10 साल के मोदी राज में महिलाओं की हालत
जब हम इंटरनेट पर मोदी राज में महिलाओं की स्थिति के बारे में सर्च करते हैं तो मोदी सरकार की चाटुकर मीडिया की खबरें फटाफट खुलती चली जाती हैं। टीवी चैनल और अखबार तो मोदी सरकार के हाथ की कठपुतली बने ही हुए हैं। इनकी खबरों में खुद नरेंद्र मोदी द्वारा महिलाओं की दशा सुधारने के दावे होते हैं। महिलाओं के लिए सरकार की योजनाओं की भरमार, महिला सशक्तिकरण के दावे, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे और महिलाओं के लिए सुविधा, सुरक्षा और सम्मान के वादे दिखाई देते हैं। चाटुकार मीडिया की हवाई बातों और भ्रामक प्रचार से अलग महिलाओं की जमीनी हकीकत आज अच्छी नहीं है।
19 अगस्त 2020 को जनरल प्लस में छपेे एक शोध के अनुसार हर साल लगभग 5 लाख बच्चियों की भ्रूण में हत्या कर दी जाती है। केवल यही आँकड़ा सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारे की पोल खोल देता है। केन्द्र सरकार के आँकड़ों पर आधारित पीयू रिसर्च केंद्र के एक अध्ययन से पता चलता है कि 2000 से 2019 के बीच 90 लाख बच्चियों की भ्रूण में ही हत्या कर दी गयी। इस मामले में कांग्रेस और भाजपा सरकार के कार्यकाल में कोई अन्तर नहीं दिखता है।
दिसम्बर 2022 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने दहेज हत्या के आँकड़ों को राज्यसभा में पेश किया था जिसमें बताया गया कि देश में 2017 से 2021 के बीच प्रतिदिन करीब 20 महिलाओं को दहेज के लिए मार दिया गया। इनमें सबसे अधिक हत्या उत्तर प्रदेश में की गयी जहाँ भाजपा की डबल इंजन सरकार चल रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2023 में उत्तर प्रदेश को हत्या, बलात्कार, महिलाओं के खिलाफ जुर्म के मामले में पहले नम्बर पर बताया। इससे योगी सरकार के इस दावे की हवा निकल गयी कि प्रदेश अपराध मुक्त हो गया है। चारों ओर से हो रही बदनामी के डर से सरकार ने एक बेशर्मी भरा तर्क दिया कि ये आँकड़े इसलिए ज्यादा लग रहे हैं कि पहले की सरकार इस मामले में एफआईआर होने ही नहीं देती थी।
महिला आयोग के आँकड़े के हिसाब से पूरे देश में पिछले साल महिलाओं के ऊपर अपराध की लगभग 29,000 शिकायतें मिली हैं। इनमें घरेलू हिंसा और छेड़छाड़ की घटनाएँ सबसे ज्यादा सामने आयीं हैं। उत्तर प्रदेश से 16,000 से अधिक मामले सामने आये। यह स्थिति काफी चिन्ताजनक है। हम सभी जानते हैं कि महिलाओं के ऊपर अत्याचार के 10 मामलों में एक मामले की रिपोर्ट थाने में दर्ज होती है क्योंकि ज्यादातर लोग इज्जत के नाम पर चुप रह जाना पसन्द करते हैं। इसके चलते सीधे–सीधे 9 मामलों में अपराधी को कोई सजा नहीं मिल पाती और पीड़ित महिलाएँ अपने अन्दर घुट कर जीने को मजबूर हो जाती हैं। अगर महिलाओं के ऊपर समाज में होने वाले अत्याचार की सभी घटनाओं की रिपोर्टिंग हो तो यह संख्या लाखों में पहुँच जाएगी। जो घटनाएँ रिपोर्ट की भी जा रही है उनमें से भी अधिकांश मामलों में पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता है। धन–बल की ताकत से अपराधी बच निकलते हैं।
पिछले साल दिल्ली में पहलवान महिलाओं ने जन्तर–मन्तर पर बहुत बड़ा आन्दोलन किया था। उनकी माँग थी कि उनके ऊपर अत्याचार करने वाले, छेड़छाड़ करने वाले, बेइज्जती करने वाले कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को उसके पद से हटाया जाये और उसे सजा दिलायी जाये। सच्चाई यह है कि सरकार उस अपराधी को बचाने में लगी रही और आन्दोलन करने वाली महिलाओं पर पुलिस से लठ बजवाया और उन्हें जेल में डलवा दिया।
दूसरी बड़ी घटना है मणिपुर की जो हमें झकझोर कर रख देती है। दो महिलाओं को सैकड़ों लोगों के सामने नंगा घुमाया गया और उनसे जबरदस्ती की गयी। इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली इस घटना को मणिपुर की पुलिस बेशर्मी से देखती रही और उसने महिलाओं को बचाया भी नहीं। घटना को मीडिया ने कहीं दिखाया भी नहीं। प्रधानमंत्री मोदी इस पर चुप्पी साधे रहे। वे यूक्रेन पर बयान दे रहे थे लेकिन अपने ही देश के एक हिस्से मणिपुर में लगी आग को बुझाने के लिए कुछ नहीं किया।
महिलाओं के प्रति भाजपा सरकारों के नजरिये की एक झलक तो बिलकिस बानो केस बलात्कारियों को 15 अगस्त के दिन छोड़ गया। इससे गन्दा और घिनौना काम क्या हो सकता है! इस पर भी उन बलात्कारियों को फूल–माला पहनाकर स्वागत किया गया।
यहाँ केवल देश की तीन बड़ी घटनाओं का जिक्र किया गया है जिन्होंने पिछले दिनों देश के जनमानस को झकझोर कर रख दिया था। लेकिन समाज में रोज ऐसी अनेक घटनाएँ हो रही हैं। इससे पता चलता है कि देश में महिलाएँ बेहद असुरक्षित हैं। यह बात क्या हम सभी महिलाएँ नहीं जानती कि हम कितनी असुरक्षित हैं? क्या हम में से कोई रात में अकेले बाहर निकल सकता है? और अगर निकल जाये तो सही सलामत घर वापस आ सकती हैं?
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