मई 2024, अंक 45 में प्रकाशित

पाकिस्तान में चुनाव और दो प्रतिक्रियावादी गिरोहों का टकराव

पाकिस्तान में 8 फरवरी 2024 को राष्ट्रीय और प्रान्तीय असेम्बली के चुनाव में फौजी अफसरों की दखलन्दाजी, नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग–एन के छल फरेब और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी की सौदेबाजी खुलकर सामने आयी। चुनाव से पहले ही इमरान खान पर बहुत से केस लगाकर जेल भेज दिया गया था जिससे वे चुनाव न लड़ सकें। उनकी पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीके इनसाफ’ (पीटीआई) को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। उनके उम्मीदवार निर्दलीय की तरह चुनाव लड़े।

जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो इमरान खान की पीटीआई के निर्दलीय उम्मीदवार जीतते नजर आये, लेकिन चुनाव आयोग में धाँधली के दौर चले और पीटीआई को हराने और नवाज शरीफ को जिताने की कोशिशें की गयीं। इसके बावजूद मुस्लिम लीग हार गयी। लेकिन नवाज शरीफ ने एक चाल चली। उन्होंने विजयी भाषण देकर सरकार बनाने का ऐलान ही कर डाला। पीपीपी के नेता बिलावल भुट्टो ने मुस्लिम लीग से घृणास्पद सौदेबाजी की। नतीजा, पीपीपी के समर्थन से नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री बन गये। इमरान खान की पीटीआई के समर्थकों ने चुनावी धाँधली के विरोध में प्रदर्शन किया और इसके खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में केस दर्ज किया। इस मामले में पीटीआई को पाकिस्तान की जनता के एक बड़े हिस्से का समर्थन भी प्राप्त हुआ क्योंकि जनता फौजी नियंत्रण से तंग आ गयी है और अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की नीतियों की खिलाफत कर रही है।

यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है। यह सब अमरीका की साम्राज्यवादी नीतियों के चलते हुआ है जिसे उसने विश्व बैंक और आईएमएफ के जरिये पाकिस्तान पर थोप रखा है। वहाँ के धनी किसानों, फौज के अफसरों, तमाम पार्टियों के नेताओं और मंत्रियों तथा पूँजीवादी घरानों ने इन नीतियों का फायदा उठाया है और वे मालामाल हो गये हैं। लेकिन मेहनतकश जनता कंगाल और तबाह हो गयी है।

पाकिस्तान की मेहनतकश जनता को मुस्लिम कट्टरपंथियों ने गुमराह कर रखा है जो चुनावी पार्टियों के इशारों पर काम करते हैं और जनता को धर्म की अफीम चटाकर मदहोश रखते हैं। पिछले साल से पाकिस्तान का आर्थिक संकट गहराता चला गया। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ गयी। महँगाई, बेरोजगारी और दवाओं के अभाव ने जनता की कमर तोड़ दी। पाकिस्तानी रुपये का भारी अवमूल्यन हो चुका है। देश पर कर्ज का पहाड़ लद चुका है। पाकिस्तान के अमीर–उमरा बारूद के ढेर पर बैठकर रंगरैलियाँ मना रहे हैं।

नवाज शरीफ और भुट्टो का गिरोह जनता की छाती पर मूँग दल रहा है। वे फौजी अफसरों, कोर्ट जजों और पूँजीपतियों के नापाक गठबन्धन के जरिये सत्ता की सवारी गाँठ रहे हैं और देश को लूटकर कंगाल बना रहे हैं। दूसरी ओर, इमरान खान का गिरोह भी कोई दूध का धुला हुआ नहीं है। वह भी पिछली बार फौज की मदद से ही सत्ता में आया था जो सिर से पाँव तक भ्रष्टाचार के कीचड़ में धँसी हुई है। फौज से जब इमरान खान के रिश्ते खराब हुए तो उनके दुर्दिन शुरू हो गये। आज वे खुद को पीड़ित के रूप में पेश करके जनता को बरगला रहे हैं और अपने पीछे उग्र भीड़ जुटा रहे हैं।

ऊपरी तौर पर दोनों गिरोह एक–दूसरे के खिलाफ नजर आते हैं लेकिन वे दोनों ही ऐसी शासन–सत्ता के पाये हैं जो जन–विरोधी है। वे अपने फायदे के लिए एक दूसरे से भूखे भेड़िये की तरह लड़ रहे हैं। क्या पाकिस्तानी शासक वर्ग में फूट पड़ गयी है? पाकिस्तान में ऐसा होता दिख रहा है जो मौजूदा आर्थिक संकट की ही देन है। मांस कम हो तो भूखे भेड़िये एक–दूसरे को फाड़ खाते ही हैं। लेकिन शासक वर्ग के इन दोनों गुटों का जनता की तकलीफों से कोई लेना–देना नहीं है। सत्ता में आने के बाद दोनों एक–दूसरे पर जुल्म ढा रहे हैं। इमरान की सरकार में नवाज शरीफ के परिवार को भी बख्शा नहीं गया था। दोनों ही पक्ष लोकतंत्र की झूठी दुहाई दे रहे हैं जबकि सरकार में रहते हुए दोनों ने ही अपने जूतों के नीचे लोकतंत्र को रौंदने में कोई कोर–कसर नहीं छोड़ी। वे फौज और सिविल अफसरशाही तथा न्यायपालिका के साथ मिलीभगत करके न केवल अपने विरोधियों का, बल्कि जनता के आन्दोलनों का भी दमन करते रहे।

घटनाओं के विस्तार में गये बिना यहाँ इस बात पर जोर देना जरूरी है कि दोनों गिरोह के नेता एक–दूसरे से अपना हिसाब–किताब चुकता करते रहेंगे। वहाँ की जनता की मुक्ति तभी होगी जब वह खुद की पहलकदमी ले, राजनीतिक रूप से जागरूक हो, अपनी स्वतंत्र पार्टी और संगठन बनाये, जन–विरोधी नीतियों के खिलाफ जुझारू आन्दोलन करे तथा इन गिरोहों के हाथों में न खेले। पाकिस्तान में देशी–विदेशी पूँजी के गठजोड़ के राज का खात्मा ही जनता की असली मुक्ति होगी।

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