आये हैं। झारखण्ड… आगे पढ़ें

बच्चों का बचपन और बड़ों की जवानी छीन रहा है मोबाइल

मोबाइल बच्चों का बचपन छीन रहा है। आजकल के बच्चे ऐसे खेल खेलना पसन्द ही नहीं करते हैं जिसमें शारीरिक परिश्रम हो। मोबाइल की लत बच्चों पर इस कदर हावी होती जा रही है कि बच्चे इसके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए बेकरार रहते हैं और वे मोबाइल पर थोड़ी देर नहीं बल्कि दिन भर ही लगे रहते हैं। अगर आपका बच्चा भी इसी राह पर आगे बढ़ रहा है तो आपके लिए खतरे की घण्टी है क्योंकि मोबाइल आपके बच्चे से उसका बचपन छीन रहा है। मोबाइल की लत एक बार फिर सुर्खियों में है। हरियाणा में 9 साल के एक बच्चे को इसकी इतनी बुरी लत थी कि उसने स्मार्टफोन छीने जाने की वजह से अपना हाथ काटने की कोशिश की। मोबाइल की लत का ये इकलौता मामला नहीं है। देश भर में बच्चे और युवा बड़ी संख्या में मोबाइल की लत के शिकार हो रहे… आगे पढ़ें

बलात्कार के आरोपी को बचाने की कवायद

24 अगस्त को शाहजहाँपुर के लॉ कॉलिज की छात्रा ने फेसबुक पर एक वीडियो अपलोड किया, जिसमें लड़की ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वामी चिन्मयानन्द पर यौन शोषण का आरोप लगाया। चिन्मयानन्द उर्फ कृष्णपाल सिंह भाजपा से तीन बार सांसद व एक बार अटल बिहारी सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुका है। वीडियो के माध्यम से छात्रा ने बताया कि स्वामी चिन्मयानन्द काफी लम्बे समय से उसका व कई अन्य लड़कियों का यौन शोषण कर रहा था। इसके साथ ही वीडियो में लड़की ने चिन्मयानन्द से अपनी और अपने परिवार की जान को खतरा भी बताया।  फेसबुक पर वीडियो अपलोड करने के एक दिन पहले से ही छात्रा कॉलेज के होस्टल से लापता हो गयी थी। छात्रा चिन्मयानन्द के कॉलेज में ही पढ़ती थी। छात्रा के पिता वीडियो के वायरल होने के बाद से ही चिन्मयानन्द के खिलाफ छात्रा को अगवा करने और उसके साथ दुराचार करने… आगे पढ़ें

बहुमंजिली इमारत से गिरकर मरते मजदूर

क्या आपने कभी शहतूत देखा है जहाँ गिरता है, उतनी जमीन पर उसके लाल रस का धब्बा पड़ जाता है, गिरने से ज्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं, मैंने कितने मजदूरों को देखा है इमारतों से गिरते हुए, गिर कर शहतूत बन जाते हुए। ––सबीर हका (ईरान के मजदूर कवि) हाल ही में नोएडा सेक्टर–94 में एक निर्माणाधीन बहुमंजिली इमारत ढह गयी। इस हादसे में चार मजदूरों की मौत हो गयी और पाँच मजदूर घायल हो गये। वहाँ काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि उन्हंे काम करते समय न ही कोई सुरक्षा उपकरण दिये जाते हैं और न ही कोई अन्य सुविधा। मजदूरों ने बताया कि यह घटना शटिरिंग को जोड़ने वाली सेफ्टी पिन के ढीली रहने की वजह से हुई। जिसमें रेत से भरे एक ट्रैक्टर ने टक्कर मारदी और इमारत गिर गयी। यह निर्माण कार्य 2010 में शुरू हुआ था। ओखला चैकी प्रभारी गिरिश चन्द की शिकायत पर इसका… आगे पढ़ें

बिना आँकड़ों के क्या हिसाब लगाये और क्या हिसाब दें?

आज के दौर में ‘डाटा माइनिंग’ किसी संस्था के सबसे महत्वपूर्ण कामों में से एक है। जिसका मतलब है–– आँकडे़ इकट्ठा करना और उनकी छानबीन करके कुछ निष्कर्ष निकालना। छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक की योजनाएँ बनाने या किसी क्षेत्र विशेष में शोध करने या किसी घटना की सही जानकारी हासिल करने में इसका बहुत महत्व है। आधुनिक तकनीक ने इस काम को बहुत आसान बना दिया है। हमारी सरकार का जोर डाटा माइनिंग के सकारात्मक इस्तेमाल के बजाय इसके नकारात्मक इस्तेमाल पर है। सरकार आधुनिक तकनीकों से अपने नागरिकों पर नजर रखती है और उनकी निजी जानकारी चुराती है। अपनी बारी आने पर सरकार तमाम तरह के आँकडे़ छिपाने की कोशिश करती है और अक्सर यह कहकर पल्ला झाड़ लेती है कि हमारे पास आँकड़े नहीं हैं। सरकार का कहना है कि कोरोना से देश में केवल 3.5 लाख मौत हुई हैं और उसमें ऑक्सीजन की कमी… आगे पढ़ें

बुद्धिजीवियों से नफरत क्यों करते हैं दक्षिणपंथी?

एक दक्षिणपंथी कभी बुद्धिजीवी क्यों नहीं हो सकता? या फिर अधिकतर दक्षिणपंथी बुद्धिजीवियों से नफरत क्यों करते हैं? ये दोनों बातें एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अक्सर दक्षिणपंथी पांडित्य को बौद्धिकता मान लेते हैं और बताते हैं कि फलां साइंटिस्ट और फलां आईआईटियन हमें सपोर्ट करते हैं और हमारे विचारों को फॉलो करते हैं। मगर ऊँची डिग्रीधारी होने का बौद्धिकता से कोई वास्ता नहीं है। बौद्धिक होने की कुछ शर्तें हैं। यदि कोई उसे पूरा करता है तो वह अपने–आप दक्षिणपंथ से दूर चला जाएगा। पहली शर्त है ऑब्जेक्टिविटी, यानी वस्तुपरकता। यानी कि किसी विचार, सिद्धान्त, अनुभव को अपने निजी पूर्वाग्रह, पसन्द–नापसन्द, लाभ–हानि, अनुभवजन्यता से हटकर उसे जैसा है, ठीक उसी रूप में समझना और बरतना। जब हम एक वस्तुपरक सोच को अपने जीवन की कसौटी बनाते हैं तो वह हम जैसे दूसरे इनसानों के साथ दूरियाँ कम करता है। वैज्ञानिकता का उदय ही आत्मपरक और संकीर्ण अनुभव… आगे पढ़ें

बुराड़ी में 11 लोगों की सामूहिक आत्महत्या

2 जुलाई 2018 को दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र में एक ही परिवार के ग्यारह लोगों की सामूहिक आत्महत्या की घटना ने सबको स्तब्ध कर दिया। मोक्ष या स्वर्ग प्राप्ति के लिए ये कोई पहली या आखिरी घटना नहीं है। इससे पहले राजस्थान के कोटा में एक ही परिवार के तीन सदस्यों ने ट्रेन के सामने कूदकर जान दे दी। मार्च 2013 को सवाई माधोपुर गंगानगर में सायनायड के लड्डू खाकर एक परिवार ने सामूहिक आत्महत्या की। 22 जून 2017 को नयी दिल्ली में अंधविश्वास के चलते पिता ने अपनी मासूम बेटी के कान काट लिए। तांत्रिकों द्वारा नर–बलि की घटनाएँ अक्सर खबरों की सुर्खी बनती हैं। घटनाओं का यह अन्तहीन सिलसिला झकझोर देने वाला है। स्वर्ग प्राप्ति, मोक्ष या भौतिक जीवन के दुखों से मुक्ति के लिए होने वाली ये आत्महत्याएँ एक ही दिन में घटित नहीं होती, बल्कि सालों–साल ब्रेन वाश किये जाने का परिणाम होती हैं। ऐसी घटना… आगे पढ़ें

बुलेट ट्रेन परियोजना का विरोध

18 जुलाई 2018 को गुजरात के भरूच जिले के किसानों ने जापान के प्रधानमंत्री को एक पत्र भेजा। उस पत्र में बुलेट ट्रेन परियोजना को बन्द करने के लिए कहा गया था। इस परियोजना को बन्द करके ही किसानों को तबाही से बचाया जा सकता है। सरकार ने किसानों के भारी विरोध के बावजूद परियोजना को हरी झंडी दे दी। भरूच जिले के 27 गाँवों के किसान सरकार के इस कदम से भारी आक्रोश में हैं। इस जिले में 140 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना है। जिसे किसानों ने देने से मना कर दिया है। बुलेट ट्रेन परियोजना अहमदाबाद से मुम्बई तक 509 किलोमीटर लम्बी है। दोनों राज्यों से कुल 1200 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना है। अधिग्रहण शुरू कर दिया गया है। इसमें कुछ जमीन गोदरेज समूह की भी जायेगी और कुछ मार्ग समुद के अन्दर से होकर गुजेरेगा। इस परियोजना से गुजरात के 195 और महाराष्ट्र के 104… आगे पढ़ें

बेघरों के देश में तब्दील होता ब्रिटेन

तीसरी दुनिया के गरीब देशों में लोगों का बेघर होना या फुटपाथों और रैन बसेरों में जिन्दगी काटना आम बात है। लेकिन दुनिया के सरताज देशों की जनता बेघर होने लगे तो यह बेहद गम्भीर मामला बन जाता है। पिछले कुछ सालों में लन्दन की गलियाँ रंग–बिरंगे तम्बुओं से भर गयी हैं। मन्दी के चलते बन्द पड़े बाजारों के फुटपाथों और शीशा जड़ी बहुमंजिला इमारतों के सामने की खाली जगहों को कुछ दिन या कुछ घण्टों के लिए अपना ठिकाना बनाने के लिए लन्दन के बेघर आवारागर्दों के बीच मारा–मारी मचती है। पुलिस उन्हें एक जगह से खदेड़ती है तो वे दूसरी जगह अपना तम्बू गाड़ देते हैं। बेघरों की इस भीड़ में दुधमँुहे बच्चों से लेकर नौजवान लड़के–लड़कियाँ, औरत–मर्द, बच्चे–बूढ़े, शादीशुदा और छड़े सब हैं। अकेले लन्दन शहर में बेघरों की संख्या 1,70,000 से ज्यादा है। इंग्लैण्ड और वेल्स में इनकी संख्या 3,20,000 से ज्यादा है। मिडलैंड और यार्कशायर… आगे पढ़ें

बेरोजगार भारतीय मजदूर इजराइल जाने के लिए विवश

हाल ही में उत्तर प्रदेश और हरियाणा की भाजपा सरकार ने इजराइल में मजदूरी के लिए भर्ती अभियान चलाया। इजराइल सरकार ने मजदूरों की भर्ती के लिए पन्द्रह अधिकारियों की एक टीम भारत भेजी। इस भर्ती अभियान में दोनों राज्यों से बीस हजार मजदूरों को लिया जाना है। इजराइल में जाने के बाद इन मजदूरों से राजमिस्त्री, बेलदारी, टाइल लगाना, प्लम्बर, बढ़ई आदि काम करवाये जायेंगे और इनकी मजदूरी प्रतिमाह 1–37 लाख रुपये होगी। उनकी ऊँची मजदूरी को देखकर भ्रम होता है कि उन्हें कितनी अच्छी नौकरी मिलने वाली है। लेकिन हालात कुछ और ही बयान करते हैं। इजराइल में यह भर्ती प्रक्रिया ऐसे समय पर की जा रही है जब वहाँ युद्ध चल रहा है। वहाँ से रोजाना युद्ध में लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही हैं। युद्ध के चलते विभिन्न देशों ने अपने–अपने मजदूरों को इजराइल से वापस बुला लिया है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश और… आगे पढ़ें

बैंक कर्मियों की आत्महत्या : जिम्मेदार कौन?

बैंक कर्मियों का आरोप है कि काम के बढ़ते दबाव के कारण वे मानसिक दबाव महसूस कर रहे हैं जिससे वे अपनी निजि जिन्दगी में न खुश रह पा रहे हैं न अपने लोगों से ठीक से बात ही कर पा रहे हैं। उन पर लोन की रिकवरी को लेकर लगातार दबाव बनाया जाता है और एक लक्ष्य दिया जाता है जिसके अन्तर्गत उन्हें अपने बैंक शाखा में एनपीए(गैर निष्पादित सम्पत्ति) की तरफ जा रहे खातों को सुचारू रूप से नियमित करना और खाताधारकों से किसी तरह भी पैसे वसूल करना होता है। अगर वे इस लक्ष्य को पूरा करने में सफल नहीं होते हैं तो उन्हे नौकरी को लेकर डराया और जलील किया जाता है जिसकी वजह से वे अवसाद का शिकार हो जाते हैं। बैंक कर्मचारियों के संगठन नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में लगभग 103 बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों ने आत्महत्या… आगे पढ़ें

बैंकों की बिगड़ती हालत

कुछ महीने पहले रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (आरबीआई) ने 11 सरकारी बैंकों को त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) सूची में डाला था क्योंकि इन बैंकों की गैर–निष्पादित सम्पदा (एनपीए) लगातर बढ़ती जा रही है, यानी इन बैंकों के बड़े कर्जों के वापस आने की रफ्तार लगभग बन्द हो चुकी है या न के बराबर है। पीसीए के तहत इन बैंकों पर लोन देने पर रोक लगा दी गयी है। ये बैंक डूबने के कगार पर हैं। लोन न देने की सूची में इलाहबाद बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इण्डिया, कॉरपोरेशन बैंक, आईडीबीआई बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ इण्डिया, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कोमर्स, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और देना बैंक शामिल हैं। अभी इन बैंकों की हालत ठीक नहीं हुई कि आरबीआई अन्य 6 बैंकों को इस सूची में शामिल करने जा रही है जिनमें बैंक ऑफ इण्डिया और सिंडिकेट बैंक के साथ देश के दूसरे सबसे… आगे पढ़ें

बोल्सोनारो की नयी मुसीबत

‘शोले’ फिल्म में ‘मौसी’ ने ‘जय’ से कहा, “बेटा आदमी की पहचान उसके यारों–दोस्तों से होती है”। हमारे प्रधानमंत्री जी के दुनिया में बहुत से दोस्त हैं। उनमें से दो खास दोस्त हैं–– इजराइल के राष्ट्रपति नेतेन्याहू और ब्राजील के राष्ट्रपति ज्येर बोल्सोनारो। जी हाँ, वही बोल्सोनारो जिन्हें इस बार गणतंत्र दिवस पर भारत सरकार ने खास मेहमान बनाया था। जो पिछले दिनों कोरोना मामले पर बेहूदी हवाई बयानबाजी करने के चलते दुनिया भर में बदनाम हुए थे। ट्रम्प! जी नहीं, ट्रम्प दोस्त नहीं है। दोस्त धमकाते नहीं। नेतेन्याहू पर इजराइल में भ्रष्टाचार के केसों का अम्बार लगा है। वह किसी तरह राष्ट्रपति भवन तक पहुँचने में कामयाब तो हो गये हैं लेकिन लगता है ज्यादा दिन वहाँ टिक नहीं पाएँगे। बोल्सोनारो के खिलाफ भी जाँच बैठा दी गयी है और लगता है कि उन्हें राष्ट्रपति भवन छोड़ना पड़ेगा। बोल्सोनारो ने हाल ही में संघीय पुलिस प्रमुख को बर्खास्त कर… आगे पढ़ें

बढ़ते विदेशी मरीज, घटते डॉक्टर

पर्यटन मंत्रालय के अनुसार भारत में इलाज के लिए आनेवाले विदेशी यात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2015 में 2–34 लाख यात्री इलाज के लिए भारत आये और 2017 में 4–95 लाख। इलाज के लिए विदेश जाने को मेडिकल टूरिज्म कहते हैं। अमरीका दुनियाभर में मेडिकल टूरिज्म की पहली पसन्द बना हुआ है। अमरीका इससे 35 अरब डॉलर सालाना कमाता है। भारत इस मामले में साउथ कोरिया, तुर्की, थाईलैण्ड और जर्मनी के बाद छठवीं पसन्द बना हुआ है। भारत की इससे कमाई करीब 4–5 अरब डॉलर है। भारत मुख्य तौर पर बांग्लादेश और अफगानिस्तान के लोगों की पहली पसन्द है।  आज वैश्विक दुनिया है। जिसे जहाँ इलाज सस्ता मिले वह वहाँ इलाज कराने के लिए आजाद है। सभी मरीजों को इलाज मिलना भी चाहिए। इसमें जाति–धर्म, अमीर–गरीब और देश की सीमाएँ भी नहीं आनी चाहिए। पर हम देखते हैं कि भारत में 2015 से 2017 तक विदेशी मरीजों… आगे पढ़ें

भाजपा विपक्ष को तबाह करने पर क्यों तुली है?

लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। यह देश की पहली घटना है जब किसी मुख्यमंत्री को उनके कार्यकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि ईडी ने शराब नीति घोटाले में बिना किसी ठोस सबूत के केवल एक बयान के आधार पर यह गिरफ्तारी की। अरबिन्दों फार्मा कम्पनी के मालिक सार्थ रेड्डी ने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिया है। ईडी ने 10 नवम्बर 2022 को सार्थ रेड्डी को शराब घोटाले में गिरफ्तार किया था। रेड्डी ने छ: महीने जेल में गुजरे। इसी दौरान रेड्डी से 10 बयान लिये गये जो केजरीवाल के पक्ष में थे। लेकिन अचानक 25 अप्रैल 2023 को रेड्डी ने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिया और साथ ही इसकी कम्पनी ने भाजपा को 30 करोड़ रुपये का चन्दा भी दिया। नतीजा यह हुआ कि रेड्डी को अगले ही महीने रिहा कराकर… आगे पढ़ें

भाजपा शासित राज्यों की पुलिस का दमनकारी रवैया

दो आदिवासी युवकों की संगठित हत्या के विरोध में आदिवासी संगठनों के नेतृत्व में 5000 आदिवासियों ने जबलपुर हाईवे जाम कर दिया। घटना इस प्रकार थी कि मध्यप्रदेश में बीते मई के महीने में शिवनी जिले में दो आदिवासी युवकांे की हत्या कुछ हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा कर दी गयी, जिसका वीडियो खुद इन हिन्दुत्ववादी संगठनों ने बनाया था। बढ़ते आन्दोलन के दबाव के चलते प्रशासन को कार्रवाई करनी पड़ी। जाँच में पता चला कि हत्या को अंजाम देने वाले आरोपी हिन्दुत्ववादी संगठन के सदस्य हैं। इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर से बातचीत के दौरान शिवनी पुलिस अधीक्षक ने स्वीकार किया कि वे लम्बे समय से इन संगठनों के सम्पर्क में हैं। संगठन के कई सदस्य पुलिस के लिए मुखबिरी का भी काम करते हैं। ऐसी ही घटना जुलाई 2021 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में सामने आयी थी। जिले के नौतनवा में एक छोटी सी इलेक्ट्रीशियन की दुकान चलाने वाले… आगे पढ़ें

भाजपा शासित राज्यों में बुल्डोजर का बढ़ता आतंक

बीते जून महीने में एक सामाजिक कार्यकर्ता आफरिन फातिमा जिनका घर प्रयागराज में था, ढहा दिया गया। महज एक दिन की नोटिस चिपकाकर प्रशासन द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया। जब मकान गिराया जा रहा था, तब आफरिन और सुमाइया के पिता जेल में थे, जो वेल्फेयर पार्टी से जुड़े एक सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं, जिन्हे पुलिस ने इलाहाबाद में 10 जून को जुम्मे कि नमाज के बाद हुए कथित हिंसा की घटनाओं का मास्टरमाइण्ड घोषित कर गिरफ्तार किया था। प्रशासन द्वारा जो घर गिराया गया वह घर जावेद मोहम्मद की पत्नी के नाम पर पंजीकृत था। और सारा मेण्टेनेंस, बिजली बिल, पानी का बिल और हाउस टैक्स आदि उन्हीं के नाम पर आता था। उत्तर प्रदेश में पिछले कई महीनों से प्रशासन द्वारा इस तरह की कार्रवाइयाँ लगातार जारी हैं। भाजपा कार्यकर्ता और यहाँ तक कि कई राष्ट्रीय मीडिया संस्थान भी इस सरकार को बुल्डोजर सरकार कहकर तारीफ… आगे पढ़ें

भाजपा सरकार में मुसलमानों और ईसाइयों पर बढ़ते हमले

बीते दिनों दिल्ली प्रशासन ने खजुरीखास में स्थित वकील हसन का घर ढहा दिया। वकील हसन उन रैट माइनर मजदूरों में एक हैं, जिन्हांेने बड़ी बहादुरी के साथ दिसम्बर में उत्तराखण्ड की सिल्क्यारा सुरंग में फँसे हुए 44 मजदूरों को जिन्दा बाहर निकाला था जो एक निजी कम्पनी और प्रशासन की लापरवाही और नाकाफी प्रयासों के चलते 17 दिनों से सुरंग में फँसे थे। बाद में सारा क्रेडिट लेने के लिए मंत्री और मुख्यमंत्री रैट माइनरों के साथ फोटो खिंचवाकर उनको सम्मानित करने का ढोंग करते रहे। रैट माइनर वकील हसन के साथ जो हुआ उसने सरकार के दोगले चरित्र को जगजाहिर कर दिया है। हाल की कई घटनाएँ और आँकड़ें हमें बताते हैं कि कैसे भारत में बीते सालों में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति भेदभाव, नफरत और हिंसा तेजी से बढ़ी है। देश में ऐसी घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं, जिनमें मुस्लिम, ईसाई और दूसरे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया… आगे पढ़ें

भारत देश बना कुष्ठ रोग की राजधानी

कल्पना कीजिए, एक रोज आपकी आँख खुले और आपकी नजर शरीर के उस सफेद धब्बे पर पड़े जिसे आपने पहले कभी नहीं देखा, देखते ही देखते यह सफेद हिस्सा, बेजान हो जाए और आपकी जिन्दगी को बेरंग कर दे। किसी भयावह कहानी सा प्रतीत होता है? यह भयानक कहानी इस आधुनिक युग में भी हजारांे कुष्ठ रोगियों के लिए वास्तविकता है। कुष्ठ रोग के लक्षण एक साल में ही दिखने लगते हैं जिसमें शरीर का प्रभावित हिस्सा सुन्न पड़ जाता है, मरीज को कमजोरी का एहसास होता है और अन्त मंे मांसपेशियों में फालिस मार जाती है। यदि लम्बे समय तक इलाज न मिले तो यह संक्रमण फैलने लगता है। लम्बे समय तक रोगी के लगातार सम्पर्क में रहने से साँस के जरिये यह रोग दूसरे के शरीर में जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि रोगियों को लम्बे समय तक क्यों इलाज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है?… आगे पढ़ें

भारत ने पीओके पर किया हमला : एक और फर्जी खबर

बीते 19 नवम्बर को शाम 7 बजे, गोदी मीडिया ने एक खबर बड़े शोर–शराबे से ब्रेकिंग न्यूज बनाकर प्रसारित करना शुरू किया। यह खबर थी–– भारतीय सेना की पाक ओकुपायेड कश्मीर (पीओके) में हवाई हमले (एयर स्ट्राइक) की। इस खबर का स्रोत पीटीआई का 13 नवम्बर को एलओसी पर हुए युद्ध विराम के उल्लंघन के ऊपर एक विश्लेषण था। इस लेख को एंकरों ने अपने मन मुताबिक एयर स्ट्राइक बताकर चैनलों पर चला दिया। सबसे पहले पीटीआई समाचार एजेंसी का हवाला देकर पत्रकार प्रशान्त कुमार का एक ट्वीट आया जिसे स्रोत मानकर चैनलों ने आपाधापी में ये खबर प्रसारित करना शुरू किया। कुछ ही मिनटों बाद एनी समाचार एजेंसी ने भारतीय सेना के डायरेक्टर जनरल परमजीत सिंह के हवाले से इस खबर को गलत बताया। जनरल परमजीत ने बताया कि 19 नवम्बर को सीमा पर कोई फायरिंग या एयर स्ट्राइक नहीं हुई है। इसके बाद अधिकतर चैनलों ने इस खबर… आगे पढ़ें

भारत पर बढ़ता विदेशी कर्ज

भारत का विदेशी कर्ज 629–1 अरब डॉलर पार कर गया है। भारत को कभी आत्मनिर्भर बनाने की तो कभी विश्वगुरु बनाने की झूठी होड़ के बीच यह कामयाबी हासिल की गयी है। इसका खुलासा भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी साल जून के महीने में जारी किया। इसका मतलब हुआ कि भारत सरकार ने देश के हर नागरिक पर करीब 37,211 रुपये का विदेशी कर्ज लाद दिया है। इस बात को ज्यादा समय नहीं हुआ है जब हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका इस कदर कंगाल हो गया कि अपने लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे अमरीका और यूरोप के सामने हाथ फैलाकर भींख माँगनी पड़ी। यह भीख भी उसे कर्ज के रूप में बड़ी कठिनाइयों के बाद मिली। श्रीलंका का यह हाल उसके शासकों द्वारा अपनायी गयीं उन आर्थिक नीतियों का अवश्यम्भावी परिणाम है जिनकी सच्चाई को उन्होंने देश की जनता से हमेशा छुपाये रखा। भारत के शासक… आगे पढ़ें

भारत में अमीरी–गरीबी की बढ़ती खाई

पिछले दिनों विश्व असमानता रिपोर्ट जारी हुई थी। इस रिपोर्ट को ‘वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब’ के सह निदेशक लुकस चोसेल ने फ्रांस के अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के सहयोग से तैयार किया है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य दुनिया भर में असमानता को उजागर करना है। इसके अनुसार भारत दुनिया के सबसे ज्यादा असमानता वाले देशों में से एक है। इस रिपोर्ट के आने के बाद भारत सरकार के होश उड़ गये हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस रिपोर्ट को सही मानने से इनकार किया है। मौजूदा सरकार और कर भी क्या सकती है ? रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में भारत में एक फीसदी अमीरों की आमदनी देश की कुल आमदनी का एक चैथाई है। यही एक फीसदी लोग देश की 33 फीसदी सम्पत्ति के मालिक भी हैं। इसके साथ ही रिपोर्ट में सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों की आमदनी और सम्पत्ति का भी जिक्र किया गया है। इनकी… आगे पढ़ें

भारत में निरंकुश शासन : वी–डैम की रिपोर्ट

हाल ही में स्वीडन की संस्था वी–डेम (वैरायटी ऑफ डेमोक्रेशी) ने अलग–अलग देशों में बढ़ रही निरंकुशता को दिखाने वाली एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट को 3700 विशेषज्ञों ने 202 देशों के 30 करोड़ तथ्यों के आधार पर तैयार किया है। रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले दस सालों में दुनिया में निरंकुशता बढ़ी है। रिपोर्ट में बढ़ रही निरंकुशता के आधार पर दुनियाभर के देशों को सूचीबद्ध किया गया है। इस सूची के अनुसार निरंकुश शासन के मामले में भारत सबसे निरंकुश सरकार वाले शीर्ष छ: देशों में शामिल है। इन सभी छ: देशों में आधिनायकवादी पार्टियों का शासन चल रहा है। इन पार्टियों के बारे में रिपोर्ट में बताया गया है कि ये निरंकुशता को बढ़ावा दे रही हैं। लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं को खत्म कर रही हैं। ये पार्टियाँ अल्पसंख्यक समुदायों समेत सारी जनता के मानवाधिकारों का हनन कर रही हैं। ये पार्टियाँ जनता से वायदा खिलाफी करती… आगे पढ़ें

भारत में बेघर लोगों की स्थिति

“तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है  मगर ये आँकडें झूँठे हैं, ये दावा किताबी है।” अदम की उक्त पंक्तियाँ देश की अर्थनीति और राजनीति के बारे में स्पष्टता और साफगोई दिखती है। बीते दिनों प्रधानमंत्री ने अपना जो अभिभाषण संसद में दिया, उसमें उन्होंने गरीबों का मजाक उड़ाते हुए कहा, “आज देश के गरीब के पास अपना घर है और वह लखपती हो गया है।” जिस प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लोगों को घर देने का दावा इस भाषण में किया जा रहा था, उसकी असलियत अखबार और मीडिया रिपोर्टों में पहले ही आ चुकी है। फिलहाल, दिल्ली की जिस संसद में वे गरीबों को घर देने के नाम पर अपनी पीठ थपथपा रहे थे, उसी दिल्ली में जनवरी के शुरुआती बीस दिनों में ठंड से एक सौ छ: लोग असमय काल के गाल में समा गये। ये वे बेघर लोग थे जिनके पास अपना कोई घर नहीं… आगे पढ़ें

भारत में विदेशी विश्वविद्यालय

इस साल की शुरुआत के साथ ही यूजीसी ने भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैम्पस खोलने की अनुमति दे दी। अब विश्व के चोटी के पाँच सौ विश्वविद्यालयों में से कोई भी यहाँ अपना कैम्पस स्थापित कर पाएगा। इसे मास्टर स्ट्रोक बताया गया और खूब बढ़ा–चढ़ाकर प्रचारित किया गया कि अब घर बैठे ही भारत के गरीब–होनहार कम खर्च में कैंब्रिज, ऑक्सफोर्ड और येल विश्वविद्यालयों की डिग्रियाँ हासिल कर पाएँगे। गौरतलब है कि आज देशी विश्वविद्यालय के प्रगतिशील शिक्षकों और विद्वानों पर लगातार हमले कर उनकी आवाज को दबाया जा रहा है, उनकी छवि राष्ट्र विरोधी और आतंकवादी की बनायी जा रही है। ऐसी स्थिति में विदेशी विश्वविद्यालयों को कितना खुला और रचनात्मक माहौल मिल पाएगा? यह सवाल महत्वपूर्ण है। कहीं ये हिन्दुत्ववादियों के हाथ का मोहरा बनकर तो नहीं रह जाएँगे? कोई उलझन न रहे तो सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है की शैक्षिक स्वतंत्रता के लिहाज से… आगे पढ़ें

भारत में विस्थापन की भयावह होती समस्या

भारत में विस्थापन की समस्या साल–दर–साल और विकराल रूप लेती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र के एक रिपोर्ट में बताया गया कि में भारत में पिछले साल 28 लाख लोग विस्थापित हुए। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला है–– आपदाओं के चलते कुल 24 लाख लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ा है और दूसरा है–– पहचान, जातीय और धार्मिक संघर्षों, हिंसा और बढ़ते युद्धोन्माद के चलते कुल 4 लाख 48 हजार लोग विस्थापित हुए हैं। विस्थापन की समस्या से प्रभावित देशों में भारत का स्थान तीसरा है।    भारत में सूखा सम्भावित क्षेत्र 68 प्रतिशत है। भूकम्प से प्रभावित क्षेत्र 60 प्रतिशत और 75 प्रतिशत तटीय हिस्से चक्रवात और सुनामी से प्रभावित हैं। प्राकृतिक आपदाओं और तेजी से होते जलवायु परिवर्तन के चलते देश के कई हिस्सों में हालात ऐसे हो गये हैं कि इन जगहों पर लोगों के लिए गुजर–बसर करना बेहद मुश्किल है। बुन्देलखण्ड, लातूर, मराठवाड़ा और विदर्भ… आगे पढ़ें

भारतीय खुदरा बाजार को गिरफ्त में लेती ई–मार्केटिंग कम्पनियाँ

भारत में ऑन लाइन व्यापार करने वाली कम्पनियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इस क्षेत्र की मुख्य कम्पनियाँ फ्लिपकार्ट, अमेजन, इवे, वालमार्ट, स्नैपडील, जोमैटो, स्वीगी, अलीबाबा, आदि हैं। इन कम्पनियों का मुख्य उद्देश्य भारत के खुदरा बाजार पर कब्जा जमाना है। सरकार द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को 100 प्रतिशत अनुमति दिये जाने के चलते इस क्षेत्र में विदेशी पूँजी के लिए रास्ता सुगम हो गया है। इस कारोबार में भारतीय पूँजीपति उनके सहयोगी की भूमिका में हैं। भारत में इण्टरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने के साथ इन कम्पनियों के कारोबार में बढ़ोतरी हुई है। भारत के खुदरा व्यापार में इन कम्पनियों की हिस्सेदारी 180 अरब रुपये की है, जबकि खुदरा व्यापार का कुल कारोबार 300 अरब रुपये का ही है। रिर्पोटों के मुताबिक बाजार में ऑनलाइन कम्पनियों की हिस्सेदारी में और बढ़ोतरी होगी। इन कम्पनियों के कारोबार के लिए अभी तक सरकार की तरफ से… आगे पढ़ें

भीड़ का हमला या संगठित हिंसा?

देश भर में गौ–तस्करी, गौमांस रखने और बच्चा चोरी के शक में भीड़ द्वारा हमले (मॉब लिंचिंग) की घटनाएँ बढ़ रही हैं। इण्डिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार साल 2010 से अब तक केवल गौहत्या या गौमांस रखने के शक में भीड़ के 86 हमले हो चुके हैं, जिनमें से 98 फीसदी हमले साल 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद हुए हैं। इनमें मारे गये 33 लोगों में से 29 लोग यानी 88 फीसदी मुस्लिम हैं। 27 जुलाई 2018 की ‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने राजस्थान सरकार को अलवर मॉब लिचिंग मामले में नोटिस भेजा है। यह घटना 21जुलाई की है। रकबर हरियाणा के मेवात जिले के कोलगाँव के रहने वाले थे। उनकी उम्र 28 साल थी। उनके परिवार में बूढ़े पिता, पत्नी और बच्चे थे। उन्होंने गाय पाल रखी थी, जिसके दूध से घर का खर्च चलता था। इसीलिए वे अपने… आगे पढ़ें

भुखमारी और कुपोषण से जूझती विशाल आबादी

अक्टूबर 2022 में आयी वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) की रिपोर्ट बताती है कि भुखमरी के मामले में भारत एक सौ इक्कीस देशों की सूची में एक सौ सातवें स्थान पर है। भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका चैसठ, नेपाल इक्यासी, बांग्लादेश चैरासी और पाकिस्तान तिरानवे नम्बर पर हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि देशभर में हर सौ वयस्कों में से सत्रह कुपोषण से ग्रसित हैं। 5 साल से कम उम्र के सौ में से छत्तीस बच्चे अविकसित हैं और कुपोषण की वजह से ही सौ में से चार बच्चे 5 साल की उम्र से पहले मर जाते हैं। यह भयावह स्थिति उस देश की है जहाँ के शासक देश मंे आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए राम राज का राग अलापते रहे हैं। यह कैसा अमृत महोत्सव है ? जब बहुत बड़ी आबादी भूखमरी से जूझ रही है उनके पास खाने को दो जून की रोटी तक नहीं है। बच्चों और… आगे पढ़ें

भूख सूचकांक में भारत अव्वल

हाल ही में जारी वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति और ज्यादा बदतर नजर आयी है। भूख के मामले में 115 देशों में भारत चार अंक नीचे खिसकर 111 वें स्थान पर पहुँच गया है। भूख के मामले में बहुत से अफ्रीकी देश भी भारत से बेहतर स्थिति में हैं। जैसे शैतान रोशनी से डरता है उसी तरह भारत की सरकार भी सच्चाई से डरती है। सच को दबाने या उस पर कीचड़ उछालने की कोशिश करती है। भूख सूचकांक की रिपोर्ट के प्रति भी भारत सरकार ने यही रुख अपनाया है। सरकार परस्त मीडिया संस्थानों ने इसे चर्चा से गायब कर दिया है और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भूख सूचकांक तैयार करने के तौर–तरीके पर कुछ वाहियात सवाल उठाकर इस पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है। हालाँकि, उनकी इस हरकत से भारत सरकार पूरी दुनिया में मजाक का पात्र बन रही है। भूख सूचकांक पिछले कई… आगे पढ़ें

मच्छु नदी की गहराई में अभी भी दबे है सैकड़ों सवाल ?

बीते साल देश में इमारतों और पुलों के गिरने के कई हादसे हुए, जहाँ मलबे में सैकड़ों गाड़ियाँ, ठेले, रिक्शे दब गये, वहीं सैकड़ों मासूमों को अपनी जिन्दगियाँ गँवानी पड़ी। कुछ हादसे ऐसे भी रहे जिनके मलबे में भारतीय राजनीति और उसकी प्रशासनिक संस्थाएँ दम तोड़ती हुई नजर आयीं। ऐसी ही एक घटना गुजरात में बीते अक्टूबर महीने में हुई। जब वहाँ के मोरबी इलाके में मच्छु नदी पर बना झूला पुल (मोरबी पुल) ढह गया। वहाँ मौजूद एक व्यक्ति जिसने कई मासूम जाने बचाई थी, उस हृदयविदारक दृश्य को बताते हुए कहा कि एकाएक नदी में सैकड़ों लोगों के चीखने पुकारने की आवाजें गूंजने लगी। कई लोग पुल के जाल से लटके हुए थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक आखिर हुआ क्या ? इस हादसे में 140 से ज्यादा लोग और 41 मासूम बच्चे असमय ही काल के गाल में समा गये। इस पर… आगे पढ़ें

मजदूरों–कर्मचारियों के हितों पर हमले के खिलाफ नये संघर्षों के लिए कमर कस लें!

आप बिलकुल चिन्ता न करें। आपकी यह नौकरी गयी है, तो इससे बेहतर नौकरी आपका इन्तजार कर रही होगी। बस आउटर पर खड़ी ट्रेन की तरह उसे भी सिग्नल मिलने की देरी है। फिर तो आपकी पौ बारह हो जाएगी। पाँचों उंगलियाँ घी में और सिर कड़ाही में होगा। ऐसे ही मैसेज आपको मिल रहे होंगे, जो आपके दिल की धड़कन कभी बढ़ाते हैं तो कभी सुकून पहुँचाते हैं। कुछ दिन पहले जब सेलरी आधी मिली थी, तब भी आप सोच रहे थे कि चलो कोई बात नहीं, जल्दी ही अच्छे दिन आएँगे। कोरोना संकट को सरकार अवसर के रूप में देख रही है, जबकि कुछ साथी इसे “कॉन्सिपिरासी थिअरी” के रूप में समझ रहे हैं। उनका मानना है कि पहले से संकटग्रस्त बुर्जुआ अर्थव्यवस्था के पास आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं था। जनविरोधी सरकारों ने दुनिया भर में एक हौवा खड़ा किया। इससे उन्हें लॉकडाउन करने और मजदूरों… आगे पढ़ें

मणिपुर हिंसा : सवालों के कटघरे में केन्द्र और राज्य सरकारें

बीते जुलाई के महीने में मणिपुर से महिलाओं को नग्न घुमाने और सामूहिक बलात्कार की शर्मनाक घटना का वीडियो सामने आया। इसने राष्ट्र की चेतना को आहत कर दिया। इनसानियत का सिर शर्म से झुक गया। इस पर मानवाधिकार कार्यकर्ता, इरोम शर्मिला, जो 16 साल तक सेना के कथित अत्याचारों के खिलाफ भूख हड़ताल करती रही थीं, उन्होंने अपनी वेदना जाहिर करते हुए कहा, “मैं स्तब्ध और परेशान महसूस कर रही हूँ। यह किसी विशेष समुदाय के बारे में नहीं है, यह एक ‘अमानवीय’ घटना है।” देश के एक बहुत बड़ा हिस्से ने भी ऐसी ही दिल को मथ देनेवाली वेदना महसूस की। पिछले छ: महीनों से मणिपुर हिंसा से लगातार जूझ रहा है। पूरा राज्य सेना की छावनी में बदल दिया गया है। इस सब के बावजूद वहाँ हिंसक घटनाएँ लगातार जारी हैं। गाँव के गाँव, चर्च, स्कूल, सरकारी दफ्तर आदि हिंसा की इस आग में जल रहे हैं,… आगे पढ़ें

मनरेगा डेटाबेस से सरकार ने 5 करोड़ मजदूरों के नाम हटाये

इस साल राज्य सरकारों ने लगभग देश के पाँच करोड़ से अधिक मजदूरों के नाम मनरेगा सूची से हटा दिये हैं। जबकि पिछले साल की तुलना में इस साल 4 फीसदी से अधिक मजदूरों ने मनरेगा में आवेदन किया था। इसके साथ ही पिछले साल मनरेगा का बजट लगभग 90 हजार करोड़ रुपये था जिसे सरकार ने इस साल घटाकर साठ हजार करोड़ रुपये कर दिया है। यह राशि बेहद नाकाफी है। सरकार के इस रवैये से यह साफ हो जाता है कि वह मनरेगा योजना पर हमलावर है। देश के लगभग 19 करोड़ मजदूर मनरेगा के तहत कुछ समय के लिए ही सही पर रोजगार हासिल कर रहे हैं। अगर यह योजना बन्द होती है तो इन मजदूर परिवारों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी और साथ ही पहले से ही बेहिसाब बेरोजगारी और विकराल हो जाएगी। मनरेगा यानी “महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना” के तहत… आगे पढ़ें

मन्दी की आहट के बीच बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कर्मचारियों की छँटनी

दुनियाभर की बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तेजी से कर्मचारियों की छँटनी कर रही हैं। पिछले साल जुलाई से लेकर दिसम्बर तक अमेजन ने लगभग 18,000 कर्मचारियों की छँटनी की। माइक्रोसॉफ्ट ने सिर्फ 18 जनवरी 2023 को 10,000 कर्मचारियों को काम से निकाला, मेटा ने जनवरी 2023 को 10,000 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया। टेस्ला, गूगल, जैसी तकनीकी कम्पनियों से लेकर, फैशन से जुड़ी कम्पनियाँ, उत्पादन से लेकर रियल इस्टेट, आदि, हजारों कम्पनियों में ये सिलसिला अब तक बदस्तूर जारी है। विशेषज्ञों की राय में यह समुद्र में तैरते बर्फ के चट्टान के दिखायी दे रहे छोटे हिस्से के समान है। भयावह मंजर तो अभी आने बाकी हैं। यह ध्यान रहे कि इन कम्पनियों में सफेदपोश कर्मचारी काम करते हैं जिनकी तनख्वाहें बहुत ऊँची होती हैं। ये विलासितापूर्ण जिन्दगी जीते हैं और महँगे सामानों का इस्तेमाल करते हैं। ये शोषण पर टिके पूँजीवादी व्यवस्था के पक्के समर्थक होते हैं। ये कम्पनियाँ अन्य… आगे पढ़ें

महाराष्ट्र के कपास किसानों की दुर्दशा उन्हीं की जबानी

(महाराष्ट्र किसानों का हाल जानने के लिए लेखक ने नागपुर जिले के अलग–अलग गाँव के किसानों से बात की, जिसे यहाँ साझा किया जा रहा है। इन किसानों की आप–बीती सुनने के बाद सचमुच बहुत हैरानी होती है। यह एहसास होता है कि किसानों की परेशानी कम होने के बजाय दिन दूनी रात चैगुनी रफ्तार से लगातार बढ़ती जा रही है।) अखबारों में किसानों की दुर्दशा के बारे में अक्सर लेख छपते हैं, जिन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि आजादी का उत्सव मनाते देश के किसान आत्महत्या से आजाद नहीं हुए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2014 से 2018 के बीच हर साल क्रमश: 12,360, 12,602, 11,379, 10,655 और 10,349 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। यानी कुल मिलाकर पिछले 5 सालों में देश के 57,000 से भी अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली। पूरे देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या महाराष्ट्र के किसानों ने की। नवम्बर… आगे पढ़ें

महाराष्ट्र में कर्मचारी भर्ती का ठेका निजी कम्पनियों के हवाले

मार्च के महीने में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के सभी कर्मचारियों के हितों पर एक बड़ा हमला किया। उसने एक गवर्नमेण्ट रिजोलुयशन (जीआर) के जरिये कर्मचारियों की भर्ती को ठेके पर उठा दिया है। यह ठेका 9 निजी कम्पनियों को 5 साल के लिए दे दिया गया है। अब हर कुशल, अर्ध–कुशल और अकुशल कर्मचारी को इन्हीं निजी कम्पनियों द्वारा भर्ती किया जाएगा। ये कम्पनियाँ विभिन्न सरकारी विभागों में मजदूरों की आपूर्ति करंेगी जिनमें इंजीनियर, शिक्षक, क्लर्क, ड्राइवर, कारपेण्टर से लेकर सफाई कर्मचारी तक शामिल हैं। इससे पहले भी सरकार 2014 में इसी तरह का कॉन्ट्रैक्ट दो कम्पनियों को दे चुकी है जिसका नतीजा यह निकला कि अब सरकारी विभाग में दो तरह के मजदूर हो गये हैं––एक वे जिनकी नौकरी पक्की है, जिन्हें जरूरी लाभ मिलते हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे मजदूर जिन्हें बेहद कम तनख्वाह पर कम्पनी भर्ती करती है और उनके पास किसी तरह की कोई सुविधा… आगे पढ़ें

महाराष्ट्र में चार सालों में 12 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की

महाराष्ट्र के सहकारिता एवं पुनर्वास मंत्री ने विधानसभा में बताया कि साल 2015 से 2018 के दौरान 12,021 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें से 6,888 किसान सरकारी मदद पाने के योग्य थे। अब तक 6,845 किसानों के परिवारों को एक–एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी गयी। मंत्री ने कहा, “सरकार किसानों के लिए कर्ज माफी का वादा निभाएगी। कर्ज माफी योजना से अब तक 50 लाख किसान लाभान्वित हो चुके हैं। मैं किसानों को विश्वास दिलाता हूँ कि सरकार उनके साथ है। मैं किसानों से अपील करता हूँ कि वे आत्महत्या नहीं करें।” देश में पिछले कई सालों में महाराष्ट्र के किसानों द्वारा सबसे ज्यादा आत्महत्या की गयी हैं। राज्य में बढ़ती किसान आत्महत्याओं का कारण कर्ज का बढ़ता बोझ, फसल खराब होना, सूखे की मार और सिंचाई के लिए पानी की कमी है। महाराष्ट्र की देवेन्द्र फडणवीस सरकार ने दो दिन पहले अपने बजट में किसान कर्ज माफी… आगे पढ़ें

महिलाओं के गायब होने की पहेली

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आँकड़े बताते हैं कि 2016 से 2020 तक प्रधानमंत्री जी के गृह राज्य गुजरात में 41,621 महिलाएँ लापता हुर्इं। इसी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि देश के अन्य राज्यों में भी हालात कुछ बेहतर नहीं हैं। महाराष्ट्र में इसी साल के मात्र शुरुआती तीन महीनों में ही 3,594 लड़कियों के लापता होने के मामले सामने आये। बीते सालों की बात करें तो साल 2021 में देशभर से तीन लाख बयालीस हजार लोग लापता हुए जिसमें लगभग दो लाख अट्ठानबे हजार वयस्क और पैंतालीस हजार बच्चे थे। इनमें अधिकांश लोग पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और दिल्ली से लापता हुए हैं। इनके लापता होने के ठोस कारणों पर बात करते हुए हुक्करानों और नौकरशाहों के मुँह मे दही जम जाता है। शर्म और लाज–हया बेच खाये ये लोग यह बताने से मुँह चुराते हैं कि इनमें से ज्यादातर लापता लोगों… आगे पढ़ें

मानवाधिकार उल्लंघन

इसी वर्ष 14 जनवरी को अमरीका की एक मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने न्यूयॉर्क में अपनी 652 पन्नों की विश्व रिपोर्ट 2020 में, जो कि इसका 30वाँ संस्करण है, लगभग 100 देशों में मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा की है। अपने परिचयात्मक आलेख में, कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ ने कहा है कि चीन की सरकार, जो सत्ता में बने रहने के लिए दमनात्मक नीतियों पर निर्भर रहती है, दशकों बाद वैश्विक मानवाधिकार पर सबसे तीखा हमला कर रही है। वह कहते हैं कि जहाँ बीजिंग की कार्रवाई दुनिया भर के निरंकुश लोकलुभावनवादी शासकों को शह दे रही है और उनका समर्थन हासिल कर रही है, वहीं चीन की सरकार अन्य सरकारों को चीन की आलोचना से रोकने के लिए अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल कर रही है। यह बेहद जरूरी है कि इस हमले का विरोध किया जाये, जो मानवाधिकारों पर कई दशकों में हुई प्रगति और हमारे भविष्य… आगे पढ़ें

मुजफ्फरनगर दंगे में अखबारों ने निभायी खलनायक की भूमिका

फरवरी 2019 में सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपियों के मामले को रफा–दफा करने का फैसला किया। अगस्त और सितम्बर 2013 में मुजफ्फरनगर भयानक साम्प्रदायिक दंगे की चपेट में आ गया था। इसमें 60 लोग मारे गये और कई महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। 40 हजार से अधिक लोग अपनी जमीन से उजड़कर शरणार्थी शिविरों में पहुँच गये। दंगे की जाँच के लिए गठित एसआईटी ने 175 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किया। पुलिस ने 6,869 लोगों को आरोपी बनाया और 1480 लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें से 54 मामलों में गिरफ्तार 418 आरोपी पहले ही बरी हो चुके हैं। बाकियों को भी बरी करने का फैसला सरकार ने कर लिया है। दंगा किस बात को लेकर शुरू हुआ था, इसके बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। लेकिन अदालत के उस फैसले से बात साफ हो जाती है, जिसमें मुजफ्फरनगर दंगे में अखबार खलनायक बन गये। मुजफ्फरनगर दंगे की… आगे पढ़ें

मुस्लिम होने का डर

शहजाद का परिवार लोनी में रहता है। वहाँ उसका अपना मकान है, पर उसे काम के लिए देहरादून आना पड़ता है। वह देहरादून और आस–पास के बाजारों में लोवर–टी शर्ट थोक में बेचने का काम करता है। यहाँ उसके बँधे ग्राहक हैं जो उससे माल मँगाते हैं। शहजाद ने देहरादून में एक दुकान किराये पर ली है, जहाँ वह दिल्ली से माल लाकर रखता है और बाजारों में सप्लाई करता है। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान सभी स्कूल कॉलेज और दफ्तर बन्द हो गये थे, दुकानंे भी बन्द थी, जिससे शहजाद के सामने लोवर–टी शर्ट सप्लाई का काम बन्द हो गया था। शहजाद लॉकडउन में अपने घर चला गया था, पर बढ़ती माँग के चलते उसके पास देहरादून से बार–बार फोन आ रहे थे। शहजाद को अपना घर चलाने की फिक्र भी थी। इसलिए लोगों के अनुरोध पर वह माल लेकर देहरादून आ गया। यहीं से उसकी परेशानियाँ बढ़ती गयीं।… आगे पढ़ें

मेडिकल कोलेज में दाखिले से लेकर स्वास्थ्य सेवाएँ तक पूँजीवादी असमानता का शिकार

पिछले 3 दशकों से भारत में स्वास्थ्य शिक्षा का भारी निजीकरण किया गया है। 2024 में अब तक का परिणाम यह है कि कुल एमबीबीएस सीटों में से लगभग आधी सीटें निजी मेडिकल कॉलेजों के हाथों में हैं। इन कॉलेजों में एमबीबीएस उम्मीदवार के लिए औसत वार्षिक पढ़ाई फीस प्रति वर्ष 15 लाख रुपये से 20 लाख रुपये तक है, छात्रावास शुल्क, कैंटीन शुल्क और अन्य शुल्क जोड़ें तो निजी मेडिकल कॉलेज से स्नातक करने के लिए आवश्यक कुल राशि 1 करोड़ से अधिक है। इस डेटा की तुलना सरकारी मेडिकल कॉलेजों की फीस से करें, जिनकी पढ़ाई फीस 5000 रुपये से 1 लाख रुपये प्रति वर्ष के बीच है। आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण 2019–20 के अनुसार, अगर एक आदमी 25,000 रुपये कमाता है तो वह भारत में सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों में शामिल है। अब इस आँकड़े की तुलना निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस से करके देखें। जो… आगे पढ़ें

मौत के घाट उतारती जोमैटो की 10 मिनट ‘इंस्टेण्ट डिलीवरी’ योजना

हाल ही में ऑनलाइन फूड डिलीवरी कम्पनी जोमैटो के संस्थापक दीपिन्दर गोयल ने ‘इंस्टेण्ट डिलीवरी’ नामक योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत उन्होंने पहले चली आ रही 30 मिनट में खाना डिलीवर करने वाली सेवा को अब सिर्फ 10 मिनट में पूरा करने की गारण्टी दी है। यह सेवा सुनने में बहुत अच्छी लग सकती है क्योंकि ग्राहक अपना आर्डर जल्दी से जल्दी मँगाना चाहता है। लेकिन इतने कम समय में डिलीवरी करना कोई आसान काम नहीं है। इन गिग कर्मचारियों पर तय समय सीमा में डिलीवरी न करने पर आर्थिक दण्ड और नौकरी तक जाने का दबाव हमेशा बना रहेगा। इस मानसिक दबाव में कितने ही डिलीवरी करने वाले कर्मचारी हर रोज दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। आज ऑनलाइन फूड डिलीवरी के कारोबार में जोमैटो, स्विगी, ईस्टामार्ट, डुन्जो, जेप्टो आदि कम्पनियों में अकूत मुनाफा कमाने की होड़ लगी हुई है। इसी होड़ में आगे बढ़ने… आगे पढ़ें

यस बैंक की तबाही : लूट का नतीजा

भारतीय बैंकिंग व्यवस्था भयावह आर्थिक संकट का शिकार है। महाराष्ट्र के ‘पीएमसी बैंक’, कर्नाटक के ‘श्री राघुवेन्द्र सहकारी बैंक’ के बाद अब देश के 5 सबसे प्रतिष्ठित निजी बैंकों में शुमार ‘यस बैंक’ का दिवालिया होना इसका ताजा उदाहरण है। आरबीआई ने यस बैंक के लेन–देन पर 30 दिनों के लिए रोक लगा दी थी। बैंक से रुपया निकासी को 50,000 रूपये प्रतिदिन तक सीमित कर दिया गया था। इसके साथ ही आरबीआई ने यस बैंक के निदेशक मण्डल को बर्खास्त कर ‘एसबीआई’ के वरिष्ठ आर्थिक अधिकारी और उप प्रबंध निदेशक प्रशान्त कुमार को यस बैंक के मामले की जाँच–पड़ताल के लिए नियुक्त किया। शुरूआती जाँच–पड़ताल द्वारा बैंक के निजी कम्पनियों, उद्योगपतियों व राजनेताओं को अवैध रूप से कर्ज बाँटने का खुलासा हुआ। इसके लिए प्रवर्तन निदेशालय ने यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर तथा दूसरे कई लोगों को धन शोधन के मामले में गिरफ्तार किया। यस बैंक प्राइवेट बैंकों… आगे पढ़ें

येदियुरप्पा की डायरी : भ्रष्टाचार का काला चिट्ठा

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कोर कमेटी के सदस्य सुरजेवाला ने कर्नाटक के भाजपा प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर भाजपा के केन्द्रीय कमेटी, राष्ट्रीय और केन्द्रीय नेताओं, जजों और वकीलों को 1800 करोड़ रुपये रिश्वत देने का आरोप लगाया। येदियुरप्पा पर अन्य नेताओं, कैबिनेट मन्त्रियों और विधायकों से 2690 करोड़ रुपये रिश्वत वसूलने का भी आरोप लगा। सुरजेवाला ने कारवाँ पत्रिका की उस रिपोर्ट को आधार बनाया जिसके साक्ष्य येदियुरप्पा की डायरी से लिये गये थे और जिस डायरी पर येदियुरप्पा के हस्ताक्षर थे। 2019 के चुनाव के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। कारवाँ पत्रिका के मुताबिक, येदियुरप्पा ने इस डायरी में सभी भुगतानों को दिनांक और हस्ताक्षर के साथ नोट किया है। डायरी के विवरण के मुताबिक येदियुरप्पा ने ये सभी भुगतान वर्ष 2009 में किये थे। जबकि मई 2008 में येदियुरप्पा ने कर्नाटक के… आगे पढ़ें

रत्नागिरी रिफाइनरी परियोजना का जोरदार विरोध

30 मई को राजापुर के गाँधी मैदान में 17 गाँवों के 1500 से ज्यादा लोगों ने रत्नागिरी रिफाइनरी परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इनकी माँग थी कि इस परियोजना को पूरी तरह बन्द किया जाये। रत्नागिरी रिफाइनरी सहपेट्रोकैमिकल नाम की यह परियोजना रत्नागिरी जिले के नाणार गाँव में लगनी है। इसमें आस–पास के 17 गाँवों की जमीन जायेगी। गाँव के बाशिंदों के भारी विरोध के बावजूद सरकार ने जमीन अधिग्रहण शुरू कर दिया था लेकिन कई जगह पुलिस–प्रशासन और ग्रामीणों के बीच खूनी टकराव होने के कारण काम रोक दिया गया। महाराष्ट्र सरकार में शामिल शिव सेना भी इस परियोजना के विरोध में है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल लोकेशन रिफाइनरी परियोजना बताया जा रहा है। इसकी क्षमता सालाना 6 करोड़ टन कच्चा तेल साफ करने की होगी। सरकारी अनुमान के अनुसार इसमें 3 लाख करोड़ रुपये की लागत आयेगी और लगभग 5.5  हजार हेक्टेयर (82,500 बीघा) जमीन… आगे पढ़ें

राजा महेन्द्रप्रताप के नाम पर अपने हित साधती बीजेपी

हाल ही में उत्तर प्रदेश दौरे के समय प्रधानमंत्री मोदी ने अलीगढ़ में राजा महेन्द्र प्रताप के नाम पर बनने जा रहे विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया। इस दौरान उन्होंने भाषण भी दिया जिसमें उनका क्रान्तिकारियों के प्रति प्रेम उमड़ रहा था। उन्होंने कहा कि राजा महेन्द्रप्रताप को पिछली सरकार ने कोई सम्मान नहीं दिया इसलिए वह उन्हें सम्म्मानित कर रहे हैं। किसी क्रान्तिकारी के बारे में शायद पहली बार देश के किसी प्रधानमंत्री ने इतने बेबाक तरीके से झूठ बोला हो। जबकि सच यह है कि राजा महेन्द्र प्रताप के सम्मान में डाक टिकट जारी गये थे, भारत के हर बोर्ड और विश्वविद्यालय में उनके बारे में पढ़ाया जाता रहा है। ये बातें प्रधानमंत्री जानते नहीं या जानकर अनजान बनने का नाटक कर रहे थे। झूठ का यह सिलसिला यही नहीं रुका बल्कि प्रधानमंत्री के भाषण के बाद यह और तेजी से फैलने लगा। मुख्यधारा की मीडिया में हर तरफ… आगे पढ़ें

राज्य बनाने के लिए लद्दाख की जनता का आन्दोलन

26 मार्च 2024 को जब तापमान शून्य से 10 डिग्री नीचे था तब लेह में साढ़े तीन सौ से अधिक लोग सोनम वांगचुक के साथ खुले असमान के नीचे भूखे सोये। इस आन्दोलन में बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएँ, नौजवान, बौद्ध भिक्षु सहित सभी धर्मों के लद्दाखी लोग शामिल हुए। उन्होंने इस भूख हड़ताल का नाम क्लाइमेट फास्ट रखा है। वे लद्दाख को एक राज्य बनाने और पूर्वाेत्तर राज्यों की तरह संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी दर्जा देने की माँग कर रहे हैं। इनके आन्दोलन का उद्देश्य लद्दाख को भविष्य की ऐसी तबाहियों से बचाना है जो पिछले कई सालों से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और सिक्किम जैसे तमाम हिमालयी क्षेत्रों को लगातार अपनी चपेट में ले रहे हैं। लेकिन 21 दिन भूख हड़ताल के बावजूद केन्द्र सरकार ने उनकी माँगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। लद्दाख की जनता सिंधु, सुरु, श्योक, नुब्रा और लद्दाख की अन्य नदियों के लिए आवाज… आगे पढ़ें

रामनवमी के समय बंगाल में साम्प्रदायिक हिंसा

रामनवमी पर पिछले साल की तरह इस साल भी बंगाल में साम्प्रदायिक आग भड़क उठी। बंगाल के हावड़ा और नॉर्थ दिनाजपुर जिले में 30 मार्च को विश्व हिन्दू परिषद द्वारा निकाले गये रामनवमी जुलुस के दौरान हिंसा हुई। 24 घण्टे बाद शिवपुर में दुबारा पत्थरबाजी हुई। हावड़ा के हुगली में भी आगजनी और हिंसा हुई। जिले के रिशरा में 2 अप्रैल रविवार को हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा शोभायात्रा निकाली गयी। इसी दौरान दो गुटों के बीच पत्थरबाजी हुई। इस हिंसा में 20 से ज्यादा दुकानों में तोड़फोड़ हुई, 10 से ज्यादा वाहनों को जला दिया गया, 3 पुलिस वालों समेत 15 से भी अधिक लोग घायल हुए। पिछले साल भी रामनवमी जुलूस के समय हिंसा हुई थी। हिंसा के बाद हावड़ा जिले में धारा 144 लगा दी गयी। केवल बंगाल ही नहीं, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के 8 से अधिक शहरों में रामनवमी के दिन साम्प्रदायिक हिंसा हुई। रामनवमी का… आगे पढ़ें

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग–– विधेयक 2019

22 जुलाई 2019 को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने पुराने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की जगह राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के गठन के लिए विधेयक 2019 लोकसभा में पेश किया। इस विधेयक का उद्देश्य 63 साल पुराने एमसीआई को भंग करके इस नये विधेयक को लागू करना था। 1 अगस्त 2019 को इसे पारित भी कर दिया गया। संसद के दोनों सदनों में पारित हो जाने के बाद 8 अगस्त 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गयी और यह विधेयक अब कानून बन चुका है। इस विधेयक को सरकार जनता के हितों से जुड़ा बता रही है लेकिन डॉक्टरों ने देशभर में लगातार इसका विरोध किया है। विधेयक के खिलाफ डॉक्टरों ने 1 से 4 अगस्त 2019 तक दिल्ली समेत पूरे देश में हड़ताल, विरोध प्रदर्शन किये। उनका सबसे ज्यादा विरोध नेक्स्ट परीक्षा को लेकर है।  इस नये विधेयक में चिकित्सा–शिक्षा को राष्ट्रीय स्तर पर एक समान बनाने… आगे पढ़ें

रिट्ज में विनिवेश : बहुमूल्य संस्थान की कौड़ियों के भाव नीलामी

केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी 2018–19 के अपने बजट भाषण में घोषणा की कि सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए 80,000 हजार करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के 24 उद्यमों को चुना है, जिनमें रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया जल्द शुरू की जायेगी। वित्त मंत्री जिस विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, हम भी जाने की यह विनिवेश है क्या? यह क्यों और कैसे होता है? यह किसके फायदे का है और किसके नुकसान का? क्योंकि वर्गीय समाज में एक वर्ग के फायदे की बात दूसरे वर्ग के फायदे की हो यह जरूरी नहीं है। विनिवेश विभाग की स्थापना 10 दिसम्बर 1999 में की गयी थी। तब से लेकर आज तक इसके नामों को कितनी ही बार बदला गया है। 14 अप्रैल 2016 में इसका नाम एक… आगे पढ़ें

रिलायंस द्वारा ओएनजीसी के गैस भंडार से 30 हजार करोड़ की डकैती

 अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में सरकार की हार 1 अगस्त 2018 को आंध्र के कृष्णा–गोदावरी बेसिन में ओएनजीसी के गैस भंडार में सेंध लगाकर रिलायंस द्वारा 30 हजार करोड़ रुपये की प्राकृतिक गैस चुराने के मामले में अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता पैनल का फैसला आ गया। यह पैनल जो रिलायंस और मोदी सरकार की सहमति से चुना गया था। उसने ओएनजीसी की शिकायत को रद्द कर रिलायंस से 10 हजार करोड़ रुपये का जुर्माना हटा दिया है जो 2016 में जस्टिस एपी शाह आयोग द्वारा रिलायंस को दंडित करने की सिफारिश के चलते सरकार को लगानी पड़ा था। इस पर भी तुर्रा यह कि ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि अब सरकार को ही हरजाने के तौर पर लगभग 50 करोड़ रुपये रिलायंस को देने होंगे। आंध्र प्रदेश की दो प्रमुख नदियाँ कृष्णा और गोदावरी के डेल्टा क्षेत्र में स्थित कृष्णा–गोदावरी (केजी) बेसिन कच्चे तेल और गैस की खान माना जाता है। 1997–98 में… आगे पढ़ें

रेलवे का निजीकरण : आपदा को अवसर में बदलने की कला

कोरोना महामारी के समय लाखों मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल अपने घरों की ओर चल पड़े। खाने के लिए दो जून की रोटी क्या दाने–दाने को मोहताज हुए। बेरोजगारी का आलम यह है कि नयी नौकरियाँ मिलना तो दूर छँटनी की तलवार पर जैसे धार लग गयी है। पढ़े–लिखे लोग आजीविका चलाने के लिए ठेले–खोमचे लगाने को मजबूर हो गये हैं। वहीं हमारी सरकार ने ‘आत्मनिर्भरता’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ के सुर में तथा ‘ताली–थाली’ के शोर के बीच कोरोना की आड़ लेते हुए रेलवे के 151 ट्रेनों के निजीकरण का फैसला कर लिया।  1 जुलाई 2020 को सरकार के रेलवे मंत्रालय ने 109 रूटों पर 151 ट्रेनों के निजी परिचालन के लिए प्रस्ताव माँगा था। यह प्रक्रिया नवम्बर महीने तक पूरी होगी और 2023 तक निजी ट्रेनें चलने लगेंगी। इसमें 30 हजार करोड़ का निवेश होगा। रेलवे के निजीकरण करने का कारण सरकार ने यह बताया कि यात्रियों को वर्ल्ड… आगे पढ़ें

लाशें ढोते भारत में सेन्ट्रल विस्टा!

सेन्ट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना की घोषणा मोदी सरकार ने सितम्बर 2019 में की थी। इस परियोजना में नया संसद भवन, एकीकृत केन्द्रीय मंत्रालय, प्रधानमंत्री आवास, उपराष्ट्रपति आवास बनने हैं और राष्ट्रपति भवन से इण्डिया गेट तक के तीन कीलोमीटर लम्बें राजपथ की सटावट की जानी है। शान्ति भवन, शास्त्री भवन, निमार्ण भवन व नेशनल म्यूजियम जैसी 15 इमारतों को भी जमीदोंज करके नयी इमारतें बनायी जानी हैं। भारत जैसे गरीब देश में बन रही विलासिता की इस योजना का घोषणा के दिन से ही भारी विरोध हो रहा है। यह परियोजना चार वर्षों में पूरी होनी है। इस पर 20 हजार करोड़ से अधिक की रकम खर्च होगी। अब तक 1300 करोड़ की रकम जारी की जा चुकी है। सबसे पहले संसद भवन और प्रधानमंत्री आवास बनेगा। इनका निर्माण 2022 तक पूरा होना है। इस दैत्यकार परियोजना को पूरा करने की जिम्मेदारी कई देशी–विदेशी कम्पनियों को दी जा चुकी है।… आगे पढ़ें

लोग पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए क्यों लड़ रहे हैं

दिल्ली की रामलीला मैदान में 1 अक्तूबर को सरकारी कर्मचारियों ने केन्द्र सरकार की नयी पेंशन योजना को रद्द करने और पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए प्रदर्शन किया। इसमें केन्द्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों के साथ ही सार्वजनिक उपक्रमों के हजारों कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। पुरानी पेंशन योजना की जगह नयी पेंशन योजना सन 2004 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लागू की थी, जिसका असली मकसद पेंशन बन्द करना था। कर्मचारी उसी समय से इसका विरोध कर रहे हैं। राजस्थान, पंजाब समेत कुछ गैर भाजपा शासित राज्य पहले ही पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर चुके हैं। भारत इस साल दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। मौजूदा नव उदारवादी दौर के सत्ता सेवक अर्थशास्त्री खासतौर पर जानता के आर्थिक कल्याण और समृद्धि को जनसंख्या में बढ़ोतरी के लिए दोष देते हैं। उनके लिए कार्यकुशल नौजवानों की बढ़ती संख्या एक सरदर्द… आगे पढ़ें

वाल स्ट्रीट जर्नल ने फेसबुक और सरकार के बीच गठजोड़ का खुलासा किया

14 अगस्त को अमरीका के ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की। उस रिपोर्ट में फेसबुक द्वारा दोहरा रवैय्या अपनाने की तथ्यात्मक पुष्टि की गयी थी, जिसमें भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के तीन नेताओं के बेहद घृणास्पद और विवादित बयानों को फेसबुक से नहीं हटाने पर सवाल किये गये थे। ये सवाल बेहद गम्भीर और जरूरी हैं। नेताओं के ये बयान स्वयं फेसबुक के “कम्युनिटी स्टैण्डर्ड” के खिलाफ थे। जवाब में फेसबुक की भारत, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया की “पब्लिक पॉलिसी” प्रमुख ने बताया कि ऐसा करने से उनकी कम्पनी के व्यापारिक हितों को नुकसान होगा और सत्तारूढ़ पार्टी से रिश्तों में खटास आएगी। फरवरी 2019 से अब तक भाजपा चुनाव प्रचार, पार्टी मुद्दों को आगे बढ़ाने और फेसबुक पर भाजपा की पकड़ बनाये रखने के लिए फेसबुक के ऊपर 4.61 करोड़ रुपये लुटा चुकी है। भाजपा फेसबुक पर ‘माई फर्स्ट वोट फॉर मोदी’, ‘मन की बात’ और… आगे पढ़ें

विझिन्जम बन्दरगाह : अडानी हित सर्वाेपरि

केरल की राजधानी तिरुअनन्तपुरम के विझिन्जम में अडानी ग्रुप भारत का सबसे बड़ा ट्रांसशिपिंग पोर्ट (बन्दरगाह) बना रहा है। इस बन्दरगाह के निर्माण के लिए हजारों मछुआरों की जीविका और घर उजाड़े जा रहे हैं। अपनी आजीविका और घरों को बचाने के लिए यहाँ रहने वाले मछुआरों के 1000 परिवारों ने लेटिन कैथोलिक चर्च के नेतृत्व में इस परियोजना के खिलाफ 130 दिनों तक जबरदस्त आन्दोलन चलाया। उनकी मुख्य माँग परियोजना को तुरन्त बन्द किये जाने की थी। कमाल की बात यह है कि अडानी के इस बन्दरगाह को बचाने के लिए एक दूसरे की धुर–विरोधी माकपा और भाजपा आन्दोलनकारियों के खिलाफ एक हो गयी। दोनों ने ही आन्दोलनकारियों को विकास विरोधी, देश विरोधी, उग्रवादी कहकर खूब बदनाम किया। इसके बावजूद आन्दोलनकारियों ने हार नहीं मानी और आखिरकार सरकार को उनकी मुख्य माँग के अलावा अन्य माँग माननी पड़ी।   अडानी ग्रुप के “विझिन्जम इंटरनेशनल ट्रांशिपमेंट डीपवाटर मल्टीपरपज सीपोर्ट प्रोजेक्ट”… आगे पढ़ें

वित्तीय कम्पनियों का मकड़जाल

पिछले 20 सालों में बहुत छोटे–छोटे कर्ज का कारोबार यानी माइक्रोफाइनेंस में 40 फीसदी सालाना की दर से बढ़त हुई है। माइक्रोफाइनेंस के जरिये आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की खुशहाली बढ़ाने के लिए 2006 में बांग्लादेशी प्रोफेसर युनूस को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। प्रोफेसर युनूस का दावा था कि माइक्रोफाइनेंस से गरीब लोगों की जिन्दगी में खुशहाली आती है। गरीब लोगों का तो पता नहीं लेकिन माइक्रोफाइनेंस में लगी कम्पनियाँ अमीर हो गयीं। इसमें कोई संदेह नहीं। 1990 के दशक में सूक्ष्म वित्त ऋण को भारत में बढ़ावा दिया गया जिसके परिणामस्वरूप ऋण देने में गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की भागीदारी 2010 तक 15 फीसदी तथा 2019 तक 36–5 फीसदी हो गयी। भारत में इन कम्पनियों, बैंको तथा स्वयं सहायता समूहों की संख्या 10,190 हो गयी। ये कम्पनियाँ रिक्शा चलानेवालों, छोटे दुकानदारों से लेकर छोटे उद्योगों तक को ऋण देती हैं क्योंकि भारत में सार्वजानिक बैंक… आगे पढ़ें

विधायिका में महिला आरक्षण की असलियत

128वें संविधान संशोधन के तहत लोकसभा, विधान परिषद और विधान सभा में महिलाओं के लिए एक–तिहाई सीटों पर आरक्षण का कानून पास हो गया। इसे लेकर केन्द्रीय कानून मन्त्री ने नया शिगूफा छोड़ा है कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण लिए है। यह लोक लुभावना मुद्दा असल में महिलाओं के सशक्तिकरण लिए न होकर मात्र एक चुनावी जुमला भर है क्योंकि इसे लागू करने के लिए 2024 के बाद का समय निर्धारित किया गया है। ध्यान दीजिए–– 2024 के बाद, कब? नहीं पता! हम जानते हैं कि 2014 के चुनाव में भाजपा सरकार ने जो 15 लाख हर खाते में देने का वादा किया था, उसके बारे में एक साक्षात्कार में पूछे जाने पर अमित शाह ने हँसते हुए, उसे एक चुनावी जुमला बताया था। ठीक उसी तरह का एक और चुनावी जुमला आने वाले चुनाव के लिए जनता की ओर उछाल दिया गया है–– लोकसभा, विधान परिषद और विधान सभा… आगे पढ़ें

विपक्षी मुख्यमंत्रियों का दिल्ली में धरना प्रदर्शन

8 फरवरी 2024 को नयी दिल्ली में जन्तर–मन्तर पर केन्द्र सरकार के खिलाफ विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने विरोध प्रदर्शन किया। मुद्दा था–– केन्द्र सरकार द्वारा उनके राज्यों को धन के आवंटन में उपेक्षा और पक्षपात का। विरोध प्रदर्शन में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त मान, जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला, सीपीआई के महासचिव डी राजा, सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी और अन्य लोग शामिल हुए। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और पश्चिम बंगाल की सरकार ने भी धन के आवंटन में अन्याय का विरोध किया और जन्तर मन्तर में हुए विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। जब केन्द्र सरकार द्वारा धन के आवंटन में भेदभाव को लेकर विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्री एकजुट हुए और दिल्ली तक आये। विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने मोदी सरकार पर… आगे पढ़ें

विश्व असमानता रिपोर्ट के मायने

बीते दिसम्बर माह में विश्व असमानता रिपोर्ट (डब्लूआईआर) 2022 आयी। जिसने बताया कि दुनिया भर में अमीरी और गरीबी के बीच खाई तेजी से बढ़ी है। वहीं भारत में इस खाई का अन्तराल हिन्द महासागर और हिमालय पर्वत के अन्तर जैसा हो गया है। आँकड़े बताते हैं कि जहाँ एक ओर धनकुबेरो की संख्या बढ़ी है वहीं करोड़ों गरीब लोग रोटी तक को मोहताज हो गये हैं। यह रिपोर्ट देश के शासकों की राजनीतिक पार्टियों के झूठ और फरेब को बेनकाब करती है और बताती है कि इनकी 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की कीमत मेहनत मजदूरी करने वाली जनता को अपनी जान देकर चुकनी पड़ रही है। इनकी नीतियों की वजह से बीते सालों में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुँच गये हंै।  राष्ट्रीय आय में जहाँ एक तरफ 10 प्रतिशत अमीरों की हिस्सेदारी में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और इसमें भी सबसे ऊपरी 1 प्रतिशत ने… आगे पढ़ें

विश्वविद्यालयों में 13 प्वाइंट रोस्टरर्

भारत के लगभग हर विश्वविद्यालय में 13 प्वाइंट रोस्टर के मुद्दे पर संघर्ष का माहौल बना हुआ है। इस 13 प्वाइंट रोस्टर ने विश्वविद्यालय शिक्षकों को दो खेमों में बाँट दिया है। एक खेमे में इसके समर्थक और दूसरे खेमे में विरोधी हैं। विरोध ने लगभग हर बड़े शहर में आन्दोलन का रूप ले लिया है, जिसका प्रभाव विश्वविद्यालयों से सड़कों तक देखा जा सकता है। छात्र और शिक्षक 13 प्वाइंट रोस्टर के विरोध में और 200 प्वाइंट रोस्टर के पक्ष में हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2017 में शिक्षकों की नियुक्ति एवं पदोन्नति पर फैसला दिया था और कहा था कि अब विश्वविद्यालय को एक इकाई न मानकर विभाग को इकाई माना जाये और अब से विभागवार आरक्षण दिया जाये। इसके बाद 5 मार्च 2018 को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने आदेश जारी किया कि देश के सभी विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती के लिए इसी नियम का पालन किया… आगे पढ़ें

वैश्विक लिंग असमानता रिपोर्ट

ये आँखें हैं तुम्हारी तकलीफ का उमड़ता हुआ समुन्दर इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिये।                     ––गोरख पाण्डेय किसी देश–समाज की खुशहाली या बदहाली को जानना हो तो वहाँ महिलाओं और बच्चों की हालत देखकर आसानी से समझा जा सकता है। आजादी के अमृत महोत्सव मनाते देश में लैंगिक समानता के मामले में दुनियाभर में भारत का स्थान अत्यन्त चिन्ता और क्षोभ का विषय है। हाल ही में जिनेवा में जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक जेण्डर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार, लैंगिक समानता के मामले में भारत 135वें स्थान पर है। 146 देशों के सूचकांक में केवल 11 देश भारत से नीचे हैं, जिनमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कांगो, ईरान और चाड सबसे खराब पाँच देशों में हैं। आइसलैण्ड ने दुनिया के सबसे अधिक लिंग–समान देश के रूप में अपना स्थान बरकरार रखा है, इसके बाद फिनलैण्ड, नॉर्वे,… आगे पढ़ें

शिक्षा में बायजू का बढ़ता एकाधिकार

पिछले साल जुलाई में ‘बायजू क्लासेज’ नामक ऑनलाइन एजूकेशन कम्पनी ने 7300 करोड़ रुपये में ‘आकाश इंस्टीट्यूट’ नामक एक कोचिंग संस्थान को खरीद लिया। आकाश इंस्टीट्यूट इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाआंे की तैयारी करवाने वाला नामी–गिरामी कोचिंग संस्थान है। इसके 205 सेन्टर हैं और कुल सालाना कारोबार 1200 करोड़ रुपये का है। इस सौदे को शिक्षा उद्योग का सबसे बड़ा सौदा बताया जा रहा है। इसे खरीदने वाली कम्पनी को इसके मालिक बायजू रविन्द्रन ने साल 2011 में बायजू क्लासेज नाम से स्थापित किया था। यह कम्पनी साल 2015 में अपना मोबाइल एप्प बनाकर ऑनलाइन एजूकेशन के क्षेत्र में उतरी और आज वह 24,300 करोड़ रुपये की मालियत वाली कम्पनी है। इसके अलावा बायजू लगभग 10 ऑनलाइन एजूकेशन प्लेटफार्म और खरीद चुकी है। इन शिक्षा कम्पनियों का अधिग्रहण करके बायजू स्कूली शिक्षा और कोचिंग के क्षेत्र में एकाधिकार करने की तरफ बढ़ गयी है। आज बायजू के 10 करोड़… आगे पढ़ें

श्रीलंका पर दबाव बनाते पकड़े गये अडानी के “मैनेजर” प्रधानमंत्री जी

हाल ही में श्रीलंका के सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के अध्यक्ष एमएमसी फर्डिनेण्डो ने एक संसदीय पैनल के सामने मोदी द्वारा उनके राष्ट्रपति पर दबाव बनाने की बात स्वीकारी है। दरअसल, श्रीलंका के उत्तरी मन्नार जिले में एक बड़ी पवन ऊर्जा परियोजना पर काम चल रहा है। इसी परियोजना का ठेका अडानी को दिलवाने के लिए मोदी लम्बे समय से श्रीलंका के तात्कालिक राष्ट्रपति राजपक्षे पर दबाव बना रहे थे। आर्थिक संकट से घिरे श्रीलंका को मदद देने के एवज में यह दबाव बनाया जा रहा था। जब दबाव बढ़ने लगा तो खुद राजपक्षे ने यह बात फर्डिनेण्डो को बतायी और बाद में उन्होंने इसे सार्वजनिक कर दिया। लेकिन फर्डिनेण्डो को इस खुलासे की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इस खुलासे के एक दिन बाद ही फर्डिनेण्डो को अपना बयान वापस लेकर इस्तीफा तक देने को मजबूर होना पड़ा है। यह पहली घटना नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पद… आगे पढ़ें

संकट में लोकतंत्र : तानाशाही की ओर उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश–2024 अठारहवीं सदी की शुरुआत में जब ब्रिटेन में जनता बेरोजगारी, भुखमरी से त्रस्त थी तो ब्रिटेन की संसद ने जनता के प्रतिरोधों से निपटने और उसे निर्ममता से कुचलने के लिए 1715 में राइट एक्ट (दंगा अधिनियम) बनाया और तर्क दिया कि तत्कालीन कानून दंगों पर काबू पाने के लिए पर्याप्त नहीं है। आज इसी तर्क के साथ पहले उत्तर प्रदेश और हरियाणा में, अब उत्तराखण्ड में भी आनन–फानन में उत्तराखण्ड लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश–2024 लागू कर दिया गया है, वह भी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले। उत्तराखण्ड सरकार का यह अध्यादेश इन दोनों राज्यों से सख्त बताया जा रहा है। यह अध्यादेश लोकतंत्र में एकत्र होने और अपनी बात कहने के अधिकार को किस तरह से कुचलेगा। इसकी बानगी यह है कि इस कानून के तहत उन लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकेगी जो हड़ताल, बन्द, दंगों… आगे पढ़ें

संस्कार भारती, सेवा भारती––– प्रसार भारती

आज अधिकांश लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) हमारे देश और समाज की जमीन पर लगातार बढ़ने और फैलने वाला एक बेहद जहरीला पेड़ है। क्या यह सच है ? आज संघ के लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति बनाकर अपना देश प्रेम का दिखावा कर रहे हैं, जबकि सरदार पटेल ने गृहमंत्री रहते हुए इस संगठन पर प्रतिबन्ध लगाकर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था। आरएसएस की जड़ें हमारे समाज में जितनी गहराई में उतरती गयीं उसकी जहरीली टहनियाँ भी उतनी ही फैलती गयीं। इनमें से एक है–– गीत–संगीत या कला के प्रसार के नाम पर 1981 में बनीं संस्कार भारती। दूसरी है–– 1989 में बनीं सेवा भारती जो गरीब आदिवासियों और झुग्गियों में रहनेवाले गरीब बच्चों को शिक्षा देने या कौशल विकास (कम्प्यूटर, मोबाईल रिपेयरिंग जैसे कोर्स कराने) के नाम पर बच्चों में जाति–धर्म का नफरत भरती है। 1991 में आरएसएस ने एक और… आगे पढ़ें

सत्ता–सुख भोगने की कला

तेलगु देशम पार्टी के चार सांसद वीईएस चैधरी, सीएम रमेश, जी मोहन राव, और टीजी वेंकटेश भाजपा में शामिल हो गये। अब इसे आप अवसरवाद कहिए या सीबीआई का डर या सत्ता सुख भोगने की कला। कल तक जिन्हें आंध्रा का माल्या कहा जाता था अब वे देशभक्त हैं! बहुत पुरानी नहीं, केवल एक साल पहले की बात है जब भाजपा सांसद और प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने सीएम रमेश और वाईएस चैधरी को ‘आंध्रा का माल्या’ कहा था और राज्यसभा की आचार समिति को पत्र लिखकर उनके खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई शुरू करने की माँग की थी। सच्चाई तो यह है कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना में उठापटक के समय रमेश का नाम भी उछला था। रमेश से जुड़ी एक कम्पनी को लेकर इनकम टैक्स विभाग जाँच कर रहा है। दूसरी तरफ वाईऐस चैधरी एक कथित बैंक लोन धोखाधड़ी मामले में सीबीआई और ईडी के… आगे पढ़ें

सरकार को सच पसन्द नहीं

मिर्जापुर के पत्रकार पवन जायसवाल को पुलिस ने जेल में बन्द कर दिया क्योंकि उन्होंने 22 अगस्त को एक स्कूल के मिड डे मील में बच्चों को नमक–रोटी परोसने की खबर को छाप दिया था। प्रमाण के तौर पर उन्होंने वीडियो भी बना लिया। पर सरकार ने उन्हें उलटे धमकाना शुरू किया कि तुमने सरकार और प्रशासन को बदनाम करने के लिए ग्राम प्रधान के साथ मिलकर जबरन ऐसा किया है। इतना ही नहीं, पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामलों में केस दर्ज किया गया। षड़यंत्र करने, सरकार की छवि खराब करने और गलत साक्ष्य पर आधारित वीडिओ वायरल करने के लिए उनके ऊपर धारा 186, 193, 120बी और धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। सच और आलोचनात्मक खबर दिखाने वाले पत्रकारों के खिलाफ सरकार की तरफ से कई और मामलों में एफआईआर दर्ज की गयी है। हरियाणा के हिसार में जब पत्रकार अनूप कुन्डू ने राज्य सरकार… आगे पढ़ें

सरकार डिजिटल तानाशाही लागू करने की फिराक में

आज हमें किसी आन्दोलन, सम्मेलन या किसी जनसंघर्ष के बारे में जानकारी लेनी हो तो हम गूगल, याहू जैसे किसी सर्च इंजिन पर सर्च करेंगे या यूट्यूब जैसे किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जाकर कुछ–एक विडियो देख सकते हैं या किसी विशेषज्ञ की कुछ ऑनलाइन पोस्ट्स को किसी सोशल मीडिया साइट्स (फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विट्टर, आदि) पर जाकर पढ़ सकते हैं। इन्टरनेट के जरिये जानकारी लेने और देने के तरीके आज प्रचलन में आ गये हैं। लेकिन सरकार इसे अब दमन के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने जा रही है। नवम्बर 2023 में सरकार ने तकनीकी और सूचना से सम्बन्धित तीन कानून तैयार किये थे। इनकी कुछ महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं–– सर्च इंजिन्स को उस पर खोजे गयी सभी जानकारियों के साथ–साथ खोजनेवाले के मोबाइल या कम्प्यूटर, उसका पता, नाम, उम्र जैसी तमाम जानकारियों को सुरक्षित रखना होगा। तथा सरकार की आलोचना से सम्बन्ध रखने वाले विषयों को खोजने वाले… आगे पढ़ें

सरकार द्वारा लक्ष्यद्वीप की जनता की संस्कृति पर हमला और दमन

लक्ष्यद्वीप में प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को नया प्रशासक बनाकर सरकार ने वहाँ की जनता पर कई जनविरोधी कानून थोप दिये हैं। स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों से उनके अधिकार और ताकत छीनकर अपने हाथ में ले लिया, जिनमें शिक्षा–स्वास्थ्य, खेती–पशुपालन और मछुआरों के मामले आते हैं। पंचायत चुनाव के नियम बदल दिये जिसके तहत अब वही व्यक्ति पंचायत चुनाव लड़ सकता है जिसके दो या दो से कम बच्चे हों। पशु संरक्षण का हवाला देकर स्कूली छात्रों के दोपहर के पौष्टिक आहार से बीफ–माँस–मछली हटा दिया गया जबकि गाय–भैंस के मीट पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। शराब पर लगा प्रतिबन्ध हटाकर, शराब बिक्री को वैध कर दिया गया। तटरक्षक बल अधिनियम का हवाला देकर मछुआरों को समुन्द्र तट से बेदखल किया जा रहा है और उनकी झोपड़ियों को तोड़ दिया जहाँ वे मछली पकड़ने का अपना जाल रखते थे। संगठित, असंगठित क्षेत्र् के कर्मचारियों और कई सरकारी विभागों में ठेके पर काम… आगे पढ़ें

सरकार बहादुर कोरोना आपके लिए अवसर लाया है!

यह बात विवादों से परे है कि अब तक इस कोरोना महामारी का सबसे अधिक फायदा सरकारों ने उठाया है, दूसरे स्थान पर पूँजीपति/उद्योगपति हैं। खुद प्रधानमन्त्री मोदी जी ने स्वीकार किया कि यह हमारे लिए एक अवसर है। प्रवासी मजदूर पैदल चलते–चलते भूख, प्यास और थकावट के चलते मर रहे हैं। कुछ ट्रेनों से कटकर मर गये। कुछ कुएँ में कूदकर, तो कुछ बस और ट्रकों से कुचलकर मारे गये। लेकिन कोरोना सरकार बहादुर के लिए ऐसा शानदार अवसर लाया है, जिसका दर्शन सरकार ने पहले कभी नहीं किया था। बात आगे बढ़ाने से पहले कोरोना के ताजा मामले का विश्लेषण देखिये। 5 जून तक कोरोना के 227 हजार मामले सामने आ चुके थे, लेकिन इससे क्या नतीजा निकलता है? अगर देश में मात्र 227 हजार मामले ही होते, जिनके बारे में पता चल चुका है और जिन्हें इलाज के लिए क्वेरेनटाइन किया जा चुका है। तो डरने की… आगे पढ़ें

सरकार यूजीसी को क्यों खत्म करना चाहती है?

रही–सही उच्च शिक्षा को भी तबाह करके उसे कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे का साधन बनाने की कांग्रेस सरकार की कोशिशों को आगे बढ़ाते हुए मौजूदा भाजपा सरकार ने एक प्रस्ताव संसद के मानसून सत्र में पेश किया है, जिसका मकसद विश्वविद्यालयों को अनुदान देने वाली और उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता की जाँच करने वाली स्वायत्त संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को खत्म करके उसकी जगह ‘भारतीय उच्च शिक्षा’ नामक नयी संस्था को खड़ा करना है। ‘भारतीय उच्च शिक्षा अधिनियम–2018’ नामक यह प्रस्ताव अगर पारित हो जाता है, तो यूजीसी की जगह ‘भारतीय उच्च शिक्षा आयोग’ ले लेगा। जिससे विश्वविद्यालयों को अनुदान देने समेत तमाम महत्त्वपूर्ण अधिकार सीधे सरकार यानी सरकार चलाने वाली पार्टी के नियंत्रण में आ जायेंगे। यूजीसी की स्थापना आजादी से पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की देखरेख के लिए हुई थी। आजादी के बाद आयोग को ‘यूजीसी एक्ट–1956’ के द्वारा स्वायत्ता देकर पूरे… आगे पढ़ें

सरकार, न्यायपालिका, सेना की आलोचना करना राजद्रोह नहीं

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में कहा कि हमें हमेशा सवाल करते रहना चाहिए तभी समाज का विकास होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिकों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है और इस तरह की आलोचना को राजद्रोह नहीं माना जा सकता है। बार एण्ड बैंच के मुताबिक जस्टिस गुप्ता ने अहमदाबाद में एक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित वकीलों के वर्कशॉप को सम्बोधित करते हुए ये बात कही। गुप्ता ने अपने भाषण की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया था कि उनके विचार व्यक्तिगत हैं और वे यहाँ सर्वोच्च न्यायालय के जज के तौर पर नहीं बोल रहे हैं। जस्टिस गुप्ता ‘राजद्रोह और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ विषय पर भाषण दे रहे थे। गुप्ता ने कहा, ‘कार्यपालिका, न्यायपालिका, नौकरशाही, सशस्त्र बलों की आलोचना करना राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हम इन संस्थानों की आलोचना करना बन्द कर देंगे,… आगे पढ़ें

सरकारी विभागों में ठेका कर्मियों का उत्पीड़न

––गौरव तोमर वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के सभी सरकारी विभागों में 20 से 50 प्रतिशत तक पद खाली हैं। इनमें मुख्यत: शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, फौज, न्यायपालिका आदि विभाग शामिल हैं। यानी सरकारी विभागों में जितनी भर्तियों की जरूरत है, उतनी भी पूरी नहीं हो रही हैं। बल्कि जो भर्तियाँ जैसे–तैसे हो भी रही हैं, उन्हें  किसी न किसी बहाने से रद्द कर दिया जा रहा है। दूसरी तरफ नेताओं के बयान आते रहते हैं कि हम इतने लोगों को रोजगार नहीं दे सकते, क्योंकि देश में नौकरियाँ नहीं हैं। सरकार नौजवानों को नौकरी देना नहीं चाहती। जिसके चलते लाखों नौजवानों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की 25 नवम्बर, 2014 की रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के सरकारी शिक्षण संस्थानों में जितने अध्यापकों और कर्मचारियों की जरूरत है उतने भी नहीं हैं। आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी जैसे… आगे पढ़ें

सर्वउपयोगी प्रवासी मजदूर

भारतीय शहरों में लम्बे समय से ‘बाहरी लोग’ विरोधाभास के साथ रहते आये हैं, जिनमें ज्यादातर अर्द्धकुशल और अकुशल गरीब प्रवासी मजदूर हैं, जो विभिन्न तरह की सेवाएँ प्रदान करते हैं। स्थानीय राजनेता उन्हें बढ़ती बेरोजगारी और अपराध के बढ़ते ग्राफ के लिए दोषी ठहरा सकते हैं, स्थानीय लोग नागरिक सुविधाओं को तबाह करने का कारण बनने के लिए उनके खिलाफ नाराजगी जता सकते हैं, अंधराष्ट्रवादी उनके खिलाफ सांस्कृतिक रूप से सबमें सम्मिलित नहीं होने के लिए गुस्सा कर सकते हैं, और व्यापार और उद्योग वर्ग उनको सस्ते श्रम और सेवाओं के लिए उपयोग कर सकते हैं। शहरों में मध्यम वर्ग के लिए, वे घरेलू सेवाएँ भी प्रदान करते हैं। हाल के हफ्तों में, गुजरात में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के रहने वाले मजदूरों ने भीड़ द्वारा हिंसा को झेला। जिससे भयभीत होकर उन्हें राज्य से भागना पड़ा। इसके बाद उन्हें आश्वासन दिया गया कि… आगे पढ़ें

सहकारी बैंक घोटालों का जारी सिलसिला

नया साल शुरू होते ही भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंगलोर के श्री राघवेन्द्र सहकारी बैंक में जमा खातों से धन निकासी की सीमा तय कर दी और निर्देश दिया कि इस बैंक का कोई भी ग्राहक अगले आदेश तक अपने खाते से 35,000 रुपये से अधिक की धनराशि नहीं निकाल सकता। साथ ही बैंक के नये निवेशों की इजाजत पर 6 महीने के लिए रोक लगा दी। इस बैंक की बैंगलोर में 8 शाखाएँ हैं। 31 मार्च 2018 तक इसके सदस्यों की संख्या 8614 थी, जिन्होंने बैंक में कुल 52 करोड़़ रुपये का निवेश किया था। बैंक में कुल जमा राशि 1566 करोड़़ रुपये थी, जबकि इसके द्वारा 1150 करोड़़ रुपये के कर्ज बाँटे जा चुके थे। इसमें से 372 करोड़़ रुपये एनपीए यानी बट्टे खाते में जा चुके हैं जो केवल 62 खाता धारकों का कर्ज है। एनपीए की यह रकम निवेश पूँजी के 7 गुने से भी अधिक… आगे पढ़ें

साल–दर–साल पत्रकारों की बढ़ती हत्याएँ

हाल ही में ‘कमिटी अगेंस्ट असाल्ट ऑन जर्नलिस्ट’ (सीएएजे) नामक संस्था ने पूरी दुनिया में पत्रकारों की बढ़ती हत्याओं पर एक रिपोर्ट सार्वजनिक की है। सीएएजे स्वतंत्र पत्रकारों का एक समूह है जो लम्बे समय से पत्रकारों पर सत्ता पक्ष की तरफ से हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज उठा रहा है। यह समूह दुनियाभर में व्यापक सर्वे के आधार पर पत्रकारिता से सम्बन्धित अपनी सालाना रिपोर्ट भी प्रकाशित करता है। दिसम्बर 2022 में आयी इसकी रिपोर्ट चैकाने वाली है। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस साल पत्रकारों की हत्या में 19 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इस साल काम के दौरान 67 पत्रकारों की हत्या हुई। साथ ही 65 पत्रकारों के अपहरण हुए और 49 पत्रकारों को लापता घोषित किया गया जिनकी जानकारी किसी को भी नहीं मिल पायी। भारत में पत्रकारिता के सिकुड़ते दायरे को समझने के लिए इस रिपोर्ट पर गौर करना… आगे पढ़ें

सिक्किम की विनाशकारी बाढ़ भविष्य के लिए चेतावनी है

4 अक्टूबर 2023 को सिक्किम में दक्षिण ल्होनक ग्लेशियर झील फट गयी। उससे आये पानी के सैलाब से वहाँ की सबसे बड़ी जल–विद्युत परियोजना, तीस्ता–3 का चुंगथांग बाँध टूट गया। यह जल–विद्युत परियोजना ऊपरी हिमालय क्षेत्र में बनायी गयी थी। बाँध टूटने से आयी बाढ़ ने सिक्किम, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में नदी–तटीय इलाकों को तबाह कर दिया। इस तबाही ने 94 लोगों की जान ले ली तथा हजारों हेक्टेयर फसल और हजारों आशियानों को उजाड़ दिया। मंगन जिले के चुंगथांग गाँव में स्थित तीस्ता–3 जल–विद्युत परियोजना बिलकुल नयी परियोजना थी और फरवरी 2017 में ही चालू की गयी थी। उत्तरी और पूर्वी भारत के राज्यों को बिजली देने के लिए भारत भूटान के ऊपरी हिमालय क्षेत्र में तीन बड़ी जल–विद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है, इस घटना ने इन निर्माणाधीन परियोजनाओं को चिन्ता के केन्द्र में ला दिया है। सरकार ने ल्होनक झील को मौजूदा तबाही का जिम्मेदार… आगे पढ़ें

सौर ऊर्जा से भी पर्यावरण को नुकसान

राजस्थान के बीकानेर बाड़मेर, जैसलमेर और जो/ापुर जैसे जिलों में बहुत से दैत्याकार सोलर प्लाण्ट लगाये गये हैं। 25 मई के दैनिक भास्कर अखबार मे इन सोलर प्लाण्टों के हानिकारक प्रभाव के बारे में एक जाँच रिर्पोट छपी। इस रिर्पोट के मुताबिक जिन जगहों पर प्लाण्ट लगे हैं वहाँ केे तापमान में 3 से 5 डिग्री सेल्सियस की भयानक बढ़ोतरी हुई है। सौर ऊर्जा को ‘ग्रीन एनर्जी’ बताया जाता है लेकिन इसी ‘ग्रीन एनर्जी’ से रेगिस्तानी इलाकों का संवेदनशील पर्यावरण, प्राकृतिक संसा/ान और जैवजगत तबाह हो रहे हैं।  राजस्थान भारत में सबसे ज्यादा लगभग 17 हजार मेगावाट सौर बिजली पैदा करता है। जो/ापुर जिले में स्थित भादला सोलर पॉवर प्लाण्ट दुनिया का सबसे बड़ा सोलर प्लाण्ट है। यह 14 हजार एकड़ में फैला हुआ है। राज्य में इस तरह के छोटे–बड़े सैकड़ों प्लाण्ट है। एमजीएस विवि बीकानेर के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागा/यक्ष प्रोफेसर अनिल छंगाणी का कहना है कि… आगे पढ़ें

स्विस बैंक में 50 फीसदी कालाधन बढ़ा

जून के अन्त में स्विस नेशनल बैंक ने कालाधन सम्बन्धी एक रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार भारतीयों ने वर्ष 2017 में स्विस बैंकों में करीब 7000 करोड़ रुपये जमा किये, जो वर्ष 2016 की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा है। स्विस नेशनल बैंक द्वारा अब तक जारी किये गये भारतीय कालाधन सम्बन्धी आँकड़ों के इतिहास में यह दूसरी बार है, जब भारतीय कालाधन जमा होने में इतना भारी उछाल आया। इससे पहले 2004 में भाजपा सरकार के कार्यकाल में ही स्विस बैंकों में भारतीय कालाधन में 56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। स्विस बैंक की यह रिपोर्ट आने के बाद अरुण जेटली का बयान आया कि जरूरी नहीं कि विदेशों में जमा सारा पैसा कालाधन ही हो। इसके साथ ही कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि स्विस बैंकों में जमा रकम में 40 फीसदी राशि “रुपये बाहर भेजने की उदार योजना (लिबरलाइस्ड रेमिटेंस स्कीम–– एलआरएस) के तहत पहुँची है।… आगे पढ़ें

हम इस फर्जी राष्ट्रवाद के सामने नहीं झुकेंगे

मैं पिछले 20 साल से बच्चों को पढ़ा रहा हूँ। मैं एक मुसलमान हूँ, यह बात हरदम मेरे दिमाग में घूमती रहती है। पिछले कुछ सालों से हमारे देश पर एक फर्जी राष्ट्रवाद का भूत सवारी गाँठ रहा है और असली देशभक्तों को ठिकाने लगाने पर आमादा है। हमारे देशभक्त होने की परिभाषाएँ बहुत नीचे गिरा दी गयी हैं। हमारी देशभक्ति का पैमाना गले में विशेष गमछा डाले उपद्रवी तय करने लगे हैं। एक विशेष धार्मिक नारे के उच्चारण से हमारी भारतीयता तय की जाने लगी है। मुझे लगता है कि भविष्य में नौकरी पाने, मेडिकल या अन्य सरकारी सुविधाओं वाले आवेदन पत्रों से राष्ट्रीयता का कॉलम हटाकर वहाँ यही नारा लिख देना चाहिए। दरअसल हमने आज तक राष्ट्रवाद की यही सीधी परिभाषा सीखी थी–– अपने देश के प्रति वफादारी, संविधान में लिखी बातों का पालन करना, कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से अरूणांचल तक बसे सभी भारतीयों को एक… आगे पढ़ें

हसदेव वन क्षेत्र बचाओ आन्दोलन

हसदेव वन क्षेत्र, छत्तीसगढ़ के तीन जिलों सूरजपुर, सरगुजा और कोरबा में 170,000 हेक्टेयर यानी 1700 वर्ग किलोमीटर भूमि में फैला हुआ है। तीन हजार किस्म के दुर्लभ औषधीय पेड़–पौधे से समृद्ध यह वन, महुआ, साल, तेंदूपत्ता जैसे वन सम्पदाओं से भी भरा है। इसके किनारे से कल–कल करती हसदेव नदी बहती है। प्रकृति की यह खूबसूरत गोद अपने पास हजारों तरह के पशु–पक्षियों के साथ ही गोंड, ओरांव और अन्य जनजातियों के 10,000 आदिवासियों का घर है। कुछ धन्नासेठों के मुनाफे के लिए प्रकृति की यह गोद उजाड़ी जा रही है। इस जंगल में हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं और इसे तबाह किया जा रहा है। सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील का खूबसूरत गाँव हरिहरपुर, जो एक समय हरियाली और पेड़–पौधों से भरा नजर आता था। वहाँ की हवा में अब गंधक की बदबू समा गयी है। दरसल, देश के एक ताकतवर पूँजीपति की नजर यहाँ के जंगलों… आगे पढ़ें

हांगकांग में प्रत्यर्पण विधेयक के खिलाफ जनान्दोलन

हांगकांग में करीब तीन महीनों से आन्दोलन चल रहा है। आन्दोलन की वजह वहाँ की सरकार द्वारा लाया गया एक “प्रत्यर्पण विधेयक” है। इस विधेयक के कानून बनते ही चीन की सरकार को यह अधिकार मिल जायेगा कि वह हांगकांग में किसी को गिरफ्तार करके चीन में लाकर उस पर मुकदमा चला सकती है। वहाँ के लोगों को डर है कि ऐसे कानून का गलत इस्तेमाल करके लोगों को चीन की जेलों में ठूस दिया जायेगा, जिससे उनकी आजादी छिन जायेगी। हांगकांग में यह कोई पहला आन्दोलन नहीं है। साल 2014 में हांगकांग में 79 दिनों तक चले ‘उम्ब्रेला मूवमेंट’ के बाद लोकतंत्र के समर्थर्कों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी थी। विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया था। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और उस पार्टी के संस्थापक से इंटरव्यू करने पर एक पत्रकार पर कार्रवाई की… आगे पढ़ें

हुकुम, बताओ क्या कहूँ जो आपको चोट न लगे।

हम एक बेहद नाजुक सरकार की गुलामी में जी रहे हैं। कुछ दिन पहले कॉमेडियन “मुन्नवर फारूकी” के मजाक से सरकार को चोट लग गयी। देश की संस्कृति पर खतरा मँडराने लगा, गली–मोहल्ले के संस्कृतिरक्षक आग बबूला हो गये। लिहाजा मुन्नवर फारूकी को जेल की हवा खिलायी गयी। जेल से तो किसी तरह छूट–छाट के आ गये, लेकिन अब उनके कार्यक्रमों पर ही पाबन्दी लगा दी गयी है। एक जनवरी को मध्य प्रदेश के इंदौर में कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी और उनके साथी एडविन एन्थनी, प्रखर व्यास, प्रियम व्यास और नलिन यादव को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी इस गुनाह पर की गयी थी कि मुन्नवर फारूकी ने कथित तौर पर हिन्दू धर्म के देवी–देवताओं और अमित शाह का मजाक उड़ाया था। शिकायत दर्ज कराने वाले भारतीय जनता पार्टी की सांसद मालिनी गौर के बेटे और हिन्दू रक्षक संगठन के संयोजक एकलव्य गौर थे। सोशल मीडिया पर मुनव्वर फारूकी को एक खलनायक… आगे पढ़ें

‘नयी शिक्षा नीति’ : वंचित समुदायों को शिक्षा से दूर करने की साजिश

बीते 8 दिसम्बर 2022 को अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने ‘मौलाना आजाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति’ को बन्द करने की घोषणा की। यह छात्रवृत्ति आर्थिक रूप से कमजोर अल्पसंख्यक समुदायों के छात्र–छात्राओं को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अन्तर्गत आने वाले सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में मिलती थी। इसके बन्द होने से अब कितने ही नौजवान आर्थिक समस्या के कारण अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को मजबूर हैं। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में छात्र और शिक्षक इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। सरकार का कहना है कि अन्य छात्रवृत्तियों के कारण अब इसकी जरूरत नहीं रही। सरकार के इस दावे में कितनी सच्चाई है यह जानने के लिए हमें इस छात्रवृत्ति को शुरू करने की वजह को जानना होगा। 2006 में अल्पसंख्यक समुदायों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का सर्वे करने के लिए न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर के नेतृत्व में ‘सच्चर कमेटी’ का गठन किया गया था। इस कमेटी… आगे पढ़ें

“तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया”–– बम्बई उच्च न्यायालय

22 अगस्त को बम्बई उच्च न्यायालय के औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन में मरकज में शामिल हुए तबलीगी जमात के 29 सदस्यों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को खारिज कर दिया। लॉकडाउन से ठीक पहले मार्च के पहले और दूसरे सप्ताह में निजामुद्दीन मरकज में हजारों देशी–विदेशी नागरिक शामिल हुए थे। अचानक लॉकडाउन के चलते बहुत से लोग तो वहीं फँस गये जबकि बहुत से जमाती देश के अलग–अलग हिस्सों में जा चुके थे। देश के तमाम दूसरे नागरिकों की तरह तबलीगी जमात में शामिल रहे ये लोग भी अलग–अलग जगह फँस गये। कोरोना से निपटने में सरकार को अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए तबलीगी जमात के रूप में एक आसान शिकार मिल गया। सरकार का भोंपू बन चुके प्रिण्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के बडे़ हिस्से ने तमाम कानूनों और कौमी एकता के तमाम मूल्यों को ताक पर रखकर तबलीगी जमात के साथ–साथ पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दुष्प्रचार… आगे पढ़ें

“भारत भगाओ” के रास्ते पर मालदीव

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामेन अपने राष्ट्र से भारत को भगाने के लिए आजकल एक अभियान का नेतृत्व कर रहे हंै। पिछले कई महीनों से “भारत भगाओं” आन्दोलन मालदीव में जोर पकड़ता जा रहा है। भारत में मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली घटनाएँ और बयानबाजी इस अभियान में र्इंधन का काम कर रही हैं। मालदीप की आबादी मुख्यत: सुन्नी मुसलमानों की है। प्राचीन काल से भारत और मालदीव एक दूसरे के बेहद महत्त्वपूर्ण मित्र रहे हैं। नेपाल की तरह मालदीव भी अपनी अधिकांश घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पर निर्भर है। भारत और मालदीव के सम्बन्धों की स्थिति भी भारत–नेपाल सम्बन्धों जैसी है। नेपाल की तरह ही यहाँ भी चीन भारत को पीछे धकेलकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। भारतीय शासकों की मूर्खता ने उनके काम को और आसान कर दिया है। यामेन और उनकी राजनीतिक पार्टी पीपीएम के नेतृत्व में चल रहे “इण्डिया ऑउट”… आगे पढ़ें