नवम्बर 2021, अंक 39 में प्रकाशित

बच्चों का बचपन और बड़ों की जवानी छीन रहा है मोबाइल

मोबाइल बच्चों का बचपन छीन रहा है। आजकल के बच्चे ऐसे खेल खेलना पसन्द ही नहीं करते हैं जिसमें शारीरिक परिश्रम हो। मोबाइल की लत बच्चों पर इस कदर हावी होती जा रही है कि बच्चे इसके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए बेकरार रहते हैं और वे मोबाइल पर थोड़ी देर नहीं बल्कि दिन भर ही लगे रहते हैं। अगर आपका बच्चा भी इसी राह पर आगे बढ़ रहा है तो आपके लिए खतरे की घण्टी है क्योंकि मोबाइल आपके बच्चे से उसका बचपन छीन रहा है।

मोबाइल की लत एक बार फिर सुर्खियों में है। हरियाणा में 9 साल के एक बच्चे को इसकी इतनी बुरी लत थी कि उसने स्मार्टफोन छीने जाने की वजह से अपना हाथ काटने की कोशिश की। मोबाइल की लत का ये इकलौता मामला नहीं है। देश भर में बच्चे और युवा बड़ी संख्या में मोबाइल की लत के शिकार हो रहे हैं।

12 साल का अविनाश मोबाइल के बिना एक पल नहीं रह सकता। उससे अगर मोबाइल छीन लिया जाये तो वो गुस्से में आ जाता है। ऐसी ही लत है भोपाल यूनिवर्सिटी की प्रिया को। उसे व्हाट्सऐप की ऐसी लत लगी कि वह पूरी रात जगी रह जाती है। अब वह इस लत से छुटकारा पाने के लिए मानसिक अस्पताल में काउन्सलिंग ले रही है।

मोबाइल की लत इस कदर हावी होती जा रही है कि बच्चे आपराधिक भी होते जा रहे हैं और गलत कदम तक उठा रहे हैं। अभी हाल ही में ग्रेटर नोएडा में एक 16 वर्षीय लड़के ने अपनी माँ और बहन की हत्या कर दी क्योंकि बहन ने शिकायत कर दी थी कि भाई दिन भर मोबाइल फोन पर खतरनाक गेम खेलता रहता है और इसलिए माँ ने बेटे की पिटाई की, उसे डाँटा और उसका मोबाइल छीन लिया। मोबाइल पर मारधाड़ वाले गेम खेलते रहने के आदी लड़के का गुस्सा इससे बढ़ गया कि उसने अपनी माँ और बहन की हत्या कर दी और घर से भाग गया। इसी तरह कुछ महीनों पहले कोटा में एक 16 वर्षीय किशोर ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस की जाँच पड़ताल में पता चला कि बच्चे को पबजी गेम खेलने की लत थी और दिनभर मोबाइल में गेम खेलता रहता था। जब घरवालों ने मोबाइल छीन लिया और देने से मना कर दिया तो यह गलत कदम उठा लिया।

मोबाइल और साइबर एडिक्शन अब एक गम्भीर समस्या बनती जा रही है जो हमारी दिनचर्या पर बुरा असर डाल रही है। इससे मानसिक विचलन और चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा है कि हम छोटी छोटी बातों पर घर–परिवार के सदस्यों पर गुस्सा करने लग गये हैं।

मोबाइल अब केवल बच्चों के लिए ही समस्या नहीं है, बल्कि बड़े भी इसकी चपेट में हैं। यह सिर्फ फोन या मैसेज करने तक ही सीमित नहीं रहा है। ना जाने कितने ही तरह के ऐप्स, व्हाट्सएप, फेसबुक जैसी सोशल मीडिया एप, और गेम्स हमें दिन भर व्यस्त रखते हैं। लेकिन अगर मोबाइल के बिना आपको बैचैनी होती है तो समझ जाइये कि आप भी इस एडिक्शन के शिकार होते जा रहे हैं जो आपके लिए चिन्ता की बात है। वहीं मोबाइल एडिक्शन में सबसे बड़ी समस्या इसकी पहचान को लेकर होती है। आखिर कैसे पता चले कि मोबाइल आपकी जरूरत भर है या आपको इसकी लत लग गयी है। यह आपकी दिनचर्या और मोबाइल के साथ बिताये जाने वाले आपके समय से पता चल सकता है।

स्मार्टफोन हमारी जिन्दगी में इस कदर शामिल हो चुका है कि दफ्तर हो या घर, हर वक्त वो हमारे हाथ में ही रहता है। छोटी–छोटी उम्र के बच्चे से लेकर जवान और बूढ़े तक इसके आदी होते जा रहे हैं। व्हाट्सएप, फेसबुक, गेम्स सब कुछ स्मार्टफोन पर होने की वजह से बच्चों और युवाओं में इसकी आदत अब धीरे–धीरे लत में तब्दील होती जा रही है।

आजकल अपने विषय से सम्बन्धित किसी प्रश्न को समझने में दिक्कत आती है तो वह खुद पढ़कर, समझकर या किसी जानकार से पूछने के बजाय गूगल का सहारा लेकर उत्तर खोजने की कोशिश करता है। यह जरूरत के हिसाब से हो तो गलत भी नहीं है, पर अब यह तरीका लोगों की आदत बन चुका है। वे अपने प्रश्नों का हल या समस्या का निवारण किताबों में ढूँढकर पढ़ने के बजाय केवल मोबाइल पर ढूँढने के आदी होते जा रहे हैं जो उचित नहीं है।

देश में निम्हांस, एआईआईएमएस और सर गंगाराम अस्पताल जैसे संस्थानों में मोबाइल की लत के शिकार लोगों के इलाज के लिए खास क्लीनिक हैं। और, यहाँ आने वाले मरीजों की संख्या अब दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। मोबाइल और एप बनाने वाली कम्पनियाँ अपने मुनाफे के लिए कितनी अमानवीय हो गयी हैं कि यह सब जानते हुए भी लोगों को मानसिक रोग के गड्ढे में धकेल रही हैं। वे नये–नये गेम बनाकर मुनाफा बटोर रही हैं।

–– नवीन गौतम

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