फासीवाद का भविष्य: कार्लो गिन्ज़बर्ग से जोसेफ कन्फावरेक्स की बातचीत

(यह बातचीत ‘मीडियापार्ट’ में सबसे पहले 20 सितम्बर, 2022 में फ्रेंच में- ‘Le fascisme a un futur’ शीर्षक से प्रकाशित हुई, जिसका अनुवाद ‘वर्सोबुक्स’ के लिए डेविडफर्नबाख ने अंग्रेजी में किया और जिसे 4 नवम्बर, 2022 को प्रकाशित किया गया। यहीं से इसका अनुवाद हिंदी में समालोचन के लिए सौरव कुमार राय ने किया है। अपनी ओर से इसे बोधगम्य बनाने के लिए उन्होंने कुछ पाद टिप्पणियाँ भी जोड़ी हैं। यह इटली के चुनाव में दक्षिणपंथी ‘जियोर्जिया मेलोनी’ की बढ़त और जीत की पृष्ठभूमि में लिया गया है। इसमें इतिहास उसके लेखन और लोकप्रिय-इतिहास जैसे मुद्दों पर गम्भीरता से विचार हुआ है।) कार्लो गिन्ज़बर्ग हमारे दौर के ‘लिविंग लीजेंड’ हैं। अपने अध्ययनों के माध्यम से उन्होंने इतिहास विषय की समकालीन महत्ता को लगातार स्थापित किया है। उनकी किताब ‘द चीज़ एंड द वर्म्स’ को ऐतिहासिक अध्ययन की दुनिया में ‘कल्ट’ का दर्जा प्राप्त है। ‘सूक्ष्म इतिहास’ अथवा ‘माइक्रोहिस्ट्री’ का शानदार.. आगे पढ़ें

सृजनशीलता हमेशा सामजिक होती है।

शीर्षक 'सृजनशीलता हमेशा सामजिक होती है' से लिखा गया यह लेख एजाज अहमद की महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है। उन्होंने सृजनशीलता जैसे गूढ़ विषय को अपने अनुभव और सरल अंदाज से किसी भी आम पाठक के लिए बेहद रोचक और जिज्ञासा पैदा करने वाला बना दिया है। दार्शनिक शब्दाडम्बरों या अमूर्त उदाहरण के बजाय उन्होंने सृजनशीलता को रोजमर्रा की जिदगी से जोड़कर बताया है। उन्होंने बताया कि भाषा मनुष्य की पहली सृजनता है, बच्चा पैदा होने के बाद दो-तीन साल में अपने आसपास के लोगों की भाषा सीख लेता है। इस भाषा के जरिए वह संवाद करता है और सामाजिक रिश्ते बनाता है। इन रिश्तों में दोस्ती, प्रेम, नफ़रत सभी शामिल हैं। और यह सब सृजनशीलता ही है। उन्हीं के शब्दों में- "इसका अर्थ यह है कि सृजनशीलता केवल कवियों, गायकों, चित्राकारों या किसी और तरह के कलाकारों में ही नहीं, बल्कि सभी मनुष्यों में होती है और वह.. आगे पढ़ें

अपने बेटे के लिए उसके पहले जन्मदिन पर गाजा में लिखा एक पत्र

चाहे जो हो, मेरे बच्चे, हम तुम्हारा पहला जन्मदिन मनाएंगे। जब से तुम पैदा हुए हो, कैस,  मैंने पिता के रूप में जिंदगी के उद्देश्य को और गहराई से महसूस किया. जिंदगी के इस क्षण तक पहुँचने के लिए मैंने खुद को काफी समय पहले से तैयार किया हुआ था. मैं तुम्हारी अच्छी परवरिश करने के लिए उत्सुक हूं ताकि मैं भविष्य में गर्व से इसकी समीक्षा कर सकूं। जब से तुम पैदा हुए हो, तुम्हारी माँ ने हर महीने एक छोटा जन्मदिन मनाया, इस बात को शिद्दत से महसूस करने के लिए कि तुमने हमारी जिंदगियों को रौशन किया। मैं इन छोटी पार्टियों में शामिल रहा, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर, मैं कुछ बड़ा करने के लिए तुम्हारे पहले जन्मदिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। मैंने पूरे परिवार, विशेष रूप से तुम्हारे चाचा, चाची और चचेरे भाई को आमंत्रित करने का मन बना लिया था। हम सभी बड़े.. आगे पढ़ें

उन्नीसवीं सदी का भारतीय पुनर्जागरण : यथार्थ या मिथक

(एक) पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से मैं इस पर सोचता रहा हूं और इस विषय पर कुछ खंड लिख भी चुका हूं. 19वीं सदी के गुजराती साहित्य में और विशेष रूप से नवलराम और गोवर्धनराम के लेखन में मेरी रूचि है. मगर दुर्भाग्य से गोवर्धनराम का सरस्वतीचंद्र हिंदी में उपलब्ध नहीं है. यहां मैं गोवर्धनराम के उस भाषण का खास तौर पर उल्लेख करना चाहता हूं, जो उन्होंने 1892 में विल्सन कॉलेज की लिटरेरी सोसाइटी में अंग्रेजी में दिया था. विषय था-क्लासिकल पोयट्स ऑफ गुजरात. नरसी मेहता, अखो और प्रेमानंद पर वहां उन्होंने भाषण दिया था. 17वीं शताब्दी के दो प्रसिद्ध कवियों प्रेमानंद और शामल भट्ट पर विशेष रूप से उन्होंने टीका प्रस्तुत की थी. मैं यह देखकर आश्चर्यचकित था कि केवल पचास वर्षों के अंतराल के बाद ही कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने अपनी किताब गुजराती साहित्य का इतिहास में उनके विचारों का खंडन किया. बाद में मनसुखलाल झावेरी ने अपने.. आगे पढ़ें

परम पूँजीवाद

फ्रांसीसी कवि चार्ल्स बुडले ने 1864 में लिखा था कि ‘शैतान का सबसे चालाक प्रपंच होता है आपको यह समझाना कि उसका तो कोई अस्तित्व ही नहीं है।’(1) मैं यहाँ यह कहूँगा कि यह कथन आज के नवउदारवादियों पर बिलकुल फिट बैठता है जिनका शैतानी प्रपंच है यह जताना कि उनका तो कोई अस्तित्व ही नहीं है। नवउदारवाद को इक्कीसवीं सदी के पूँजीवाद की केन्द्रीय राजनीतिक–विचारधारागत परियोजना माना जाता है। यह मान्यता बड़ी व्यापक है। लेकिन इस शब्द का इस्तेमाल सत्ताधीश शायद ही कभी करते हैं। अमरीकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने तो नवउदारवाद के नहीं होने को आधिकारिक आधार ही दे दिया था जब उसने 2005 में एक लेख प्रकाशित किया था जिसका शीर्षक था–– ‘नियोलिबरलिज्म? इट डज नॉट एक्जीस्ट’(2) (नवउदारवाद? इसका तो कोई अस्तित्व ही नहीं है)। इस शैतान के प्रपंच के पीछे है एक बड़ी ही व्यथित कर देने वाली और कह सकते हैं कि एक नारकीय सचाई।.. आगे पढ़ें

'मंथली रिव्यू' और पर्यावरण

माह की समीक्षा जॉन बेलामी फोस्टर और बटुहान सरिकन द्वारा (नवंबर 01, 2023) जॉन बेलामी फोस्टर मंथली रिव्यू के संपादक और ओरेगॉन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के एमेरिटस प्रोफेसर हैं। बटुहान सरिकन, गैस्ट्रो एको के संपादकीय निदेशक हैं, जो तुर्की में स्थित भोजन और पारिस्थितिकी पर केंद्रित समाचार वेबसाइट है। यह 23 सितंबर, 2023 को गैस्ट्रो एको, gastroeko.com पर प्रकाशित एक साक्षात्कार का थोड़ा संशोधित संस्करण है। बटुहान सरिकन : जॉन, प्रकृति के साथ आपका रिश्ता कैसे शुरू हुआ? आपको अपने बचपन से इसके बारे में क्या याद है? जॉन बेलामी फोस्टर : मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रशांत नॉर्थवेस्ट में पला-बढ़ा हूँ, जो अपने जंगलों और सामान्य पर्यावरण के लिए प्रसिद्ध है। मेरा जन्म सिएटल में हुआ था, लेकिन जब मैं 1 से 5 साल के बीच था, हम एक लकड़ी के शहर, रेमंड, वाशिंगटन में रहते थे, जहाँ मेरे पिता एक शिक्षक थे। रेमंड की कुछ आरा मिलें, जो.. आगे पढ़ें

बिना कपड़ोंवाले दार्शनिक: 'द वॉर अगेंस्ट मार्क्सिज्म' की समीक्षा

(20 नवंबर, 2021 को पोस्ट किया गया) मूल रूप से प्रकाशित: काउंटरफ़ायर, 11 नवंबर, 221 को क्रिस नाइनहैम द्वारा | मार्क्सवाद के विरुद्ध युद्ध , टोनी मैककेना यह पुस्तक नयी है और लंबे समय से प्रतीक्षित है। इसके दो मुख्य गुण हैं. सबसे पहले, यह अकादमिक मार्क्सवाद और आलोचनात्मक सिद्धांत की कुछ फैशनेबल मूर्तियों-- जिनमें थियोडोर एडोर्नो, लुई अल्थुजर, चैंटल माउफ़े, अर्नेस्टो लैक्लाऊ और स्लावोज ज़िज़ेक शामिल हैं-- को एक ओर अश्लीलतावादी होने और दूसरी ओर अक्सर गहराई से गुमराह करनेवाला कहने का साहस करती है। दूसरा, यह क्रांतिकारी मार्क्सवाद के दार्शनिक आधार को बहुत स्पष्ट और जुझारू तरीके से सामने रखती है और उसका बचाव करती है। दाँव पर बहुत ऊंची चीज लगी हुई है। मैककेना जिन मुद्दों को संबोधित करते हैं वे मुख्यतः सैद्धांतिक हैं, लेकिन अमूर्तता से बहुत दूर हैं। वे इस बात से चिंतित हैं कि लोग पूंजीवाद, वर्ग का महत्व और पूंजीवाद विरोधी प्रतिरोध की संभावना का अनुभव कैसे करते हैं। वे समाज को समझने.. आगे पढ़ें

सीआईए और फ्रैंकफर्ट स्कूल का साम्यवाद विरोध

वैश्विक सिद्धांत उद्योग की बुनियाद फ्रांसीसी सिद्धांत के साथ-साथ फ्रैंकफर्ट स्कूल (Frankfurt School) का आलोचनात्मक सिद्धांत (Critical Theory) वैश्विक सिद्धांत उद्योग (Global Theory Industry) के सबसे अधिक बिकनेवाले मालों (hottest commodities) में से एक रहा है। साथ में, वे (आलोचनात्मक सिद्धांत और फ्रांसीसी सिद्धांत) सैद्धांतिक आलोचना की कई प्रवृत्तियों को दिशा देने और उसे सेट करनेवाले रूपों के लिए सामान्य स्रोत की तरह कार्य करते हैं। आज वे पूंजीवादी दुनिया के अकादमिक बाजार-- उत्तर-औपनिवेशिक (postcolonial) और विऔपनिवेशिक सिद्धांत (decolonial theory) से लेकर क्वियर सिद्धांत (queer theory), अफ़्रीकी-निराशावाद (Afro-pessimism) और उससे आगे तक पर हावी हैं। इसलिए फ्रैंकफर्ट स्कूल के राजनीतिक रुझान का वैश्वीकृत पश्चिमी बुद्धिजीवियों (globalized Western intelligentsia) पर बुनियादी असर पड़ा है। इस लेख के केंद्र में रहेंगे-- इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के पहली पीढ़ी के मशहूर लोग, खासकर थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर। ये सभी उस क्षेत्र की ऊँची हस्ती हैं जिसे पश्चिमी मार्क्सवाद या सांस्कृतिक मार्क्सवाद के.. आगे पढ़ें

डिजिटल युग में मीडिया

डिजिटल मीडिया तेजी से हमारे जीवन पर कब्जा कर रहा है - चाहे वह सोशल मीडिया हो, डिजिटल क्लासरूम हो या नेटफ्लिक्स जैसे ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म। यहां तक कि विश्व कप का प्रसारण भी न केवल टीवी बल्कि विभिन्न ऐप के माध्यम से भी किया जा रहा है। आज के नौजवानों का अपने मोबाइल फोन के साथ एक भावनात्मक रिश्ता है, वे हमें केवल उनकी मोबाइल स्क्रीन के लोड होने तक के बीच ही समय देते हैं। डिजिटल मीडिया के उभार के साथ, हमें ताकतवर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का भी उभार देखने को मिलता है जो तेजी से यह तय करता है कि हम अपने समाचार और मनोरंजन कैसे हासिल करें और साथ ही यह दुनिया के सबसे बड़े एकाधिकारियों में से एक बने। जबकि अक्सर इन डिजिटल प्लेटफॉर्म, जैसे कि गूगल और फेसबुक/मेटा, को मीडिया से अलग करते हुए सोशल मीडिया कहा जाता है, आज हमें यह पहचानने.. आगे पढ़ें

एग्रीकल्चरल केमिस्ट्री 1862 संस्करण की भूमिका

जस्टस फॉन लिबिग ने 1862 में अपनी ‘आर्गेनिक केमिस्ट्री इन इट्स एप्लीकेशन टू एग्रीकल्चर एंड फिजियोलॉजी’ का 7वां संस्करण प्रकाशित की थी, जिसे अक्सर ‘एग्रीकल्चरल केमिस्ट्री’ के नाम से जाना जाता है।  लिबिग के किसी भी काम का तुरंत अंग्रेजी में अनुवादित होना आम था । हालाँकि, एग्रीकल्चरल केमिस्ट्री के 1862 संस्करण के पहले खण्ड में, खासकर इसके लम्बे और उत्तेजक परिचय में, उन्नत ब्रिटिश कृषि पद्धति की विस्तृत आलोचना भी शामिल था। लीबिग के अंग्रेज प्रकाशक वाल्टन ने इसे “अपमानजनक” करार देते हुए अपनी प्रति को नष्ट कर दिया था। इसलिए, अंग्रेजी में कभी इसकी सम्पूर्ण कृति छपी ही नहीं। हालांकि, 1863 में इस किताब के दूसरे खण्ड का अनुवाद आयरिश वैज्ञानिक जॉन ब्लीथ ने ‘द नेचुरल लॉ ऑफ़ हसबेंडरी’ के नाम से किया और इसे न्यू यॉर्क की अप्पलटन ने प्रकशित की । उस किताब में 1862 संस्करण की भूमिका शामिल थी, लेकिन संक्षिप्त और नरम लहजे का.. आगे पढ़ें