किसान आन्दोलन को तोड़ने का कुचक्र
13 दिसम्बर 2020 की टाइम्स ऑफ इण्डिया की एक खबर के अनुसार आईआरसीटीसी और अन्य सरकारी विभाग उन लोगों को इमेल भेज रहे हैं जो “पंजाब” से हों और उनके नाम के साथ “सिंह” आता हो। इस इमेल में 47 पेज की एक पीडीएफ फाइल है जो हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेजी भाषा में है। इसका शीर्षक है “मोदी और उनकी सरकार का सिखों के साथ विशेष सम्बन्ध।” आईआरसीटीसी के मुख्य अधिकारी सिद्धार्थ सिंह का भी बयान आया है कि इस तरह के इमेल सरकार के सभी विभागों द्वारा भेजे जा रहे हैं।
इस घटना से दो सवाल उठते हैं ? पहला कि यह इमेल केवल उन लोगों को ही क्यों भेजे जा रहे हैं जो पंजाब से सम्बन्ध रखते हैं ? दूसरा सवाल, यह इमेल केवल उन लोगों को ही क्यों भेजे जा रहे हैं जिनके नाम के साथ सिंह आता है ? इन इमेलों के माध्यम से सरकार विशेष रूप से सिखों पर की गयी मेहरबानियों को गिना रही है। लेकिन सिर्फ सिखों को ही क्यों ?
हाल ही में मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून बनाये हैं। किसान इन कानूनों को अपने और बाकी जनता के खिलाफ बता रहे हैं। इसीलिए पिछले कई दिनों से किसान सड़कों पर हैं। वे दिल्ली और देश के अलग–अलग हिस्सों में बेहद रचनात्मक तरीके से शान्तिपूर्ण आन्दोलन कर रहे हैं। इस आन्दोलन ने सरकार को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया है। इसलिए सरकार इस आन्दोलन को तोड़ने के लिए एड़ी–चोटी का जोर लगा रही है। सरकार ने किसानों के ऊपर ठण्डे पानी और लाठियों को बरसा रही है। भारी संख्या में पुलिस बल और अन्य रिजर्व बालों को तैनात किया गया है। इसके अलावा सरकार अपने दलालों को जासूसी करने के लिए उनके आन्दोलन में घुसा रही है। लेकिन किसान सचेत हैं और किसानों ने ऐसे कई सरकारी जासूसों को पकड़कर आन्दोलन से बाहर कर दिया है। इससे सरकार की बहुत किरकिरी हो रही है। जब सरकार के किसी भी हथकण्डे से काम नहीं चला तो अब वह विज्ञान और तकनीक का उपयोग किसानों की जासूसी और उनकी आपसी एकता को तोड़ने में कर रही है। रेल यात्रा के दौरान या फार्म भरने के दौरान जो भी जानकारियाँ लोगों ने भरी थीं उनको सरकार अपने लिए इस्तेमाल कर रही है। इससे किसान आन्दोलन को जाति–धर्म पर बाँटकर पथभ्रष्ट करना चाहती है।
आन्दोलन कर रहे किसानों में बड़ी संख्या पंजाब से है। और पंजाब के ज्यादातर किसानों के नामों के साथ सिंह आता है। यही कारण है कि सरकार ने छुद्रता की सारी हदें पार करते हुए लोगों की जानकरियों का इस्तेमाल आन्दोलनकारियों की एकता तोड़ने में कर रही है। इसलिए सरकार पंजाब के उन किसानों को इमेल भेज रही है जिनके नाम के साथ सिंह आता है। और वह उन्हें लुभाना चाह रही है कि देखो, सिख धर्म के लिए सरकार ने कितना काम किया है ? यह लोगों की निजता का उल्लंघन है। क्या किसी लोकतान्त्रिक देश में ऐसा उचित है ? आज सिखों को इमेल भेजे जा रहे हैं, कल मुसलमानों को, फिर जैन समुदाय के लोगों को और कभी हिन्दुओं को ?
किसानों को बेहद सावधान होकर अपनी एकता का प्रदर्शन करने की जरूरत है। सरकार बेशर्म हो चुकी है। वर्तमान सरकार हिटलरशाही के रास्ते पर आगे बढ़ रही है ? उसे लाखों किसानों की आवाज नहीं सुनाई दे रही है ? किसानों की आवाज सुनने के बजाय वह व्यक्तिगत निजता का उल्लंघन करने और जनता में फूट डालने पर उतारू हो गयी है।
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