सितम्बर 2024, अंक 46 में प्रकाशित

बांग्लादेश की घटना का भारत में साम्प्रदायिक इस्तेमाल

5 अगस्त को छात्र संगठनों के नेतृत्व में बांग्लादेश की जनता ने प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता उखाड़ फेंकी। जनता के उग्र आन्दोलन के आगे मजबूर होकर शेख हसीना को देश छोड़कर भारत भागना पड़ा। इस घटना ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी। हर तरफ शेख हसीना के शासन और जनता के आन्दोलन का विश्लेषण किया जाने लगा। लेकिन भारत में भाजपा सरकार और उसके चाटुकार मीडिया तंत्र ने इस घटना का इस्तेमाल अपने साम्प्रदायिक एजेण्डे को लागू करने में किया।

भारत की मुख्य धारा की मीडिया ने बांग्लादेश में हर तरफ हिन्दुओं पर हमलों की झूठी खबर चलानी शुरू कर दी। सरकार समर्थित हिन्दुत्ववादी संगठनों ने वाट्सअप, फेसबुक और ट्वीटर (एक्स) पर फर्जी वीडियो और तस्वीरें फैला दी। इनके द्वारा यह दावा किया गया कि शेख हसीना के देश से भागने के बाद हिन्दुओं पर 200 से ज्यादा हमले हुए जिसमें हिन्दुओं के घरों में तोड़फोड़, आगजनी और महिलाओं के साथ बलात्कार किये गये। जब इन दावों की पड़ताल की गयी तो अधिकतर झूठे और फर्जी पाये गये।

चाहे क्रिकेटर लिटन दास का घर जलाने की खबर हो या हिन्दू मन्दिरों के तोड़े जाने की खबर हो, सब झूठी पायी गयी। जाँच से पता चला कि जिस वीडियो में लिटन दास का घर जलता हुआ दिखाया गया था, वह घर असल में आवामी लीग के एक नेता का था। इसकी सच्चाई खुद क्रिकेटर लिटन दास ने ही सोशल मीडिया शेयर कर दी। जबकि मन्दिर के बारे में उसके अधिकारी स्वप्न दास ने बताया कि भीड़ ने मन्दिर के पीछे स्थित आवामी लीग के स्थानीय पार्टी कार्यालय में तोड़फोड़ की थी और कुर्सियों को जलाया था जिसका गलत तरीके से वीडियो लेकर दिखाया गया कि जैसे मन्दिर में ही आग लगायी गयी हो।

यूनिवर्सिटी ऑफ लिबरल आर्ट्स बांग्लादेश की संस्था फैक्टवाच के प्रमुख प्रोफेसर सुमन रहमान ने बीबीसी को बताया कि आवामी लीग से जुड़े कुछ हिन्दुओं पर उसी तरह हमले हुए जिस तरह आवामी लीग के मुस्लिम नेता जनता के गुस्से का शिकार हुए। उन्होंने आगे बताया कि “लेकिन एक ऐसी कहानी गढ़ी गयी है जिससे लगता है कि बांग्लादेश में साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हैं। यह पूरी तरह से झूठी कहानी है। यह गलत है सूचना फैलाने वाले अधिकतर अकाउण्ट भारत से हैं।”

अब यह बात खुलकर सामने आ गयी है कि भारत में सरकार और मीडिया ने बांग्लादेश के छात्र आन्दोलन का इस्तेमाल करके जनता का ध्यान अपने साम्प्रदायिक एजेण्डे की ओर लगा दिया। सरकार और मीडिया के फैलाये इस जहर का असर भारत में जगह–जगह दिखायी देने लगा। मुस्लिमों के बहिष्कार और उनके साथ मारपीट की घटनाएँ सामने आने लग गयीं। हिन्दुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने गाजियाबाद में एक झुग्गी–बस्ती को अवैध बांग्लादेशी बताकर उजाड़ दिया।   

इसके पीछे सरकार का तात्कालिक मकसद क्या है? सरकार डर रही है कि कहीं बांग्लादेश के छात्र आन्दोलन का असर भारत के बेरोजगार नौजवानों पर न हो जाये और वह उससे प्रभावित होकर सरकार का विरोध करना न शुरू कर दे क्योंकि सरकार की गलत पूँजीवादी नीतियों के चलते भारत में रोजगार का संकट पैदा हो गया है। इसके साथ ही लगातार हो रही पेपरलीक की घटनाओं और भर्तियों के रद्द होने के चलते छात्रों के अन्दर गुस्सा पल रहा है। ऐसे में सरकार की नीतियों के खिलाफ छात्रों के उठ खड़े होने का खतरा सरकार के सामने मँडरा रहा है।

शेख हसीना की आवामी लीग ने बांग्लादेश की जनता को सुनहरे दिनों के सपने दिखाये थे। सबको रोजगार देने और देश से गरीबी मिटाने के झूठे दावे किये थे। लेकिन पिछले कुछ ही सालों में बांग्लादेश के 3 करोड़ 9 लाख लोग गरीब हो गये जो कुल आबादी का 18–54 फीसदी है। विदेशी कर्ज में केवल 11 महीनों में 14 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हो गयी। एक डॉलर की कीमत 107 टका (बांग्लादेशी मुद्रा) से भी अधिक है। महँगाई बेहताशा बढ़ी लेकिन लोगों की आमदनी लगातार घटती चली गयी। सरकार ने इन समस्याओं को हल करने के बजाय सवाल करने वालों पर ही कार्रवाई करनी शुरू कर दी। विपक्ष के अधिकतर नेताओं को नजरबन्द कर दिया या जेल में डाल दिया। तमाम सार्वजानिक संस्थाओं पर अपना पूरा नियंत्रण कर लिया। प्रधानमंत्री के चुनावों में भारी गड़बड़ी की गयी। इन सब कारणों से जनता की नाराजगी बढ़ती गयी।

बांग्लादेश जैसे ही हालात भारत के भी हैं। मोदी सरकार जब सत्ता में आयी थी तो हर साल 2 करोड़ रोजगार देने, किसानों की आय दुगुनी करने, भ्रष्टाचार खत्म करने और गरीबी मिटने के बड़े–बड़े दावे किये थे। आज इन दावों की हकीकत सबके सामने हैं। जनता को गुमराह करने के लिए मोदी सरकार साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है। बांग्लादेश के आन्दोलन को बदनाम करने के पीछे उनका मकसद साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देकर छात्रों–नौजवानों के सत्ता विरोधी गुस्से पर ठण्डा पानी डालना है और उसे अपने साम्प्रदायिक मकसद के लिए इस्तेमाल करना है।

–– सतेन्द्र सिद्धार्थ

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