कम कहना ही बहुत ज्यादा है : एडुआर्डो गैलियानो
–– जोनाह रस्किन (एडुआर्डो गैलियानो ने बड़ी, मोटी–मोटी किताबें लिखी हैं। लातिन अमरीका के रिसते जख्म(1973), जो वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज ने मई में बराक ओबामा को इस उम्मीद से दी थी कि इससे वह कुछ इतिहास सीख पाएँ। यह 300 से ज्यादा पन्नों की है। इसके बाद गैलियानो की मेमोरी ऑफ फायर ट्रायोलॉजी–– जेनेसिस, फेसेस एण्ड मास्क्स, और सेंचुरी ऑफ द विण्ड आयीं जो लगभग 1,000 पन्नों की हैं। हाल ही में, उन्होंने छोटी किताबें लिखी हैं और शब्दों की एक तरह की अदायगी की कोशिश की है। मिरर्स, उनकी सबसे हालिया किताब में, (हन्टर ऑफ स्टोरीज उनकी आखिरी किताब है–– अनु–) जो लगभग हर चीज के बारे में है, सौ से ज्यादा छोटे–छोटे मुद्दे समेटे हैं–– नमक से लेकर नक्शे और पैसे तक और यह लगभग सभी के बारे में है, क्लियोपेट्रा से लेकर अलेक्जेण्डर हैमिल्टन और चे ग्वेरा तक। कोई भी वाकया एक पन्ने से ज्यादा लम्बा… आगे पढ़ें
कश्मीरी पण्डित घाटी के अपने मुसलमान भाइयों के बीच सुरक्षित हैं : पूर्व वाइस मार्शल कपिल काक
एजाज अशरफ : आप सहित छह लोगों ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है जबकि अधिकांश कश्मीरी पण्डितों ने जम्मू कश्मीर के संवैधानिक दर्जे पर किये गये बदलाव का समर्थन किया है। एक कश्मीरी पण्डित होने के नाते इसे आपने ऐसा क्यों किया? कपिल काक : मेरी बस एक यही पहचान नहीं है। सबसे पहले तो मैं इस दुनिया का नागरिक हूँ और अपने देश पर फक्र करने वाला हिन्दुस्तानी हूँ। मैं 1960 में भारतीय वायु सेना में शामिल हुआ और मैंने लड़ाकू विमान उड़ाये। वायु सेना में रहते हुए मैं अलग–अलग संस्कृतियों से वाकिफ हुआ। मैं कश्मीरी पण्डित होने से पहले एक कश्मीरी हूँ। मैं अनुच्छेद 370 को खत्म किये जाने और जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन का समर्थन नहीं करता। एहसास : कश्मीरी होने और कश्मीरी पण्डित होने में क्या फर्क है? काक : कश्मीरी सजातीय–धार्मिक पहचान है और यह… आगे पढ़ें
क्या हमारे समाज में भाईचारे और एकजुटता की भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं?
(विश्व–प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति राय ने दलित कैमरा पोर्टल को एक लम्बा साक्षात्कार दिया है। इसमें उन्होंने अमरीका और यूरोप में चल रहे नस्लवाद विरोधी आन्दोलन से लेकर भारत में कोरोना की स्थित तक पर अपने विचार जाहिर किये हैं। उनका कहना है कि अमरीका और यूरोप के मुकाबले भारत में असमानता की जड़ें बेहद गहरी हैं। लेकिन इसके खिलाफ मुकम्मल लड़ाई की अभी दूर–दूर तक कोई सम्भावना नहीं दिख रही है। इसके साथ ही इस साक्षात्कार में उन्होंने ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल विस्तार से जुड़े सवालों का भी जवाब दिया है। अरुंधति ने मौजूदा निजाम की फासीवादी प्रवृत्तियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इसके रहते देश में किसी भी तरह के सकारात्मक बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है। मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित इस साक्षात्कार का हिन्दी अनुवाद सामाजिक कार्यकर्ता कुमार मुकेश ने किया है।) हम अमरीका में चल रहे आन्दोलन का समर्थन किस तरह… आगे पढ़ें
चे ग्वेरा की बेटी अलेदा ग्वेरा का साक्षात्कार
“बहुत कुछ किया जाना बाकी है” ––रॉन ऑगस्टिन (अर्नेस्टो चे ग्वेरा और अलेदा मार्च की बेटी अलेदा ग्वेरा मार्च ने हाल ही में यूरोप की यात्रा की, जहाँ उन्होंने देश के प्रस्तावित संवैधानिक सुधारों के लिए क्यूबा में होने वाले लोकप्रिय परामर्शों को समझाते हुए कई विचार–विमर्शों में भाग लिया। उन्होंने अपने देश पर लगे अमरीकी प्रतिबन्धों के खिलाफ भी अभियान चलाया। हवाना में विलियम सोलर चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में अपने काम पर लौटने से पहले, हमने उनके साथ निम्नलिखित बातें की।) रॉन ऑगस्टिन : अलेदा, आप स्ट्रैसबर्ग में यूरोपीय संसद के पूूरे वाम समूह के साथ बैठक करके आयी हैं। क्या हम इस संसद से उस आर्थिक और वित्तीय नाकाबन्दी के खिलाफ एक प्रस्ताव की उम्मीद कर सकते हैं जिसे संयुक्त राज्य अमरीका ने लगभग 60 वर्षों से क्यूबा के खिलाफ बरकरार रखा है और बढ़ाया है? अलेदा ग्वेरा : दरअसल, कुछ समय से… आगे पढ़ें
फैज अहमद फैज के नजरिये से कश्मीर समस्या का हल
(मशहूर शायर फैज अहमद फैज का कश्मीर से गहरा नाता रहा है। 1941 में जब उन्होंने एक अंग्रेज महिला ऐलिस जॉर्ज से शादी की तो शेख मुहम्मद अब्दुल्लाह ने श्रीनगर में उनका निकाहनामा पढ़ा। निकाहनामे पर बतौर गवाह जी एम सादिक, बक्शी गुलाम मुहम्मद और डॉक्टर नूर हसन ने दस्तखत किये। श्रीनगर से सांसद रहे और आइना साप्ताहिक के सम्पादक अहमद शमीम ने 1969 में जब लाहौर में फैज अहमद फैज का इंटरव्यू किया तो इस शायर ने कहा ‘‘इस तरह से मेरा निकाहनामा एक ऐतिहासिक दस्तावेज का दर्जा रखता है।’’ पहले पहल ये इंटरव्यू आइना में छपा था उसके बाद 18 अप्रैल 2011 को श्रीनगर से प्रकाशित ताहिर मोहिउद्दीन के साप्ताहिक अखबार चट्टान में इसे दुबारा छापा गया था।) शमीम : आप आखिरी दफा कब कश्मीर गये थे? फैज : मैं 1947 में वहाँ गया था। 15 अगस्त 1947 को जब इस उप–महाद्वीप का बँटवारा हो रहा था तो… आगे पढ़ें
भारत के एक बड़े हिस्से में मर्दवादी विचार हावी
(एजाज अशरफ द्वारा आशीष नन्दी का साक्षात्कार) एजाज अशरफ : आप एक राजनीतिक मनोविश्लेषक हैं। इस लिहाज से 2019 के चुनावों में बीजेपी की बड़ी जीत को आप कैसे समझते हैं? आशीष नन्दी : जिस तरह का काम इन लोगों ने 5 सालों में किया था उससे मुझे उम्मीद नहीं थी कि बीजेपी को इतनी बड़ी जीत हासिल होगी। मुझे लगता है कि इन लोगों ने आक्रामक शैली में प्रचार अभियान चलाया जिसके बूते यह जीत हासिल हुई। इन पाँच सालों में इनके सामने केवल चुनाव था और सारे काम इसे ही ध्यान में रख कर किये गये। इस वजह से इनके पास कुछ और करने का वक्त ही नहीं था। बीजेपी के चुनाव अभियान का एक जरूरी भाग मोदी को भारत का तारणहार दिखाना था। एजाज अशरफ : क्या हम इस जीत को बदलते भारत की छाया की तरह देख सकते हैं? आशीष नन्दी : मेरे लिए यह शर्म… आगे पढ़ें
महामारी ने पूँजीवाद की आत्मघाती प्रवृत्तियों को उजागर कर दिया है
जिप्सन जॉन और जितेश पीएम ‘ट्राईकाण्टिनेण्टल इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च’ में फैलों हैं। दोनों ने ‘द वायर’ के लिए नोम चोमस्की का साक्षात्कार लिया। चोमस्की भाषाविद् और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, जो नवउदारवाद, सैन्यवाद, साम्राज्यवाद और औद्योगिक–मीडिया समूह की आलोचनाओं के लिए विख्यात हैं। जिप्सन और जितेश : विश्व का सबसे धनवान और शक्तिशाली देश अमरीका भी कोरोनावायरस के संक्रमण के प्रसार को रोकने में असफल क्यों रहा? यह असफलता राजनीतिक नेतृत्व की है अथवा व्यवस्थागत? सच तो यह है कि कोविड–19 के संकट के बावजूद भी, मार्च में डोनाल्ड ट्रम्प की लोकप्रियता में वृद्धि हुई। क्या आपको लगता है कि अमरीका के चुनावों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा? नोम चोमस्की : इस महामारी की जड़ों को जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे लौटना होगा। यह महामारी अप्रत्याशित नहीं है। वर्ष 2003 की सार्स महामारी के पश्चात ही वैज्ञानिकों को अन्देशा हो गया था कि एक और महामारी आ सकती है… आगे पढ़ें
“चे ग्वेरा शानदार पिता और पति थे”, बेटी एलीडा ग्वेरा मार्च से बातचीत
क्यूबा के नये संविधान को देश की 86 प्रतिशत से अधिक आबादी ने समर्थन दिया है। एलीडा ग्वेरा मार्च क्यूबा क्रान्ति के नेता चे ग्वेरा की बेटी हैं जो पिता द्वारा स्थापित समाजवाद और वर्तमान समय के पूँजीवादी प्रवाह में भी क्यूबा में इसके प्रासंगिक बने रहने को जनता का… आगे पढ़ें