सितम्बर 2024, अंक 46 में प्रकाशित

देश में बाढ़ की विभीषिका और सरकारी तंत्र की असफलता

29 जुलाई 2024 तक केरल के वायनाड जिले में 73 फीसदी वर्षा की कमी थी। लेकिन एक दिन बाद 30 जुलाई को वहाँ 500 फीसदी से अधिक बारिश हो गयी। इसके चलते एक पहाड़ी ढह गयी जिससे प्रभावित क्षेत्रों में कीचड़, पानी और बोल्डर की बाढ़ आ गयी। भूस्खलन का मलबा 8 किलोमीटर तक फैल गया और 21 एकड़ से ज्यादा जमीन मलबे में दब गयी। घाटी में बसे 3 गाँव तबाह हो गये। लाशें बहकर 25 किलोमीटर से भी दूर चली गयीं। इस एक दिन की आपदा में 420 से अधिक लोगों की मौत हो गयी और सैकड़ों लोग घायल हो गये। मौसम विभाग के अनुसार 240 एमएम वर्षा भारी वर्षा की श्रेणी में आता है जो विनाशकारी होता है। केरल के वायनाड जिले में कुछ ही घंटो में 280 एमएम वर्षा हुई, जो इतने बड़े विनाश का कारण बनी। केरल का वायनाड जिला भूस्खलन के लिए संवेदनशील क्षेत्र है। भारत में भूस्खलन से संकटग्रस्त 147 जिलों की सूची में वायनाड 13वें स्थान पर है।

त्रिपुरा के निवासियों को इस साल भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ा। राज्य के आठों जिले बाढ़ की चपेट में हैं। त्रिपुरा में 19 अगस्त से लगातार बारिश हुई। 22 अगस्त को त्रिपुरा में सबसे अधिक बारिश हुई। दक्षिण त्रिपुरा जिले के बोगाफा में 493–6 एमएम, सिपाहीजाला में 293–4 एमएम और पश्चिम त्रिपुरा में 233 एमएम बारिश हुई है जो बहुत अधिक है। इससे राज्य की सभी नदियों–– गोमती, हावड़ा, कुवाई और देवनदी का पानी पूरे राज्य में फैल गया। त्रिपुरा में 2000 से अधिक स्थानों पर भूस्खलन हुआ। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक बाढ़ ने राज्य के 17 लाख लोगों को प्रभावित किया। 23 अगस्त तक 25 लोगों की मौत हो गयी। किसानों की सारी फसल बर्बाद हो गयी। सैकड़ों घर तबाह हो गये। सार्वजनिक सम्पत्ति का भी नुकसान हुआ।

भारत ऐसा देश है, जो हर साल बाढ़ और सूखे की दोहरी चुनौतियों का सामना करता है। जैसे–जैसे मानसून का मौसम आता है, कुछ इलाकों में बाढ़ का कहर भी शुरू हो जाता है जिससे काफी तबाही होती है। इस साल भी जैसे–जैसे मानसून आगे बढ़ रहा है, बाढ़ का वही पुराना पैटर्न सामने आ रहा है। इस समस्या की भयावहता तब स्पष्ट हो जाती है, जब हम इसके चैंका देने वाले आँकड़ों पर नजर डालते हैं।

 पूरे भारत में हर साल बाढ़ के कारण औसतन 1600 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एनडीएमए) के अनुसार बाढ़ हर साल लगभग 75 लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को प्रभावित करती है जिससे 1805 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। आन्तरिक विस्थापन निगरानी केन्द्र (आईडीएमसी) के अनुसार, केवल 2020 में बाढ़ से लगभग 54 लाख लोग विस्थापित हुए। बाढ़ कृषि उत्पादन को कम करता है, औद्योगिक उत्पादन को बाधित करता है तथा व्यापार और वाणिज्य को बाधित करता है। राहत और पुनर्वास पर व्यय को बढ़ाकर देश की आर्थिक वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है। हर साल कम से कम देश के एक बड़े हिस्से में बाढ़ की घटना सामने आती है जिसके फलस्वरूप जन–धन की काफी हानि होती है।

बाढ़ भले ही प्राकृतिक आपदा हो लेकिन सरकार और पूँजीपतियों के बेतहाशा अन्धे विकास ने इसे मानवनिर्मित आपदा में रूपान्तरित कर दिया है। देशी–विदेशी धन्नासेठों के मुनाफे के लिए पहाड़ी क्षेत्रों से लगातार जंगलों का सफाया करना भूस्खलन जैसी आपदा को दावत दे रहा है। यह वायनाड जैसे इलाकों के लिए खतरे की घंटी है। पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि बड़े बाँध हमेशा बाढ़ जैसी आपदा को जन्म देने में सहायक होते हैं। ऐसा ही 2018 में केरल में देखने को मिला। जबकि छोटे बाँध पर्यावरण के अनुकूल हैं। लेकिन सरकारें छोटे–छोटे बाँधों को बनाने के बजाय बड़े–बड़े बाँधों की परियाजनाएँ तैयार करती हैं और विकास का ढोल पीटती हैं। विकास की ही अन्धी दौड़ ने नदियों को संकुचित कर दिया और उनके किनारे बड़ी–बड़ी परियोजनाएँ तैयार हो रही हैं जो भारी बारिश के कारण बड़ी आपदा को जन्म देती हैं। सरकारें आपदा से बचाव के लिए प्रबन्ध करने के बजाय सतर्कता नोटिस जारी करती हैं जिसका कोई फायदा नहीं होता। सरकार की माने तो आज हम अमृतकाल में जी रहे हैं, लेकिन सरकार से नाले का पानी नहीं सम्भल रहा है। शहरों में जल निकासी का उपयुक्त प्रबन्ध न होने के कारण थोड़ी बरसात में भी सड़कों पर कई फुट पानी भर जाता है। कभी–कभी यह भी बाढ़ का कारण बन जाता है।

–– नवनीत

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