अप्रैल 2022, अंक 40 में प्रकाशित

भारत में अमीरी–गरीबी की बढ़ती खाई

पिछले दिनों विश्व असमानता रिपोर्ट जारी हुई थी। इस रिपोर्ट को ‘वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब’ के सह निदेशक लुकस चोसेल ने फ्रांस के अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के सहयोग से तैयार किया है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य दुनिया भर में असमानता को उजागर करना है। इसके अनुसार भारत दुनिया के सबसे ज्यादा असमानता वाले देशों में से एक है। इस रिपोर्ट के आने के बाद भारत सरकार के होश उड़ गये हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस रिपोर्ट को सही मानने से इनकार किया है। मौजूदा सरकार और कर भी क्या सकती है ?

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में भारत में एक फीसदी अमीरों की आमदनी देश की कुल आमदनी का एक चैथाई है। यही एक फीसदी लोग देश की 33 फीसदी सम्पत्ति के मालिक भी हैं। इसके साथ ही रिपोर्ट में सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों की आमदनी और सम्पत्ति का भी जिक्र किया गया है। इनकी आमदनी देश के सभी लोगों की कुल आमदनी के आधे से भी ज्यादा है। ये 10 फीसदी लोग देश की 65 फीसदी सम्पत्ति के भी मालिक हैं।

रिपोर्ट में देश की गरीब बहुसंख्यक आबादी की आय और सम्पत्ति के बारे में भी बताया गया है। देश के सबसे गरीब 50 फीसदी लोगों की आमदनी देश की कुल आमदनी का महज 13–1 फीसदी है। साथ ही देश की इस आधी आबादी के पास सम्पत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं है। ये तथ्य विकास के तमाम खोखले दावों की हकीकत बयान करने के साथ भारत की जनता की भयावह स्थिति को दर्शा रहे हैं।

रिपोर्ट में भारत की दशा का जिक्र करते हुए कहा गया है कि “भारत में काफी गरीबी और असमानता है, जबकि यहाँ एक वर्ग अकूत सम्पत्ति का मालिक है” जिसके कारण आज भारत की हालत अंग्रेजी दौर से भी बदतर हो गयी है। रिपोर्ट के अनुसार इसकी वजह भारत में किये गये आर्थिक सुधार और उदारीकरण तथा निजीकरण की नीतियाँ हैं।

1980 के दशक में शुरू हुए इन आर्थिक सुधारों ने दुनियाभर में आर्थिक असमानता को बढ़ावा दिया। आज भारत में इन आर्थिक सुधारों का परिणाम यह है कि एक तरफ देश की आधी आबादी के पास न तो आय है और न ही सम्पत्ति। वहीं दूसरी तरफ चन्द मुट्ठीभर करोड़पति–अरबपतियों का देश के तमाम संसाधनों पर कब्जा हो गया है और वे अकूत दौलत कमा रहे हैं।

सम्पत्तिविहीन आधी आबादी यानी लगभग 70 करोड़ लोग कौन है ? देश के कुल मजदूरों का 93 फीसदी मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हंै। इसमें तमाम तरह के उपभोक्ता सामान बनाने वाले और सड़कों से लेकर इमारतों तक हर तरह का निर्माण करने वाले मजदूर शामिल हंै। इनमें मोची, धोबी, नाई, सिक्योरिटी गार्ड, बिजलीवाले, हॉकर्स, रेहड़ी–खोमचेवाले, सफाई कर्मचारी आदि जैसे बुनियादी काम करनेवाले लोग हैं। गाँव के खेत मजदूरों समेत तमाम तरह के मजदूर हैं। इन 70 करोड़ लोगों में सबसे कठोर श्रम करके भी निम्न स्तर की जिन्दगी जीने वाले लोग शामिल हैं।

इसके अलावा एक दूसरा आँकड़ा भी गौर करने लायक है। देश के कुल किसानों का 84 फीसदी छोटे किसान हैं। इनकी कुल आबादी लगभग 50 करोड़ है। इनके पास सम्पत्ति के नाम पर छोटे–छोटे खेत तो जरूर हंै लेकिन इनकी दशा भी बेहद दयनीय है। अधिकांश कर्ज के बोझ तले दबे हैं। इनके श्रम के बिना जीवन सम्भव नहीं है।

देश में नाममात्र की सम्पत्ति वालों की कुल आबादी 100 करोड़ से भी अधिक है। सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकतर सर्वेक्षण भी भारत में 25 से 30 करोड़ की आबादी को ही उपभोक्ता वर्ग में शामिल करते हैं। इनमें पूँजीपति, नेता, फिल्मी कलाकार, क्रिकेट खिलाड़ी, उच्च प्रशासनिक अधिकारी, कम्पनियों के उच्च अधिकारी आदि करोड़ों–अरबों की सम्पत्तिवाले लोग हैं।

निजीकरण की नीतियों को इन्हीं धन्नासेठों के आर्थिक लाभ के लिए लागू किया गया था। इन नीतियों के बिलकुल वही नतीजे सामने आये हैं जैसा सरकार चाहती थी। आज इन सुधारों से बहुसंख्यक आबादी के मुँह से निवाला छीनकर मुट्ठीभर धन्नासेठों को मालामाल किया जा रहा है। सरकार ने बहुसंख्यक अवाम की रियायतों को बन्द कर दिया और जनता को बुनियादी जरूरतें–– शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, बिजली–पानी जैसी सेवाएँ चन्द पूँजीपतियों के मुनाफा कमाने की चीजें बना दी। अब इन्हें हासिल करना जनता के लिए जिन्दगी–मौत का सवाल बन गया है।

सरकार पूँजीपतियों की सेवा में कितनी मुस्तैद है इस बात का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब पूरा देश कोरोना में त्राहिमाम कर रहा था। उसी समय सरकार ने पूँजीपतियों की लूट को बढ़वा देने वाले कानूनों को जनता पर थोप दिया। इन कानूनों की वजह से किसान और मजदूर के सामने अपना अस्तित्व बचाने का संकट आन पड़ा।

एक तरफ देश में आलीशान घरों में रहने वाले लोग हैं। जिनके लिए दुनिया की तमाम एशो–आराम इसी देश में मौजूद है। दुनियाभर के ज्ञान से लबरेज स्कूल, अत्याधुनिक अस्पताल, हाइवे–एक्सप्रेसवे, हवाई अड्डे, पाँच सितारा होटल आदि। दूसरी तरफ बहुसंख्यक अवाम है जो दो जून की रोटी के लिए अपने शरीर का एक–एक हिस्सा बेचने को मजबूर है। उसकी जिन्दगी में भरपेट खाना एक सपना हो गया है।

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