क्यूबा तुम्हारे आगे घुटने नहीं टेकेगा, बाइडेन
पिछले दिनों क्यूबा में भोजन और दवाई की कमी को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। इन प्रदर्शनों को साम्राज्यवादी मीडिया में ऐसे दिखाया गया मानो क्यूबा में समाजवादी सत्ता का तख्तापलट हो रहा हो। यह सच है कि क्यूबा लम्बे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहा है। कोरोना महामारी और वेनेजुएला से तेल आपूर्ति में भारी कमी ने और भी गम्भीर हालात पैदा कर दिये। इसके साथ ही अमरीकी प्रतिबन्धों के और ज्यादा कठोर हो जाने से देश में भोजन और दवाओं की भारी कमी हो गयी।
कोरोना महामारी में हमने देशों को दूसरों की मदद करते देखा है, लेकिन क्यूबा के मामले में स्थिति बिल्कुल उल्टी है। सभी जानते हैं कि कोरोना की पिछली लहर के दौरान क्यूबा ने बहुत से देशों की मदद की थी। क्यूबा से मदद पाने वालें में यूरोपीय देश भी थे। लेकिन संकट की घड़ी में कोई भी यूरोपीय, एशियाई या अफ्रीकी देश क्यूबा की मदद के लिए आगे नहीं आया। सभी अमरीका की दादागिरी के आगे नाक रगड़ रहे हैं।
क्यूबा सभी देशों से अलग अपने देश को जनता के हित में समाजवादी तौर–तरीकों से चलाने की कोशिश कर रहा है। कोरोना महामारी से जहाँ अमरीका और यूरोप के ताकतवर देश पस्त हो गये, वहीं क्यूबा ने महामारी पर शानदार ढंग से जीत हासिल की। उसकी स्वास्थ्य नीतियों की पूरी दुनिया में प्रशंसा हुई और अमरीका समेत कई देशों की जनता ने अपनी सरकारों से क्यूबा जैसी नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा देने वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली कायम करने की माँग की। यही बात साम्राज्यवादी अमरीका को बेहद नागवार गुजरी।
ट्रम्प प्रशासन ने क्यूबा पर लगे प्रतिबन्धों को महामारी के दौरान और ज्यादा कठोर कर दिया था। नयी बनी बाइडेन की सरकार ने प्रतिबन्धों में ढील देने के बजाय उन्हें और भी ज्यादा कड़ा करके क्यूबा की कमर तोड़ने और वहाँ दंगे भड़काने की असफल कोशिश की। अमरीका की नयी डेमोक्रेट सरकार क्यूबा के लिए नये संकट लेकर आयी है, उसके आने से अमरीका में कुछ नहीं बदला है।
यह सच है कि आर्थिक प्रतिबन्धों और महामारी के कारण क्यूबा में भोजन के दामों मे बढ़ोतरी हुई थी और दवाओं की कमी भी हुई थी। यह भी सच है कि इसके चलते कुछ लोगों ने जुलाई के दूसरे सप्ताह में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किये थे। क्यूबा से भागकर अमरीका के फ्लोरिडा में बसे, क्यूबा की समाजवादी नीतियों के धुर विरोधी, धनी क्यूबाई लोगों को अमरीकी सरकार ने खुलेआम लाखों डॉलर की रिश्वत देकर उनकी सहायता से इन प्रदर्शनों को हवा देने की जी जान से कोशिश की। विरोध प्रदर्शनों को क्यूबा के सभी शहरों में फैलाने के लिए अमरीका के दैत्याकार सोशल मीडिया गिरोह ने एड़ी–चोटी का जोर लगा दिया। फ्लोरिडा के गर्वंनर और दक्षिणपंथी रिपब्लिकन रिंक डेसेंटिस ने तो खुले तौर पर क्यूबा में सत्ता परिवर्तन का आह्वान किया और डेड काउ़न्टी, मियामी के मेयर फ्रान्सिस सुआरेज ने इससे भी आगे बढ़कर बाइडेन प्रशासन से क्यूबा में सैन्य हस्तक्षेप की माँग की।
क्यूबा में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कोई अचम्भे की बात नहीं है लेकिन यह पिछले एक दशक में पहली बार हुआ कि प्रदर्शनकारियों ने सैनिकों को निशाना बनाया और कुछ दुकानों को भी लूटा। निश्चय ही अमरीका को अपनी करतूतों का थोड़ा सा फल तो मिला है।
प्रदर्शनों के दौरान क्यूबा के राष्ट्रपति डियाज–कैनेल खुद सैन एण्टोनिया डी लास शहर मे प्रदर्शनकारियों के बीच पहुँचे और उनकी सभा में जाकर उनके तमाम सवालों का जवाब दिया तथा उनकी माँगों को पूरा करने में समाने आ रही समस्याओं को गिनवाया। दुनिया के किसी पूँजीवादी देश में या तथाकथित लोकतंत्र के सबसे बड़े पैरोकार खुद अमरीका में ही ऐसी लोकतान्त्रिक घटना की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
तमाम तरह के प्रतिबन्धों और खुफिया एजेन्सियों की काली करतूतों के अलावा अमरीका हर साल क्यूबा के सरकार विरोधी समूहों को 2 करोड़ डॉलर की खुली सहायता देता है। क्यूबा को संकट मे फँसा जानकर बाइडेन प्रशासन ने यह रकम अचानक दो गुनी कर दी है। अफसोस, कि अमरीका को फिर भी मुँह की खानी पड़ी और हफ्ताभर में ही प्रदर्शनकारी अपने घरों को लौट गये।
अमरीका की सत्ता में डेमोक्रेट हो या रिपब्लिकन, इससे क्यूबा के लिए कुछ नहीं बदलता। डेमोक्रेट बाइडेन की क्यूबा विरोधी–करतूतों से ठीक पहले रिपब्लिकन ट्रम्प प्रशासन ने क्यूबा पर नये तरह के 243 प्रतिबन्ध लगाये थे जिसमें यात्रा प्रतिबन्ध भी शामिल है। बाइडेन प्रशासन में यह सभी प्रतिबन्ध तो ज्यों के त्यों बने हुए हैं, इनके अलावा कुछ नये प्रतिबन्ध भी लगा दिये गये हैं।
अमरीका क्यूबा की समाजवादी सत्ता को ढहाकर मुक्त बाजार की सेवा करने वाली सरकार बनाना चाहता है। राष्ट्रपति डियाज–कैनेल अमरीकी मंशा को बखूबी जानते हैं। प्रदर्शन के दौरान मीडिया को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि “क्यूबा मे चल रहे विरोध प्रदर्शन को प्रोत्साहन देने वालों के मन में क्यूबा के लोगों के प्रति भलाई नहीं है, बल्कि वे क्यूबा की उच्च शिक्षा और चिकित्सा में निजीकरण के नवउदारवादी एजेण्डे को पूरा करना चाहते हैं।”
तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबन्धों, आर्थिक संकट और सत्ता परिवर्तन की अमरीका की जी तोड़ कोशिशों के बावजूद क्यूबा कोरोना के टीकाकरण के मामले में दुनिया में उन्नत स्थान पर है। पेटेण्ट कानूनों के जरिये हर तरह के ज्ञान पर काबिज दुनिया के साम्राज्यवादी देशों ने क्यूबा को न तो कोरोना का टीका दिया और ना ही उसे तैयार करने वाली तकनीक और कच्चा माल। इस छोटे से बहादुर देश ने महामारी से निपटने के लिए अपने खुद के पाँच तरह के टीके तैयार किये हैं।
क्यूबा के लोगों को ऑक्सीजन या बेड की कमी के कारण मरना नहीं पड़ रहा है। इसलिए क्यूबा के लोग देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए अमरीकी साम्राज्यवाद से निडरता से लड़ रहे हैं और इंच भर भी पीछे नहीं हटे हैं। इसके उलट अमरीका को मुँह की खानी पड़ी है। तमाम तरह के प्रतिबन्धों के बावजूद क्यूबा के मेहनतकश लोगों ने बहुत जल्दी और बहुत हद तक भोजन और दवाई की कमी पर भी काबू पा लिया है। दूर–दूर तक नहीं लगता कि क्यूबा अमरीका के सामने–आत्मसमर्पण कर देगा।
क्यूबा के राष्ट्रपति ने विरोध प्रदर्शन के दौरान ही कहा था कि “हम अपनी सम्प्रभुता, क्यूबा के लोगों की स्वतंत्रता और आजादी का समर्पण नहीं करेंगे”। हम क्रान्तिकारी हैं और अपना जीवन भी दाँव पर लगाने के लिए तैयार हैं।”
क्यूबा के इस क्रान्तिकारी जज्बे, हौसले, दृढ़ संकल्प और संघर्ष को सलाम!
–– आदर्श चैहान
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