अगला आधार पाठ्यपुस्तक पुनर्लेखन –– जी सम्पत
(आजकल सोशल मीडिया पर और खास तौर से व्हाट्सएप पर जिस तरह की मूर्खतापूर्ण, अन्धविश्वासी और अवैज्ञानिक बातों की बाढ़ आयी हुई है, उसे देखकर किसी भी समझदार इनसान को हँसी जरूर आयेगी, लेकिन यह बात हास्यास्पद से अधिक दुखदायी है क्योंकि ऐसी बातों के प्रभाव में आकर नयी पीढ़ी गुमराह हो रही है। बात तब और भी खतरनाक स्तर तक पहुँच जाती है जब सरकारें भी इस मूर्खतापूर्ण अभियान में शामिल हो जायें। मौजूदा दौर इसकी एक मिसाल है, जब स्कूली पाठ्यक्रम में इसी तरह के बदलाव किये जा रहे हैं। उसी को अपने व्यंग्य बाण का निशाना बनाते हुए जी सम्पत की यह रचना ‘द हिन्दू’ में छपी थी, जिसका साभार अनुवाद यहाँ दिया जा रहा है। दरअसल, इसमें लेखक ने अपने सुझावों को देकर पाठ्यक्रम में मौजूदा बदलावों का मजाक ही उड़ाया है।–– सम्पादक) स्कूली पाठ्यपुस्तकों के आगामी वैज्ञानिक पुनर्गठन के लिए कुछ नये सुझाव–– क्या आपने… आगे पढ़ें
आजादी को आपने कहीं देखा है!!!
–– अनूप मणि त्रिपाठी रात को सुरक्षाकर्मी ने आकर बताया कि सर आजादी आयी हुर्इं हैं। नेता कुछ सोच में पड़ गया। पूछा, ‘आजादी!!! कौन आजादी!’ अब सुरक्षाकर्मी इसका क्या जवाब देता। वह हाथ बाँधे खड़ा रहा। नेता फिर कुछ सोचते हुए बोला, ‘अच्छा भेजो! देखते हैं!’ सुरक्षाकर्मी जब जाने लगा तो नेता बोला, ‘सुनो!अच्छे से तलाशी ले लेना!’ ‘जी सर’ कहकर वह चला गया। थोड़ी देर बाद आजादी उसके सामने थी। नेता ने उसे देखा। उसने पहचानने की कोशिश की। कई बार आँखें चकमक चकमक कीं। फिर उसे ध्यानपूर्वक देखा। ‘इत्ती रात को!’, नेता की आँखें अभी तक आजादी के ऊपर से हटी नहीं थीं। ‘हाँ, इमरजेंसी थी!’ आजादी ने आने का औचित्य बताया। ‘हूँ––’ नेता ने बस इतना ही कहा। ‘मैं कब से खड़ी थी। आपसे मिलना चाह रही थी, मगर मुझे आने ही नहीं दे रहे थे सब!’ आजादी ने एक साँस में सब बताया। ‘आते ही… आगे पढ़ें
इन दिनों कट्टर हो रहा हूँ मैं–––
–– अनूप मणि त्रिपाठी आजकल मैं बहुत हीन भावना में जी रहा हूँ। सामान्य तौर पर मैं सामान्य मनुष्य के जैसा जीवन ही जीना चाहता रहा हूँ। मगर अब देख रहा हूँ कि ऐसा सोचना भी मेरा असामान्य है। आजकल ऐसे सोचने वालों को कायर कहा जाता है। कायर ही नहीं बहुत कुछ कहा जाता है, जो यहाँ लिखा नहीं जा सकता। कट्टर शब्द को मैं नकारात्मक मानता हूँ। मुझे लगता है कोई एक बार कट्टर बन गया तो वह इनसान तो नहीं ही रहता! अब मुझे लगता है कि मुझे अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। पर मैं कट्टर जैसे भारी, महाप्रचलित और अतिआवश्यक शब्द को सिर्फ धर्म के साथ रखने का कट्टर विरोधी हूँ। कट्टर शब्द को सीमित न रखकर इसको व्यापक करने की जररूत है। जैसे कट्टर ईमानदार, कट्टर खूबसूरत, कट्टर ज्ञान, कट्टर दयालु, कट्टर भावुक, कट्टर मेहनती, कट्टर नेता, कट्टर प्रेमी वगैरह। वह कट्टर गोरे रंग पर मरता… आगे पढ़ें
चरण पखारो कुम्भ : इन ‘पानी परात को हाथ छुयो नहीं’ स्टाइल
कुम्भ मेले में सफाई कर्मियों की बस्ती के पास से गुजरते हुए आप की निगाहें फटी हुई चादरों या अखबारों पर पड़ी सूखी रोटियों या पूरियों पर चली जाती है। जी, यह सफाई कर्मियों की बस्ती का सबसे परिचित दृश्य है। वे गाँव से भूख लेकर आये हैं और यहाँ से भूख लेकर ही वापस जा रहे हैं। दिहाड़ी बढ़ी नहीं, मिले हुए पैसे से जमादार ने गुण्डा टैक्स वसूल लिया, इस बार के बकाया पैसे नहीं मिले और तो और कम से कम 10 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हंे पिछले साल के भी पैसे मिले नहीं, राशन कार्ड बने नहीं और अगर बने तो 3 किलो चावल और 2 किलो गेहूँ में पूरे परिवार का पेट भरना नामुमकिन ठहरा––– सैलानी वापस जा रहे हैं, तीर्थयात्रियों के पुण्य का बिल चुका कर। उनकी विदाई एक महान तमाशे के साथ हो रही है–– उनके राष्ट्र का मुखिया चार चुने हुए स्वच्छ… आगे पढ़ें
चरणों में कैसे आ गये ?
–– विष्णु नागर आप तो जी, ‘मास्टरस्ट्रोक पर मास्टरस्ट्रोक’ मार रहे थे न, फिर अचानक क्या हुआ गुरूपर्व के दिन सुबह–सुबह आपने तो तीनों काले कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी! अकड़े हुए थे तो ऐसे कि जैसे कभी झुकेंगे नहीं, झुकना जानते ही नहीं। शहीदाना मुद्रा ऐसी थी कि सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं। और झुके तो फिर ऐसे झुके कि सीधे साष्टांग दंडवत करने पर आ गये। बीच की सारी स्टेज एकदम गायब! एकदम सरदार पटेल से माफीवीर बन गये। मान गये जी, आप महान स्ट्रेटेजिस्ट हो। वाह–वाह! बलि–बलि जाऊँ आप पर! विश्व इतिहास में ऐसे रणनीतिकार हुए ही कितने हैं! एक वे चाणक्य थे, एक आप हैं। और चाणक्य भी क्या थे, जी। बस आप हैं और आप ही आप रहेंगे। आज सारी दुनिया मोदी की ओर देख रही है। ये तो चाणक्य का भी गुरू है। बिलकुल गुरूघण्टाल है।… आगे पढ़ें
दिखावे बहुत हो चुके! अब जरूरत है दिल, दिमाग और जवाबदेही से योजना बनाने की
भारतीय अभिजात मीडिया और सत्ता–प्रतिष्ठान की बेनाम प्रवासी मजदूरों की आकस्मिक और हृदय को छू जाने वाली त्रासदी की खोज के बारे में मैं रोज पढ़–सुन रही हूँ। ऐसा लगता हैं ये सब टीकाकार समकालीन इतिहास के साथ–साथ अनेक अर्थशास्त्रियों, बुद्धिजीवियों, मीडिया और मुख्य तौर पर कांग्रेस (पुरानी कांग्रेस) और भारतीय जनता पार्टी सहित तमाम राजनीतिक दलों की करतूतों से बिलकुल ही नावाकिफ हैं जिनकी वजह से हालात यहाँ तक पहुँच गये हैं।” “इन्हीं में से कुछ लोग जो आज सदमे की सी हालत में नजर आ रहे हैं वही लोग तब बेहद खुश नजर आ रहे थे जब श्रम सुरक्षा कानूनों के बखिये उधेड़कर गरीब ग्रामीणों की जमीनें और संसाधन छीनने का हिंसक अभियान चलाकर उन्हें अपने गाँवों से बाहर खदेड़ा जा रहा था।” यह सब एकाएक घटित नहीं हुआ। दशकों से योजनाबद्ध नीति के साथ गरीब लोगों को हाशिये पर धकेला जाता रहा है। इस तबाही की भरपाई… आगे पढ़ें
नुसरत जहाँ : फिर तेरी कहानी याद आयी
नुसरत जहाँ आजकल खबरों में हैं। कभी माँग में सिंदूर सिर पर पल्लू के साथ खींचा भगवान जगन्नाथ का रथ तो कभी शपथ की शुरुआत ईश्वर के नाम पर और अन्त वंदेमातरम के साथ। नुसरत जहाँ बंगाली अभिनेत्री रही हैं और फिलहाल तृणमूल कांग्रेस की सांसद हैं। उन्होंने हाल ही में निखिल जैन से अन्तरधार्मिक विवाह किया। संसद में अपने पहले दिन ही नुसरत अपनी मित्र और तृणमूल कांग्रेस की ही एक अन्य सांसद मिमि के साथ पाश्चात्य कपड़ों में खींची तश्वीर को लेकर चर्चा में थीं। इन सारी चर्चाओं के शोर और चमक में धर्म, राष्ट्रवाद और संस्कृति की अजब सी चाशनी लिपटी हुई है और एक बड़ा वर्ग नुसरत से सम्मोहित है। यह सम्मोहन इतना गहरा है कि तृणमूल के विकट विरोधी संघी भी नुसरत के जयकारे में शामिल नजर आते हैं। सहसा ही नुसरत ‘एक भारत–नेक भारत’ की ब्रांड एंबेस्डर बनी ठनी लगती हैं। पर इन सबके… आगे पढ़ें
प्रधानमंत्री की छवि बनाना भी हमारा राष्ट्रीय और नागरिक कर्तव्य
आपको सरकार के नये आदेशों–अनुदेशों की जानकारी है या नहीं? नहीं है तो जान लीजिए क्योंकि यह आदेश कर्नाटक में लागू भी हो चुका है! आदेश यह है कि हमने–– आपने अब से प्रधानमंत्री की छवि बिगाड़ने की कोई भी कोशिश की तो बच्चा हो या बड़ा, उस पर देशद्रोह–राजद्रोह का केस चल जाएगा, जेल हो सकती है। यानी अब प्रधानमंत्री की छवि न बिगाड़ना भी–– मतलब उनके काम की, भाषण की आलोचना न करना भी–– हमारे नागरिक कर्तव्यों में शामिल हो चुका है। जल्दी ही यह आदेश जारी हो सकता है कि प्रधानमंत्री की छवि बनाना भी हमारा राष्ट्रीय और नागरिक कर्तव्य है। हम जो आज तक अपनी छवि ही नहीं बना पाये, प्रधानमंत्री की छवि क्या बनाएँगे? मतलब हम अपनी नागरिकता से जाएँगे। वैसे छवि बनाने के काम में मोदी जी स्वयं बहुत कुशल हैं। इस एकमात्र मोर्चे पर उनकी सफलता असंदिग्ध और अविवादित है। आजकल इस काम… आगे पढ़ें
प्रेमचन्द के फटे जूते
प्रेमचन्द का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सर पर किसी मोटे कपडे़ की टोपी, कुर्ता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आयी हैं, पर घनी मूँछे चेहरे को भरा–भरा बतलाती हैं। पाँवों में कैनवस के जूते हैं, जिनके बन्द बेतरतीब बन्धे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बन्द के सिरों पर लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बन्द डालने में परेशानी होती है। तब बन्द कैसे भी कस लिये जाते हैं। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है, जिसमें से अँगुली बाहर निकल आयी है। मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गयी है। सोचता हूँ– फोटो खिंचाने की अगर ये पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग–अलग पोशाकें नहीं होंगी।–इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो… आगे पढ़ें
बडे़ कारनामे हैं बाबाओं के
–– प्रमोद झा बाबाई अपकर्म बल्कि यह कहिये कि बाबाओं की वास्निक कारगुजारियाँ समाज और देश में बाबा अपसंस्कृति भी उस कुत्सित राजनीति की मानिन्द है जिसके लपेटे में अब तक अनेकानेक स्त्रियाँ आ चुकी हैं। पहले के दौर में भी जो नामचीन बाबा और तथाकथित प्रवचनकार थे उनके चंगुल में भोले–भाले व्यक्ति फँसते थे और आज भी बडे़ पांखडी, लम्पट और ढपोरशंखी बाबाओं के चालाक जाल में लोग फँस रहे हैं। ताजा वारदात मध्यप्रदेश के रायसेन जनपद में मिरची बाबा की दरिन्दगी का है। सन्तान सुख देने के नाम पर इस नराधम ने जबरन नशा देकर एक औरत के साथ बलात्कार किया। पुलिस ने इस बाबा को अपनी गिरफ्त में ले लिया। ध्यातव्य है कि आठवें दशक में भी बाल्टी बाबा बहुत बदनाम हुए थे जो सीधी औरतों को कथित अभिमन्त्रित जल बाल्टी में डाल देता था और स्नान के समय बाबा यौन शोषण करता था। 1988 में एक… आगे पढ़ें
राजा और नट
‘प्रारब्ध को मानते हो!’ ‘मैं कर्मयोगी हूँ, मैं नहीं मानता!’ राजा ने बहुत आत्मविश्वास से उत्तर दिया। तब ऋषि ने राजन को एक कथा सुनायी। एक राजा भेस बदल कर मंत्री संग अपने राज्य के दौरे पर निकला। बाजार में उसने देखा कि एक जगह खूब भीड़ लगी हुई है। कारण जानने के लिए दोनों वहाँ जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि एक नट खेल दिखा रहा है। लोग अपने सारे काम–धाम छोड़ कर मंत्रमुग्ध उसे देख रहे थे। राजा और मंत्री भी उसे देखने के लिए खड़े हो गये थोड़ी ही देर में राजा भी नट की भाषा कौशल पर मोहित हो गया। ‘बोलने की क्या कला है!’ राजा मंत्रमुग्ध हो कर बोला। ‘नि:सन्देह! महाराज!’ ‘यह तो मुझसे भी अच्छा बोलता है!’ राजा नट की कला पर अब पूरी तरह से सम्मोहित हो गया था। मंत्री को अब समझ न आये कि वह इसका उत्तर क्या दे!… आगे पढ़ें
विष्णु नागर के दो व्यंग्य
(1) देशद्रोही हम यह सार्वजनिक घोषणा करते हैं कि हम भी बहुतों की तरह आजकल ‘देशद्रोही’ हैं। हमारे वश में श्मोदीछाप देशभक्त’ होना नहीं है, इसलिए ‘देशभक्ति’ इनके और ‘देशद्रोह’ हमारे हवाले है। ‘देशभक्त’ ही ऐसे मोदी जी की जयजयकार कर सकते हैं,जो पुलवामा के आतंकवादी हमले की खबर सुनकर भी कोरबेट पार्क में फिल्म की शूटिंग जारी रखते हैं। ये ही ऐसे राज्यपाल जी के श्राष्ट्रवाद’ के भार को चुपचाप वहन कर सकते हैं,जो पूरे देश में कश्मीरियों के बहिष्कार का आह्वान करते हैं। 40 से अधिक जवानों की शहादत को भुनाना इन ‘देशप्रेमियों’ को ही आता है। मारे जाएँ जवान, ‘देशभक्ति’ की दुकान चलाना इन्हें ही शोभा देता है! उनके परिवारजन रोएँ और ये देशभक्ति का भांगड़ा नाचें कि वाह मोदी वीर,तूने फिर बढ़िया कमाल किया कि देशभक्ति का मैदान मारकर,विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया!ऐसे देशभगतो को हम जैसे समस्त लोगों की ओर से दूर से… आगे पढ़ें
वे ईमान और न्याय क्या धर्म तक बेच देते हैं!
जिनके पास बेचने का अधिकार होता है, वे सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ बेच देते हैं। हवा बेच देते हैं, पानी बेच देते हैं, धरती बेच देते हैं, जंगल बेच देते हैं, नमी बेच देते हैं, धूप–छाँव बेच देते हैं, हड्डियाँ और राख तक बेच देते हैं। ईमान–धर्म और न्याय की तो बात ही क्या, शान्ति और युद्ध ही नहीं, युद्धविराम तक बेच देते हैं। वे चाहे, जो, जिसका भी हो, अपना समझकर बेच देते हैं। वे खुद बिके हुए होते हैं और उन्हें खरीदने वाले भी कई होते हैं। एकमुश्त बिकने के बजाय वे किस्तों में बिकना पसन्द करते हैं। प्रॉफिट उनका मोटिव होता है, बेचना उनके खून में होता है तो किसी को वे अपना दिमाग, किसी को अपने कान, किसी को अपनी आँख, किसी को अपनी नाक, किसी को अपने हाथ, किसी को अपने पैर, किसी को अपना अमाशय तक बेच देते हैं। किसी को कुछ नहीं बेचते, उसका… आगे पढ़ें
साँपों की सभा
‘तुम में जहर नहीं है, इसलिए तुम कमजोर हो!’ साँप ने चूहे से कहा। ‘जिसके अन्दर जहर होता है, दुनिया उसकी इज्जत करती है–––उनका सिक्का चलता है।’ चूहा ध्यान से सब सुनता रहा। ‘जब तुम्हारे पास जहर होगा, तभी लोग तुमसे डरेंगे!’ साँप शान्त स्वर में बोला। चूहे को बात समझ में आयी। ‘फिर मुझे क्या करना चाहिए!’ चूहे ने पूछा। ‘सीधी–सी बात है–––तुम्हें अपने अन्दर जहर पैदा करना चाहिए!’ ‘वह सब तो ठीक है, मगर अपने अन्दर जहर कैसे पैदा करूँ!’ स्पष्ट था कि चूहा हर हाल में समाधान चाहता था। ‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ!’ साँप ने मदद की पेशकश की। ‘कैसे!’ ‘चाहो तो मुझसे जहर ले लो!’ ताकत की चाह में चूहे ने फौरन हामी भर दी। साँप मुस्कुराया। फिर क्या था, मौका मिलते ही साँप ने अपना जहर चूहे में उतार दिया। रगों में लहू के साथ जहर मिलते ही चूहे का… आगे पढ़ें
हिन्दू–हृदय सम्राट राज कर रहे हैं कृपया बाधा उत्पन्न न करें
दिवाली का त्यौहार आने वाला है। लेकिन देशवासियों को इस दुख भरे साल में दो बार दिवाली मनाने का मौका मिला। घरों की साफ–सफाई और कार्तिक माह की फसल आने की खुशी में मनाया जाने वाला यह त्यौहार अब महज त्योहार नहीं रहा, बल्कि धर्म विशेष की पहचान से जोड़ा जाता है। इसकी टेस्टिंग लॉकडाउन में दो बार हुई। एक बार जब देश के सर्वाेच्च पद पर आसीन व्यक्ति के मन की जिज्ञासा का ख्याल रखते हुए दीया जलाकर करोड़ों देशवासियों ने प्रकाश तरंग उत्पन्न की। खैर, यह अथाह ऊर्जा कोरोना का बाल भी बाँका न कर सकी, पर इसने हर मोहल्ले में ऐसे कुछ लोगों को चिन्हित करने में आसानी कर दी जिन्होंने हिन्दू–हृदय सम्राट के मन की बात की अवहेलना की। दिवाली मनाने का दूसरा सुनहरा मौका पाँच अगस्त की शाम राम मंदिर का भूमिपूजन करके दिया गया। इस बार असर उतना व्यापक नहीं रहा जितना इसका प्रचार–प्रसार… आगे पढ़ें