नवम्बर 2023, अंक 44 में प्रकाशित

मणिपुर हिंसा : सवालों के कटघरे में केन्द्र और राज्य सरकारें

बीते जुलाई के महीने में मणिपुर से महिलाओं को नग्न घुमाने और सामूहिक बलात्कार की शर्मनाक घटना का वीडियो सामने आया। इसने राष्ट्र की चेतना को आहत कर दिया। इनसानियत का सिर शर्म से झुक गया। इस पर मानवाधिकार कार्यकर्ता, इरोम शर्मिला, जो 16 साल तक सेना के कथित अत्याचारों के खिलाफ भूख हड़ताल करती रही थीं, उन्होंने अपनी वेदना जाहिर करते हुए कहा, “मैं स्तब्ध और परेशान महसूस कर रही हूँ। यह किसी विशेष समुदाय के बारे में नहीं है, यह एक ‘अमानवीय’ घटना है।” देश के एक बहुत बड़ा हिस्से ने भी ऐसी ही दिल को मथ देनेवाली वेदना महसूस की।

पिछले छ: महीनों से मणिपुर हिंसा से लगातार जूझ रहा है। पूरा राज्य सेना की छावनी में बदल दिया गया है। इस सब के बावजूद वहाँ हिंसक घटनाएँ लगातार जारी हैं। गाँव के गाँव, चर्च, स्कूल, सरकारी दफ्तर आदि हिंसा की इस आग में जल रहे हैं, गोलीबारी और बमबारी जारी है और अब तो मरीजों से भरी एम्बुलेंसों तक को जलाया जा रहा है। इन सभी घटनाओं ने राज्य के साथ–साथ पूरे देश की शासन व्यवस्था की कलई खोल के रख दी है। पूर्वाेत्तर का एक बेहद खूबसूरत राज्य आज भी धू–धू कर जल रहा है और बँटवारे की कगार पर खड़ा है। मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दिये जाने से शुरू हुई। इस फैसले के विरोध में कूकी समुदाय ने रैली निकाली थी जिसमें हिंसा भड़क गयी थी। अब तक इस हिंसा में 180 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी और हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है।

देश–विदेश पत्रिका के पिछले अंक में मणिपुर हिंसा के कारणों की विस्तार से छानबीन की गयी है। यहाँ इसके कुछ पहलुओं को दिया जा रहा है। इस विनाशकारी घटना के लिए राज्य की भाजपा सरकार की साम्प्रदायिक और विभाजनकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं और राज्य सरकार हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर को बचाने में पूरी तरह नाकाम हो चुकी है। फिर भी केन्द्र की मोदी सरकार ने मुख्यमंत्री को पद से नहीं हटाया।

मोदी सरकार और मणिपुर के विभिन्न संगठनों के बीच मात्र चार दौर की ही बातचीत हुई है। 1 सितम्बर को सभी संगठनों से जब ‘चार्टर ऑफ डिमाण्ड’ ले लिया गया, फिर भी गृह मन्त्री अमित शाह कार्रवाई को आगे क्यों नहीं बढ़ा रहे हैं? कभी जी20 शिखर सम्मेलन, तो कभी संसद के विशेष सत्र के नाम पर वार्ता को बार–बार स्थगित क्यों किया जा रहा है? आखिर, मोदी सरकार राजनीतिक समाधान निकालने में इतनी देरी क्यों कर रही है और इतने गम्भीर मामले में लगातार ढील बरत रही है? केन्द्र सरकार का इस पर कोई समाधान न निकाल पाना, उस पर और उसकी डबल इंजन की सरकार की राजनीति और कार्यनीति पर सवालिया निशान खड़ा करती है।

आज मणिपुर भारी सुरक्षाबलों के बीच कर्फ्यू की चपेट में है। पूरा प्रशासन तन्त्र चरमरा गया है, जन–जीवन अस्त–व्यस्त हो गया है और लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। लेकिन ये असुरक्षा की कहानी हिंसा के बाद नहीं पैदा हुई है, बल्कि हिंसा के पहले ही मणिपुर सरकार ने इसकी पटकथा लिखनी शुरू कर दी थी। उसने वहाँ के आदिवासियों और गाँव के लोगों में बेदखली का खौंफ पैदा कर दिया था। पहले चुराचाँदपुर और मुलनुआम में 27 फरवरी से 17 मार्च तक ‘अवैध प्रवासियों’ की पहचान के लिए सत्यापन अभियान चलाकर, जिसमें सभी ग्राम प्रधानों को वहाँ के निवासियों का बायोमेट्रिक जमा करने के आदेश दिये गये, जब इन अभियानों के विरोध में 10 मार्च को शान्तिपूर्ण रैली का आह्वान किया गया, तो उसके दमन के लिए उसी दिन वहाँ धारा 144 लगा कर, फिर संरक्षित वनों के सर्वे के नाम पर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने 27 अप्रैल को फिर से धारा 144 लगा, 28 अप्रैल को पाँच दिनों के इण्टरनेट बन्द कर दिया और कई जिलों में होने वाले विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया। इसने पहाड़ में रहने वाले आदिवासियों और बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के बीच की दरार को कई गुना चौड़ा कर दिया।

बिरेन सिंह की बीजेपी सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि कैसे बिना शासन–प्रशासन की गुप्त सहमति के एक उच्च सुरक्षा वाले इलाके में इतनी व्यापक तोड़–फोड़ हो गयी और वहाँ से हथियार चुरा लिये गये? यह कैसे हो सकता है कि राज्य विधानसभा और डीजीपी आवास के एकदम पास मौजूद इम्फाल के चर्च को गिरा दिया गया? मरीजों को ले जा रही एम्बुलेंस जला दी गयी, महिलाओं पर जघन्य अपराध हो गये और पूरा शासन–प्रशासन गूँगा–बहरा तमाशबीन बना रहा?

प्रधानमंत्री की बायोपिक फिल्म के रील लाइफ हीरो का चर्चित डायलॉग है कि ‘मेरा गुजरात जल रहा है’, लेकिन मणिपुर के मामले में प्रधानमंत्री ने रियल लाइफ में एक खामोशी, एक चुप्पी साध रखी है। इस पूरे मामले में राज्य की डबल इंजन की सरकार समाधान कम और समस्या का पर्याय अधिक बनती दिखायी दी है। उसकी हिन्दुत्ववादी और विभाजनकारी राजनीति ने आज मणिपुर को हिंसा की आग में झोंक दिया है।

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