एजाज अहमद : एक प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी का जाना 

एक उत्कृष्ट जनपक्षधर, अन्तरराष्ट्रीय बुद्धिजीवी एजाज अहमद का 9 मार्च को इरविन, कैलिफोर्निया में निधन हो गया। उन्होंने न केवल समकालीन दुनिया की विभिन्न घटनाओं का मार्क्सवादी दृष्टिकोण से विश्लेषण किया, बल्कि मार्क्सवाद पर किये जानेवाले हमले और घुसपैठ से मार्क्सवादी सिद्धान्त का बचाव किया, खास तौर पर ऐसे लोगों… आगे पढ़ें

डॉ– रोज डगडेल : आयरिश स्वतंत्रता सेनानी को क्रान्तिकारी सलाम

आधी सदी से भी अधिक समय तक आयरिश आजादी के लिए लड़ने वाली डॉ– रोज डगडेल अब नहीं रहीं। 27 मार्च 2024 को डबलिन के ग्लासनेविन कब्रिस्तान में उनकी अन्तिम विदाई में विशाल जन–सैलाब उमड़ पड़ा। 18 मार्च को 82 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। रोज डगडेल का जन्म इंग्लैंड में धनी परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने दुनिया के मेहनतकश और उत्पीड़ित लोगों तथा आयरलैंड की आजादी और विशेष रूप से एक समाजवादी गणराज्य की स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और सभी सुख–सुविधाओं को त्याग दिया। उनके गैर–धार्मिक संस्कार में आयरलैण्ड की सिन फेन पार्टी की पूर्व अध्यक्षा गेरी एडम्स, रिपब्लिकन संघर्ष के उनके दिग्गज साथी जिम मोनाघन और कॉमरेड मैरियन, साथ ही रोज के बेटे रुएरी और कई अन्य लोग शामिल थे। सिन फेन असेम्बली की पूर्व सदस्या मार्टिना एंडरसन ने शोक सभा की अध्यक्षता की और कहा कि रिपब्लिकन आन्दोलन… आगे पढ़ें

फहमीदा रियाज का गुजर जाना...

21 नवम्बर को 72 साल की उम्र में हमारी पसन्दीदा शायरा फहमीदा रियाज ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वह लम्बे समय से पाकिस्तान के लाहौर में बीमारी से जूझ रही थीं। उनका जन्म 28 जुलाई 1946 को मेरठ में एक साहित्यकार घराने में हुआ था। बाद में वह अपने पिता की नौकरी में तबादले के चलते हैदराबाद होती हुई सिंध चली गयीं। भारत, पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया में वे महिला अधिकारों और प्रगतिशील विचारों की मजबूत आवाज थीं। उन्होंने उम्र भर हर तरह की कट्टरता और तानाशाही का विरोध किया। जिसके चलते उन्हें अपने देश के शासक वर्ग का भारी विरोध झेलना पड़ा और उन पर मुकदमे भी चलाये गये। 1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल–हक के शासन के वक्त सात साल तक भारत में निर्वासित रहीं। उन्होंने युवावस्था में ही लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहली कविता सिर्फ 15 साल की उम्र में कुनुस… आगे पढ़ें

माराडोना ने एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया, जो हमें कानून की बेड़ियों से गुलाम बनाती है

–– पीटर रोनाल्ड डिसूजा (यह लेख महान फुटबाल खिलाड़ी माराडोना की मौत पर द इण्डियन एक्सप्रेस में श्रद्धांजलि के रूप में प्रकाशित किया गया था। इसमें माराडोना के व्यक्तित्व के जुझारूपन के बारे में उन्हीं के एक मशहूर गोल के जरिये बात की गयी है। शासकों द्वारा स्थापित की गयी कानूनी नैतिकता के खिलाफ माराडोना की लड़ाई, फुटबाल के मैदान और उसके बाहर हमेशा चर्चित रही है। मौजूदा समाजव्यवस्था में नैतिकता अक्सर शासक तय करते हैं, लेकिन माराडोना ने हमेशा उस नैतिकता को मानने से इनकार किया है, चाहे फुटबाल का मैदान हो या चाहे साम्राज्यवाद के खिलाफ जनान्दोलन।) 1986 में मैक्सिको में आयोजित विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में इंग्लैण्ड के खिलाफ माराडोना ने अपना पहला गोल–– “हैण्ड ऑफ गॉड” (ईश्वरीय) किया। हालाँकि छल–बल से दागे गये गोल के रूप में इसकी खुलेआम निन्दा की गयी, जिसके लिए फुटबाल में कोई जगह नहीं होती। कुछ ने इसे “हैण्ड ऑफ… आगे पढ़ें

रंगमच की आखिरी रोशनी

एक बार कलकत्ता में एक नाटक देखते हुए मोहन राकेश और गिरीश कार्नाड खूब हँसते रहे। नाटक खत्म होने पर राकेश ने कार्नाड से कहा, “जानते हैं, हम क्यों इतना हंस रहे थे?  इसलिए कि हमें पता चल गया था कि भारतीय नाटक का भविष्य हम पर ही निर्भर है।” यह बात सच थी। ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘एवं इन्द्रजित’ ‘तुगलक’, और ‘शांतता, कोर्ट चालू आहे’–– पिछली सदी के सातवें दशक में इन चार नाटकों ने भारतीय रंगमच के चेहरे को बदलने का काम किया और उनके लेखक थे हिन्दी के मोहन राकेश, बांग्ला के बादल सरकार, कन्नड़ के गिरीश कार्नाड और मराठी के विजय तेंदुलकर। चारों नाटक अपने कथ्य, शिल्प और संरचना में एक दूसरे से बहुत अलग थे, लेकिन उनका मुख्य सरोकार लगभग एक समान था और वह था अपने समय की चीरफाड़ करने, उसकी व्याख्या के रूपकों की रचना। आगे चल कर चारों लेखकों के दूसरे नाटक… आगे पढ़ें

सियासी कुटिलताओं के बीच एक सदाशय ‘योद्धा सन्त’ स्वामी अग्निवेश

स्वामी अग्निवेश के निधन से देश की जनतांत्रिक शक्तियों ने एक ऐसे मित्र को खो दिया जिसने समाज में व्याप्त हर तरह की बुराइयों, धार्मिक पाखण्ड, अन्धविश्वास और वैज्ञानिक सोच और हाशिये पर पड़े लोगों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द की। वैसे तो स्वामी अग्निवेश की पहचान… आगे पढ़ें