नवम्बर 2023, अंक 44 में प्रकाशित

महाराष्ट्र में कर्मचारी भर्ती का ठेका निजी कम्पनियों के हवाले

मार्च के महीने में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के सभी कर्मचारियों के हितों पर एक बड़ा हमला किया। उसने एक गवर्नमेण्ट रिजोलुयशन (जीआर) के जरिये कर्मचारियों की भर्ती को ठेके पर उठा दिया है। यह ठेका 9 निजी कम्पनियों को 5 साल के लिए दे दिया गया है। अब हर कुशल, अर्ध–कुशल और अकुशल कर्मचारी को इन्हीं निजी कम्पनियों द्वारा भर्ती किया जाएगा। ये कम्पनियाँ विभिन्न सरकारी विभागों में मजदूरों की आपूर्ति करंेगी जिनमें इंजीनियर, शिक्षक, क्लर्क, ड्राइवर, कारपेण्टर से लेकर सफाई कर्मचारी तक शामिल हैं। इससे पहले भी सरकार 2014 में इसी तरह का कॉन्ट्रैक्ट दो कम्पनियों को दे चुकी है जिसका नतीजा यह निकला कि अब सरकारी विभाग में दो तरह के मजदूर हो गये हैं––एक वे जिनकी नौकरी पक्की है, जिन्हें जरूरी लाभ मिलते हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे मजदूर जिन्हें बेहद कम तनख्वाह पर कम्पनी भर्ती करती है और उनके पास किसी तरह की कोई सुविधा नहीं होती। उन्हें जब चाहे तब नौकरी से निकाला जा सकता है। अब इस योजना को विस्तारित किया जा रहा है। यह मजदूरों के हकों पर एक बड़ा हमला है। इस योजना के जरिये अब सरकार को सस्ता मजदूर भी मिल जाएगा और वह मजदूरों के प्रति अपनी सभी जिम्मेदारियों से भी मुक्त हो जाएगी।

इस योजना के पीछे सरकार तर्क दे रही है कि वह सरकारी खर्च को कम करने के लिए ऐसा कर रही है, जिससे विकास का काम किया जा सके। राज्य के लाखों मजदूरों के भविष्य को अन्धकार में धकेल कर सरकार न जाने किसके विकास की बात कर रही है? पिछले कई सालों से सरकार ने कर्मचारियों पर होने वाले खर्च को पहले ही कम कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2022–23 में सरकार ने कुल बजट का महज 28–5 फीसदी सैलरी पर, तो वहीं 12–4 फीसदी पेंशन पर खर्च किया। यह पिछले साल की तुलना में 5 फीसदी कम था।

अधिकतर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती इन्हीं कम्पनियों द्वारा की जाएगी। फिलहाल इन दोनों श्रेणियों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या राज्य में चार लाख से ऊपर है। जबकि 2 लाख से ऊपर पद अभी खाली हैं। इन रिक्त पदों पर अब कम्पनियों द्वारा ही मजदूर भर्ती किये जाएँगे। पहले भर्ती में अति–पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को आरक्षण मिलता था। अब कम्पनियों द्वारा भर्ती प्रक्रिया में यह आरक्षण खत्म हो जाएगा। पिछड़े तबकों के संवैधानिक अधिकार पर यह एक बड़ा हमला है। एक तरफ तो इससे अनेक सामाजिक तबकों में आर्थिक खाई बढ़ जाएगी वहीं दूसरी तरफ अब इन कर्मचारियों को मिलने वाले सभी अधिकार छीन लिये जाएँगे।

यह फैसला तब लिया गया है जब पहले से ही महाराष्ट्र राज्य के बहुसंख्यक कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए आन्दोलनरत हैं। ऐसे में इस योजना की मंजूरी के बाद मजदूरों का गुस्सा सरकार पर फूट पड़ा है। इसके विरोध में जगह–जगह आन्दोलन चल रहे हैं। लेकिन सरकार मजदूरों पर इस कदर हमलावर है कि वह मजदूरों के आन्दोलनों को तोड़ने के लिए काले कानूनों का सहारा ले रही है। महाराष्ट्र सरकार ने आन्दोलनरत मजदूरों पर ‘मेसमा’ कानून लगा दिया है। यह कानून सरकार को मजदूरों के लोकतांत्रिक अधिकार छीनने का अधिकार देता है। इसके जरिये सरकार किसी भी मजदूर को बिना वारण्ट गिरफ्तार कर सकती है। यह काला कानून अंग्रेजी राज की याद दिलाता है। लेकिन इन सबके बावजूद मजदूरों का मनोबल तोड़ने में सरकार सफल नहीं हो सकी है। राज्य सरकार को अपने कदम पीछे खीचने को मजबूर होना पड़ा है। लेकिन अगर मजदूरों का संगठित प्रतिरोध कमजोर पड़ा तो सरकार फिर से अपने फैसले को लागू कर सकती है।

–– वसीम

Leave a Comment

लेखक के अन्य लेख

श्रद्धांजलि
समाचार-विचार
साहित्य
कविता
राजनीति
विचार-विमर्श
अन्तरराष्ट्रीय
सामाजिक-सांस्कृतिक
व्यंग्य
कहानी
राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
अवर्गीकृत
जीवन और कर्म
मीडिया
फिल्म समीक्षा