गेहूँ बनाम गुलाब

गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से हमारा मानस तृप्त होता है। गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्या चाहते हैं—पुष्ट शरीर या तृप्त मानस? या पुष्ट शरीर पर तृप्त मानस! जब मानव पृथ्वी पर आया, भूख लेकर। क्षुधा, क्षुधा; पिपासा, पिपासा। क्या खाए, क्या पीए? माँ के स्तनों को निचोड़ा; वृक्षों को झकझोरा; कीट-पतंग, पशु-पक्षी—कुछ न छूट पाए उससे! गेहूँ—उसकी भूख का क़ाफिला आज गेहूँ पर टूट पड़ा है! गेहूँ उपजाओ, गेहूँ उपजाओ, गेहूँ उपजाओ! मैदान जोते जा रहे हैं, बाग़ उजाड़े जा रहे हैं—गेहूँ के लिए! बेचारा गुलाब—भरी जवानी में कहीं सिसकियाँ ले रहा है! शरीर की आवश्यकता ने मानसिक प्रवृत्तियों को कहीं कोने में डाल रखा है, दबा रखा है। किंतु; चाहे कच्चा चरे, या पकाकर खाए—गेहूँ तक पशु और मानव में क्या अंतर? मानव को मानव बनाया गुलाब ने! मानव, मानव तब बना, जब उसने शरीर की आवश्यकताओं.. आगे पढ़ें

पहलगाम के आतंकी हमले और साम्प्रदायिक राजनीति की मुखालफत के लिए आगे आओ!

22 अप्रैल को दोपहर बाद कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने 28 सैलानियों की गोली मारकर हत्या कर दी। शाम तक सोशल मीडिया पर इस दुखद घटना के दिल दहला देने वाले वीडियो चलने लगे। जब सारा देश इस हत्याकांड के शोक में डूबा था, लोग कश्मीर घूमने गये अपनो की खैरियत जानने को बेचैन थे। लेकिन गिद्ध की तरह लाशें गिरने के इन्तजार में बैठे गोदी टीवी चैनलों और भाजपा के आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर इस दुखदायी घटना का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में करना शुरू कर दिया। सरकार की नाकामी पर पर्दा डालने के लिए ‘नेरेटिव’ गढ़ा गया कि “धर्म पूछकर हिन्दुओं का कत्लेआम” किया गया है। जबकि जान गँवाने वालों में ईसाई और मुस्लिम भी थे। रातों-रात मुसलमानों के खिलाफ दर्जनों भड़काऊ सांप्रदायिक कविताएं और पोस्टर सोशल मीडिया में भर गये। सुबह तक इंटरनेट की दुनिया मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक रंग में रंग दी.. आगे पढ़ें

बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि हिंदू राज भारत के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी: आनंद तेलतुंबड़े

दलित आंदोलन के अग्रणी विद्वान तेलतुंबड़े बताते हैं कि कैसे हिंदुत्ववादी पार्टियां राजनीतिक लाभ के लिए बाबासाहेब का इस्तेमाल करती हैं।  -- अमेय तिरोडकर विद्वान आनंद तेलतुम्बडे कहते हैं कि अंबेडकर का मानना ​​था कि जब तक हिंदू धर्मशास्त्रों को नष्ट नहीं किया जाएगा, जाति व्यवस्था समाप्त नहीं होगी। आनंद तेलतुंबड़े भारत के प्रमुख सार्वजनिक बुद्धिजीवी और दलित आंदोलन के विशेषज्ञ माने जाते हैं. अंबेडकर पर उनकी किताब ‘आइकोनोक्लास्ट: ए रिफ्लेक्टिव बायोग्राफी ऑफ़ डॉ बाबासाहेब अंबेडकर’ देश भर में चर्चित रही है। यह किताब न केवल बाबा अंबेडकर के दर्शन का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है, बल्कि यह भी बताती है कि वे एक जटिल, दूरदर्शी और दृढ़ व्यक्ति थे। फ्रंटलाइन के साथ इस साक्षात्कार में  तेलतुंबड़े बाबासाहेब को जीवंत कर देते हैं. बाबासाहेब एक ऐसे प्रतीक हैं जो अब चिंताजनक रूप से कई राजनीतिक दलों और आम लोगों द्वारा "पूजे" जाते हैं। अंबेडकर के पास "बहुत प्रगतिशील मूल्य" थे, जो इस ‘पूजा’ के.. आगे पढ़ें

रूस–यूक्रेन युद्ध अभी जारी है

रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर पहली बार हमला किया। इसके बाद से यह लड़ाई अनवरत जारी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय इलाके की ये सबसे बड़ी जंग है। लगभग 3 साल बाद 29 नवम्बर को यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अमरीकी न्यूज चैनल स्काई न्यूज को बताया कि वह रूस के साथ युद्ध रोकने के लिए तैयार है। इसके लिए रूस के कब्जे की जमीन भी छोड़ देंगे। इससे पहले अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी संकेत दिया था कि रूस को कीव के दावे की जमीन इस शर्त पर दी जा सकती है कि यूक्रेन को नाटो सदस्य बने रहने की छूट मिल जाये। वैसे तो युद्ध का समाप्त होना रूस–यूक्रेन के साथ–साथ पूरी दुनिया के लिए शुभ संकेत है, क्योंकि इस युद्ध से इतना नुकसान हुआ है कि उससे कई नये देश बसाये जा सकते थे। रूस ने थल सेना से.. आगे पढ़ें

2,26,800 करोड़ रुपये का मासिक व्यापार घाटा

सितम्बर महीने में व्यापार घाटा 1,74,552 करोड़ रुपये (20.78 अरब डॉलर) था जिसको लेकर सरकार और मीडिया ने खूब ढिंढोरा पीटा कि भारत का व्यापार घाटा तेजी से कम हो रहा है। यह भी दावा किया गया कि पिछले साल की तुलना में अक्टूबर महीने में इस साल का व्यापार घाटा सबसे कम होगा। इस पर मोदी जी की दूरदर्शिता का खूब बखान किया गया। ऐसा अनुमान लगाया गया था कि अक्टूबर में देश का व्यापार घाटा 1,84,800 करोड़ रुपये रहेगा। लेकिन इस सब हवाबाजी की पोल–पट्टी तब खुल गयी जब अक्टूबर के आकड़े सामने आए। इसमें पता चला कि व्यापार घाटा तो बढ़कर 2,26,800 करोड़ रुपये हो गया है, जो अनुमान से करीब 42,000 करोड़ रुपये ज्यादा था। इस पर सरकार और उससे सम्बद्ध मीडिया घरानों की घिग्गी बँध गयी। इन आँकड़ों को देखकर उनके मुँह से चू भी नहीं निकली।  अगर पिछले कुछ महीनों की तुलना की जाये.. आगे पढ़ें

रूस की समाजवादी शिक्षा-व्यवस्था दुनिया के लिए बनी मिसाल

भारत की आजादी के 70 दशक हो चुके हैं फिर भी हमारी सरकारें देश की जनता को शिक्षा और स्वस्थ्य का समान अधिकार देने में नाकाम रहीं हैं। हिंदुस्तान जैसे-जैसे जवान होता गया देश की शिक्षा-स्वस्थ्य व्यवस्था पूंजीपतियों या यूं कहें कि निजी हाथों की कठपुतली बनती गई । आलम ये है कि सरकारी संस्थानों में आज लोग अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते । हम आरक्षण की मांग करते हैं, राजनीतिक दल आरक्षण के मायाजाल में देश की जनता को उलझाए रखना चाहते हैं, क्या हमने कभी समान शिक्षा और समान स्वास्थ्य के लिए कोई आवाज उठाई या आंदोलन किया । नहीं किया क्योंकि हर कोई जानता है कि समान शिक्षा होने से हर कोई जागरुक हो जाएगा, अमीर-गरीब का भेद बहुत कम हो जाएगा, लोग हर कदम पर हक की बात करने लगेंगे, लिहाजा जितने धीरे-धीरे देश की जनता साक्षर होगी उतना ही आसान होगा उन्हें गुमराह करना।.. आगे पढ़ें

बुद्धिजीवी की भूमिका

(विश्‍वविख्‍यात पुस्तक 'ओरियंटलिज्म़` (प्राच्यवाद) के लेखक एडवर्ड सईद (१ नवंबर, १९३५-२५ सिंतबर, २००३) लंबे समय तक कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अंग्रेजी भाषा और तुलनात्मक साहित्य के प्रोफेसर रहे। फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के लिए राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाले सईद की प्रतिष्ठा उत्तर-औपनिवेशिक सिद्धांतकार व साहित्य-आलोचक के रूप में है।-सं०) मैं लगभग चालीस वर्षों से अध्यापन का कार्य कर रहा हूं। बतौर विद्यार्थी और बाद में एक अध्यापक की हैसियत से अपने जीवन का ज्यादातर हिस्सा मैंने विश्वविद्यालय की चहारदीवारी के अंदर गुजारा है। विश्वविद्यालय मेरे लिए, जैसा कि मेरा विश्वास है हम सब के लिए, चाहे जिस हैसियत से भी आप इससे जुड़े हों, एक बेमिसाल जगह है। एक ऐसा आदर्श स्थान, जहां सोचने की आजादी, परखने की आजादी तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही सारतत्त्व होते हैं। वास्तव में, हम जानते हैं कि विश्वविद्यालय किस हद तक ज्ञान व विद्वता का भी केन्द्र होता है। कई सवालों में.. आगे पढ़ें

‘ट्रेजेडी ऑफ कॉमन्स’ का मिथक

क्या साझा संसाधनों का हमेशा दुरुपयोग और अत्यधिक उपयोग किया जाएगा ? क्या जमीन, वन और मत्स्य पालन पर सामुदायिक मालिकाना पारिस्थितिक आपदा का निश्चित राह है ? क्या निजीकरण पर्यावरण की रक्षा और तीसरी दुनिया की गरीबी को खत्म करने का एकमात्र तरीका है ? अधिकांश अर्थशास्त्री और विकास योजनाकार इसके जवाब में “हाँ” कहेंगे और इसके प्रमाण के लिए वे उन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर लिखे गये अब तक के सबसे प्रभावशाली लेख की ओर इशारा करेंगे । दिसम्बर 1968 में साइंसजर्नल में प्रकाशित होने के बाद से, “द ट्रेजेडी ऑफ द कॉमन्स” को कम से कम 111 पुस्तकों में संकलित किया गया है, जिससे यह किसी भी वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित होने वाले सबसे अधिक पुनर्मुद्रित लेखों में से एक बन गया है । यह सबसे अधिक उद्धृत लेखों में से एक है । हाल ही में गूगल–खोज में “ट्रेजेडी ऑफ द कॉमन्स” वाक्यांश के लिए “लगभग 3,02,000”.. आगे पढ़ें

शीशमबाडा कचरा प्लांट का सर्वे

 देहरादून की पछवादून घाटी में एक बेहद खूबसूरत जगह है–– बायाखाला । यह आसन नदी के किनारे पर है और इसके ठीक सामने पछवादून की हरी–भरी रसीली पहाड़ियाँ हैं । कुछ सालों पहले तक यह इलाका एक विशाल खूबसूरत पेंटिंग जैसा दिखता था । बरसात के मौसम में बासमती धान की सीढ़ीदार पट्टियाँ इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देती थी । लेकिन कुछ ही सालों में यह इलाका एक बदबूदार नरक में तब्दील कर दिया गया है । आसन नदी के खूबसूरत तट से लेकर बायाखाला और शीशमबाडा गाँव की दहलीजों तक की कई बीघे जमीन पर कूड़े का पहाड़ खड़ा कर दिया गया है । (फोटो इन्टरनेट न्यू हिन्दुस्तान से साभार) इससे हर समय इतनी भयानक और जहरीली बदबू निकलती रहती है कि बाहर से गये किसी इंसान के लिए एक मिनट खड़ा होना भी दूभर हो जाता है । यह बदबू इलाके के निवासियों के जिस्म और.. आगे पढ़ें

इसराइल के खिलाफ लड़े जा रहे बीडीएस आन्दोलन का समर्थन करें

फिलिस्तीन की जनता पर इजरायल का साम्राज्यवादी हमला लगातार जारी है। आज के फिलिस्तीन की सच्चाई को जानने के लिए 1948 के फिलिस्तीन के हालात को समझना जरूरी है, जब ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी देशों ने इजरायल के निर्माण का समर्थन किया था। इस जायोनी राज्य ने फिलिस्तीनियों की जमीन पर कब्जा करके यहूदियों के एक राष्ट्र का निर्माण किया, उन्हें जबरन उजाड़ा, कत्ल किया और उनके तमाम अधिकार छीने। आज फिलिस्तीनियों का जो कत्लेआम हो रहा है, वह 1948 के ‘नकबा’ के दौरान फिलिस्तीनियों के जातीय संहार की याद दिलाता है, जिसमें 7.5 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को उनकी मातृभूमि से खदेड़ दिया गया था और जिसे  इजरायल अपनी स्वतंत्रता मानता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे समय में साम्राज्यवाद सबसे विनाशकारी विचारधारा है जिसने फिलिस्तीनियों के सीधे नरसंहार को जन्म दिया है। गाजा पट्टी पर  इजरायल की भयावह बमबारी की तस्वीरें सामने आयी हैं, जिनमें  इजरायल की.. आगे पढ़ें