गुजरात में उत्तर भारतीय मजदूरों पर हमले
गुजरात में यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश के मजदूरों को लगातार हमले का निशाना बनाया जा रहा है, ये घटनाएँ गुजरात के साबरकंठा जिले में 14 महीने की एक बच्ची के साथ हुए बलात्कार के बाद शुरू हुर्इं। आरोपी रविन्द्र साहू बिहार का निवासी था, उसे घटना के 24 घण्टे के अन्दर ही गिरफ्तार कर लिया गया, फिर भी हिंसा लगातार होती रही। इण्डियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार उत्तर भारतीय मजदूरों को ढाबों में घेरकर, फैक्ट्रियों से निकाल कर और रास्तों में रोककर मारा गया।
सूरत के पंडेश्वरा इलाके में 12 अक्टूबर की शाम को काम से लौटते हुए एक मजदूर की उन्मादी भीड़ ने लाठी–डंडांे से पीटकर हत्या कर दी। वह मजदूर बिहार का था और 15 सालोंं से सूरत में परिवार के साथ रहता था। मेहनत से पैसे जमा कर सूरत में अपना घर भी बना लिया था। फिर भी उसके साथ अप्रवासियों जैसा व्यवहार किया गया और उसकी हत्या की गयी। बड़ोदरा जिले के बघोड़िया तहसील में भीड़ ने यूपी और बिहार के करीब 15 लोगों पर लाठी–डंडों से हमला किया। इनमें से 10 लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये। बस का इन्तजार कर रही मध्य प्रदेश की राजकुमारी जाटव के अनुसार ‘‘मेरे बच्चेे बाहर खेल रहे थे, जब भीड़ ने 4 अक्टूबर को हमला किया। वे अभी तक सदमे में है। मैं अपने 4 साल के बच्चे को डॉक्टर के पास ले गयी ताकि वह शान्त हो जाये।’’ भिंड, मध्यप्रदेश के रहने वाले धर्मेन्द्र कुशवाहा के अनुसार कुछ नकाबपोश लोगों ने उनसे कहा कि सुबह 9 बजे तक गुजरात छोड़ दो वरना मारे जाओगे। उसके बाद लोगों से खचाखच भरी 20 बसें वहाँ से यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश रवाना हुई। “वारदात के दूसरे दिन ही हिम्मतनगर और साबरकंठा जिले की दो फैक्ट्रियों को निशाना बनाया गया, 2 अक्टूबर को वाडनगर और विजयपुर शहर में फैक्ट्रियों पर हमला किया गया ।
पुलिस के मुताबिक करीब 200 लोगों की भीड़ ने फैक्ट्री के बाहर इकट्ठा होकर पत्थर फंेके और माँग की कि “जब तक बच्ची को न्याय नहीं मिल जाता, यूपी, बिहार से आये लोगों को नौकरी से निकाल दो, अन्यथा वे मारे जायेंगे।” अहमदाबाद मिरर के अनुसार बीते दो हफ्तों में 50 हजार से ज्यादा अप्रवासी मजदूरों को राज्य छोड़कर भागना पड़ा । गुजरात में इन दिनों में अप्रवासियों के साथ 70 से ज्यादा हिंसक घटनाएँ हुई हैं। पुलिस ने इस मामले में 600 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है।
इस पलायन से गुजरात की अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ा, गुजरात चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज के सचिव शैलेश पटवारी के अनुसार “गुजरात में 70–80 प्रतिशत मजदूर बाहर के हैं, इनके जाने से काम धन्धों पर असर पड़ रहा है, यूपी, बिहार के कारीगरों के बिना उद्योग नहीं चल सकते क्योंकि जो काम यूपी, बिहार के कारीगर, जितने सस्ते दामों में कर सकते हैं वो गुजराती नहीं कर सकते। साणन्द इन्डस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रमुख अजित शाह का कहना है कि “गुजरात के विकास में सबसे ज्यादा भागेदारी लघु उद्योग की है, जिनमें ज्यादातर उत्तर भारतीय मजदूर ही काम करते हैं अगर ऐसा माहौल रहा तो अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा है।” दूसरी तरफ नेताओं के भड़काऊ और धूर्ततापूर्ण बयान आ रहे हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का कहना है कि “गुजरात में पिछले तीन दिनों में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई, गुजरात एक शान्तिप्रिय प्रदेश है और इस देश के विकास का मॉडल प्रदेश है, गुजरात के विकास से जो लोग ईष्या रखते हैं वे तरह–तरह की अफवाहें फैला रहे हैं।” इसी तरह गुजरात के डीजीपी शिवानन्द झा का 7 अक्टूबर को बयान आया कि “जो हिन्दी भाषी गुजरात छोड़कर जा रहे हैं वे त्यौहार की वजह से ऐसा कर रहे हैं।” इस तरह घटनाओं पर पूरी तरह परदा डालने का काम किया जा रहा है।
सभी मामलों का बारीकी से अध्ययन करने पर पता चलता है कि इन घटनाओं को राजनीतिक रूप दिया जा रहा है, स्थानीय नागरिकों के मुताबिक हिंसक भीड़ में ज्यादातर गुजरात की आम जनता न होकर किसी खास समुदाय के सदस्य हैं। गुजरात में कंाग्रेस विद्यायक अल्पेश ठाकोर ने अपनी ठाकोर सेना बनायी है, जिसके 32000 सदस्य हैं जिनमें से 22000 अकेले अहमदाबाद में हैं। ये घटनाएँ पूरे गुजरात में न होकर, प्रमुख रूप से गाँधीनगर, अहमदाबाद, साबरकंठा, महसाणा, बड़ोदरा तक सीमित हैं, इन्हीं क्षेत्रों में ठाकोर सेना की बहुलता है। इन इलाकों से ही ठाकोर सेना के 400 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है, चूँकि पीड़ित बच्ची ठाकोर समुदाय से है तो हिंसा में नाम ज्यादातर ठाकोर समुदाय के लोगों का आया है। गुजरात के पुुलिस की रिपोर्ट के अनुसार क्षत्रिय–ठाकोर सेना के 150 से 200 सदस्य एक खास मंशा से एकजुट हुए और हंगामा किया। भीड़ ने पत्थरबाजी की श्रमिकों को पीटा, इस मामले में गिरफ्तार 23 लोग सभी ठाकोर सेना के सदस्य हैं। गाँधीनगर पुलिस ने कांग्रेस नेता महोत ठाकोर को एक विडियो वायरल होने पर गिरफ्तार किया जिसमें वे उत्तर भारतीयों को अगले 24 घण्टों में उरसाव गाँव छोड़ने की धमकी दे रहे थे। इसी दौरान अल्पेश ठाकोर का बयान आया कि “प्रवासियों के कारण राज्य में अपराध बढ़ गया है मेरे गुजरातियों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है, क्या गुजरात ऐसे लोगों के लिए है।” ऐसे संवेदनशील समय में ऐसे बयान और धमकी आग में घी डालने का काम करती हैं। किसी भी भीड़ के पास अपनी स्वतंत्र चेतना नहीं होती है, वह नेताओं के उकसावे पर जघन्य अपराध करने से गुरेज नहीं करती। आजकल गन्दी राजनीति का एक ऐसा प्रचलन बनता जा रहा है कि किसी विशेष पार्टीयों के नेता नौजवानोें की सेना बनाते हैं, फिर उनको नफरत और हिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है, फिर किसी भी घटना को आधार बनाकर हिंसा, मारपीट, कुत्साप्रचार आदि कामों के लिए झोंक दिया जाता है और इस तरह वे नेताओं के हथियार बनकर अपने ही भाइयों के खून के प्यासे हो जाते हैं।
किसी घटना में शामिल किसी एक व्यक्ति के अपराध की सजा क्या सामूहिक होनी चाहिए? क्या यह गुजरात में बलात्कार की पहली घटना है जिसको इतनी हवा दी जा रही है? क्या आज इस देश का एक भी कोना छेड़छाड़, बलात्कार और घरेलू हिंसा से अछूता है? इन अहम सवालों पर हमें गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा। पीड़ित बच्ची सिर्फ गुजरात की नहीं बल्कि पूरे देश की है उसके प्रति हमारी गहरी संवेदना है, लेकिन अपराधी को किसी राज्य, मजहब या भाषा से नहीं जोड़ना चाहिए। अपराधी सभी राज्यों में हैं। पर घटना के बाद किसी विशेष राज्य के मजदूरों का रोजगार छीनकर, घरों से बेघर करना और मारपीट करना सड़ते समाज के कोढ़ में खाज के समान है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यूपी, बिहार के मजदूरों ने अपने सस्ते और शानदार श्रम से सिर्फ गुजरात ही नहीं बल्कि देश के ज्यादातर राज्यों की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुँचाया है। इसीलिए वे बुनियादी सम्मान के हकदार हैं।
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