भाजपा शासित राज्यों की पुलिस का दमनकारी रवैया
दो आदिवासी युवकों की संगठित हत्या के विरोध में आदिवासी संगठनों के नेतृत्व में 5000 आदिवासियों ने जबलपुर हाईवे जाम कर दिया। घटना इस प्रकार थी कि मध्यप्रदेश में बीते मई के महीने में शिवनी जिले में दो आदिवासी युवकांे की हत्या कुछ हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा कर दी गयी, जिसका वीडियो खुद इन हिन्दुत्ववादी संगठनों ने बनाया था। बढ़ते आन्दोलन के दबाव के चलते प्रशासन को कार्रवाई करनी पड़ी। जाँच में पता चला कि हत्या को अंजाम देने वाले आरोपी हिन्दुत्ववादी संगठन के सदस्य हैं। इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर से बातचीत के दौरान शिवनी पुलिस अधीक्षक ने स्वीकार किया कि वे लम्बे समय से इन संगठनों के सम्पर्क में हैं। संगठन के कई सदस्य पुलिस के लिए मुखबिरी का भी काम करते हैं।
ऐसी ही घटना जुलाई 2021 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में सामने आयी थी। जिले के नौतनवा में एक छोटी सी इलेक्ट्रीशियन की दुकान चलाने वाले अहमद को पुलिस ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। इसमें भी कानून व्यवस्था बनाये रखने वाले प्रशासक और हिन्दुत्ववादी संगठन के अध्यक्ष में अन्तर कर पाना मुश्किल था। पीड़ित अहमद ने बताया कि जब उसे थाने ले जाया गया, तब थाने में पहले से ही बीस के करीब हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्य बैठे थे जो उसे देखते ही “जय श्री राम” के नारे लगाने लगे। इसके बाद हिन्दू युवा वाहिनी का अध्यक्ष थाना प्रभारी से बात करने लगा। उसी ने अहमद पर सरकार को अस्थाई करने और देश की एकता अखण्डता को नुकसान पहुँचाने जैसी धाराओं में मुकदमा करवाया था। इसी हिन्दू युवा वाहिनी अध्यक्ष ने एक इण्टरव्यू के दौरान स्वीकार किया कि उसने जिले के विभिन्न थानों में ऐसे कई मामले दर्ज करवाये हैं। उसका कहना था कि यदि कोई भी योगी जी महाराज के फैसलों या उनकी संस्था के खिलाफ बोलेगा, उस पर हम ऐसे ही मामले दर्ज करेंगे। इसे देखकर तो ऐसा लगता है कि योगी जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हिन्दू युवा वाहिनी का मुख्य काम गैर हिन्दुओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवाना बन गया है।
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ऐसी घटनाओं की देश में लगातार वृद्धि हुई है। खासकर उन राज्यों में जहाँ सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथों में है। साल दर साल ऐसे राज्यों में इन घटनाओं की वृद्धि हुई है जहाँ प्रशासन और हिन्दुत्ववादी संगठनों में गठजोड़ देखा गया है और यह अन्तर नहीं किया जा सकता की इनमें कौन प्रशासन का व्यक्ति है और कौन सरकारी वर्दी पहने हिन्दुत्ववादी संगठन का सदस्य। चाहे वह दिल्ली में हिंसा के दौरान पुलिस द्वारा सीसीटीवी कैमरा तोड़ने की घटना हो या सीएए–एनआरसी आन्दोलन के दौरान एक हिन्दुत्ववादी संगठन के सदस्य द्वारा पुलिस के सामने हवा में बन्दूक लहराने और चलाने की घटना हो।
इन सभी घटनाओं के केन्द्र में जहाँ एक ओर समाज के पीड़ित, शोषित, वंचित, अल्पसंख्यक और महिलाएँ हैं, वहीं दूसरी ओर समाज के वे लोग हैं जो किसी न किसी रूप में भाजपा सरकार और इसकी नीतियों के आलोचक हैं, चाहे वे राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता हों या पत्रकार या विपक्षी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता। हालत तो यह है, कि अब व्यक्ति को ही नहीं बल्कि पूरे समुदाय तक को भाजपा नेता और उसके कार्यकर्ता देशद्रोही, विकास द्रोही आदि घोषित कर देते हैं। कुछ ऐसा ही किसान आन्दोलन के दौरान किसानों, सीएए–एनआरसी के आन्दोलनकारियों तथा अग्निपथ योजना में सेना की तैयारी करने वाले देश के युवाओं के साथ हुआ।
भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण तेजी से हुआ है और मुस्लिमों के खिलाफ संगठित हमले हुए हैं, जो आज भी बदस्तूर जारी हैं। ये हमले बढ़ते–बढ़ते कुलबर्गी, गौरी लंकेश आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों तक पहुँच गये। ऐसी घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। ऐसा ही असम के नागांव में दो कलाकारों के साथ हुआ, जो शिव और पार्वती का पात्र अदा कर रहे थे, जिन्होंने अपने नाटक में महँगाई का मुद्दा उठाया था। इस पर हिन्दुत्ववादी संगठन विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा ने दोनों कलाकारों पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने और दुर्भावनापूर्ण कृत्य जैसी धाराओं में केस दर्ज करवाया।
फासीवादी हिटलर का आतंक जर्मनी में आर्थिक संकट की पैदाइश था और वह समाज के सबसे प्रतिक्रियावादी, पतित, और प्रतिगामी वर्ग का राजनीतिक प्रतिनिधि था। हमारा देश भी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। हिन्दुत्ववादी संगठन और सरकारें भी उसी राह पर चल रही हैं। इनके निशाने पर समाज की सभी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक संस्थाएँ, संगठन और व्यक्ति हैं। ऐसा लगता है कि हिटलर की नस्लवादी और विभाजनकारी सत्ता से सरकारें बहुत कुछ सीख रही हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिटलर का अन्त बहुत दुखद हुआ था।
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