राजनीतिक अर्थशास्त्र

अमरीका में फैक्टरी फार्मिंग का विकास और पारिवारिक पशुपालन का विनाश

अमरीका की खेती में निगमीकरण के बढ़ते प्रभाव को देखने पर कई दिलचस्प तथ्य सामने आते हैं। मसलन, लागतों, मशीनरी और पैदावार पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का नियन्त्रण, फैक्टरी फार्मिंग का उदय तथा ग्रामीण पारिवारिक खेती और पशुपालन का विनाश आदि। आज अमरीका में फैक्टरी फार्मिंग के विस्तार से शायद ही यह अनुमान लगाया जा सके कि जब यूरोप से आये लोगों ने इस धरती को अपना घर बनाया था तो उस समय का पशुपालन इससे बिलकुल जुदा किस्म का था। जाहिर है कि आज की तुलना में उस दौर में तकनीक पिछड़ी हुई थी। मूलत: शारीरिक श्रम के दम पर खेती और पशुपालन किया जाता था, वह भी अफ्रीकी गुलामों के श्रम को निचोड़कर भूस्वामी वर्ग खेती करता था। कालान्तर में गुलामी प्रथा के अन्त के बाद परिवार केन्द्रित खेती और पशुपालन की शुरुआत हुई। 19वीं शताब्दी में अमरीका के आयोवा राज्य में परिवार केन्द्रित खेती को बढ़ावा देने के… आगे पढ़ें

अमीर लोग सम्पदा के स्रष्टा हैं!

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हुए हमारे देश के प्रधानमंत्री ने देश के आर्थिक संकट से जूझने के लिए अमीरों को हताशा के माहौल से उबारना जरूरी समझा। तमाम अमीरों को बैंकों की बदहाली के लिए गाली न देकर सम्पदाओं का स्रष्टा कहकर उनकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जो सम्पदा पैदा करते हैं (अमीर) उनके बगैर सम्पदाएँ पैदा करना और उसका वितरण असम्भव है। अगर ऐसा हुआ तो न गरीबों का भला होगा और न ही देश का। इसलिए सम्पदा के स्रष्टाओं को सन्देह की नजर से नहीं देखना चाहिए। आइये बांग्लादेश और चीन के दो अलग–अलग कारखानों में उत्पादन की प्रक्रिया में देखते हैं कि सम्पदा पैदा करने में किसकी क्या भूमिका है।   एक दिन की दिहाड़ी 15 मिनट में सबसे नया और सबसे महँगा फोन आई–फोन एक्सएस के लगभग 7 करोड़ सैम्पल बिक चुके हैं। दुनिया के अलग–अलग देशों… आगे पढ़ें

आर्थिक संकट के भंवर में भारत

गरीब लहरों पे पहरे बिठाये जाते हैं समन्दरों की तलाशी कोई नहीं लेता                       – वसीम बरेलवी वसीम बरेलवी का यह शेर इशारा करता है कि देश में जारी आर्थिक संकट से किसे सजा मिल रही है और कौन मौज कर रहा है? आर्थिक संकट कितना भयावह रूप लेता जा रहा है, इसे कुछ आँकड़ों से देख सकते हैं। अप्रैल–जून 2018 की तिमाही में निर्यात 14.21 फीसदी बढ़कर 82.47 अरब डॉलर हो गया। जबकि आयात 13.49 फीसदी बढ़कर 127.41 अरब डॉलर पर पहुँच गया। इस दौरान कुल व्यापार घाटा 44.94 अरब डॉलर रहा। इस साल की पहली तिमाही में ही व्यापार घाटा 43 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। आयात–निर्यात में अन्तर जितना ही बढ़ेगा हमारा व्यापार घाटा उतना ही अधिक होगा। इस घाटे की पूर्ति के लिए ज्यादा विदेशी मुद्रा चाहिए लेकिन हमारे यहाँ विदेशी मुद्रा का सीमित भण्डार है, जो अब लगातार घट रहा है। जुलाई के… आगे पढ़ें

आर्थिक संकट के भवर में फँसता भारत

अक्टूबर 2018 में अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विश्व अर्थव्यवस्थाओं से सम्बन्धित ‘ग्लोबल फाइनेन्सियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट’ जारी की। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आयी है जब 2008 की विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी को दस साल पूरे हो चुके हैं और इससे उबरने की बढ़–चढ़कर घोषणाएँ हो रही हैं। लेकिन इन घोषणाओं के उलट, यह रिपोर्ट एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार विश्व के ‘उभरते बाजार’ जिनमें भारत, चीन, ब्राजील, रूस आदि शामिल हैं, वहाँ खतरे की घण्टी बजने लगी है। इन देशों से बड़े निवेशक बाहर जा रहे हैं। पिछले एक साल में ही निवेशक इन देशों से लगभग 3 लाख करोड़ की पूँजी बाहर निकाल कर चले गये और आने वाले दिनों में रफ्तार के ओर तेज होने की पूरी सम्भावनाएँ हैं। भारत इन उभरते बाजारों में से एक बड़ा बाजार है, जिसकी अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर साफ नजर आने लगा है। पिछले कुछ… आगे पढ़ें

क्रिप्टो करेंसी –– साम्राज्यवादी ताकतों के शोषण का हथियार

क्रिप्टो करेंसी छद्म, आभासी और डिजिटल मुद्रा है। यह कानूनी रूप से स्वीकार्य (लीगल टेंडर) नहीं है। हाल ही में, पहली क्रिप्टो करेंसी बिटक्वाइन जो 2009 में आयी थी, उसका मूल्य 51 लाख रुपये तक पहुँच गया है, जो इस छद्म मुद्रा के अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते कारोबार और लेन–देन… आगे पढ़ें

खेती–किसानी पर साम्राज्यवादी वर्चस्व

खेती के आधुनिकीकरण करने के नाम पर फार्म मशीनीकरण, उर्वरकों–कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग, सिंचाई तकनीकों में सुधार, जेनेटिक मोडीफाइड बीज, गरीब और मध्यम किसानों की तबाही और ऋण की आसान उपलब्धता जैसी चीजें साम्राज्यवादी ढंग की खेती की शुरुआत की महज भूमिका भर हैं। साम्राज्यवादी पूँजी के आने पर गाँवों–शहरों… आगे पढ़ें

गहरे संकट में फँसी भारतीय अर्थव्यवस्था  सुधार की कोई उम्मीद नहीं

हाल ही में देश कोरोना की दूसरी लहर का गवाह बना जिसमें सरकार की लापरवाही और अव्यवस्था ने लाखों लोगों की जिन्दगी छीन ली। कोरोना महामारी की दूसरी लहर तो अब घटती नजर आ रही है लेकिन एक दूसरा बड़ा संकट देश के करोड़ों मेहनतकश लोगों के सामने आ खड़ा हुआ है। पिछले साल कोरोना महामारी के समय लगाये गये लॉकडाउन के बाद हजारों छोटे कारोबार बन्द हो गये थे जिनमें काम करने वाले लाखों लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। अपनी सारी जमा–पूँजी लगाकर किसी तरह लोगों ने अपने परिवारों का भरण पोषण किया था। पिछले साल से ही सरकार लोगों को यह विश्वास दिलाने में लग गयी थी की देश की अर्थव्यवस्था दुबारा पटरी पर आने लगी है। बड़ी–बड़ी घोषणाओं के बीच जीडीपी की वृद्धि दर 10 फीसदी तक बढ़ने जैसी अजीबोगरीब बातें हो रही थीं। लेकिन जैसे ही वित्तीय वर्ष 2020–21 के आँकड़े आने शुरू… आगे पढ़ें

गिग अर्थव्यवस्था का बढ़ता दबदबा

अर्थव्यवस्था का एक नया रूप है–– गिग अर्थव्यवस्था। यह शब्द भले ही नया है, पर इस तरह की अर्थव्यवस्था से हम सब किसी न किसी रूप में परिचित हैं। आज गिग अर्थव्यवस्था दुनियाभर में तेजी से पैर पसार रही है। कम्पनियों की पहली चाहत गिग मजदूर बन गये हैं। आज बढ़ती तकनीक और कम्युनिकेशन के माध्यमों ने हम सब की जिन्दगी को बदल दिया है। जिन्दगी के सभी आयाम किसी न किसी रूप में नयी तकनीक से प्रभावित हैं। आज इण्टरनेट और स्मार्टफोन शरीर के अभिन्न अंगों की तरह हो गये हैं। मथुरा में बैठे नौजवान को अमरीकी राष्ट्रपति के द्वारा किया गया ट्वीट पल भर में मिल जाता है। कम्युनिकेशन का इतना सशक्त माध्यम पहले कभी नहीं रहा। इस तकनीक तक आम आदमी की जितनी पहुँच बढ़ी है, जितना फायदा होता हुआ दिखायी देता है उससे लाखों गुना फायदा साम्राज्यवादी देशों और उनके बड़े–बड़े निगमों ने उठाया है। गिग… आगे पढ़ें

ग्रामीण गरीबों के लिए गढ़ा गया एक संकट

–– राजेन्द्रन नारायणन राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और एक सम्भावित राष्ट्रीय रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी), जो एक मानवीय संकट का आगाज करेगा, ऐसे समय में आगे बढ़ाया जा रहा है जब ग्रामीण जनता भयावह संकट की गिरफ्त में है। जल्द ही बजट आने वाला है, इसलिए आइये, देखें कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने ग्रामीण गरीबों के हित में अब तक क्या किया है। एक भयावह तस्वीर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा हर पाँच साल में एक बार उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (सीईएस) किया जाता है। इसमें परिवारों के खर्च करने के पैटर्न के बारे में विवरण संग्रह किया जाता है। इससे एकत्रित आँकड़े आर्थिक योजना और बजटीय आवण्टन में सुधार के लिए सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। हालाँकि, केन्द्र सरकार ने 2017–2018 के सबसे हालिया सर्वेक्षण के आँकड़ों को दबा दिया। किसी तरह बाहर आ गयी रिपोर्ट को बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा प्रकाशित किया गया, जिसके मुताबिक 40… आगे पढ़ें

घिसटती अर्थव्यवस्था की गाड़ी और बढ़ती बेरोजगारी

पूरी दुनिया में आर्थिक महामन्दी की धमक सुनाई दे रही है। इसे लेकर अर्थशास्त्री लगातार चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन सरकारें मन्दी को स्वीकार करने या मन्दी दूर करने के लिए अपनी लुटेरी व्यवस्था में बदलाव करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं। हाल ही में कई राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय… आगे पढ़ें

छोटे दुकानदारों की बदहाली के दम पर उछाल मारती ऑनलाइन खुदरा कम्पनियाँ

गिरती अर्थव्यवस्था और कंगालीकरण के दौर में भी ऑनलाइन माफिया खूब कमाई कूट रहे हैं जबकि साधारण दुकानदार या रेड़ी–खोमचे और सब्जी बेचने वालों की चिन्ता यह है कि कौन–सा सामान, फल और सब्जी लायी जाये, जिससे ग्राहक के जेब पर बोझ कम पड़े और उनकी आजीविका भी चलती रहे। दूसरी तरफ ऑनलाइन बाजार के माफिया इन दुकानदारों को बाजार से उखाड़कर उनके बचे–खुचे बाजार पर भी कब्जा कर लेने की साजिश रच रहे हैं। सरकार की भूमिका इन ई–कॉमर्स माफियाओं के लिए बाजार की हिस्सेदारी बढ़ाने और इनके मुनाफे की गारन्टी के लिए सुविधा प्रदान करने तक सीमित रह गयी है। नोटबन्दी के बाद से ही देश में ई–कॉमर्स कम्पनियों की तादात बढ़ने लगी थी। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर ये कम्पनियाँ तरह–तरह के सामान बेचने का काम कर रही थी। देश की दो बड़ी ई–कॉमर्स कम्पनियों जेफ बेजोस की अमेजन और वालमार्ट की फ्लिपकार्ट का भारतीय ई–कॉमर्स के… आगे पढ़ें

जेट एयरवेज तबाह क्यों हुई ?

17 अप्रैल 2019 को 26 साल पुरानी निजी विमानन कम्पनी जेट एयरवेज अस्थायी रूप से बन्द कर दी गयी, जिसके लगभग बीस हजार कर्मचारी बेरोजगार हो गये। इससे पहले ही आर्थिक रूप से जेट एयरवेज तबाही के कगार पर पहुँच गयी थी। यह सवाल लोगों के बीच उठना लाजमी था कि यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ने के बावजूद कम्पनी को अचानक क्यों बन्द करना पड़ा ? बताया जा रहा है कि कम्पनी पर बैंकों का 8500 करोड़ रुपये बकाया था, जिसमें बैंकों के पास कम्पनी की पचास फीसदी हिस्सेदारी भी है। कम्पनी ने बैंकों से और कर्ज की माँग की थी ताकि इसकी खस्ता हालत को ठीक किया जा सके, लेकिन बैंकों ने कर्ज देने से मना कर दिया। जेट एयरवेज में 24 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली एतियाद एयरवेज ने भी आर्थिक मदद देने से मना कर दिया। 25 मार्च 2019 को जेट एयरवेज के चेयरमैन नरेश गोयल ने अपने… आगे पढ़ें

डॉलर के वर्चस्व से मुक्ति का रास्ता सऊदी अरब से होकर जायेगा

–– विजय प्रसाद 9 दिसम्बर 2022 को सऊदी अरब के रियाद में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खाड़ी देशों और चीन के बीच सम्बन्धों को मजबूत करने के बारे में बातचीत के लिए खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के नेताओं से मुलाकात की। ‘कच्चे तेल को लगातार और बड़ी मात्रा में जीसीसी से आयात’ करें और ऐसे ही प्राकृतिक गैस के आयात को बढ़ायें, इस पूर्व प्रतिज्ञा के साथ चीन और जीसीसी के बीच व्यापार में हुई वृद्धि इस बातचीत का प्रमुख एजेण्डा था। 1993 में चीन तेल का शुद्ध आयातक बन गया था और 2017 तक कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक के रूप में उसने संयुक्त राज्य अमरीका को पीछे छोड़ दिया था। उसके तेल आयात का आधा अरब प्रायद्वीप से आता है और सऊदी अरब के तेल निर्यात का एक चैथाई से अधिक चीन को जाता है। तेल का बड़ा आयातक होने के बावजूद चीन ने अपना… आगे पढ़ें

डॉलर महाप्रभु का दुनिया पर वर्चस्व

डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत तेजी से गिरती जा रही है। एक डॉलर 83 रुपये के बराबर हो गया। देश के आर्थिक विशेषज्ञों ने ही नहीं, जनता ने भी इस पर चिन्ता व्यक्त की। संसद में भी सवाल उठा लेकिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में यह कहकर कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है, इसे एक बेहूदा मजाक में तब्दील कर दिया। जब बिल्ली सामने आती है तो कबूतर अपनी आँखे बन्द करके सोचता है कि खतरा टल गया, नतीजा हमेशा यही होता है कि वह बिल्ली का भोजन बन जाता है। डॉलर और रुपये के रिश्ते के मामले में हमारी सरकार भी इसी कहावत को चरितार्थ कर रही है। सरकार तो इस बेहद संजीदा मामले पर अपना रुख जाहिर कर चुकी है, लेकिन इस मुद्दे पर गम्भीरता से विचार करना जरूरी है। डॉलर सभी के लिए जरूरी है अमरीका अक्सर… आगे पढ़ें

दुनिया में चैथे नम्बर का अमीर अडानी समूह, देश के बैंकों का सबसे बड़ा कर्जदार भी है।

–– विजय शंकर सिंह यह भी एक विडंबना है कि अपने साठवें जन्मदिन पर 60,000 करोड़ रुपये दान करने की घोषणा करने वाले गौतम अडानी ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से 14,000 करोड़ रुपये का ऋण माँगा है। अडानी ग्रुप, गुजरात के मुंद्रा में पीवीसी प्लाण्ट बनाने के लिए, 19,000 करोड़ रुपये का शुरुआती निवेश करेगा, उसी के लिए अडानी समूह ने, सरकारी बैंक एसबीआई, से 14000 करोड़ रुपये का लोन माँगा है। अडानी ग्रुप पर पहले से ही 2.21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने नरेंद्र मोदी के ऊपर सीधे आरोप लगाते हुए कहा है कि, सरकार और बैंकों ने, 72,000 करोड़ रुपये माफ कर दिया है। इसे तकनीकी या बैंकिंग भाषा में, राइट ऑफ, एनपीए या कर्ज माफी या जो कुछ भी कहें, पर अडानी समूह को 2014 के बाद से उदारता से कर्ज भी मिलता गया है, और बैंक उनका… आगे पढ़ें

देश असमाधेय और ढाँचागत आर्थिक संकट के भँवर में

राजा मिदास ने भगवान से वरदान माँगा कि वह जिस चीज को छू ले, वह सोना बन जाये। उसे वरदान मिला, चारों ओर से सोने की बरसात होने लगी। कुछ दिन बाद मिदास अपने महल में मरा हुआ पाया गया जबकि उसके आस–पास की सभी चीजें सोने की थीं, थाली में सजा खाना भी। यूनान का यह मिथक देश के मौजूदा आर्थिक संकट और सरकार में उसकी भूमिका को बखूबी बयान करता है। पिछले कई सालों से हम सुनते आ रहे हैं कि सरकार विदेशी निवेशकों को भारत में बुलाने के लिए एड़ी–चोटी का जोर लगा रही है। विदेश से पूँजी की बरसात हो रही है। कर–प्रणाली में व्यापक सुधार करके जीएसटी लायी गयी, जिससे हर महीने एक लाख करोड़़ से अधिक की कमाई होने की उम्मीद जतायी गयी और कई महीने रिकॉर्ड जीएसटी संग्रह भी हुआ। देश की बेहतरीन सार्वजनिक कम्पनियों, जमीन और बहुमूल्य आर्थिक संसाधनों को नीलाम करके… आगे पढ़ें

नवउदारवादी दौर में मजदूर वर्ग

एक नवउदारवादी शासन मजदूर वर्ग के खिलाफ वर्ग शक्ति सन्तुलन में एक सहज बदलाव को हर जगह लाजमी बना देता है। ऐसा कई कारणों से होता है। पहला, चूँकि पूरी दुनिया में पूँजी को एक देश के मजदूर वर्ग को दूसरे देश के मजदूर वर्ग के खिलाफ खड़ा करने का अवसर मिल जाता है। अगर एक देश के मजदूर हड़ताल पर जाते हैं तो पूँजी के पास बिना नुकसान उठाये अपने उत्पादन इकाई को दूसरे देश में स्थानान्तरित करने का विकल्प होता हैय और ऐसा करने की उसकी धमकी ही हर देश में मजदूरों के जुझारूपन को कम करने का काम करती है। अगर मजदूरों को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर संगठित किया गया होता, ताकि हड़तालें न केवल राष्ट्रीय स्तर पर संगठित हों, बल्कि कई देशों में एक साथ हो सकें, तो पूँजी की इस तरह की धमकी का कोई असर न होताय लेकिन अफसोस कि मजदूर वर्ग की वर्गीय कार्रवाइयाँ… आगे पढ़ें

निजीकरण की राह पर रेलवे

भारतीय रेल प्रतिदिन ऑस्ट्रेलिया की पूरी आबादी के बराबर यानी ढाई करोड़ लोगों को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाती है। 34 लाख मीट्रिक टन माल की प्रतिदिन ढुलाई करती है। यह पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है और कम खर्चीली सेवा है। इसके पास 76 हजार किलोमीटर की… आगे पढ़ें

निजीकरण, इतना लुभावना शब्द और इतना घातक!

पिछले दिनों बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या डेढ़ सौ पार पहुँची, कारण जागरूकता की कमी, सही चिकित्सा न मिलना, चिकित्सा सुविधाओं में कमी, गरीबी, कुपोषण आदि। जिस अस्पताल की दुर्व्यवस्था की चर्चा रही उसी अस्पताल का दौरा स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने 5 साल पहले भी किया था और वही तमाम वादे किये थे जो इस साल फिर किये। एम्स के विशेषज्ञों की टीम ने सरकारी उदासीनता और प्रशासनिक काहिली को घटना का कारण बताया। यह मात्र एक बानगी है सरकारी व्यवस्था की। सरकार हम क्यों चुनते हैं और किसी सरकार से हम क्या उम्मीद करते हैं? यही कि वह मूल नागरिक सुविधाआंे, जैसे शिक्षा, चिकित्सा, सड़क परिवहन, पानी, बिजली, शौचालय, कचरा प्रबन्धन आदि को सुगम बनाये, रोजगार, खाद्य, सूचना और आम नागरिक सुरक्षा प्रदान करेय कृषि, व्यापार आदि की बढ़ोतरी के लिए काम करे तथा नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा… आगे पढ़ें

नोटबन्दी : विफलता और त्रासदी की दास्तान

आठ नवम्बर को नोटबन्दी की दूसरी बरसी पर अब ये भी साफ हो गया है कि रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने मोदी सरकार को इसकी विफलता के बारे में पहले ही बता दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो साल पहले 8 नवम्बर को रात 8 बजे बड़े–बड़े दावों के साथ जब टेलीविजन पर नोटबन्दी की घोषणा की थी तो इसके साफ–साफ दो लक्ष्य बताये थे, पहला, काले धन का खात्मा और दूसरा, नकली नोटों का सफाया। सरकार ने इसका प्रचार कालेधन के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कहकर किया। मोदी सरकार के ये दोनों दावे किस कदर भोथरे साबित हुए, यह बात तो नोटबन्दी लागू होने के कुछ ही दिनों बाद समझ आने लगी थी। अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के केन्द्रीय बोर्ड की 561वीं बैठक के मिनट्स भी सामने आ गये हैं। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर के अनुसार यह बैठक नरेन्द्र मोदी के नोटबन्दी की घोषणा से करीब साढ़े… आगे पढ़ें

नोबेल पुरस्कार : नीलामी का सिद्धान्त या सिद्धान्त का दिवाला ?

पॉल मिल्ग्रोम और रॉजर विल्सन को इस साल के अर्थशास्त्र के नोबेल स्मारक पुरस्कार से नवाजा गया है। अर्थशास्त्र के जिस खास धारा में इन्हें महारत हासिल है वह है “ऑक्शन थ्योरी” यानी नीलामी का सिद्धान्त। इससे पहले विलियम विकेरी, गणितज्ञ जॉन नैश आदि को भी इस क्षेत्र के शुरुआती सिद्धान्त (गेम थ्योरी) में योगदान के लिए इसी पुरस्कार से नवाजा गया था। इस खास विषय में शोध करने का और उसमें महारत हासिल करने का क्या महत्त्व है, इसे समझने के लिए हमें पहले जानना होगा कि यह सिद्धान्त क्या है। नीलामी का सिद्धान्त सीधे नीलामी के बारे में बात करने से पहले अगर हम ‘गेम थ्योरी’ से शुरू करंे तो समझने में आसानी होगी। दरअसल गेम थ्योरी का विषय होता है–– किसी सामान्य हित के बारे में टकराव। यूँ समझा जाये मजदूरी बढ़ने से मजदूरों का भला होगा और घटने से मालिक का। गेम थ्योरी इस टकराव में… आगे पढ़ें

पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम

पहले जब अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ती थी तो भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ जाते थे और घटने पर घट जाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होता है, अन्तरराष्ट्रीय स्तर में पर दाम बढ़े या घटे दोनों ही सूरतों में तेल के दाम लगाकर बढ़ते जा रहे हैं। देश में पेट्रोल 84 रुपये प्रति लीटर और डीजल भी लगभग 73 रुपये प्रति लीटर तक पहुँच गया है। आज अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 75 डॉलर प्रति बैरल है। जुलाई 2008 में जब कीमत 147 डॉलर प्रति बैरल थी तब उस समय देश में पेट्रोल 50.62 रुपये और डीजल 34.86 रुपये प्रति लीटर था। अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए तेल बहुत ही जरूरी है। बढ़े हुए तेल के दामों ने अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले लिया है जिससे समाज के सभी तबके प्रभावित हुए हैं। लेकिन इस महँगाई के खिलाफ आज… आगे पढ़ें

बजट–2020 : नवउदारवाद और कींसवाद का घटिया मिक्स्चर

फिलहाल इस बात पर कोई विवाद नहीं कि भारतीय पूँजीवादी अर्थव्यवस्था गम्भीर संकट में है जिसके चलते आम मेहनतकश जनता का जीवन अत्यन्त कष्टपूर्ण होता जा रहा है। इस बजट से पहले बहस सिर्फ इस मुद्दे पर ही थी कि क्या सरकार सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च कम कर वित्तीय घाटा नियंत्रित करने की नवउदारवादी नीतियों को जारी रखेगी या अर्थव्यवस्था को किकस्टार्ट करने के लिए सरकारी खर्च बढ़ाने की कींसवादी नीति अपनायेगी। बहुत से आर्थिक विशेषज्ञ यह उम्मीद कर रहे थे कि सरकार आम मेहनतकश लोगों व मध्यम वर्ग के हाथ में कुछ पैसा पहुँचाने का प्रयास करेगी ताकि बाजार में उपभोक्ता माँग का विस्तार हो जिससे उत्पादन के क्षेत्र में पूँजी निवेश फिर से शुरू हो सके। इसके लिए मनरेगा के लिए बजट बढ़ाने, शहरों में रोजगार गारण्टी योजना शुरू करने, मध्यम वर्ग के लिए आयकर में छूट बढ़ाने आदि की चर्चा चल रही थी।   किन्तु जब… आगे पढ़ें

भारत के आर्थिक विकास दर की हकीकत

अखबारों में आये दिन यह खबर आती है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने भारत की आर्थिक विकास दर की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। 28 जनवरी 2016 को इंदिरा गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के 13वें दीक्षान्त समारोह में रघुराम राजन ने कहा था कि सकल घरेलू उत्पाद के आकलन करने के तरीके में समस्याएँ हैं, जिसके कारण हमें विकास दर के बारे में बात करने में सावधानी बरतनी चाहिए। किसी भी देश का आर्थिक विकास सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर से तय किया जाता है। जीडीपी का निर्धारण एक जटिल अर्थशास्त्रीय प्रक्रिया है, जिसमें अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र के उपलब्ध आँकड़ों, मुद्रास्फीती तथा किसी निश्चित वर्ष को आधार मानकर आँकड़ों के समायोजन से कुल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य तय किये जाते हैं। भाजपा सरकार द्वारा जीडीपी… आगे पढ़ें

भारत के मौजूदा कृषि संकट की अन्तरवस्तु

दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में किसान आन्दोलन निरन्तर जारी है। यह आन्दोलन सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है और सरकार की लोकप्रियता को लगातार कम करता जा रहा है। ऐसे माहौल में देश के कृषि संकट पर बहसें तेज हो गयी हैं। पहले से कहीं अधिक संख्या… आगे पढ़ें

भारत से दूर भागते विदेशी निवेशक

जनवरी में देश के बड़े पूँजीपतियों ने महाराष्ट्र के नये मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ मीटिंग की, जिसमें इस बात पर जोर दिया कि महाराष्ट्र में निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया जाये। उन्होंने चिन्ता जतायी कि विदेशी निवेशक भारत के बजाय वियतनाम में निवेश करना अधिक पसन्द कर रहे हैं। इससे साफ पता चलता है कि भारत में निवेश के जिस स्वर्ग का दावा किया जा रहा था, वह कहीं दिखायी नहीं दे रहा है। अमरीका–चीन व्यापार युद्ध के चलते कई कम्पनियाँ चीन से अपना उद्योग हटाकर दूसरे देशों में ले जा रही हैं। चीन से व्यापार हटाने वाली 56 कम्पनियों में से केवल 3 कम्पनियाँ ही भारत में अपनी पूँजी लगा रही हैं, जबकि 26 कम्पनियाँ वियतनाम, 11 कम्पनियाँ ताइवान और 8 कम्पनियाँ थाईलैण्ड जा रही हैं। भारत का एकाधिकारी पूँजीपति वर्ग जो आत्मनिर्भर विकास के नारे को कूड़ेदान में फेंककर विदेशी पूँजीपतियों का संश्रयकारी बन चुका… आगे पढ़ें

मोदी के शासनकाल में अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा

लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि “पिछले 10 साल के शासन में हमने लोगों की आय दोगुनी करके उनकी जिन्दगी बेहतर बनायी है, अब जनता इस देश में अपना भविष्य सुरक्षित समझती है”। प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक चुनाव रैली के दौरान इसी तरह का दावा पेश करते हुए कहा कि हमने भारत को दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अपने अगले शासनकाल में देश को 10 ट्रिलियन रुपये की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की घोषणा भी कर दी। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के अन्य बड़े नेताओं में बड़े–बड़े दावे करने की होड़ लगी हुई है। पिछले 10 साल के शासन को आर्थिक तरक्की का पर्याय बताया जा रहा है। मुख्यधारा की चाटुकार मीडिया भी भाजपा की इन घोषणाओं को बढ़ा–चढ़ाकर दिखा रही है। इसके चलते देश की… आगे पढ़ें

मोदी सरकार की सरपरस्ती में कोयला कारोबार पर अडानी का कब्जा

पिछले साल 9 दिसम्बर को ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने अडानी के कोयला कारोबार से सम्बन्धित एक विस्तृत रिपोर्ट सार्वजनिक की। इस रिपोर्ट के लिए ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के पत्रकारों नें भारत, ऑस्ट्रेलिया समेत बांग्लादेश सरकार के 2 दर्जन से ज्यादा अधिकारियों के साक्षात्कार के लिए। इन्होंने अडानी और बांग्लादेश सरकार के बीच हुए गोपनीय समझौते का भी गहरा अध्ययन किया। इसके साथ ही अडानी की कम्पनियों के कर्मचारियों की बातचीत और अन्य सम्बन्धित दास्तावेजों को भी इस रिपोर्ट का आधार बनाया। सभी तथ्यों की जाँच–पड़ताल करने के बाद ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने यह खुलासा किया कि मोदी सरकार ने भारत की आम जनता, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की तबाही की कीमत पर अडानी के कोयला कारोबार को खड़ा किया है। इस के लिए मोदी ने कितनी ही बार कानूनों को बदला है। इसके साथ ही उन्होंने सरकारी बैंकों पर दबाव बनाकर अडानी को मनमाना कर्ज भी दिलवाया है। इस रिपोर्ट के अनुसार अडानी को… आगे पढ़ें

राफेल घोटाला : आखिर सच क्या है?

राफेल को लेकर पक्ष–विपक्ष में बयान–बाजी जारी है। मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुँच गया है। इस पूरे मामले में विपक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सीधे शामिल होने की आशंका जता रहा है। दो मुख्य आरोप हैं, पहला 126 विमानों की जगह 36 विमान ही क्यों खरीदे जा रहे हैं? दूसरा, तकनीकी रूप से दक्ष हिन्दोस्तान ऐरोनौटिक्स लिमिटेड (एचएएल) जो एक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी है, उसकी जगह तीन साल पहले अस्तित्व में आयी रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को सौदे में शामिल क्यों किया गया? उल्लेखनीय है कि  एचएएल कम्पनी सालों से विमान बनाने और रखरखाव करने का काम करती आ रही है जबकि रिलायन्स का इस क्षेत्र में कुछ भी अनुभव नहीं है। फ्रांसिसी भाषा में राफेल का अर्थ होता है– तूफान। यह दुश्मन के हवाई क्षेत्र में जाकर तूफान मचाये, इससे पहले इसने भारतीय राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। इसकी वजह से भारतीय मीडिया के सबसे चहेते… आगे पढ़ें

लक्ष्मी विलास बैंक की बर्बादी : बीमार बैंकिंग व्यवस्था की अगली कड़ी

पीएमसी (पंजाब एण्ड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव) और यश बैंक के बाद अब बर्बाद होने वाले बैंकों की सूची में लक्ष्मी विलास बैंक का नया नाम जुड़ गया है। 94 साल पुराना यह प्राइवेट बैंक अब अपने अन्त की ओर है। पिछले 9 दशकों से यह बैंक छोटे कर्ज बाँटकर और खुदरा व्यापार को प्रोत्साहित करके फल–फूल रहा था। लेकिन कुछ दिनों से इसकी वित्तीय स्थिति बहुत खराब चल रही है, जिसके चलते आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया) ने इसके अधिग्रहण को मंजूरी दे दी। अब इसका विलय सिंगापुर के डीबीएस बैंक में हो गया है। आरबीआई ने एक महीने तक बैंक से पैसे निकालने की सीमा तय कर दी थी। खाता धारक एक दिन में अधिकतम 25 हजार रुपये ही निकाल सकते थे। याद रहे कि पिछले साल पीएमसी बैंक के डूबने के बाद भी आरबीआई ने ऐसी ही रोक लगायी थी जिसके चलते हजारों लोग कंगाली की हालत में आ… आगे पढ़ें

विश्वव्यापी आर्थिक संकट का कोढ़ भारत में फूटने के कगार पर

बाढ़ की सम्भावनाएँ सामने हैं, और नदियों के किनारे घर बने हैं। चीड़–वन में आँधियों की बात मत कर, इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं। –– दुष्यंत कुमार भारत की अर्थव्यवस्था आज इतनी खोखली हो गयी है कि किसी भी दिन इसमें भूचाल आ सकता है। बैंकों की बदहाली, बहुत भारी व्यापार घाटा, रुपये का अवमूल्यन, आसमान छूती महँगाई, बढ़ती बेरोजगारी, आदि इस संकट की अभिव्यक्तियाँ हैं लेकिन इस संकट की जड़ें अमरीका से शुरू हुए विश्वव्यापी संकट में हैं। वह 2008 की वैश्विक मन्दी का दौर था, जब विकसित देश मन्दी की मार से बेहाल थे। 2008 में आयी विश्वव्यापी मन्दी को दस साल से अधिक समय हो गया। उस समय मन्दी के जिस काले साये ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में ले लिया था, वह कभी दूर नहीं हुआ। अर्थव्यवस्था में ऊपरी तौर पर दिखायी देने वाली तेजी बादलों के बीच यहाँ–वहाँ बिजली की चमक… आगे पढ़ें

विश्वव्यापी महामन्दी के 10 साल

आज लेहमन ब्रदर्स की दुकान बन्द हुए 10 साल हो गये हैं। 2008 में अमरीका का गृह निर्माण बुलबुला फूट जाने से बाजार धड़ाम से गिर गया था। इस हादसे में 30 लाख अमरीकी बेरोजगार हो गये थे और 50 लाख अमरीकियों ने अपने घर खो दिये थे। बड़े बैंकों के पास खुद के काम करने के लिए डॉलर की कमी हो गयी थी और दूसरों को कर्ज देने के लिए पैसा नहीं बचा था। बैंकों का पूँजी भण्डार गायब हो गया था। वित्तीय गतिविधियाँ लगभग शून्य की तरफ पहुँच गयी थीं। कुल मिलाकर कहें तो अमरीकी अर्थव्यवस्था दिवालिया हो चुकी थी। अमरीका से निकली मन्दी के इस ज्वार से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ संकट में आ गयी थीं। दुनिया भर के शेयर बाजार भहराकर गिर गये, जिसके चलते 2008 में दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं से अरबों–खरबों की राशि गायब हो गयी थी। इन सबको बीते 10 साल हो गये… आगे पढ़ें

संकट की गिरफ्त में भारतीय अर्थव्यवस्था

मई के अन्त तक सरकार को आखिरकार स्वीकार करना पड़ा कि जीडीपी पिछले 5 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गयी है। कॉर्पाेरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास ने भी कहा कि “देश का समूचा गैर–वित्तीय कम्पनी क्षेत्र संकट के मुहाने पर खड़ा है।” उद्योग–धंधों में छाई सुस्ती आज अपने चरम पर है, रोज कोई न कोई बैंक कंगाली की तरफ बढ़ रहा है। शिक्षा पर लाखों खर्च करने के बाद भी छोटी–छोटी नौकरी के लिए नौजवान दर–ब–दर की ठोकरें खा रहे हैं। स्थिति इतनी भयावह है कि बेरोजगारी दर पिछले 45 सालों में सबसे अधिक है। मतलब करोड़ों रोजगार खत्म हो गये। गरीब किसानों की बढ़ती आत्महत्याएँ उनकी कंगाली–बदहाली और कृषि के चैपट होने की कहानी बयान कर रही हैं। सरकार की और से जितने नीम–हकीम नुस्खे अपनाये जा रहे हैं, यह संकट उतना ही बढ़ता जा रहा है। इस आर्थिक संकट के दौर में एक तरफ करोड़ों… आगे पढ़ें

सार्वजनिक कम्पनियों का विनिवेशीकरण या नीलामी

केन्द्र सरकार जिन 5 बड़ी कम्पनियों के हिस्से को बेचने की योजना बना रही है, उनमें बीपीसीएल, एससीआई, कॉनकोर, एनईईपीसीओ (नीपको) और टीएचडीसीआई शामिल हैं। इनमें से नीपको और टीएचडीसीआई की पूरी हिस्सेदारी बेचने की योजना बनायी है, जिसके लिए केन्द्र सरकार के विनिवेश विभाग ने 12 विज्ञापन जारी किये हैं। इन विज्ञापनों के जरिये परिसम्पत्ति का निर्धारण करनेवाले की नियुक्ति और हिस्सा बेचने की बोलियाँ मँगायी गयी हैं। अगर कम्पनियों में सरकारी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम होती है तो ये कम्पनियाँ कैग और सीवीसी के दायरे से बाहर हो जाएँगी। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने बताया है कि केन्द्र सरकार के पास बिक्री के लिए 46 कम्पनियों की एक सूची है और कैबिनेट ने इनमें 24 को बेचने की स्वीकृति दे दी है। दरअसल भारत सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ते–बढ़ते 6.45 लाख करोड़़ रुपये को पार कर गया है। उसे ही पूरा करने के लिए सरकार… आगे पढ़ें

स्मार्ट फोन : पूँजीवादी लूट का औजार

बोलचाल की आम भाषा में श्रम करने का अर्थ शारीरिक परिश्रम करने वाले काम से लिया जाता है। आम जनता श्रम के अन्य रूपों पर बहुत कम ध्यान देती है। लूट का अर्थ है–– श्रमिकों से अधिक काम लेना और कम भुगतान करना तथा इस प्रकार लूट का अर्थ अपना… आगे पढ़ें

हिंडनबर्ग रिपोर्ट से अडानी के कारोबार में भूचाल

24 जनवरी 2023 को अमरीका की हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी ने अडानी समूह की कम्पनियों पर एक रिपोर्ट जारी की। इसमें आरोप लगाया गया कि अडानी समूह शेल कम्पनियाँ बनाकर स्टॉक्स में हेरफेर, हिसाब–किताब में धोखाधड़ी और काले धन को वैध बनाने (मनी लौंड्रिंग) के गैर–कानूनी कामों में लिप्त है। इस रिपोर्ट से अडानी समूह के कारोबारी जगत में भूचाल आ गया और खुद अडानी के दुर्दिन शुरू हो गये। हमने अडानी के कारोबार को ऊँचाई पर पहुँचते हुए देखा, उनके कोयला कारोबार के बारे में अगले लेख में  जिक्र है। मौजूदा समय में उनके कारोबार को अर्श से फर्श पर लुढ़कते हुए देखकर यह टिप्पणी लिखनी पड़ी। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी समूह के शेयरों में गिरावट का दौर शुरू हुआ। समूह की सभी लिस्टेड कम्पनियों के शेयर भरभरा कर गिरने लगे। इसी दौरान अडानी ग्रुप ने हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए अपने फॉलो–ऑन पब्लिक… आगे पढ़ें