सितम्बर 2020, अंक 36 में प्रकाशित

कोयला खदानों के लिए भारत के सबसे पुराने जंगलों की बलि!

पूरी दुनिया जलवायु आपातकाल में पहुँच चुकी है। उसके बावजूद सरकारें इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं। पिछले कई दशकों से पर्यावरण कानूनों की धज्जियाँ उड़ायी गयीं। और तो और तबाह करने वाले नये–नये फरमान जारी किये गये।

पर्यावरण मंत्रालय की ‘फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी’ ने ऐसा ही एक फरमान जनवरी 2019 को जारी किया जिसमें उत्तरी छत्तीसगढ़ के ‘हंसदेव अरंद’ जंगलों में स्थित “परसा कोयला खण्ड” की माइनिंग से जुड़े स्टेज फर्स्ट को मंजूरी दे दी गयी। जंगलों को काट कर इस फैसले से इलाके के 40 कोयला खदानों से कोयला निकालने का रास्ता साफ हो गया है। 4,20,000 एकड़ में फैले जंगलों को काटकर चार बड़े कोयला ब्लॉक बनाये जाएँगे।

यह जंगल घने साल वृक्षों, दुर्लभ पौधों, साल भर निरन्तर बहने वाली जल धाराओं और दुर्लभ जीव–जन्तुओं की प्रजातियों से सुशोभित है। यहाँ का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी है। हजारोें वर्षों से कई आदिवासी जनजातियों के लोग इसी जंगल से अपना गुजर–बसर करते हैं।

जंगल 1878 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। जिसमें से 1502 वर्ग किलोमीटर इलाका जंगली है, जो वहाँ की वन्य विविधताओं से भरा–पूरा है। जंंगली जीवों और पेड़–पौधों के साथ–साथ आदिवासियों की जिन्दगी पर भी संकट आ गया है। कोयला की खुदाई में इस्तेमाल होने वाले धमाकों से वन्य जीव जंगलों से निकलकर इनसानी बस्तियों की ओर भाग रहे हैं। जिसमें बाद्य और हाथी जैसे जीव भी शामिल है। इससे अब तक दर्जनों लोग अपनी जिन्दगी से हाथ धो बैठे हैं। 6,000 आदिवासी अपने घरों से बेघर होने की कगार पर पहुँच गये है।

 2010 में कांग्रेस सरकार ने भारत के सबसे बड़े कोयला क्षेत्रों पर एक सर्वे कराया था। उसमें तय किया गया कि बाघों, हाथियों और जैव विविधताओं को संरक्षित रखने के लिए 30 प्रतिशत क्षेत्र पर इनसानों का प्रवेश वर्जित है। लेकिन बीजेपी सरकार ने इसे 5 प्रतिशत कर दिया।

परसा कोयला खण्ड का कामकाज “राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटड” के हाथों में है और उसने “अडानी एण्टरप्राइजेज लिमिटेड” को “माइन डेवलपर ऑपरेटर” के तौर पर अपना हिस्सेदार बनाया है।

इन दोनों कम्पनियों के संयुक्त उपक्रम से 3 ब्लाकों का खनन चालू है। पर्यावरण विरोधी इस कार्रवाई को रोकने के लिए 17 गाँवों की सभा में हजारों ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ बचाओ अभियान की शुरुआत की और विरोध प्रदर्शन किया। सुप्रीम कोर्ट और पीएम को भी पत्र लिखा। इनके साथ–साथ महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखण्ड की सरकारों ने इनके समर्थन में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। लेकिन इन सबके बावजूद खनन कार्यों को रोका नहीं गया और इससे जुड़ी याचिकाओं को लगातार रद्द किया जाता रहा। कोयले की लूट के लिए भारी मात्रा में जंगलों का विनाश किया जा रहा है। धरती के पर्यावरण के विनाश को बढ़ाने और विकास के नाम पर हो रहे इस महाविनाश को रोकना बहुत जरूरी है क्योंकि यह किसी एक इलाके की आबादी की समस्या नहीं है, बल्कि यह हम सबके भविष्य का सवाल है।

–– आशू वर्मा

 
 

 

 

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