सितम्बर 2020, अंक 36 में प्रकाशित

खिलौना व्यापारियों के साथ खिलवाड़

30 अगस्त को मन की बात में प्रधानमंत्री ने खिलौना उद्योग के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में खिलौना उद्योग का कारोबार सात लाख करोड़ से भी अधिक है जिसमें भारत का हिस्सा बेहद कम है, आगे उन्होंने कहा कि खलौना उद्योग में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए छोटे और बड़े व्यापरियों को मिलकर मेहनत करनी होगी। उनकी इस बात से सदर बाजार में बैठे खिलौना व्यापारी नाराज हैं। सदर बाजार एशिया की सबसे बड़ी थोक मार्किट है। वहाँ के व्यापारियों का कहना है कि मोदी सरकार की कथनी–करनी में बड़ा फर्क है।

भारत में खिलौनों का जो बाजार है, उसका करीब 80 प्रतिशत चीन से आयात करके पूरा होता है। साथ ही चीनी खिलौनें सस्ते और गुणवत्ता में भी बेहतर माने जाते है। टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, भारत में हर साल चीन से करीब चार हजार करोड़ रुपये के खिलौने आयात किये जाते हैं। इन खिलौनों का बाजार मूल्य करीब 12 हजार करोड़ रुपये होता है, जबकि भारतीय खिलौनों का व्यापार एक हजार करोड़ रुपये का भी नहीं है। भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कोई ठोस नीति नहीं बनाई। बल्कि 2017 में सरकार सर्टिफिकेशन के नये नियम लेकर आयी, जिसके चलते व्यापारियों को हर उत्पाद पर लगभग एक लाख रुपये अतिरिक्त देने पड़े। फिर सरकार ने आयात होने वाले खिलौनों पर इंपोर्ट ड्यूटी 20 फीसदी से बढ़ाकर सीधे 60 फीसदी कर दी। इसका भार भी व्यपारियों और खरीददारों पर ही पड़ा।

1951 से खिलौनों का व्यापार कर रहे सिंधवानी ब्रदर्स के अजय कुमार कहते हैं, ‘खिलौनों का व्यापार सबसे पहले 90 के दशक में प्रभावित हुआ था, जब उदारवादी नीतियाँ अपनायी गयीं और विदेशी खिलौने भारतीय बाजारों में तेजी से आने शुरू हुए। उसके बाद इस व्यापार में सबसे ज्यादा नुकसान इसी सरकार के दौरान हुआ है। वह आगे कहते हैं कि ‘पहले नोटबन्दी ने खिलौनों के व्यापार को बड़ी चोट दी। नोटबन्दी नवंबर में हुई थी जब सॉफ्ट टॉय का सीजन शुरू होता है और वैलेण्टाइन तक चलता है। उस साल पूरा सीजन मारा गया। फिर जीएसटी ने खिलौनों पर लगने वाले टैक्स को पाँच फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर 18 फीसदी तक कर दिया। उसके बाद खिलौनों पर आयात शुल्क दो सौ फीसदी बढ़ा दी गयी और अब ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैण्डडर््ज (बीआईएस) सर्टिफिकेशन खिलौना व्यापारियों की कमर तोड़ने जा रहा है।

मोदी सरकार ने देश में बिकने वाले सभी खिलौनों के लिए बीआईएस सर्टिफिकेशन अनिवार्य करने का फैसला लिया है। इस फैसलें की शर्तों पर खरा उतरना आयातकों और भारतीय निर्माताओं दोनों के लिए मुश्किल है। देश में खिलौने बनाने वाले ज्यादतर छोटे–मोटे व्यापारी ही हैं। उनके लिए बीआईएस की शर्तें पूरी करना मुमकिन नहीं है, क्योंकि इसके लिए हर व्यापारी को एक अलग लैब बनवानी होगी। हमारे देश में खिलौनों के कारखाने बहुत छोटी–छोटी जगहों पर चलते हैं, उनमें लैब की जगह कहाँ से निकलेगी और इसका खर्च भी छोटे व्यापारी नहीं उठा सकेंगे। आखिर सरकार ऐसा क्यों कर रही है?

इसी के साथ इस खबर पर गौर करना जरूरी है कि मई 2019 में मुकेश अम्बानी की रिलायंस रीटेल ने हेमलेज को 620 करोड़ रुपये में खरीदा था। हेमलेज ब्रिटेन की खिलौना बनाने वाली मल्टीनेशनल कम्पनी है जिसे दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी खिलौना कम्पनी कहा जाता है।

मुकेश अम्बानी का खिलौनें के व्यापार में आना, खिलौनों पर बीआईएस की शर्तें लागू होना और प्रधानमंत्री का ‘मन की बात’ में खिलौनों के व्यापार का जिक्र करना, संयोग नहीं है बल्कि एक प्रयोग है। भारत में खिलौनों का बहुत बड़ा बाजार है, जिसमे अधिकतर माल आयत किया जाता है। इस बड़े बाजार को सरकार अपने चहेते अम्बानी को सौपना चाहती है। ये सभी फैसले इसी और इशारा कर रहें हैं।

––मोहित कुमार

 
 

 

 

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