उत्तराखण्ड में लागू समान नागरिक संहिता संविधान की मूल भावना के खिलाफ
18 वीं लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से एक दिन पहले दैनिक जागरण अखबार के पहले पन्ने पर एक खबर छपी जिसका शीर्षक था, “समान नागरिक संहिता की जरूरत पूरा देश महसूस कर रहा है, विरोध छोड़े विपक्ष”–– मोदी। आगे लिखा था कि “कुछ दिन पहले भाजपा के घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता के लिए प्रतिबद्धता जता चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर दोहराया है कि पूरा देश इसकी जरूरत महसूस कर रहा है।” यह बात नरेंद्र मोदी ने कब और कहाँ कही तथा किस आधार पर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पूरा देश इसकी जरूरत महसूस कर रहा है, इस बारे में अखबार में कुछ नहीं था। लोकसभा चुनाव की घोषणा से... पूरा अंक पढ़ें
निठारी काण्ड पर फैसला : न्याय प्रणाली की हकीकत
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 अक्टूबर के अपने फैसले में कुख्यात निठारी काण्ड के दो अपराधियों, मोनिन्दर सिंह पन्धेर और उसके नौकर सुरेंदर कोली की सजा माफ कर दी। गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने इन दोनों को 15 साल की एक लड़की और 18 बच्चों के अपहरण, बलात्कार और हत्या के मामले में फाँसी कि सजा दी थी। निठारी काण्ड 2006 में सामने आया था जब निठारी गाँव से सटे नोयडा सेक्टर 31 की डी–5 कोठी के आसपास एक–एक करके कई नरकंकाल, खोपड़ी और मानव अंग के अवशेष मिले थे। यह कोठी एक बड़े व्यवसायी मोनिन्दर सिंह पन्धेर की थी जहाँ वह अपने नौकर सुरेंदर कोली के साथ रहता था। दिल दहला देनेवाली इन घटनाओं की जाँच के दौरान... पूरा अंक पढ़ें
सम्पादकीय की जगह : उस समय तुम कुछ नहीं कर सकोगे –– सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
सर्वेश्वर ने यह कविता लगभग चार दशक पहले लिखी थी। यह समकालीन तीसरी दुनिया के जून 2014 अंक में प्रकाशित हुई थी। लोकतंत्र की दुर्दशा को देखते हुए आज यह कविता पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक है। अब लकड़बग्घा बिल्कुल तुम्हारे घर के करीब आ गया है यह जो हल्की सी आहट खुनकती हँसी में लिपटी तुम सुन रहे हो वह उसकी लपलपाती जीभ और खूँख्वार नुकीले दाँतों की रगड़ से पैदा हो रही है। इसे कुछ और समझने की भूल मत कर बैठना, जरा सी गफलत से यह तुम्हारे बच्चे को उठाकर भाग जाएगा जिसे तुम अपने खून पसीने से पोस रहे हो। लोकतंत्र अभी पालने में है और लकड़बग्घे अँधेरे जंगलों और बर्फीली घाटियों से गर्म खून की तलाश में निकल... पूरा अंक पढ़ें
जोशीमठ की तबाही : अन्धाधुन्ध विकास और पर्यावरण विनाश का भयावह परिणाम
उत्तराखण्ड का बेहद खूबसूरत पर्यटन केन्द्र तथा बदरीनाथ, हेमकुण्ड, फूलों की घाटी और औली जैसे प्रमुख प्राकृतिक और धार्मिक स्थलों का प्रवेशद्वार, जोशीमठ के लिए नया साल 2023 भारी तबाही लेकर आया। 2 जनवरी की रात वहाँ के निवासियों की नींद तेज धमाकों से खुली, और उनका सामना घर की दीवारों और फर्श में दरार पड़ने, जमीन धँसने जैसे हौलनाक मंजर से हुआ। सुबह जब लोग घर से बाहर निकले तो हर जगह यही आलम देखने को मिला। जगह–जगह जमीन का धँसाव, सड़कों पर चैड़ी दरारें, दरार पड़े मकानों से बाहर भीड़ और अफरा–तफरी, मकानों को खाली करने और जरूरी सामान निकालने की आपा–धापी, हर जगह मातमी माहौल। 22,000 की आबादी... पूरा अंक पढ़ें
श्रीलंका संकट : नवउदारवाद की कारगुजारियों का शिलालेख
चार महीने से आर्थिक तबाही के खिलाफ संघर्षरत श्रीलंका की जनता ने 9 जुलाई को राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया। हर्षोल्लास और तात्कालिक जीत की तस्वीरें समाचार माध्यमों पर छाई हुई हैं और दुनिया भर के नवउदारवादी शासक घबराये हुए हैं। इस साल की शुरुआत में ही श्रीलंका की अर्थव्यवस्था भुगतान संतुलन के गम्भीर संकट में फँस गयी थी, विदेशी मुद्रा भण्डार खाली हो चुका था, बुनियादी जरूरत की चीजों के आयात और विदेशी कर्ज की किश्त चुकाने के लिए भी डॉलर नहीं था। कीमतें बेलगाम बढ़ रही थीं। प्राकृतिक गैस, पेट्रोल, डीजल और अनाज की आपूर्ति में सेना... पूरा अंक पढ़ें
रूस–यूक्रेन युद्ध की विनाशलीला : युद्ध नहीं, शान्ति! लूट नहीं, क्रान्ति!! लेकिन कैसे ?
यूक्रेन पर रूसी हमला शुरू हुए आज एक महीने से भी ज्यादा समय बीत चुका है। इस युद्ध के विनाशकारी परिणामों का सही अनुमान लगाना सम्भव नहीं, लेकिन जो भी जानकारियाँ मिल रही हैं वे दिल दहला देने वाली हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के आँकड़ों के मुताबिक 24 फरवरी, 2022 के बाद इस हमले में 2,685 नागरिक हताहत हुए और 38,66,224 लोग पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं, जिनमें करीब 90 फीसदी महिलाएँ और बच्चे हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अन्य 65 लाख लोग यूक्रेन के भीतर विस्थापित हुए हैं। रूसी सरकार के आँकड़ों के मुताबिक, 2,71,254 शरणार्थी रूस में शरण लिये हुए हैं। इसके आलावा 2,00,000 से अधिक रूसी नागरिक भी वहाँ से पलायन... पूरा अंक पढ़ें
पण्डोरा पेपर्स : पूँजीवादी भ्रष्टाचार की बुनियाद है मजदूरों के श्रम की चोरी
काला धन और भ्रष्टाचार एक बेहद सनसनीखेज और लुभावना मुद्दा है। हमारे देश में अक्सर ऐसे मामले उजागर होते रहते हैं और भद्रजनों की सतही संवेदना और क्षणिक गुस्से को उकसाते रहते हैं। इसी सिलसिले की नयी कड़ी है पण्डोरा पेपर्स जिसमें हराम की कमाई से रातों–रात धनाढ्य बने देश–दुनिया के नामी–गिरामी हस्तियों के काले कारनामों का कच्चा चिट्ठा खोला गया है। इण्टरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीजेआई) द्वारा किये गये इस विराट भण्डाफोड़ में 117 देशों के 600 पत्रकार शामिल थे। इसे “अब तक का सबसे बड़ा पत्रकारिता सहकार” माना जा रहा है। पण्डोरा पेपर्स स्विट्जरलैंड, सिंगापुर,... पूरा अंक पढ़ें
सरकार की बेपरवाही ने लाखों लोगों की जान ले ली
कोरोना महामारी की दूसरी लहर देशभर में कहर ढा रही है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म–– फेसबुक, वाट्सएप, ट्वीटर, हर रोज किसी करीबी रिश्तेदार, किसी दोस्त, किसी साहित्यकार, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, यहाँ तक कि पार्टियों के बड़े नेताओं के मरने की हृदय–विदारक सूचनाओं से भरे हुए हैं। सरकार की लापरवाही और इलाज की बदइन्तजामी को लेकर लोगों में गुस्सा, बेबसी, बदहवासी और विलाप के वीडियो आते रहे। ‘मेरे पिता इलाज के बिना मर रहे हैं’, ‘अलविदा दोस्त ऑक्सीजन बेड नहीं मिलने के कारण मैं दम तोड़ रहा हूँ’, ‘मौत मेरे सामने खड़ी है और बचने का कोई उपाय नहीं है।’ मौत से पहले... पूरा अंक पढ़ें
जन विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का अभूतपूर्व देशव्यापी संघर्ष
किसान विरोधी, जन विरोधी तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का अभूतपूर्व ऐतिहासिक आन्दोलन, जो 26 नवम्बर को दिल्ली के सिंघू बॉर्डर से शुरू हुआ, अब गाजीपुर, टीकरी, शाहजहाँपुर और पलवल तक फैल गया है और उसे शुरू हुए डेढ़ महीने से ज्यादा समय बीत चुका है। आजादी के बाद की यह सबसे विराट, सबसे सुसंगठित किसान जत्थेबन्दी है। राजधानी दिल्ली के चारों ओर लाखों की संख्या में टैªक्टर–ट्राली और तम्बुओं में किसान शरण लिये हुए हैं और कड़कती ठण्ड, बारिश, कोहरे और शीतलहर के बावजूद इनकी संख्या दिनों–दिन बढ़ती जा रही है। मौसम की मार और कठिन परिस्थितियों के चलते अब तक इस आन्दोलन में 50 से भी ज्यादा... पूरा अंक पढ़ें
नयी शिक्षा नीति 2020 : आपदा में विपदा
कोरोना महामारी के दौर में जनता की समाजिक दूरी और अपने–अपने घरों में बन्द होने का फायदा उठाकर केन्द्र की भाजपा सरकार ने कई जनविरोधी फैसले लिये। श्रम कानूनों में बदलाव, कृषि क्षेत्र को सटोरियों और कालाबाजारियों को सौंपने वाला अध्यादेश और सार्वजनिक क्षेत्र को कौड़ियों के मोल नीलामी सहित इन तमाम कारगुजारियों का मकसद देशी–विदेशी पूँजीपतियों के मुनाफे में बेशुमार इजाफा और मेहनतकश आबादी की बदहाली को और अधिक बढ़ाना है। भाजपा सरकार की नयी शिक्षा नीति 2020 भी इसी दिशा में उठाया गया अगला कदम है। सरकार और पूँजीपतियों के लिए यह आपदा में अवसर है, लेकिन आम जनता के लिए यह एक विपत्ति है, विनाशकारी फैसला... पूरा अंक पढ़ें
कोरोना से ज्यादा खतरानाक है नवउदारवादी वायरस
30 मई के अखबारों में प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी का स्नेहीजन को सम्बोधित एक लम्बा पत्र प्रकाशित हुआ। अवसर था भाजपा सरकार के दूसरे कार्यकाल का, एक साल और कुल मिलाकर छह साल पूरा होना। उनका यह पत्र उन्हीं के शब्दों में स्नेहीजनों के “चरणों में प्रणाम करने और उनका आशीर्वाद लेने” तथा “लगातार दो बार बहुमत की सरकार को जिम्मेदारी सौंपकर भारतीय लोकतंत्र में एक नया स्वर्णिम अध्याय जोड़ने के लिए उनको नमन करने और प्रणाम करने” के इर्द–गिर्द ही मँडराता रहा। जिस दिन यह पत्र प्रकाशित हुआ उस दिन तक देश में 67 दिन की तालाबन्दी के बावजूद कोरोना महामारी विकराल रूप धारण कर रही थी। उस दिन... पूरा अंक पढ़ें
श्रम–कानूनों में भारी बदलाव : मजदूर हितों पर हमला
हमारे देश की अर्थव्यवस्था गहरे ढाँचागत संकट की गिरफ्त में है। अर्थव्यवस्था की स्थिति बतानेवाले सभी स्थापित पैमाने इस सच्चाई का इजहार कर रहे हैं। काफी समय तक विकास दर और बेरोजगारी के आँकड़े छुपाके और उनमें फेरबदल करके अर्थव्यवस्था के बिगड़ते स्वास्थ्य पर पर्दा डालने के बाद अब सरकारी अर्थशास्त्री और विभिन्न सरकारी संस्थान भी गम्भीर आर्थिक मन्दी की कड़वी सच्चाई को स्वीकार करने पर मजबूर हैं। आर्थिक संकट का सबसे असह्य बोझ और घातक परिणाम मजदूर वर्ग को ही झेलने पड़ते हैं। दिनोंदिन गहराते इस आर्थिक संकट को हल करने के नाम पर केन्द्र सरकार ने पूँजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग के प्रति जो रवैया अपनाया है, उसने इस... पूरा अंक पढ़ें
पूँजी के हिमायती हैं नवउदारवादी दौर के मौजूदा शासक
भाजपा महासचिव और आरएसएस के प्रचारक राम माधव ने ‘भारत कैसे हुआ मोदीमय’ पुस्तक के विमोचन के मौके पर कहा कि वैश्विक राजनीति में बदलाव का दौर चल रहा है क्योंकि यह “निर्णय लेने वाले नेतृत्व” का युग है, जिसमें लोगों की भलाई के लिए काम शुरू हो सका है और भारत में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यही हो रहा है। माधव ने कहा कि “भाजपा अब तक इतना निपुण हो चुकी है कि ‘वह बिना चुनाव लड़े ही सरकार बना सकती है।” हालिया लोकसभा चुनावों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई सन्देह नहीं है कि पूरा चुनाव मोदीजी के इर्द–गिर्द केन्द्रित था और... पूरा अंक पढ़ें
स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, बेमौत मरते बच्चे: दोषी कौन?
बिहार में चमकी बुखार यानी एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से लगभग 175 बच्चों की मौत हो गयी, जिनमें सिर्फ मुजफ्फरपुर में ही 132 बच्चे अकाल मौत के शिकार हुए। इससे पहले भी वहाँ 2014 में 139 और 2012 में 178 बच्चों की मौत हुई थी। लगभग हर साल अप्रैल से लेकर जून के बीच वहाँ से बच्चों की मौत की खबरें आती हैं। पिछले साल गोरखपुर में भी दिमागी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत हुई थी और उस इलाके में भी यह महामारी लगभग हर साल मासूमों की जान लेती है। केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में इन्सेफेलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल,... पूरा अंक पढ़ें
पुलवामा त्रासदी, युद्धोन्माद और चुनाव
10 मार्च को चुनाव आयोग ने अप्रैल से मई तक 7 चरणों में लोकसभा चुनाव की घोषणा की। उसी दिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की सभा में यह कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्यवाही भाजपा का चुनावी मुद्दा होगा। इसमें अचरज की कोई बात नहीं, क्योंकि आर्थिक मुद्दे पर पूरी तरह विफलता, तीन राज्यों के चुनाव में पार्टी की पराजय और राफेल सौदे को लेकर विवादों में घिरे नरेंद्र मोदी और भाजपा के तमाम नेता चुनाव की घोषणा से पहले ही इस त्रासद घटना को लेकर युद्ध ज्वर फैलाने में जुटे थे। मीडिया और टीवी चैनल देश की तमाम बुनयादी समस्याओं को दरकिनार करते हुए सत्ताधारी पार्टी... पूरा अंक पढ़ें
सरकार और रिजर्व बैंक में तकरार के निहितार्थ
26 अक्टूबर को मुम्बई में ए डी सर्राफ स्मृति व्याख्यान में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सरकार और रिजर्व बैंक के बीच पैदा हुई तनातनी के बारे में अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि “जो सरकार अपने केन्द्रीय बैंक का सम्मान नहीं करती वह देर–सबेर वित्तीय बाजार के गुस्से का सामना करती है, अर्थतन्त्र में आग लगाती है और इस बात पर पछताती है कि उसने एक महत्त्वपूर्ण नियामक संस्था को कमजोर किया।” यह राय अकेले विरल आचार्य की नहीं थी क्योंकि अपने उसी भाषण में उन्होंने अपने गवर्नर उर्जित पटेल का इस बात के लिए आभार जताया था कि इस व्याख्यान में केन्द्रीय बैंक की स्वाधीनता की पुनर्व्याख्या... पूरा अंक पढ़ें
घृणा की राजनीति : सवाल विचारधारा का ही है
हमारा देश एक विकट अफरातफरी और अराजकता की गिरफ्त में है। चार साल पहले भाजपा गठबन्धन सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश का चैतरफा संकट गहराता जा रहा है। महँगाई, बेरोजगारी, भुखमरी और बदहाली लगातार बढ़ती जा रही है। सामाजिक ताना–बाना तनावग्रस्त है और छिन्न–भिन्न होने की ओर बढ़ रहा है। साम्प्रदायिक–जातीय तनाव, फूटपरस्ती और नफरत का जहरीला वातावरण तैयार किया जा रहा है तथा इस मुहिम में मीडिया, सोशल मीडिया और सत्ताधारी पार्टी के छोटे–बड़े नेता बढ़–चढ़कर भूमिका निभा रहे हैं। नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पनसरे, प्रोफेसर कुलबर्गी और गोरी लंकेश जैसे प्रसिद्ध जनपक्षधर बुद्धिजीवियों की... पूरा अंक पढ़ें
कठुआ, उन्नाव बलात्कार : ये कहाँ आ गये?
अप्रैल के पूर्वार्द्ध में उत्तर प्रदेश के उन्नाव और जम्मू के कठुआ में बलात्कार और हत्या की जो नृशंस घटनाएँ प्रकाश में आयीं, उसके बाद देशभर में गम और गुस्से की लहर दौड़ गयी। वैसे तो महिलाओं के ऊपर यौन हिंसा की बर्बर घटनाओं से हर रोज अखबार भरे होते हैं, हर 20 मिनट में देश के किसी न किसी हिस्से में बलात्कार की वारदात होती है और जिस दौरान इन दोनों घटनाओं को लेकर पूरे देश में लोग सड़कों पर उतर रहे थे, उसी बीच सासाराम, सूरत, दिल्ली, नोएडा, एटा और कई अन्य इलाकों से ऐसी ही दरिन्दगी की खबरें सामने आयीं। लेकिन कठुआ और उन्नाव का जघन्यतम अपराध इस मामले में तमाम दूसरी घटनाओं से अलग और विचलित करने वाला है कि... पूरा अंक पढ़ें
गहराता आर्थिक–सामाजिक संकट : दवा के नाम पर जहर
5 अक्टूबर को विश्व आर्थिक मंच के भारत सम्मेलन में एयरटेल कम्पनी के मालिक भारती मित्तल ने कहा कि “200 सबसे बड़ी कम्पनियों द्वारा छँटनी किया जाना और आनेवाले समय में वहाँ कोई नयी नौकरी पैदा न होने की सम्भावना गम्भीर चिन्ता का विषय है। इस तरह सम्पूर्ण बिजनेस समुदाय के लिए समाज को साथ लेकर चलना कठिन से कठिनतर हो जायेगा। इस तरह आप करोड़ों लोगों को पीछे छोड़ देंगे।” उनका यह भी कहना था कि “पिछले कुछ साल हमारे लिए अच्छे नहीं रहे हैं। धन का बँटवारा समाज के स्तर तक नहीं पहुँचा है। इसके चलते राजनीतिक व्यवस्था के ऊपर भी भारी दबाव बढ़ रहा है।” जिस बेरोजगारी और छँटनी पर मित्तल ने चिन्ता जाहिर... पूरा अंक पढ़ें
कृषि संकट का गोलियों से समाधान!
अगर अंग्रेजों का राज होता तो खबर कुछ ऐसे लिखी जाती, “अंग्रेज सरकार ने भारत के 6 किसानों की गोली मरवाकर हत्या कर दी।” फिर देशभक्त अखबारों का आह्वान होता, “ऐसी लुटेरी और अत्याचारी सरकार के खिलाफ भारतवासी एकजुट हो!” दरअसल ऐसी कोई भी खबर अखबारों में नहीं है। खबर यह आयी कि गोली लगने से मध्य प्रदेश के 6 किसान मारे गये। मंदसौर या मध्य प्रदेश के किसान ही नहीं देशभर में अलग–अलग जगहों के किसान आज आन्दोलन कर रहे हैं। वे शौक के चलते आन्दोलन नहीं कर रहे हैं और न ही किसी उन्माद के चलते पुलिस की गोली खा रहे हैं। उनकी जिन्दगी नारकीय बन गयी है। एक महीना गाँव के किसी मध्यम या गरीब... पूरा अंक पढ़ें
महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति के सौ वर्ष : एक नये युग की शुरुआत
वर्ष 2017 महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति का शताब्दी वर्ष है। दुनियाभर में मेहनतकश वर्गों के संगठन तथा न्याय और समता पर आधारित समाज का सपना देखने और उसे जमीन पर उतारने के लिए प्रयासरत लोग इस सौवीं वर्षगाँठ को अपने–अपने तरीके से याद कर रहे हैं। 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति ने पूरी दुनिया में क्रान्तिकारी बदलाव के एक नये दौर का उद्घोष किया। इसने एक ऐसी दुनिया के सपने को साकार किया था जिसमें शहीद भगत सिंह के शब्दों में “एक वर्ग दूसरे वर्ग का और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का शोषण–उत्पीड़न न कर सके।” जहाँ न्याय और समता केवल सुहावने शब्द भर नहीं बल्कि जमीनी हकीकत हो। 1917 की रूसी क्रान्ति... पूरा अंक पढ़ें
सर्जिकल स्ट्राइक और उसके बाद
भारतीय सेना ने 29 सितम्बर को लाइन ऑफ कन्ट्रोल से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ (लक्षित हमला) किया। इस घटना के बाद पक्ष–विपक्ष की पार्टियों में एक–दूसरे पर हवाई गोले दागने की होड़़ लग गयी। मीडिया का एक बड़़ा हिस्सा और सोशल मीडिया पर सक्रिय अतिउत्साही सरकार–समर्थक इस घटना को अभूतपूर्व बताते हुए सेना की बहादुरी की आड़़ में सरकार की छवि चमकाने, अपने विरोधियों को देशद्रोही बताने और युद्धोन्माद का माहौल बनाने में जुट गये। रक्षामंत्री ने सेना की तुलना हनुमान से की, जिसे इस कार्रवाई से पहले अपनी शक्ति का आभास ही नहीं था, जबकि भाजपा ने उत्तर... पूरा अंक पढ़ें
नवउदारवादी दौर में देशभक्ति और राष्ट्रवाद के छल–छद्म
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देशभक्ति बनाम अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर फरवरी माह में जो बवंडर उठा था उसका धूल–गुबार अब काफी हद तक छँट गया है। यह सच्चाई आज सबके सामने है कि 9 फरवरी को जेएनयू के एक कार्यक्रम में कुछ लोगों द्वारा भारत–विरोधी और पाकिस्तान समर्थक नारे लगाते हुए जिस विडियो को कुछ समाचार चैनलों पर बार–बार दिखाकर देशभर में उन्मादी माहौल बनाया गया था, वह विडियो ही फर्जी था। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने हाफिज सईद के जिस ट्वीटर सन्देश के हवाले से यह बयान दिया था कि जेएनयू की घटना को पाकिस्तानी आतंकी संगठन का समर्थन प्राप्त है, उस ट्वीटर अकाउंट को भी गृहमंत्रालय... पूरा अंक पढ़ें
पेरिस जलवायु सम्मेलन : धरती के विनाश पर समझौता
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की 21वीं वार्षिक बैठक 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर तक पेरिस में सम्पन्न हुई। इस बैठक में उन साम्राज्यवादी देशों का समूह भी शामिल था जो धरती की तबाही के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं और वे देश भी, जो जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों के सबसे ज्यादा शिकार हुए हैं और जलवायु परिवर्तन के लिए बिलकुल भी जिम्मेदार नहीं हैं। इस तरह, दो ध्रुवान्तों पर खड़े सबल और निर्बल, विनाशक और भुक्तभोगी, दोषी और निर्दोष, सभी एक सुर में बतकही करते हुए सहमति तक पहुँच गये। जाहिर है कि इस सफलता का श्रेय अमरीकी चैधराहट वाले साम्राज्यवादी समूह को है जो विकासशील और निर्धन देशों के हित में दबाब... पूरा अंक पढ़ें
देश किधर जा रहा है
30 अगस्त को कन्नड के प्रख्यात विद्वान एम एम कुलबर्गी की धारवाड़ शहर में गोली मारकर हत्या कर दी गयी। कन्नड़ वचना साहित्य के विद्वान साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कुलबर्गी को अंधविश्वास की तीखी आलोचना के कारण दक्षिणपंथी हिन्दूवादी संगठनों ने जान से मारने की धमकी दी थी। उनकी हत्या के ठीक बाद बजरंग दल और राम सेना से जुड़े दो स्थानीय नेताओं ने ट्वीटर पर लिखा कि अलगा निशाना के एस भगवान हैं। पुलिस ने उन दोनों को गिरफ्तार कर जमानत पर छोड़ दिया। वैचारिक असहमति के लिए मौत के घाट उतारे जानेवाले कुलबर्गी पहले विद्वान नहीं हैं। इससे पहले 2013 में हिन्दूवादियों ने अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के तर्कशील लेखक नरेन्द्र... पूरा अंक पढ़ें
किसान और किसानी की तबाही : जिम्मेदार कौन?
खेती किसानी का संकट आज अचानक मीडिया और राजनीति के गलियारे में गर्मागर्म चर्चा का विषया बन गया है। लेकिन यह सब गलत मुद्दे के इर्द–गिर्द और गलत मंशा से किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में दिल्ली के जंतर मंतर पर आम आदमी पार्टी की किसान रेली में गजेन्द्र सिंह की पेड़ से लटककर मौत की दु:खद घटना के बाद राजनीतिक पार्टियों के बीच आरोप–प्रत्यारोप, तू–तू–मैं–मैं और खोखली बयानबाजी का जो सिलसिला चल पड़ा उसने भारतीय राजनीति की विदू्रपता और घिनौनेपन को सतह पर ला दिया। इसने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि इन राजनीतिक पार्टियों के लिए किसी का मरना–जीना राजनीतिक हानि–लाभ... पूरा अंक पढ़ें