सितम्बर 2024, अंक 46 में प्रकाशित

काँवड़ के बहाने ढाबों–ढेलों पर नाम लिखाने का साम्प्रदायिक फरमान

15 जुलाई को मुजफ्फरनगर के एसपी ने काँवड़ यात्रा के दौरान एक अनोखा फरमान जारी किया। सड़कों के आसपास फल बेचने वाले, ढाबे वाले और अन्य विक्रेताओं को आदेश दिया गया कि वे अपनी दुकानों के बाहर अपने नाम का बोर्ड लगायें। इसके साथ ही यह कहा गया कि दुकान या ढाबे में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के नाम की लिस्ट भी चिपकानी जरूरी है। यह आदेश उत्तर प्रदेश समेत दूसरे भाजपा शासित प्रदेशों में भी जल्द लागू कर दिया गया। यह आदेश भाजपा ने मुस्लिमों की पहचान सुनिश्चित कर उनके बीच डर का माहौल पैदा करने और उन्हें अलगाव में डालने के लिए किया। काँवड़ यात्रा के दौरान धार्मिक भावनाओं का बहाना बनाकर भाजपा अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत की राजनीति को बढ़ावा देने की कोशिश में लग गयी। मुख्यधारा की मीडिया भी भाजपा की इस साम्प्रदायिक कोशिश के तहत मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने लगा। यह माहौल बनाया जाने लगा कि मुस्लिम मांसाहारी हैं और उनसे किसी भी तरह का सामान खरीदने से काँवड़िये अपवित्र हो जाएँगे। हालाँकि खानपान का मामला धार्मिक नहीं है, देश के 74 फीसदी से ज्यादा हिन्दू भी मांसाहारी हैं। वहीं दूसरी तरफ ऐसी कोई घटना अभी तक सामने नहीं आयी है जिसमें काँवड़ियों ने इस तरह के इलजाम किसी दुकानदार पर लगाये हों।

भाजपा की इस कोशिश के चलते अनेक ढाबा संचालकों ने अपने यहाँ काम करने वाले मुस्लिम नौजवानों को नौकरी से निकाल दिया। कितनी ही जगह मुस्लिम ढेला लगाने वालों को जबरन सड़क से हटाया गया। कुछ जगह डर का माहौल होने के चलते मुस्लिम दुकानदारों ने कई दिनों तक अपनी दुकान बन्द रखी। लेकिन जल्द ही भाजपा के साम्प्रदायिक माहौल बनाने के प्रयास पर पानी फिर गया। इसका सबसे पहला विरोध उन्हीं की गठबन्धन पार्टियों की तरफ से आया। जदयू और जेएलपी ने इसे देशवासियों को आपस में बाँटने वाली नीति बताया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के सहयोगी दल आरएलडी ने निन्दा करते हुए इस फैसले को तुरन्त वापस लेने की सलाह दी। भाजपा को दूसरा झटका तब लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले का संज्ञान लेते हुए साफ कहा कि किसी भी व्यक्ति से जबरन उसकी पहचान बताने को कहना गैर–लोकतांत्रिक और संविधान विरोधी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार से इस तानाशाही रवैये के लिए स्पष्टीकरण भी माँगा। भाजपा को तीसरा झटका आम जनता ने दिया, उसने जगह–जगह इस मामले पर भाजपा की साम्प्रदायिक नीति का विरोध किया। काँवड़ का आयोजन बहुत पुराने समय से धार्मिक सौहार्द की मिशाल रहा है। काँवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने में हरिद्वार से शुरू होती है। इस दौरान लाखों लोग यहाँ गंगा जल लेने आते हैं। गंगा जल ले जाने के लिए इस्तेमाल होने वाली काँवड़ का निर्माण बड़े स्तर पर मुस्लिम समुदाय करता आया है। इसकी तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है। वे काँवड़ियों के लिए अपने घर और यहाँ तक कि मस्जिदों के दरवाजे भी खोलते हैं, जो धर्म से परे अतिथि–सत्कार की मिसाल है। कितनी ही जगहों पर मुस्लिम भी काँवड़ लेने जाते हैं। दोनों की संस्कृति आपस में गुथी हुई है। इस आयोजन में कभी धार्मिक भेदभाव देखने को नहीं मिला। लेकिन पिछले कई सालों से भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति के चलते यह आयोजन भी धार्मिक उन्माद की भेट चढ़ गया है। लेकिन आम जनता ने भाजपा की इस विभाजनकारी नीति का पुरजोर विरोध किया।

फासीवादी हिटलर ने भी जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ नफरत फैलाने के दौरान ऐसे ही उनकी पहचान करने के लिए नाम प्लेट लगाना अनिवार्य किया था। आज यह काम भारत में हिन्दुत्व के नाम पर भाजपा कर रही है। हिटलर की गलतियों का पश्चाताप आज तक वहाँ की जनता करती आयी है। वह अपने बुजुर्गों द्वारा अतीत में की गयी हिंसात्मक कार्रवाइयों के लिए शर्मिन्दा होती है और सामूहिक माफी माँगती है।

आज भाजपा सत्ता में बने रहने के लिए जनता में धार्मिक नफरत और साम्प्रदायिकता के जहरीले बीज बो रही है। पहले भाजपा यह काम अपने संगठनों के जरिये किया करती थी और आज भी कर रही है। लेकिन आज राजसत्ता की मशीनरी भी इस काम में भाजपा के साथ खड़ी है। आज बड़े अधिकारी और सूचनातंत्र का एक बड़ा हिस्सा इनकी इस राजनीति का सहचर बन गया है। इसके नतीजे कही ज्यादा खतरनाक साबित होंगे। इसका हर देशवासी को पुरजोर विरोध करना चाहिए। अपनी साझी संस्कृति को बचाने के लिए हमें विभाजन की हर कार्रवाई का विरोध करना ही पड़ेगा, नहीं तो देश रसातल में चला जायेगा और भावी पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी।

–– वसीम

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