जामुन का पेड़
–– कृश्न चन्दर (कृश्न चन्दर की प्रसिद्ध कहानी ‘जामुन का पेड़’ को दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। इसे हटाने वाली सरकारी संस्था काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (आईसीएसई) ने बिना कोई उचित कारण बताये दावा किया कि यह कहानी दसवीं के छात्रों के लिए ‘उपयुक्त’ नहीं थी। साठ के दशक की यह कहानी व्यंग्यात्मक शैली में सरकारी विभागों के काम के कछुआ चाल पर सवाल उठाती है। यह संस्था इस कहानी से क्यों परहेज कर रही है, इसे कहानी पढ़कर समझा जा सकता है।) रात को बड़े जोर का झक्कड़ (आँधी) चला। सेक्रेटेरियट के लॉन में जामुन का एक दरख्त गिर पड़ा। सुबह जब माली ने देखा तो इसे मालूम पड़ा कि दरख्त के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है। माली दौड़ा–दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी दौड़ा–दौड़ा क्लर्क के पास गया। क्लर्क दौड़ा–दौड़ा सुपरिटेण्डेण्ट के पास गया। सुपरिटेण्डेण्ट दौड़ा–दौड़ा बाहर लॉन में आया।… आगे पढ़ें
पराया आदमी
एक ऐसा देश था जहाँ के सभी निवासी चोर थे। रात को सभी अपना घर खुला छोड़कर, हाथ में चोर चाबी और मद्धिम रोशनी की लालटेन लेकर अपने पड़ोसियों के घर चोरी करने चले जाते। भोर के वक्त वे अपनी झोली भरकर वापस लौटते और देखते कि उनके घर भी चोरी हो गयी है। इस तरह सब खुशी से रहते, नुकसान में कोई न रहता। क्योंकि सभी एक–दूसरे के घर चोरी करते थे, दूसरा तीसरे के यहाँ चोरी करता और यह सिलसिला तब तक चलता जब तक आखिरी आदमी सबसे पहले के यहाँ चोरी नहीं कर लेता। खरीदने और बेचने वालों का एक–दूसरे को ठगना, यहाँ के व्यापार का मुख्य अंग था। सरकार अपराधियों का एक गिरोह चलाता था जो अपनी प्रजा से चुराती थी, प्रजा भी अपनी तरफ से सरकार को धोखा देने में दिलचस्पी रखती थी। इस तरह जिन्दगी आराम से गुजर रही थी, न कोई अमीर था… आगे पढ़ें
पानीपत की चैथी लड़ाई
–– सुबोध घोष हम लोगों की क्लास मानव विज्ञान की किसी प्रयोगशाला जैसी थी। मानवता का ऐसा विचित्र नमूना शायद ही किसी और स्कूल की क्लास में होगा। हमारी क्लास में तीन राजाओं के लड़के थे। उनमे से एक तो जंगली राजा का बेटा था, बिलकुल काले रंग का। बाकी दो लड़के असली क्षत्रिय के सपूत थे–– गोरा रंग, पगड़ी में मोती की झालर। इसके अलावा थे सिरिल टिग्गा, इमानुएल खाल्खो, जॉन बेसरा, रिचर्ड टुडू और स्टीफन होरो आदि। इतने सारे उरांव और मुण्डा बच्चों के बीच हम मध्यवर्ती परिवार के कुछ बंगाली और बिहारी लड़के भी थे, जो सिर्फ दिमाग के दम पर हर काम में मुखिया होने का गौरव प्राप्त करते थे। राजाओं के बेटों को हम कहते थे सुनहरे मेंढक और मुण्डा–उरांव को काले मेंढक। इनको हम लोग कभी पूछते भी नहीं थे। हालाँकि राजाओं के लड़के भी हमसे कभी बात तक नहीं करते थे। दूसरी तरफ… आगे पढ़ें
भीड़
मेरे कमरे की खिड़की एक चैराहे की ओर खुलती है, जिस पर पूरे दिन पाँच अलग–अलग सड़कों से आने वाले लोगों का ताँता लगा रहता है, बिलकुल वैसे ही जैसे बोरियों से आलू लुढ़क रहे हों। वे आवारागर्दी करते हैं और फिर भाग जाते हैं और फिर से सड़कें उन्हें अपनी ग्रासनली में गटक लेती हैं। वह चैराहा गोल और बहुत ही गन्दा है, बिलकुल एक कड़ाही की तरह जिसको लम्बे समय तक मांस तलने के लिए इस्तेमाल किया गया हो लेकिन कभी रगड़कर साफ नहीं किया गया हो। ट्राम की चार कतारें इस भीड़ भरे घेरे की ओर बढती हैं और लगभग हर मिनट पर ये ट्राम गाड़ियाँ लोगों की भीड़ में फँसी, सरकती हैं और अपनी बारी आने के लिए चीखती हैं। वे लोहे की झनझनाहट के साथ तेजी से भागती हैं, जबकि उनके ऊपर और उनके पहियों के नीचे बिजली की मनहूस मिनमिनाहट सुनाई देती है। धूलभरी… आगे पढ़ें
भेड़िया
बहुत देर से मैंने एक दरख्त में पनाह ले रखी है और मेरी यह ख्वाहिश है कि नीचे उतरूँ। लेकिन कम्बख्त भेड़िया मुझे उतरने नहीं देता। वह नीचे खड़ा मुझे खौफनाक नजरों से लगातार देख रहा है और इस इन्तजार में है कि मैं कब उतरूँगा और वह मुझे चीर–फाड़कर खा जायेगा। जिस दरख्त पर अब मेरा ठिकाना है, वह एक अजीब–सा दरख्त है। बल्कि अगर मैं इसे जादू का दरख्त कहूँ, तो बेजा न होगा। मैं यहाँ जो भी ख्वाहिश करता हूँ, वह फौरन पूरी हो जाती है। अगर नर्म और गर्म बिस्तर के बारे में सोचूँ तो वह मेरे करीब बिछ जाता है। उकता जाऊँ तो मेरे सामने एक शानदार टी–वी– सेट आ जाता है, जिसके स्टीरियो स्पीकर्ज होते हैं और जो दुनिया का हर स्टेशन पकड़ सकता है। अगर किसी भी खाने के लिए मेरा जी चाहे, तो वह फौरन हाजिर होता है। यहाँ सब कुछ है।… आगे पढ़ें
माटी वाली
–– विद्यासागर नौटियाल शहर के सेमल का तप्पड़ मोहल्ले की ओर बने आखिरी घर की खोली में पहुँचकर उसने दोनों हाथों की मदद से अपने सिर पर धरा बोझा नीचे उतारा। मिट्टी से भरा एक कनस्तर। माटी वाली। टिहरी शहर में शायद ऐसा कोई घर नहीं होगा जिसे वह न जानती हो या जहाँ उसे न जानते हों, घर के कुल निवासी, बरसों से वहाँ रहते आ रहे किरायेदार, उनके बच्चे तलक। घर–घर में लाल मिट्टी देते रहने के उस काम को करने वाली वह अकेली है। उसका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं। उसके बगैर तो लगता है, टिहरी शहर के कई एक घरों में चूल्हों का जलना तक मुश्किल हो जाएगा। वह न रहे तो लोगों के सामने रसोई और भोजन कर लेने के बाद अपने चूल्हे–चैके की लिपाई करने की समस्या पैदा हो जाएगी। भोजन जुटाने और खाने की तरह रोज की एक समस्या। घर में साफ, लाल मिट्टी तो… आगे पढ़ें
रफीक भाई को समझाइये
चला जाता हूँ हँसता–खेलता मौजे हवादिस से अगर आसानियाँ हो, जिन्दगी दुश्वार हो जाये भेल्लोर से लौटे हैं रफीक भाई। गये थे मामूजान की ओपन हार्ट सर्जरी करवाने अपनी जाँ से रोग लगा आए। ओपन हार्ट के सक्सेस से चैन मिला था। एक हफ्ता रुकना था सो मजाक–मजाक में थौरो चेकअप करवाने चले गये। ऐसी रिपोर्ट का अंदेशा न था, देखा तो सकते मे आ गये। चेन स्मोकिंग ने पैरों की नसों को जाम कर दिया था। खून में हीमोग्लोबिन की जगह निकोटिन। डॉक्टर ने सख्त हिदायत दी है–– सिगरेट से तौबा कर लीजिए नहीं तो चन्द महीनों में पैर काटने की नौबत आ जायेगी,’ तबरेज भाई तफसील से बीमारी के बारीक नुक्तों से हमंे परिचित करवाने पर उतारू थे। रफीक भाई पर तो कोई खास असर नहीं दिख रहा था। वही उदास आँखे आसमाँ पर टंगी हुई। चेहरे पर वही परेशानी जो पहले थी वो आज भी। उँगलियों में… आगे पढ़ें
समझौता
–– गजानन माधव मुक्तिबोध अँधेरे से भरी, धुँधली, सँकरी प्रदीर्घ कॉरिडार और पत्थर की दीवारें। ऊँची घन की गहरी कार्निस पर एक जगह कबूतरों का घोंसला और कभी–कभी गूँज उठनेवाली गुटरगूँ, जो शाम के छह बजे के सूने को और भी गहरा कर देती है। सूनी कॉरिडार घूमकर एक जीने तक पहुँचती है। जीना ऊपर चढ़ता है, बीच में रुकता है और फिर मुड़कर एक दूसरी प्रदीर्घ कॉरिडार में समाप्त होता है। सभी कमरे बन्द हैं। दरवाजों पर ताले लगे हैं। एक अजीब निर्जन, उदास सूनापन इस दूसरी मंजिल की कॉरिडार में फैला हुआ है। मैं तेजी से बढ़ रहा हूँ। मेरी चप्पलों की आवाज नहीं होती। नीचे मार्ग पर टाट का मैटिंग किया गया है। दूर, सिर्फ एक कमरा खुला है। भीतर से कॉरिडार में रोशनी का एक खयाल फैला हुआ है। रोशनी नहीं, क्योंकि कमरे पर तक हरा परदा है। पहुँचने पर बाहर, धुँधले अँधेरे में एक आदमी… आगे पढ़ें