जनवरी 2021, अंक 37 में प्रकाशित

उत्तर प्रदेश : लव जेहाद की आड़ में धर्मान्तरण के खिलाफ अध्यादेश

25 नवम्बर को टाइम्स ऑफ इण्डिया के पहले पन्ने पर ‘जबरदस्ती धर्मान्तरण’ और ‘लव जेहाद’ से सम्बन्धित तीन खबरें हैं। पहली खबर विधायिका, दूसरी कार्यपालिका और तीसरी न्यायपालिका की कार्यवाही से सम्बन्धित है। जो हमारे देश में लोकतन्त्र को संचालित करने वाली शासन प्रणाली के तीन अंग हैं। देखें कि इन तीनों की गतिविधियों में कितना तालमेल है और व्यवस्था के तीनों अंग एक ही मुद्दे को किस तरह देखते हैं।

पहली खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की कैबिनेट ने 24 नवम्बर को एक मसविदा अध्यादेश स्वीकृत किया, जिसका उद्देश्य शादी लिए धर्मान्तरण से निपटना है। पिछले कुछ हफ्तों के भीतर भाजपा शासित राज्यों–– उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश में कथित रूप से शादी की आड़ में हिन्दू महिलाओं को इस्लाम में धर्मान्तरण करने की कार्रवाई को, जिसे हिन्दूवादी संगठन ‘लव जेहाद’ कहते है उसे रोकने के लिए कानून बनाने की चर्चा चल रही थी, सरकार के मुताबिक धोखाधड़ी, झूठ और जोरजबरदस्ती हिन्दू औरतों का धर्मान्तरण किया जा रहा है। इसके लिए इस नये कानून में एक से पाँच साल तक की सजा और 15,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है। अगर लड़की नाबालिग या अनुसूचित जाति–जनजाति की हो तो तीन साल से दस साल तक की सजा और 25,000 रुपये जुर्माना का प्रावधान है। शादी के बाद धर्म परिवर्तन करने वालों के लिए भी इस कानून के तहत जिला मजिस्ट्रेट से दो महीने पहले अनुमति लेना जरूरी होगा।

दूसरी खबर विशेष जाँच दल (एसआईटी) की है जिसे कानपुर में ‘लव जेहाद’ के 14 मामलों के तहकीकात की जिम्मेदारी दी गयी थी जिन मामलों में पुलिस ने अभियुक्तों पर मामले दायर किये थे। रिपोर्ट में उनमें से किसी भी मामले में विदेशी फण्डिंग या किसी गैंग के द्वारा संगठित षडयन्त्र का सबूत नहीं पाया गया।

अन्तर्धार्मिक विवाह के इन 14 मामलों में लड़कियों के माँ–बाप ने आरोप लगाया था कि उनकी लड़कियों के साथ मुस्लिम लड़कों ले धोखा किया। इनमें से 11 मामलो में आरोपियों को जेल भेजा गया था, जबकि तीन मामलों में लड़कियों ने अपने प्रेमियों के बचाव में बयान दिया था। इन तीनों मामलों में आगे जाँच नहीं की गयी। एसआइटी की रिपोर्ट के मुताबिक इन मामलों में चार आदमी एक दूसरे को जानते थे और तीन ने कथित रूप से अपना नाम दूसरे धर्म वाला बताया था। लेकिन इन मामलों की जाँच में किसी गिरोह की सक्रियता या सामुहिक षड़यंत्र का कोई प्रमाण नहीं मिला। जाहिर है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित विशेष जाँच दल ने इन मामलों में कथित ‘लव जेहाद’ या ‘संगठित धर्मान्तरण’ के आरोपों को खारिज कर दिया।

तीसरी खबर इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले से सम्बन्धित है। कुशीनगर के सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार उर्फ आलिया के खिलाफ 25 अगस्त 2019 को प्राथमिकी दर्ज की गयी थी, जिसे खारिज कराने के लिए उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की थी। उनका कहना था कि विवाहित जोड़ी बालिग है और उन्हें अपनी पसन्द से शादी करने का अधिकार है। लड़की के पिता के वकील ने इस अपील के विरोध में तर्क दिया कि शादी के लिए धर्मान्तरण वर्जित है और ऐसी शादी को वैधानिक स्वीकृति नहीं है।

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायाधीश पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल ने इस अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए कहा “किसी ऐसे व्यक्ति की पसन्द का अपमान करना न केवल एक वयस्क व्यक्ति के पसन्द की आजादी के खिलाफ है, बल्कि यह अनेकता में एकता की अवधारणा के लिए भी एक खतरा है। किसी व्यक्ति के बालिग होने पर उसे अपना जीवन साथी चुनने का संवैधानिक अधिकार हासिल है, जिससे इनकार करना न केवल उसके मानवाधिकार को प्रभावित करता है, बल्कि उसके जीने और व्यक्तिगत आजादी को भी प्रभावित करता है जिसकी संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारण्टी की गयी है।”

पीठ ने आगे कहा–– “हम प्रियंका खरवार और सलामत को हिन्दू और मुसलमान के रूप में नहीं, बल्कि प्रौढ़ व्यक्ति के रूप में देखते हैं जो लगभग एक साल से अपनी मुक्त इच्छा और पसन्द से शान्तिपूर्वक और खुशी–खुशी जीवन गुजार रहे हैं।”

“अपने पसन्द के किसी व्यक्ति के साथ जीवन बिताने का अधिकार, चाहे उनका धर्म कोई भी हो, उनके जीवन और व्यक्तिगत आजादी में अन्तर्निहित है। निजी सम्बन्धों में दखलअन्दाजी दो व्यक्तियों की आजादी के अधिकार में घुसपैठ करना है–––। यह संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गये पसन्द की आजादी का अधिकार और सम्मानजनक जीवन जीने का आधिकार जैसे मौलिक अधिकारों और व्यक्तिगत आजादी को रोकना है।”

“हम यह नहीं समझ पाये कि जब कानून दो समान लिंग वाले व्यक्तियों को भी एक साथ शान्तिपूर्वक रहने की इजाजत देता है तब किसी व्यक्ति या किसी परिवार को ही नहीं, बल्कि राज्य को भी दो बालिग लोगों के सम्बन्ध को लेकर एतराज क्यों होना चाहिए जो अपनी स्वतन्त्र इच्छा से एक साथ रह रहे हों।”

ऊपर की तीनों खबरों को एक साथ जोड़कर देखें तो यह स्पष्ट है कि ‘लव जेहाद’ के नाम पर धर्मान्तरण के खिलाफ कानून बनाने की कार्रवाई न सिर्फ संविधान के विरुद्ध है जैसा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में साफ–साफ बताया गया है, बल्कि जमीनी हकीकत से भी इसका कोई लेना–देना नहीं है, जैसा कि एसआईटी की जाँच रिपोर्ट में सामने आया है। सरकार जिनको ‘लव जेहाद’ और संगठित गिरोह द्वारा धर्मान्तरण के मामले मान रही थी, उसका जाँच दल को कोई सबूत नहीं मिला। दरअसल सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए हिन्दू साम्प्रदायिक संगठनों ने मुस्लिम समुदाय के प्रति नफरत फैलाने, हिन्दुओं का वोट हथियाने और समाज में कलह पैदा करने के लिए जितने हथकण्डे अपनाये हैं, उन्हीं में से एक है ‘लव जेहाद’। अन्तरधार्मिक और अन्तर्जातीय विवाह के विरूद्ध लोगों को भड़काने और साम्प्रदायिक, जातीय विद्वेश पैदा करने का जो काम अब तक भीड़ के जरिये किया जाता रहा है, उसे ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कानूनी जामा पहनाने जा रही है। सरकार का यह कदम पूरी तरह संविधान विरोधी, सामाजिक विघटनकारी और सत्ता–स्वार्थ से प्रेरित है।

 
 

 

 

Leave a Comment

लेखक के अन्य लेख

राजनीति
सामाजिक-सांस्कृतिक
व्यंग्य
साहित्य
समाचार-विचार
कहानी
विचार-विमर्श
श्रद्धांजलि
कविता
अन्तरराष्ट्रीय
राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
अवर्गीकृत
जीवन और कर्म
मीडिया
फिल्म समीक्षा