सरकार, न्यायपालिका, सेना की आलोचना करना राजद्रोह नहीं
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में कहा कि हमें हमेशा सवाल करते रहना चाहिए तभी समाज का विकास होगा।
उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिकों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है और इस तरह की आलोचना को राजद्रोह नहीं माना जा सकता है।
बार एण्ड बैंच के मुताबिक जस्टिस गुप्ता ने अहमदाबाद में एक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित वकीलों के वर्कशॉप को सम्बोधित करते हुए ये बात कही।
गुप्ता ने अपने भाषण की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया था कि उनके विचार व्यक्तिगत हैं और वे यहाँ सर्वोच्च न्यायालय के जज के तौर पर नहीं बोल रहे हैं। जस्टिस गुप्ता ‘राजद्रोह और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ विषय पर भाषण दे रहे थे।
गुप्ता ने कहा, ‘कार्यपालिका, न्यायपालिका, नौकरशाही, सशस्त्र बलों की आलोचना करना राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हम इन संस्थानों की आलोचना करना बन्द कर देंगे, तो हम लोकतंत्र के बजाय पुलिस राज्य (तानाशाही) बन जाएँगे।’
गुप्ता ने कहा, ‘मेरे हिसाब से एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अधिकार है, जिसे संविधान में नहीं लिखा गया है––– राय की स्वतंत्रता का अधिकार, अन्तरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार शामिल है–– असहमति का अधिकार।’ उन्होंने कहा कि एक समाज जो पारम्परिक नियमों से ही चिपका रहता है वह पतन की ओर जाता है।
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि नये विचारक तब पैदा होते हैं जब वे समाज के स्वीकृत मानदण्डों से असहमत होते हैं। उन्होंने कहा, ‘यदि हर कोई बने–बनाये यानी पुराने रास्ते पर ही चलेंगे तो कोई नया रास्ता नहीं बनाया जा सकेगा और मन के नये परिदृश्य को नहीं खोजा जा सकेगा।’
जज ने श्रोताओं से कहा कि हमें हमेशा सवाल करते रहना चाहिए तभी समाज का विकास होगा।
गुप्ता ने कहा कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में नास्तिक, अज्ञेय और आस्तिक सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। जज ने 1975 में आपातकाल के दौरान हिरासत में लिए गये लोगों से सम्बन्धित एक मामले में जस्टिस एचआर खन्ना द्वारा व्यक्त किये गये विरोध की याद दिलायी। खन्ना पाँच जजों वाली पीठ में एकमात्र जज थे जिन्होंने हिरासत में रखने की असीमित शक्तियों के विरोध में फैसला दिया था।
जज ने कहा, ‘हमें सत्ता में सरकार की आलोचना करने का अधिकार है, चाहे जो भी सरकार हो।’ उन्होंने कहा, ‘राजद्रोह कानून का दुरुपयोग उस सिद्धान्त के खिलाफ है, जिसके लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने लड़ाई लड़ी थी।’ गुप्ता ने कहा कि न्यायपालिका भी आलोचना से ऊपर नहीं है और उन्हें अपने स्वयं के कार्यों का आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
जस्टिस दीपक गुप्ता की टिप्पणी ऐसे दौर में इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार से असहमति वाले विचारों को व्यक्त करने पर राजद्रोह के कई मामले दर्ज किये गये हैं।
(द वायर से साभार)
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