नवम्बर 2023, अंक 44 में प्रकाशित

मनरेगा डेटाबेस से सरकार ने 5 करोड़ मजदूरों के नाम हटाये

इस साल राज्य सरकारों ने लगभग देश के पाँच करोड़ से अधिक मजदूरों के नाम मनरेगा सूची से हटा दिये हैं। जबकि पिछले साल की तुलना में इस साल 4 फीसदी से अधिक मजदूरों ने मनरेगा में आवेदन किया था। इसके साथ ही पिछले साल मनरेगा का बजट लगभग 90 हजार करोड़ रुपये था जिसे सरकार ने इस साल घटाकर साठ हजार करोड़ रुपये कर दिया है। यह राशि बेहद नाकाफी है। सरकार के इस रवैये से यह साफ हो जाता है कि वह मनरेगा योजना पर हमलावर है। देश के लगभग 19 करोड़ मजदूर मनरेगा के तहत कुछ समय के लिए ही सही पर रोजगार हासिल कर रहे हैं। अगर यह योजना बन्द होती है तो इन मजदूर परिवारों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी और साथ ही पहले से ही बेहिसाब बेरोजगारी और विकराल हो जाएगी।

मनरेगा यानी “महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना” के तहत सरकार मजदूरों को साल में 100 दिन के काम की गारण्टी देती है। लेकिन अब सरकार इसे खत्म करने पर आमादा है। इसके लिए सरकार अनेक तरह के हथकण्डे अपना रही है। मजदूरों को भुगतान करने की प्रक्रिया को बेहद जटिल बना दिया गया है। अभी तक मजदूरों का भुगतान ‘एनईएफटी’ यानी एक सरल प्रक्रिया से किया जाता था। लेकिन अब सरकार ने मजदूरों के भुगतान की प्रक्रिया “आधार आधारित भुगतान प्रणाली” के तहत कर दी है। इसका इस्तेमाल निरक्षर मजदूरों के लिए बेहद मुश्किल है। जो मजदूर इस प्रकिया के नियमों को पूरा नहीं कर सकेंगे वह मनरेगा के तहत काम नहीं कर पाएँगे। 15 अगस्त तक देशभर में लगभग 6 करोड़ से अधिक मजदूर इस प्रकिया को पूरा नहीं कर पाये थे जिससे उनके नाम सूची से हटा दिये गये।

अगर कोई मजदूर दिनभर मेहनत मजदूरी करता है और शाम को किसी तकनीकी त्रुटि की वजह से मोबाइल अप्लीकेशन में उसका फोटो नहीं चढ़ पाता है तो उसे उस दिन का कोई भुगतान नहीं मिलेगा। देशभर में ऐसी अनेक जगहें हैं जहाँ इस समस्या के कारण पिछले कई महीनों से हजारों मजदूरों का भुगतान नहीं किया गया हैं। झारखण्ड के पेटरवार (बोकारो जिला) में पिछले ढाई महीनों से लगभग 28 हजार मजदूरों का भुगतान बकाया है जो लगभग 66 लाख रुपये है। इसी तरह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में 25 हजार मजदूरों को पिछले 5 महीनों से भुगतान नहीं किया गया है। इसका नतीजा यह हुआ भुगतान न मिलने के कारण हजारों मजदूर भूखों मरने की स्थिति में हैं। वे रोज–ब–रोज तिल–तिल कर मरने को मजबूर हैं। इस प्रक्रिया को सही करने की जगह सरकार सालाना बजट घटाकर मजदूरों को और बुरी स्थिति में लाने पर आमादा है।

कोरोनो महामारी के बाद से एक बड़ी आबादी का शहरों से गाँवों की तरफ उल्टा पलायन हुआ है जिससे गाँवों में व्याप्त बेरोजगारी अभूतपूर्व तरीके से बढ़ गयी है। खेती में पहले से ही श्रम बल अधिक है। ऐसे में थोड़ी बहुत राहत मनरेगा के तहत मिल रही थी लेकिन अब सरकार इस पर भी हमलावर हो गयी है। भारत में लाखों गरीब परिवार मनरेगा पर आश्रित हैं, जिससे उनके पूरे परिवार की जीविका चलती है। मनरेगा योजना को इस तरह खत्म करने से इसका बेहद बुरा असर देश के करोड़ों मेहनतकश मजदूरों पर पड़ेगा। लेकिन सरकार मजदूरों की समस्याओं से मुँह मोड़कर बैठी है, वह सरकारी बचत के नाम पर मजदूरों से उनका हक छीनने का काम कर रही है।

–– आकाश

Leave a Comment