मई 2024, अंक 45 में प्रकाशित

भाजपा विपक्ष को तबाह करने पर क्यों तुली है?

लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। यह देश की पहली घटना है जब किसी मुख्यमंत्री को उनके कार्यकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि ईडी ने शराब नीति घोटाले में बिना किसी ठोस सबूत के केवल एक बयान के आधार पर यह गिरफ्तारी की। अरबिन्दों फार्मा कम्पनी के मालिक सार्थ रेड्डी ने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिया है। ईडी ने 10 नवम्बर 2022 को सार्थ रेड्डी को शराब घोटाले में गिरफ्तार किया था। रेड्डी ने छ: महीने जेल में गुजरे। इसी दौरान रेड्डी से 10 बयान लिये गये जो केजरीवाल के पक्ष में थे। लेकिन अचानक 25 अप्रैल 2023 को रेड्डी ने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिया और साथ ही इसकी कम्पनी ने भाजपा को 30 करोड़ रुपये का चन्दा भी दिया। नतीजा यह हुआ कि रेड्डी को अगले ही महीने रिहा कराकर सरकारी गवाह बना दिया गया। इस पूरे मामले में यह साफ नजर आ रहा है कि भाजपा ने इडी का इस्तेमाल करके केजरीवाल को जेल में डलवाया है। केजरीवाल से पहले आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेता मनीष सिसोदिया और सत्येन्द्र जैन भी लम्बे समय से जेल में बन्द है।

ईडी का यह बर्ताव सिर्फ आम आदमी पार्टी के साथ ही नहीं है बल्कि सभी विपक्षी पार्टियों के साथ है। तीस साल पुराने किसी मामले में ईडी ने कांग्रेस पर मुकदमा करके 1800 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया और साथ ही उनका खाता लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीज कर दिया। इसी के साथ भारत की कम्युनिस्ट पार्टी पर गलत पैन कार्ड इस्तेमाल करने का आरोप लगाकर 11 करोड़ का जुर्माना लगा दिया गया। ईडी का काम मनी लांड्रिंग और सरकारी नीतियों की तहकीकात करना होता है। लेकिन ऐसा लग रहा है पिछले सालों में इसका काम भाजपा के लिए सत्ता का रास्ता साफ करना बन गया है।

2014 से अभी तक भ्रष्टाचार के मामलों में जाँच का सामना कर रहे विपक्ष के 25 बड़े नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जिसमें अजित पँवार, हेमन्त शर्मा और शिवसेना की भावना ग्वाली जैसे बड़े और दिग्गज नेता शामिल हैं। भाजपा से जुड़ते ही इनमें से 23 नेताओं पर से भ्रष्टाचार के आरोप ही खत्म कर दिये गये। यानी भाजपा में जाकर वे जेल जाने से बच गये और विपक्ष के बड़े नेताओं को तोड़कर भाजपा भी खुद को मजबूत करने में सफल रही। इस प्रेम मिलन का भ्रष्टाचार के आरोपियों और भाजपा दोनों को फायदा हुआ।

भाजपा देश के संघीय ढाँचे को भी बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचा चुकी है। गैर भाजपा शासित राज्यों में सरकार चलाना मुश्किल हो गया है। वे एक–एक रुपये के लिए केन्द्र से भीख माँगने को मजबूर हैं। इसके साथ ही भाजपा सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्ता को कमजोर कर उन्हें अपने हिसाब से चलाने का प्रयास कर रही है। हाल ही में पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हुए। उन्होंने बंगाल में बतौर न्यायाधीश वहाँ की तृणमूल कांग्रेस सरकार के खिलाफ अनेक फैसले सुनाये थे। न्यायाधीश से लेकर उच्च अधिकारी तक अनेक उदहारण मौजूद हैं जिहोंने अपने पद पर रहते हुए भाजपा को प्रत्यक्ष फायदा पहुँचाया है और बदले में भाजपा ने उन्हें पार्टी में शीर्ष पद दिये। ऐसा लग रहा है कि कुल मिलाकर लगभग सारा शासन तंत्र भाजपा अपनी मुट्ठी में ले चुकी है।

कर्नाटक के भाजपा सांसद अनन्त कुमार हेगड़े का कहना है कि वे इस बार 400 से ज्यादा सीट जीतने के बाद संविधान को अपने अनुसार बदलेंगे। यही सुर भाजपा के दूसरे बड़े नेता भी अलाप रहे हैं। यहाँ सिर्फ विपक्ष को खत्म करने का मामला नहीं है बल्कि लोकतंत्र वह जैसा भी है, उसे खत्म करने की तैयारी है। पिछले दिनों चुनावों के चलते भाजपा ने किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था। भा जपा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए इन जनविरोधी नीतियों से पीछे हटने की मजबूरी को खत्म करना चाहती है। ताकि एकाग्रचित्त होकर 365 दिन, 24 घण्टे चोटी के सरमायेदारों की सेवा में लीन रह सके और भूखी–बिलखती जनता उसका ध्यान भंग करने की जुर्रत न कर सके। 

Leave a Comment