अप्रैल 2022, अंक 40 में प्रकाशित

हुकुम, बताओ क्या कहूँ जो आपको चोट न लगे।

हम एक बेहद नाजुक सरकार की गुलामी में जी रहे हैं। कुछ दिन पहले कॉमेडियन “मुन्नवर फारूकी” के मजाक से सरकार को चोट लग गयी। देश की संस्कृति पर खतरा मँडराने लगा, गली–मोहल्ले के संस्कृतिरक्षक आग बबूला हो गये। लिहाजा मुन्नवर फारूकी को जेल की हवा खिलायी गयी। जेल से तो किसी तरह छूट–छाट के आ गये, लेकिन अब उनके कार्यक्रमों पर ही पाबन्दी लगा दी गयी है।

एक जनवरी को मध्य प्रदेश के इंदौर में कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी और उनके साथी एडविन एन्थनी, प्रखर व्यास, प्रियम व्यास और नलिन यादव को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी इस गुनाह पर की गयी थी कि मुन्नवर फारूकी ने कथित तौर पर हिन्दू धर्म के देवी–देवताओं और अमित शाह का मजाक उड़ाया था। शिकायत दर्ज कराने वाले भारतीय जनता पार्टी की सांसद मालिनी गौर के बेटे और हिन्दू रक्षक संगठन के संयोजक एकलव्य गौर थे। सोशल मीडिया पर मुनव्वर फारूकी को एक खलनायक बना दिया गया। खैर एक महीने बाद मुन्नवर फारूकी को कोर्ट ने यह कहकर जमानत दे दी कि अगली बार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना। यानी अदालत ने इसे हिन्दू देवी–देवताओं का मजाक उड़ाने का मामला ही नहीं माना। इस घटना के बाद से मुन्नवर फारूकी के कॉमेडी प्रस्तुतियों पर अघोषित पाबन्दियाँ लग गयीं और उन पर लगातार पहरा रहने लगा और जहाँ भी उनकी प्रस्तुति होती वहाँ प्रशासन किसी ने किसी बहाने से उसे रद्द करवा देता। आखिर में मुन्नवर ने यह कहकर कॉमेडी करना ही छोड़ दिया कि “एक कलाकार के आगे नफरत जीत गयी”। उनका साथी नलिन यादव आजकल मजदूरी करके पेट पाल रहा है। और बाकी दोस्तों की हालत भी कुछ ऐसी ही है। धर्मान्ध मूर्ख लोग अपने ही देश के नौजवान कलाकारों को बरबाद करने में कामयाब रहे।

कॉमेडियन वीर दास के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। वीर दास भी एक जाने–माने कॉमेडियन हैं जिन्होंने अमरीका के कैनेडी सेंटर में अपने एक शो में बस यह सच कह दिया कि हमारे भारत में दो भारत बसते हैं, एक ऐसा भारत जहाँ दिन में औरतों की पूजा होती है और रात में रेप किया जाता है, एक ऐसा भारत जहाँ हमें अपने शाकाहारी होने पर गर्व है लेकिन हमारे लिए सब्जियाँ उगाने वाले किसानों को कुचल कर मार देने पे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी बात पर उनको सोशल मीडिया में फर्जी संस्कृतिरक्षकों और देशरक्षकों द्वारा ट्रोल किया गया और उन पर देश का अपमान करने के आरोप लगे। सोचने वाली बात है कि मजाक पर भी पाबंदी और संजीदगी पर भी पाबंदी।

इसी फेहरिश्त में कुणाल कमरा, वरुण ग्रोवर, नीति पाल्टा जैसे कलाकारों के नाम भी शामिल हैं।

एक बार महात्मा गाँधी ने कहा था कि “अगर मेरी जिन्दगी में हँसी–मजाक न होता तो मैं कब का आत्महत्या कर चुका होता”। दुनिया में महानतम कलाकारों में से एक चार्ली चैपलिन ने भी एक बार कहा था “बिना हँसी–मजाक के गुजरा एक भी दिन बेकार है”। लेकिन आज हालत यह है कि अगर कोई अच्छा मजाक कर दे या कुछ संजीदा लिख दे या कोई अच्छी फिल्म बना दे या कोई सच्ची खबर छाप दे तो हमारी सरकार नाराज हो जाती हैं, संस्कृति पर खतरा मंडराने लगता है, देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। और इन हँसाने वालों को, सच बात बताने वालों को, सच बात दिखाने वालों को, सच बात लिखने वालों को सजा–ए–जुर्म में जेल भेज दिया जाता है, उनके कार्यक्रमों पर पाबन्दी लगा दी जाती है और कई बार उनकी हत्या भी कर दी जाती है।

ऐसे ही हालात बुद्धिजीवियों, लेखकों और कलाकारों के है, वो कलाकार या बुद्धिजीवी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते है उनके साथ भी ऐसा ही सुलूक किया जाता है। आज देश के 50 फीसदी सांसदों पर गम्भीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन वे सत्ता की मलाई खा रहे हैं। वहीं देश के कलाकारों, बुद्धिजीवियों और प्रोफेसरों को जेल में डाला जा रहा है। जाहिर है कि सरकार को किसी भी अपराधी से कोई खतरा या परेशानी नहीं है। लेकिन  सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करनेवाले बुद्धिजीवी से सरकार को डर लगता है।

इस देश में बोलने की आजादी का अधिकार लगभग छीना जा चुका है। आपको अपनी बात कहने का अधिकार तो है, लेकिन उसमें सरकार या सरकारी की कोई आलोचना न हो, आपको लिखने का अधिकार तो है लेकिन वह सच न हो, आपको मजाक करने का अधिकार तो है लेकिन वह अच्छा स्वस्थ्य मजाक न हो और सरकार को बुरा नहीं लगना चाहिए। कुल मिला कर आपको कुछ भी कहने से पहले सरकार और उसके सड़क छाप लम्पटों की अनुमति लेनी अनिवार्य है। अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ यहीं तक सीमित कर दिया गया है।

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