जिगर मुरादाबादी : प्रेम के अप्रतिम कवि
जिगर मुरादाबादी कवि–कुल में जन्मे और कविता उन्हें विरासत में मिली। पिता, दादा, परदादा सभी कवि रहे। उनके पूर्वज मौलवी समीअ़ दिल्लीवासी थे और बादशाह शाहजहाँ के शिक्षक भी। किसी बात से बादशाह रूठ गये और उन्हें दिल्ली से निकाल दिया गया। वह मुरादाबाद में जा बसे और यहीं अली सिकन्दर यानी जिगर मुरादाबादी का जन्म हुआ। लम्बी अस्वस्थता के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा–दीक्षा नहीं के बराबर हुई। सहज और समवार ज़िन्दगी उन्हें नहीं मिली। जीवन–यापन के लिए बस स्टैण्ड और रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर चश्मा बेचा तो कभी कुछ और सौदा–सुलफ़ बेचना पड़ा। अंग्रेज़ी का ज्ञान कामचलाऊ था। अपने शौक़ के कारण मनोयोग से फ़ारसी सीखी। जिगर मशहूर शायर ‘दाग़’ के शिष्य रहे और बाद में उस्ताद ‘तस्लीम’ के शागिर्द रहे। ‘असगर’ साहब के संग–साथ ने उन्हें हल्की–फुल्की शायरी से बाहर निकाला और उनकी रचनाओं को गम्भीर, अर्थपूर्ण और उच्चस्तरीय बनाया। शायरी पढ़ने का उनका अन्दाज़ बहुत आकर्षक और निराला… आगे पढ़ें
भीष्म साहनी: एक जन–पक्षधर संस्कृतिकर्मी का जीवन
भीष्म साहनी का जन्म गुलाम भारत के रावलपिण्डी शहर में 8 अगस्त 1915 में हुआ था। पिता हरवंशलाल आर्य समाज के मंत्री थे। माँ का नाम लक्ष्मी था। वह बड़ी धार्मिक स्वभाव की महिला थी। भीष्म साहनी अपनी माँ से कहानियाँ और गीत सुनते हुए बड़े हुए। पिताजी का कपड़ों का व्यापार था। चार भाई बहनों में भीष्म साहनी सबसे छोटे थे। मशहूर फिल्म अभिनेता बलराज साहनी इनके बड़े भाई थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरूकुल पोठोहार में हुई, जहाँ वे बड़े भाई की जिद के कारण मंत्र और व्याकरण को रटते थे। बाद में दोनों को रावलपिण्डी के स्कूल में दाखिला दिला दिया गया। पिताजी आसानी से मान गये क्योंकि व्यापार के लिए अग्रेंजी भाषा में शिक्षित होना जरूरी था। स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद लाहौर गवर्नमेण्ट कॉलेज से एमए और पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। कॉलेज के दिनों में भीष्म साहनी नाटक करते, हॉकी खेलते,… आगे पढ़ें
रामवृक्ष बेनीपुरी का बाल साहित्य : मनुष्य की अपराजेय शक्ति में आस्था
–– सुधीर सुमन बेनीपुरी की लेखनी को जादू की छड़ी कहा जाता रहा है। अपने प्रवाहपूर्ण लालित्य से युक्त गद्यशिल्प के कारण वे हिन्दी साहित्य में बेहद चर्चित रहे। लेकिन अपने अद्भुत शिल्प के साथ ही अपने साहित्य के वैचारिक उद्देश्य के कारण भी वे उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलायी। खासतौर पर उनके यात्रा संस्मरण, वैचारिक ललित निबन्ध, रेखाचित्र और कहानियों से हिन्दी का आम पाठक परिचित है। लेकिन शायद यह कम लोगों को ही पता है कि बेनीपुरी ने अपने दौर के बच्चों के लिए अत्यन्त मूल्यवान साहित्य का सृजन किया। बेनीपुरी ग्रन्थावली के सम्पादक सुरेश शर्मा ने लिखा है कि रविन्द्रनाथ ठाकुर को छोड़कर किसी भी दूसरे भारतीय लेखक के बाल साहित्य में बेनीपुरी जितनी विविधता नहीं है। विविधता के साथ ही इन्साफ, बराबरी आजादी और मनुष्यता के लिए विकास की जो प्रतिबद्धता है वह बेनीपुरी के बाल साहित्य… आगे पढ़ें
साधारण मनुष्य की उम्मीद का कवि वीरेन डंगवाल
––मंगलेश डबराल ‘इन्हीं सड़कों से चल कर आते हैं आततायी/ इन्हीं सड़कों से चल कर आयेंगे अपने भी जन।’ वीरेन डंगवाल ‘अपने जन’ के, इस महादेश के साधारण मनुष्य के कवि हैं। वे उन दूसरे प्राणियों और जड़–जंगम वस्तुओं के कवि भी हैं जो हमें रोजमर्रा के जीवन में अक्सर दिखायी देती हैं, लेकिन हमारे दिमाग में दर्ज नहीं होतीं। कविता के ये ‘अपने जन’ सिपाही रामसिंह और इलाहाबाद के मल्लाहों, लकड़हारों, रेलवे स्टेशन के फेरीवालों, डाकियों, अपने दोस्तों की बेटियों समता और भाषा, निराला, शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन, केदार, पीटी उषा, तारंता बाबू, किन्हीं माथुर साहब और श्रोत्री जी तक फैले हुए हैं। मनुष्येतर जीवधारियों और वस्तुओं के स्तर पर यह संसार भाप के इंजन, हाथी, ऊँट, गाय, भैंस, कुत्ते, भालू, सियार, सूअर, मक्खी, मकड़ी, पपीते, इमली, समोसे, नींबू, जलेबी, पुदीने, भात और पिद्दी का शोरबा आदि तक हलचल करता है। इन जीवित–अजीवित चीजों से वीरेन का व्यवहार कितना आत्मीय… आगे पढ़ें
साहिर लुधियानवी : मेरे गीत तुम्हारे हैं
साहिर लुधियानवी का बाकमाल शेर है, खुद्दारियों के खून को अर्ज़ां1 न कर सके, हम अपने जौहरों2 को नुमाया न कर सके। (1– सस्ता 2– गुणों को) खुद्दारी हमेशा उनके लिए बेशक़ीमती रही। इसे कभी उन्होंने सस्ते में नहीं लिया और न ही ऐसा करने की ज़ुर्रत किसी को करने दी। वह कहते हैं कि अपने गुणों को पूरी तरह दुनिया के सामने नहीं ला सके। उनकी चाहत थी कि दिल की आवाज़ को वह पूरी गहराई और ऊँचाई के साथ सुना सकें। सुरों के हर घुमाव, मोड़, नक़्क़ाशी और बारीक़ कारीगरी को प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य के साथ सुनने और पढ़ने वालों की आत्मा में उतार सकें। साहिर के लिए कविता आत्मा की आवाज़ है और मोहब्बत की पवित्र पुकार है। मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत1 के नज़्ज़ारों से उल्फ़त है, मेरा दिल दुश्मने–नग़मा–सराई2 हो नहीं सकता। मुझे इनसानियत का दर्द भी बख्शा है कुदरत ने, मेरा मक़सद3 फ़क़त4… आगे पढ़ें
हिन्दू–मुस्लिम सौहार्द के विलक्षण पैरोकार काजी नजरुल इस्लाम
काजी नजरुल इस्लाम हिन्दू–मुस्लिम सौहार्द के विलक्षण पैरोकार और महत आकांक्षी बांग्ला कवि–लेखक थे। वे आधुनिक बांग्ला काव्य और संगीत के क्षेत्र में एक युग प्रवर्तक थे। प्रथम महायुद्ध के बाद आधुनिक बांग्ला काव्य में रवीन्द्रनाथ टैगोर के बाद केवल काजी नजरुल इस्लाम ही एक निर्भीक और सशक्त रचनाकार रहे हैं। रवीन्द्रनाथ के बाद काजी नजरुल साहित्य और संगीत की युगलबन्दी के प्रख्यात कवियों और साहित्यकारों में सर्वाेपरि हैं। नजरुल ने लगभग 4,000 गीतों की रचना की तथा कई गानों को आवाज दी जिन्हें ‘नजरुल गीति’ नाम से जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि काजी नजरुल इस्लाम को अंग्रेजी साहित्य का उतना प्रगाढ़ ज्ञान नहीं था, फिर भी उनकी अन्तश्चेतना इतनी विलक्षण थी कि अंग्रेजी के कई पुराने कवियों की रचनाओं के बरक्स उनकी रचनाएँ रखी जा सकती हैं। उनमें काव्य का एक नूतन सौष्ठव और स्वरूप झाँकता है। विविध भाषाओं के इन्द्रधनुषी आकाश में बांग्ला साहित्य का अवदान सम्भवत:… आगे पढ़ें