सितम्बर 2024, अंक 46 में प्रकाशित

मानव अंगों की तस्करी का घिनौना व्यापार

24 जुलाई को ‘द हिन्दू’ अखबार ने मानव अंगों की तस्करी से सम्बन्धित एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली समेत देश के बड़े–बड़े शहरों में अंगों की तस्करी का व्यापार बड़े पैमाने पर फल–फूल रहा है। मानव अंगों के इस व्यापार की कड़ी भारत समेत बांग्लादेश और ईरान तक जुड़ी हुई हैं। हाल ही में दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम ने इस व्यापार में लिप्त कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है, जिसमें एमबीए ग्रेजुएट से लेकर डॉक्टर तक शामिल हैं। दिल्ली पुलिस ने बताया कि यह धन्धा दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, के साथ लगभग पूरे भारत में चल रहा है। इसमें बड़े अस्पतालों के डॉक्टर से लेकर पुलिस अधिकारी तक शामिल हैं।

पुलिस की जाँच–पड़ताल में दिल्ली के अपोलो और नोएडा के यथार्थ अस्पताल के सर्जन समेत अनेक डॉक्टरों के नाम सामने आये हैं। इसके तार बांग्लादेश से जुड़े हुए हैं। दरअसल बांग्लादेश के कुछ अस्पतालों में इनके दलाल काम करते हैं। वहाँ वे आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को नौकरी और पैसों का लालच देकर भारत लाते हैं और उनके अंगों को बेच देते हैं। बड़े पैमाने पर इस अवैध अंग व्यापार का केन्द्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र है। एक दर्जन से ज्यादा बड़े निजी सर्जन अब जाँच के घेरे में हैं। दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल के दो प्रमुख डॉक्टरों को नोटिस दिया गया है। इन पर आरोप है कि वह उत्तर प्रदेश पुलिस के कुछ पुलिस कर्मियों और दलालों (जिनमें से कुछ पहले खुद डोनर थे) के साथ मिलकर यह काम करते हैं। पुलिस ने बताया कि केवल दिल्ली में ही अंग तस्करी का 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार है। अब तक पुष्पावती सिंघानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीएसआरआई) के सीईओ दीपक शुक्ला सहित 15 लोगों की गिरफ्तारियाँ और नोटिस इस मकड़जाल का एक छोटा–सा हिस्सा मात्र है।

2016 में, लोकसभा के सवाल–जवाब सत्र में, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उल्लेख किया कि प्रत्यारोपण के लिए मानव अंगों की माँग और आपूर्ति के बीच बहुत बड़ा अन्तर है। 2 लाख किडनी की माँग के मुकाबले केवल 6,000 उपलब्ध हैं। इसी तरह, 30,000 लीवर की माँग के मुकाबले केवल 1,500 और 50,000 दिल की माँग के मुकाबले देश भर में केवल 15 उपलब्ध हैं। इसी कमी का फायदा ये अंग तस्कर उठा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार “एक किडनी 70 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये के बीच में बेची जाती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि जरूरत कितनी है। दानकर्ता को कभी भी 3 लाख रुपये से ज्यादा नहीं मिलते। बाकी रकम कारोबार चलाने वालों में बाँट दी जाती है।”

अंग तस्कारों के निशाने पर सड़कों और झोपड़ियों में रहने वाली मेहनतकश आबादी होती है। अक्सर उन्हीं के बच्चों के लापता होने की खबरें आती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि ये बेकसूर बच्चे इनका शिकार बनते हैं।

‘द हिन्दू’ अखबार ने अंग तस्करी के शिकार सोनू और वर्धन नाम के दो नौजवानों की कहानी भी प्रकाशित की है। ये दोनों नौजवान अपनी–अपनी मजबूरियों के चलते अंग तस्करों के बहकावे में आ गये। इन्हें 2 लाख रुपये देने का वादा किया गया था। लेकिन वह रकम नहीं दी गयी। इसके साथ ही इन पर दबाव बनाया गया कि तुम दूसरे लोगों को अंग देने के लिए राजी करो वरना तुम्हें जान से मार दिया जाएगा। इन दोनों का ही परिवार इन अंग तस्करों के चलते तबाह हो गया। इस व्यापार में शामिल लोगों ने किडनी और लीवर दान करने वाले लोगों का एक बड़ा डेटाबेस तैयार किया हुआ है। इसमें सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की है। भयंकर गरीबी और उसमें किसी रोजगार की उम्मीद न होने के चलते नौजवान बड़े पैमाने पर इनके शिकार बन रहे हैं। कुछ नौजवान पैसों की उम्मीद में अपने अंग तक बेचने को मजबूर हो जाते हैं। लेकिन इनकी समस्या कम होने की जगह तब और बढ़ जाती है जब वे अंग तस्कार माफियाओं के चंगुल में बुरी तरह फंस जाते हैं। कितने ही नौजवान इन्फेक्शन और अन्य संक्रमण के चलते मारे भी जाते हैं।

शोषण और लूट पर टिकी मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था ने लोगों को इतनी गुर्बत में धकेल दिया है कि वे जिन्दा रहने के लिए अपने अंग तक बेचने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी ओर इनकी मजबूरी का फायदा उठाने वाला माफियाओं का एक तबका सक्रिय हो उठा है जो दिन–दुनी रात–चैगुनी तरक्की कर रहा है। जिस डॉक्टर को कभी भगवान का दर्जा दिया जाता था आज उनमें से कई पैसे की हवस में हैवान हो गये हैं। सरकार के मंत्रियों से लेकर पुलिस अधिकारी तक इन हैवानों में शामिल हैं। हमें इस जालिम व्यवस्था को खत्म करके रक्त–पिपासू हैवानों से मुक्त एक बेहतर व्यवस्था का निर्माण करना होगा तभी लोगों को सम्मानजनक जिन्दगी दी जा सकती है।

–– सौरव

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