जून 2020, अंक 35 में प्रकाशित

मजदूरों–कर्मचारियों के हितों पर हमले के खिलाफ नये संघर्षों के लिए कमर कस लें!

आप बिलकुल चिन्ता न करें। आपकी यह नौकरी गयी है, तो इससे बेहतर नौकरी आपका इन्तजार कर रही होगी। बस आउटर पर खड़ी ट्रेन की तरह उसे भी सिग्नल मिलने की देरी है। फिर तो आपकी पौ बारह हो जाएगी। पाँचों उंगलियाँ घी में और सिर कड़ाही में होगा। ऐसे ही मैसेज आपको मिल रहे होंगे, जो आपके दिल की धड़कन कभी बढ़ाते हैं तो कभी सुकून पहुँचाते हैं। कुछ दिन पहले जब सेलरी आधी मिली थी, तब भी आप सोच रहे थे कि चलो कोई बात नहीं, जल्दी ही अच्छे दिन आएँगे।

कोरोना संकट को सरकार अवसर के रूप में देख रही है, जबकि कुछ साथी इसे “कॉन्सिपिरासी थिअरी” के रूप में समझ रहे हैं। उनका मानना है कि पहले से संकटग्रस्त बुर्जुआ अर्थव्यवस्था के पास आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं था। जनविरोधी सरकारों ने दुनिया भर में एक हौवा खड़ा किया। इससे उन्हें लॉकडाउन करने और मजदूरों पर हमला करने का वैध बहाना मिल गया। उनकी इस थिअरी को इस बात से बल मिलता है कि सरकारों ने बड़े पैमाने पर मजदूरों और कर्मचारियों के अधिकारों में इतिहास की सबसे बड़ी कटौती करनी शुरू कर दी है। सभी श्रम कानूनों को खत्म करके, 12 घण्टे का कार्य दिवस बनाकर (जिसे अपनी चालबाजी के तहत केवल स्थगित किया गया है और आने वाले समय में फिर से लागू कर दिया जाएगा।) आज हमें पूँजी के हमले के सामने खुला छोड़ दिया गया है।

इस “कॉन्सिपिरासी थिअरी” का बाकी हिस्सा बिलकुल सही लग सकता है, लेकिन यह कहना कि मजदूर वर्ग के अधिकारों में कटौती करने के लिए वायरस को बनाया गया और सरकारों ने अपने–अपने देश में इसे फैल जाने दिया, थिअरी की यह बात यथार्थ की अतिरंजना है और सच से परे है। अभी इस बात के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस को लैब में बनाया गया है।

इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मजदूर वर्ग और नौकरी पेशा वर्ग के बहुसंख्यक लोगांे के सामने जीवन–मरण का सवाल खड़ा हो गया है। निजी कम्पनी, स्कूल, कॉलेज और अन्य संस्थानों ने लोगों की छँटनी शुरू कर दी है। वे अपने यहाँ वर्क फोर्स को आधा या तिहाई करने पर आमादा हैं। इसके साथ ही ‘ऑनलाइन वर्क प्रोग्राम’ बनाये जा रहे हैं, जिसमें पहले से भी कम कर्मचारियों की जरूरत रह जायेगी। इन सबसे मालिकों की बल्ले–बल्ले हो रही है।

भारत की केन्द्र और राज्य सरकारों ने मालिकों और पूँजीपतियों के फायदे के लिए बड़े पैमाने पर मजदूर–कर्मचारियों के हितों पर हमला शुरू कर दिया है। उसकी एक बानगी देखिए––

यूपी–– श्रम कानूनों को स्थगित कर दिया गया है। न तो यूनियन बनाने, न हड़ताल करने और न ही मजदूरी, बोनस या इंसेंटिव बढ़ाने की मजदूर माँग कर सकते हैं।

राजस्थान–– अब 8 घंटे  के बजाय 12 घंटे काम यानी हर दिन 4 घंटे अधिक काम कराया जाएगा और इसके खिलाफ कोई अपील नहीं कर सकते।

मध्य प्रदेश–– 40 मजदूरों तक वाली फैक्ट्रियों में मजदूरों की हालत गुलामों से भी बदतर हो जाएगी।

मध्य प्रदेश, गुजरात, यूपी, राजस्थान और अन्य प्रदेशों में उद्योगपतियों को खुली छूट देनेवाले इसी तरह के काले कानून लागू हो गये हैं। सरकार द्वारा लगाये गये लॉकडाउन का असली मकसद अब खुलकर सामने आ गया है। राज्य सरकारों ने अपने यहाँ मजदूरों के खिलाफ अंग्रेजी राज से भी अधिक काले कानून लागू कर दिये हंै। इन सबसे से मजदूर और कर्मचारी गुलामी, बेरोजगारी और भुखमरी की चक्की में पिस जायेंगे और बेमौत मारे जायेंगे। आप अपने इर्द–गिर्द उन चेहरों को पहचान सकते हैं, मौत जिनकी तरफ धीमे कदमों से पहुँच रही है। इनमें खुद आप और हम भी हो सकते हैं।

यह हम पर है कि हम धीमी मौत को गले लगा लें तथा मीठे व धीमे जहर को खुद पर हावी हो जाने दें या संघर्षों का दामन थामकर एक नया इतिहास रच दें। आप भाइयों से अपील है––—

न हताश हांे, न निराश हों!

नये संघर्षाे के लिए कमर कस लें!

आगामी संघर्षों के तूफान में खुद को झोंक दें!

मजबूरी, गुलामी और अन्याय के काले धब्बों को मिटा दें!

 
 

 

 

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