नवम्बर 2023, अंक 44 में प्रकाशित

एआई : तकनीकी विकास या आजीविका का विनाश

2 मई 2023 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की प्रसिद्ध जगह, “टाइम्स स्क्वायर” पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते इस्तेमाल के विरोध में एक बड़ी हड़ताल हुई। इस हड़ताल में मुख्य रूप से हॉलीवुड के अभिनेता, लेखक और कर्मचारी शामिल हुए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हॉलीवुड से जुड़े संस्थानों ने भी करना शुरू कर दिया है जिसकी मदद से वह किसी लेखक, अभिनेता और मेकअप आर्टिस्ट के बिना भी कोई फिल्म तैयार कर सकते हैं। नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम, वार्नर ब्रदर्स जैसे बड़े संस्थान इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं।

आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की तकनीकों का इस्तेमाल व्यवस्था के बहुत से क्षेत्रों में किया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप बहुत से लोगों को नौकरियों से हटाकर उनकी जगह एआई लेता जा रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धि को सामान्य भाषा में मशीनों का दिमाग भी कह सकते हैं। इसके तहत मशीनों में इनसानी अनुभवों और कार्य करने की कुशलता को कैद किया गया है, उनका इस्तेमाल करके मशीन कुछ हद तक खुद फैसले लेने की क्षमता हासिल कर लेती है। इसे मशीन लर्निंग प्रोडक्शन (एमएलपी) कहते हैं। एमएलपी का इस्तेमाल मनोरंजन, अर्थ साइंस, इंजीनियरिंग जैसे बहुत से क्षेत्रों में बहुत तेजी से शुरू हो चुका है। पिछले दिनों में चैटजीपीटी (जेनरेटिव प्री–ट्रेड–ट्रांसफार्मर) और एसजीई (सर्च जेनरेटिव एक्सपीरियंस) जैसे कृत्रिम दिमाग का चलन बेहद बढ़ गया है।

 चैटजीपीटी एक एआई सॉफ्टवेयर है जो किसी विषय पर लेख भी लिख सकता है। चैटजीपीटी किसी भी विषय पर अपने उपभोक्ता के लिए 5 से 10 विकल्प पेश कर देता है जिसमें से एक विकल्प चुनकर उस पर काम किया जा सकता है। इसी तरह एसजीई गूगल द्वारा मीडिया प्रकाशनों के लिए शुरू किया गया एक टूल है, जो बेहद संक्षिप्त में कुछ न्यूज एजेंसियों का डाटा एक जगह मुहैया कर देता है।

बेशक इन तकनीकों ने इनसान के कामों को आसान बना दिया है और यह अच्छी बात है कि बहुत कम समय में, बहुत कम मेहनत से बहुत सारे विकल्प मिल जाएँगे। लेकिन संकट वही है कि ये तकनीकें गिने–चुने पूँजीपतियों की मुट्ठी में कैद हैं और वे इसका इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के लिए कर रहे हैं। फिर चाहे इससे किसी की जिन्दगी तबाह हो जाये, भयानक बेरोजगारी फैले, असमानता बढ़े और चाहे झूठी खबरों का प्रचलन बढ़े।

आज हम सोशल मीडिया पर एआई की मदद से बने वीडियो की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इनको हजारों लोगों के अनुभव और हुनर को चुराकर बनाया गया है। वे लोग जिन्होंने कई साल मेहनत करके अपने हुनर को निखारा था अब उनका हुनर एआई का कैदी बनकर उन्हीं की जीविका उजाड़ रहा है। यह चोरी उत्पादन से लेकर मीडिया तक, हर क्षेत्र में की गयी है इसलिए कुछ लोग एआई को मानव इतिहास की सबसे बड़ी चोरी भी कहते हैं।

न्यूयार्क में हालीवुड के अभिनेताओं, लेखकों, डिजाइनरों, मेकअप कलाकारों और अन्य कर्मचारियों ने जब एआई के खिलाफ अपनी हड़ताल शुरू की तो शुरुआत में ही उसमें 11 हजार लोग शामिल हो गये जो अमरीका के लिहाज से बहुत बड़ी संख्या है। बाद में, जून 2023 में, एसएजी (स्क्रीन एक्टर गिल्ड) और एएफटीआरए (अमेरिकी फेडरेशन ऑफ टेलीविजन एंड रेडियो आर्टिस्ट) के 1 लाख 60 हजार लोगों की भारी संख्या ने आकर हड़ताल का समर्थन किया। इसके बाद डब्ल्यूजीए (राइट्स गिल्स ऑफ अमेरिका) और एएमपीटीपी (एलियंस ऑफ मोशन पिक्चर्स एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर्स) के हजारों लोगों ने भी हड़ताल का समर्थन किया।

हड़ताल में मौजूद सभी संगठनों ने इस बात को स्वीकार किया कि एआई से उनके लोगों की जीविका तबाह हो जाएगी, उनके वेतन में कटौती कर दी जायेगी और बहुत सारे लोगों को नौकरी से निकाल दिया जायेगा। जिनकी जगह एआई यानी कृत्रिम बुद्धि ले लेगी।

भारत में एआई का इस्तेमाल कोरोना के बाद से बेहद तेजी से बढ़ना शुरू हो गया है। भारत में नक्शे बनाने के काम में भी एआई इस्तेमाल हो रहा है। इसमें मशीन लर्निंग (एमएल) डाटा का इस्तेमाल होता है। कुछ कम्पनियों ने एआई को बढ़ावा दे रही हैं। अगर उनका कोई कर्मचारी एमएल का इस्तेमाल नहीं करता तो उसके वेतन से 5 से 10 प्रतिशत पैसा काट लिया जाता है।

एआई समेत सारा ज्ञान–विज्ञान थोड़े से पूँजीपतियों की मुट्ठी में है। आज आधुनिकीकरण और सारा विकास लोगों की जिन्दगी को बेहतर बनाने के बजाय पूँजीपतियों के मुनाफे को बढ़ने के काम आ रहा है, चाहे उससे हमारी जिन्दगी और ज्यादा नारकीय हो जाये।

एक बेहतर दुनिया के लिए ज्ञान–विज्ञान को पूँजीपतियों की मुट्ठी से आजाद कराना होगा ताकि विज्ञान हमारे लिए वरदान बने न कि अभिशाप।

–– आशु शमशेर

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