मई 2024, अंक 45 में प्रकाशित

भाजपा सरकार में मुसलमानों और ईसाइयों पर बढ़ते हमले

बीते दिनों दिल्ली प्रशासन ने खजुरीखास में स्थित वकील हसन का घर ढहा दिया। वकील हसन उन रैट माइनर मजदूरों में एक हैं, जिन्हांेने बड़ी बहादुरी के साथ दिसम्बर में उत्तराखण्ड की सिल्क्यारा सुरंग में फँसे हुए 44 मजदूरों को जिन्दा बाहर निकाला था जो एक निजी कम्पनी और प्रशासन की लापरवाही और नाकाफी प्रयासों के चलते 17 दिनों से सुरंग में फँसे थे। बाद में सारा क्रेडिट लेने के लिए मंत्री और मुख्यमंत्री रैट माइनरों के साथ फोटो खिंचवाकर उनको सम्मानित करने का ढोंग करते रहे। रैट माइनर वकील हसन के साथ जो हुआ उसने सरकार के दोगले चरित्र को जगजाहिर कर दिया है।

हाल की कई घटनाएँ और आँकड़ें हमें बताते हैं कि कैसे भारत में बीते सालों में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति भेदभाव, नफरत और हिंसा तेजी से बढ़ी है। देश में ऐसी घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं, जिनमें मुस्लिम, ईसाई और दूसरे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया है। हल्द्वानी, पुरोला, नूह–मेवात आदि में हुई घटनाएँ और मणिपुर के जातीय दंगे एक बीमार समाज की गवाही देते हैं। यह साफ हो चुका है कि भाजपा के शासन में कमजोर तबकों, समुदायों और अल्पसंख्यकों को टारगेट किया जा रहा है। 2014 में जहाँ ईसाइयों पर 147 हमले हुए थे, वहीं 2023 में इनकी संख्या बढ़कर 687 हो गयी।

ये सम्प्रदायिक घटनाएँ राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा का रूप लेती जा रही हैं। हल्द्वानी में घटी 8 फरवरी की घटना में प्रशासन ने बुलडोजर से मरियम मस्जिद तथा अब्दुल रज्जाक जकारिया मदरसा ध्वस्त कर दिया था, जबकि इसको लेकर एक याचिका उच्च न्यायालय में विचाराधीन थी। इसनें हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में पुलिस और स्थानीय लोगों को आमने सामने ला दिया। पुलिस ने स्थानीय लोगों पर लगभग 1500 से 2000 राउंड अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें सात लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी और सैकड़ों लोग घायल हुए। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस द्वारा की गयी गोलीबारी में कम से कम 20 लोग मारे गये हैं।

सरकार ने नजूल की भूमि यानी सरकारी भूमि का बहाना बनाकर अपलसंख्यकों पर यह हमला किया। सवाल यही है कि हल्द्वानी की लगभग अधिकांश नजूल भूमि पर बसे लाखों आवास और कई मंदिरों को छोड़कर इसी मस्जिद और मदरसे को निशाना क्यों बनाया गया? साथ ही दिल्ली के खजुरीखास में हजारों घरों को छोड़कर क्यों सिर्फ वकील हसन के घर को निशाना बनाया गया? क्या यह भाजपा सरकार की शह पर नहीं हो रहा है?

हल्द्वानी लम्बे समय से कुमाऊँ क्षेत्र में भाजपा और आरएसएस के नफरती एजेंडे को आगे बढ़ाने का औजार रहा है। पिछले साल भी सर्दी में वनभूलपुरा खबरों में आया था। तब भाजपा सरकार ने 4365 परिवारों के घरों को ध्वस्त कर देने की कोशिश की थी। वनभूलपुरा में ज्यादातर मुसलमान रहते हैं। इलाके में इस साम्प्रदायिक राजनीति और दुष्प्रचार का परिणाम यह हुआ है कि हिन्दू बाहुल्य इलाके में इसे ‘मिनी पाकिस्तान’ कहा जाने लगा है। इसलिए जब कभी दंगे का माहौल बनता है, या कोई भी अफवाह आती है, तब–तब इस इलाके को जेल में बदल दिया जाता है। एक–एक घर में घुसकर पुलिस, पीएसी जाँच करने लगी है और अपनी नफरत का सारा कचरा यहाँ के अल्पसंख्यक समुदाय के पुरुषों, महिलाओं, नौजवानों और बच्चों पर निकालती है। कर्फ्यू लगाकर वनभूलपुरा को उसी तरह घेर लिया जाता है जैसे शिकार को भेड़िए घेर लेते हैं।

एक तरफ भाजपा सरकार कानून का बहाना बनाकर साम्प्रदायिक हमले कर रही है, दूसरी तरफ सरकार–प्रशासन द्वारा हिन्दूवादी संगठनों, स्थानीय गुंडों को पूरा आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण देकर लोगों में नफरत का जहर भरा जा रहा है। भाजपा के बड़े नेता भी मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा बोलने और जहर उगलने से पीछे नहीं हटते हैं। सुप्रीम कोर्ट के बार–बार फटकार लगाने के बावजूद गोदी–मीडिया के टीवी न्यूज चैनल नफरत फैलाने का काम पूरी मुस्तैदी से कर रहे हैं। सोशल मीडिया और ज्यादातर अखबार भी नफरत फैलाने के औजार बन गये हैं।

भारत में लगभग 20 करोड़ मुस्लिम रहते हैं। इसके साथ ही यहाँ बड़ी संख्या में ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोग भी रहते हैं। संवैधानिक सुरक्षा मिले होने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदाय आज कहीं अधिक भेदभाव, पूर्वाग्रह और हिंसा का सामना करने को मजबूर है। सुनियोजित तरीके से अल्पसंख्यकों के धार्मिक और सामुदायिक स्थलों पर हमले बढ़ गये हैं। भाजपा 2014 से ही हिन्दुत्व के नाम पर अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम समुदाय के लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का नफरती खेल खेल रही है। आज हालत यह है कि अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले लोगों को रोजगार और शिक्षा हासिल करने, प्राइवेट नौकरी पाने और राजनीति तक में भेदभाव और नफरत का सामना करना पड़ रहा है।

हमारे देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में सभी धार्मिक समुदायों ने एक होकर प्रयास किये थे। जालिम अंग्रेजों ने जनता की इस एकता को कमजोर करने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनायी थी। आज हमारे देश के शासक जनता के विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए अंग्रेजों की उसी नीति का इस्तेमाल कर रहे हैं। जनता की सच्ची एकता के बल पर ही अंग्रेजों के इन वारिसों को इतिहास के अजायबघर में पहुँचया जा सकता है।

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