सितम्बर 2020, अंक 36 में प्रकाशित

वाल स्ट्रीट जर्नल ने फेसबुक और सरकार के बीच गठजोड़ का खुलासा किया

14 अगस्त को अमरीका के ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की। उस रिपोर्ट में फेसबुक द्वारा दोहरा रवैय्या अपनाने की तथ्यात्मक पुष्टि की गयी थी, जिसमें भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के तीन नेताओं के बेहद घृणास्पद और विवादित बयानों को फेसबुक से नहीं हटाने पर सवाल किये गये थे। ये सवाल बेहद गम्भीर और जरूरी हैं। नेताओं के ये बयान स्वयं फेसबुक के “कम्युनिटी स्टैण्डर्ड” के खिलाफ थे। जवाब में फेसबुक की भारत, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया की “पब्लिक पॉलिसी” प्रमुख ने बताया कि ऐसा करने से उनकी कम्पनी के व्यापारिक हितों को नुकसान होगा और सत्तारूढ़ पार्टी से रिश्तों में खटास आएगी। फरवरी 2019 से अब तक भाजपा चुनाव प्रचार, पार्टी मुद्दों को आगे बढ़ाने और फेसबुक पर भाजपा की पकड़ बनाये रखने के लिए फेसबुक के ऊपर 4.61 करोड़ रुपये लुटा चुकी है। भाजपा फेसबुक पर ‘माई फर्स्ट वोट फॉर मोदी’, ‘मन की बात’ और ‘नेशन विद नमो’ प्लेट फार्म चलाने के लिए खूब पैसा खर्च कर रही है। इन खुलासों के बाद सोशल मीडिया पर जमकर विवाद हुआ। कुछ लोगों ने फेसबुक के ‘लोगो’ को नीले रंग से भगवा करके अपने पोस्ट पर साझा किया।

इन विवादों के बीच हमें याद रखना चाहिए कि फेसबुक निजी मालिकाने वाली एक दैत्याकार अमरीकी कम्पनी है जो अपने आर्थिक हित को ही प्राथमिकता देती है और ये हित ही उसके लिए मुख्य चालक शक्ति हैं। इन हितों को पूरा करने और बढ़ावा देने के लिए वह अपने खुद के बनाये हुए नियमों को तोड़ने के लिए कानूनी रूप से स्वतंत्र हैं। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि फेसबुक पर दोहरे मानदण्डों के तहत काम करने का यह कोई पहला आरोप नहीं है। फेसबुक पर लिखने और पोस्ट करनेवाले सरकार की नीतियों के अधिकांश आलोचक कभी न कभी फेसबुक के इस दोहरे मानदण्ड का शिकार होते ही हैं। इसके अलावा इस कम्पनी ने ब्राजील, सयुंक्त राज्य अमरीका और कई अन्य देशों में सामाजिक रूप से अराजक लोगों को प्रचारित और प्रसारित किया है।

फेसबुक एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी है जो किसी व्यक्ति से जुड़ी सूचनाओं को उसकी फेसबुक वाल पर साझा करने की अनुमति देता है, जिसे फेसबुक इन्टरनेट के माध्यम से उस व्यक्ति से जुड़े लोगों तक पहुँचा देता है। आपकी अपनी बात कहने की सुविधा भी फेसबुक द्वारा बनायी गयी नीतियों के अन्तर्गत ही होती है। फेसबुक, व्हाट्सएप्प, स्नैपचैट, इन्स्टाग्राम और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर हर सेकण्ड में लाखों गीगा बाईट डेटा का आदान–प्रदान होता है। सिर्फ एक उपभोक्ता के एक महीने के डेटा (औसतन 2 गीगा बाईट) को सुरक्षित करने में हमें 100–150 रुपये के मेमोरी कार्ड की जरूरत पड़ती है। अब अगर यह आँकड़ा अरबों उपभोक्ता और दस वर्षों का हो तो? कौन इन्हें सुरक्षित रखा है और क्यों? आपके गोपनीय डेटा की बिक्री और विज्ञापन से होने वाली कमाई के लिए कम्पनियाँ कई सालों तक डेटा अपने पास सुरक्षित रखती हैं।

मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की मासिक आय सिर्फ दस हजार रुपये है तो क्या उसके लिए कम्पनी द्वारा चार करोड़ की गाड़ी का विज्ञापन देना उचित कदम होगा? नहीं, तो फिर उसकी आय ग्रुप के लिए सटीक विज्ञापन क्या होगा? इसका पता लगाने के लिए जरूरी है कि कम्पनी उसके बारे में सही–सही जानकारी हासिल करे। यानी उसका नाम, उम्र, रंग, लिंग, यौनिकता, शिक्षा, वैवाहिक स्थिति, आमदनी, खरीदने वाले सामान, इस्तेमाल करने वाले उपकरण, पढ़ने वाली पुस्तकें, अखबार, सामाजिक–आर्थिक हैसियत, राजनीतिक झुकाव, दोस्त और दोस्तों के बीच बात–चीत के मुद्दे आदि। सीधे शब्दों में कहा जाये कि इनसान जो कुछ भी है, वह सब कम्पनियाँ जान लेना चाहती हैं।

गलत खबरों के प्रचार–प्रसार में सोशल मीडिया एक अहम भूमिका निभाता है। फेसबुक की एक रिपोर्ट के अनुसार झूठी खबरें, हिंसा की खबरें, साम्प्रदायिकता और राष्ट्रीयता की खबरें सच्ची खबरों की तुलना में जल्दी वायरल होती हैं, यानी तेजी से, बहुत तेजी से फैलाती हैं। भारत में ऐसी खबरों से दंगे भड़क जाते हैं, मोब–लिंचिंग होती है और लोगों को सच लिखने के चलते ट्रोल किया जाता है। सोशल मीडिया कम्पनियों पर सामाजिक रूप से इन बुरे नतीजों से कुछ फर्क नहीं पड़ता, उन्हें बस अपनी कमाई से मतलब होता है। मुनाफे को केन्द्र में रखकर काम करने वाली निजी मालिकाने वाली कम्पनियों के लिए मानवता विरोधी खबरें भी स्वर्णिम अवसर की तरह होती हैं और वे उसे पूरी तत्परता से भुनाती हैं। सोशल मीडिया कम्पनियाँ एक तरफ फर्जी खबरे फैलाने में सहायक होती हैं, तो दूसरी ओर वे वास्तविक खबरों को सेंसर भी करती हैं।

भारत में फेसबुक के सबसे ज्यादा उपभोक्ता हैं। मतलब सबसे ज्यादा धन कमाने का मौका। फेसबुक की शातिराना नजर सिर्फ मीडिया प्लेटफार्म पर ही नहीं है, बल्कि वह एक पेमेण्ट सिस्टम भी बनाना चाहती है। इतना ही नहीं वह इण्टरनेट की आपकी आईपी एड्रेस (इण्टरनेट पर आपका पहचान) पर नजर रखकर सोशल मीडिया से इतर आपकी गतिविधियों पर नजर रखना चाहती है। रिलायन्स के जियो और जिओमार्ट के साथ मिलकर फेसबुक भारत में अपने बाजार को बढ़ाना भी चाहती है। किसी भी देश में व्यापार को सुचारू रूप से चलाने के लिए वहाँ की सरकार का साथ देना आवश्यक है। सरकार अपनी चहेती कम्पनियों के लिए कानून बनाने से लेकर शासन–प्रशासन से जुड़ी सुविधा और सुरक्षा भी देती है। इसी के चलते विदेशी कम्पनियाँ भारत सरकार के साथ साँठ–गाँठ करने के लिए लालायित रहती हैं। इसी लालसा ने फेसबुक को लोकतंत्र विरोधी कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। वह सरकार, भाजपा और आरएसएस के साथ मिलकर एक खास विचारधारा को प्रश्रय देने लगी। इसके साथ ही विरोध की आवाज को दबाने लगी।

 
 

 

 

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