21वीं सदी में सैन्यवाद का उठता ज्वार

(क्लिन्टन, बुश और ओबामा से ट्रम्प तक) ––जेम्स पेत्रास 21वीं सदी के पहले दो दशकों में अमरीकी सैन्यवाद बहुत तेजी से फैला और इसे डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों के राष्ट्रपतियों द्वारा गले लगाया गया। राष्ट्रपति ट्रम्प के द्वारा सैन्य खर्च में बढ़ोतरी के बारे में मीडिया का उन्माद उस सैन्यवाद के फैलाव को जानबूझकर अनदेखा करता है जो अपने सभी पहलुओं के साथ राष्ट्रपति ओबामा और उनके दो पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ‘बिल’ क्लिन्टन और जार्ज बुश जूनियर के कार्यकाल में भी जारी था। इस लेख में हम पिछले सत्रह सालों में सैन्यवाद की निरन्तर वृद्धि की तुलना और चर्चा करते हुए आगे बढ़ेगे। इसके बाद हम इसका जिक्र करेंगे कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में सैन्यवाद का प्रवेश अमरीकी साम्राज्यवाद का एक अनिवार्य ढाँचागत लक्षण है। सैन्यवाद अमरीका का राष्ट्रपति कोई भी रहा हो और वह अपने लोकप्रिय शब्दाडम्बरों से भरे चुनावी अभियानों में घरेलू अर्थव्यवस्था के हित में चाहे जितना भी सैन्य… आगे पढ़ें

अफगानिस्तान : साम्राज्यवादी तबाही की मिसाल

अमरीका और उसका पालतू असरफ गनी अफगानिस्तान से खदेड़ दिये गये। अफगानिस्तान की सत्ता फिर से क्रूर और धर्मान्ध तालिबान के हाथ में है जो अमरीका की परित्यक्त सन्तान है। अमरीका की ही तरह उसके पास भी अफगानिस्तान की जनता के लिए तबाही के अलावा और कुछ नहीं है। 1979 से 2021 तक के 42 वर्षों में अमरीकी साम्राज्यवाद ने अफगानिस्तान को इस हद तक तबाह किया है कि आज इसे एक राष्ट्र भी कहना मुश्किल है। तालिबान अफगानिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में पुर्नगठित कर लेगा इसकी भी सम्भावना कम ही है। 2001 में अमरीका दूसरी बार अफगानिस्तान में घुसा था, इस बार उसे लगभग 2500 अरब डॉलर और 2500 सैनिक गँवाकर तथा सत्ता वापस तालिबान के हाथ में सौंपकर भागना पड़ा है। अफगानिस्तान की तबाही के सामने अमरीका का यह नुकसान कुछ भी नहीं है। अफगानिस्तान की मात्र 4.5 कारोड़ की आबादी से लाखों नागरिक और बच्चे… आगे पढ़ें

अफगानिस्तान युद्ध में अमरीका की हार के मायने

अफगानिस्तान से अमरीकी सेना जिस तरह बेआबरू होकर रुखसत हुई और जिस तेजी से तालिबानी लड़ाकों ने सत्ता पर कब्जा किया, उसे देखकर दुनिया हतप्रभ रह गयी। तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा जमाये जाने के बाद कई तरह की अटकलें और चिन्ताएँ जतायी जाने लगीं। आइये, नयी परिस्थिति की नजाकत को परखते हैं। पिछले 20 साल से अमरीका और अफगानिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था, जिसमें एक तरफ अमरीका की हमलावर सेना थी तो दूसरी ओर कट्टरपंथी तालिबान। हालाँकि कुछ लोग इस युद्ध से इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि अमरीका–तालिबान युद्ध एक भ्रम है। ऐसी बातें वही कह सकता है जो पिछले 20 साल के अफगानी इतिहास से परिचित न हो। पिछली शताब्दी के आखिरी दशक में अमरीकी साम्राज्यवादियों ने दुनिया पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए कई नवउदारवादी तौर–तरीके ईजाद किये, जिसमें मुस्लिम आतंकवाद का हौवा कायम करना भी एक तरीका है। उन्होंने किसी भी… आगे पढ़ें

अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी के निहितार्थ

हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान से सात हजार सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला लिया है। सक्रिय सैन्य कार्रवाई में शामिल अमरीकी सेना का यह आधा हिस्सा है। ऐसा लग रहा है कि 18 सालों से जारी अमरीकी इतिहास का सबसे लम्बा युद्ध अब समाप्ति की ओर है। इस युद्ध में एक तरफ दुनिया की महाशक्ति अमरीका है, जिसके पास अत्याधुनिक हथियार और विशाल सैन्य ताकत है, वहीं दूसरी ओर आर्थिक रूप से बेहद कमजोर पश्चिम एशिया का एक ऐसा देश, जो पिछले चार दशक से युद्ध की भूमि बना हुआ है। इतने लम्बे युद्ध के बावजूद अब तक निर्णायक नतीजा नहीं निकल पाया। यह घटना दुनिया की महाशक्ति होने के अमरीकी अहंकार पर सवाल खड़ी करती है। आखिर अमरीका ने इस युद्ध से क्या हासिल किया, जिसके चलते 4 हजार अमरीकी सैनिकों की जान गयी और 20,00,000 करोड़ डॉलर से भी अधिक का खर्चा आया,… आगे पढ़ें

अमरीका और चीन–रूस टकराव के बीच भारत की स्थिति

चीनी ग्लोबल अखबार टाइम्स अमरीका को ‘कागजी वाध’ नहीं मानता बल्कि उसे ‘अल्फा–भेड़िया’ मानता है। यह अखबार कहता है कि अमरीका बाघ नहीं है–– न तो असली और न ही कागजी, क्योंकि बाघ अकेले शिकार करता है। यह एक भेड़िया है क्योंकि भेड़िये हमेशा झुण्ड में शिकार करते हैं और अमरीका भेड़ियों का नेता (अल्फा–भेड़िया) है। पिछले कुछ सालों से अमरीका और चीन के बीच सम्बन्ध लगातार खराब हुए हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने चीन के खिलाफ लगातार भड़काऊ बयान दिये हैं। व्यापार युद्ध से दक्षिणी चीन सागर में दखलन्दाजी तक हर जगह अमरीका और चीन के बीच कोरोना महामारी के प्रसार ने इसे बहुत तेज कर दिया है। पेण्टागन की ताजा रिपोर्ट में चीनी सेना का वार्षिक आकलन किया गया है। उसके अनुसार विश्व स्तरीय सेना बनाने के लिए चीन पूरी दुनिया में संयुक्त अभियान चला सकता है और वह पहले से ही दुनिया… आगे पढ़ें

अमरीका ने कासिम सुलेमानी को क्यों मारा? 

कासिम सुलेमानी ईरान के कुद्स फौज के कमाण्डर थे जिन्हें 3 जनवरी 2020 को शुक्रवार के दिन अमरीका ने हवाई हमले में मार दिया। उनकी मौत पर ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने कहा कि अमरीका का यह आतंकवादी कारनामा बहुत ही खतरनाक है और अमरीका को इसके सभी परिणाम भुगतने हांेगे, जो उसने अपने गन्दे दुस्साहस के चलते पैदा किये हैं। दूसरी तरफ अमरीका के हाउस ऑफ रिप्रेजेण्टेटिव की प्रवक्ता नैंसी पेलोसी ने कहा कि सुलेमानी की हत्या पूरे मध्य एशिया के इलाकों में हिंसा को बहुत बड़े स्तर पर बढ़ा देगी। दोनों देशों के बीच तनाव आज अपने चरम पर है। आइये पिछले दिनों की कुछ बड़ी घटनाओं पर एक नजर डालते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ओबामा प्रशासन के दौरान दोनों पक्षों ने अमरीका–ईरान के बीच अच्छे सम्बन्ध बनाने की कोशिश की थी। इसी को ध्यान में रखते हुए अमरीका–ईरान नाभकीय समझौता भी… आगे पढ़ें

अमरीका बनाम चीन : क्या यह एक नये शीत युद्ध की शुरुआत है

–– पैट्रिक विण्टौर शीत युद्ध के बौद्धिक लेखक के रूप में विख्यात जॉर्ज केनन ने याद किया कि सोवियत खतरे की प्रकृति पर अगर उसने अपना तार छह महीने पहले भेजा होता तो उसके सन्देश पर “शायद विदेश मंत्रालय में होंठ भींच लिए जाते और भवें चढ़ जाती। छह महीने बाद, यह शायद एक निरर्थक और बेमतलब का उपदेश लगा होता।” अब, कोरोनोवायरस महामारी को लेकर जब अमरीका चीन को घेर रहा है तो ऐसा लगता है जैसे दुनिया के बहुत से लोकतांत्रिक देश 1946 जैसी तेजी से ही विश्व व्यवस्था की एक नयी धारणा तक पहुँच रहे हैं। अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने घोषणा की है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से भी बड़ा खतरा है, और इस बात से सहमत देशों की संख्या बढ़ रही है। जिन लोगों ने तर्क दिया कि आर्थिक रूप से उदार चीन एक राजनीतिक रूप से… आगे पढ़ें

अमरीका–ईरान टकराव की दिशा

सीरिया में युद्ध अभी पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ और एक नये युद्ध की तलाश में अमरीकी जंगी बेड़ा फारस की खाड़ी में लंगर डाल चुका है। इस बार निशाने पर ईरान है। वेनेजुएला में तख्तापलट और बर्बादी की पटकथा लिखकर अमरीका एक नये युद्ध के हालात तैयार करके ईरान के दरवाजे पर पहुँच तो गया है लेकिन अमरीका का यह पुराना “दुश्मन” उस पर इक्कीस पड़ता नजर आ रहा है। ईरान पर हमले के लिए बहाने और माहौल तैयार किये जा चुके हैं। अमरीका ने उस पर होमरूज जल डमरू में तेल के दो टैंकरों पर हमला करने और अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में अमरीका के जासूसी विमान को मार गिराने के ताजा आरोप लगाये हैं। हालाँकि अरब क्षेत्र के अपने दो खास पिट्ठुओं, सऊदी अरब और इजराइल की तुरन्त हमला करने की गुजारिशों के बावजूद अमरीका हिचकिचा रहा है और युद्ध के परिणामों को लेकर भयभीत है। अमरीकी सत्ता… आगे पढ़ें

अमरीका–ईरान समझौते का शिशु–वध

8 मई को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के साथ 2015 में हुए परमाणु समझौते को तोड़ने की एकतरफा घोषणा कर दी। ट्रम्प का कहना था, “मेरे लिए यह स्पष्ट है कि हम इस समझौते के साथ रहकर ईरान को  परमाणु बम बनाने से नहीं रोक सकते हैं। ईरान समझौता मूल रूप से दोषपूर्ण है। इसलिए मैं आज ईरान परमाणु समझौते से अमरीका के हटने की घोषणा करता हूँ”। घोषणा के कुछ ही देर बाद ईरान पर नये प्रतिबन्ध लगा दिये गये। यह समझौता ओबामा सरकार के दौरान ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थाई सदस्यों (अमरीका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस) और जर्मनी के बीच  हुआ था। जेनेवा में हुए इस समझौते के अनुसार ईरान ने वादा किया था कि वह लगभग 15 टन संवर्धित यूरेनियम के भंडार को 98 फीसदी कम करके तीन सौ किलोग्राम तक रखेगा। समझौते के समय ईरान के पास उन्नीस हजार… आगे पढ़ें

अमरीका–तालिबान वार्ता में गतिरोध

अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने तालिबान के साथ कैम्प डेविड में 9 सितम्बर को होने वाली शान्ति वार्ता को रद्द कर दिया था। डोनाल्ड ट्रम्प ने यह फैसला काबुल में होने वाले हमले के बाद लिया था जिसमें एक अमरीकी सैनिक सहित कुल 12 लोग मारे गये थे। 9 सितम्बर को होने वाली इस शान्ति वार्ता के तहत अमरीका अपने 5 हजार से अधिक सैनिकों को अफगनिस्तान से वापस बुुलाने वाला था। अफगनिस्तान में अभी भी अमरीका के 14 हजार सैनिक मौजूद हैं।  गौरतलब है कि अफगानिस्तान में पिछले दो दशकों से यु़द्ध चल रहा है जिसमें एक ओर अमरीका और उसके सहयोगी संगठन नाटो की सेनाएँ हैं और दूसरी ओर तालिबानी लड़ाके हैं। तालिबान का मानना है कि अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार अमरीका की कठपुतली है। तालिबान की माँग यह है कि अमरीका जितनी जल्दी हो सके अपने सैनिकों को वापस बुला ले। अमरीका और तालिबान के बीच समझौते… आगे पढ़ें

अमरीकी चैधराहट के खिलाफ जी–7 में विक्षोभ

जी–7 देशों का 44वाँ सम्मेलन 8.9 जून 2018 को कनाडा के ला मेलबेई में सम्पन्न हुआ। जी–7 के बाकी देशों के साथ अमरीका के मतभेद इस सम्मेलन में सतह पर आ गये। इतना ही नहीं सम्मेलन में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के गैर–जिम्मेदाराना व्यवहार ने अमरीका के पारम्परिक सहयोगियों से उसकी दूरी को और बढ़ा दिया। इससे ठीक पहले ट्रम्प ने अमरीका के सबसे नजदीकी सहयोगी देशों के स्टील और एल्युमीनियम पर तटकर लगाने का फैसला किया था। जिसको लेकर बैठक में अमरीका और उसके सहयोगी देशों के बीच तनाव बढ़ गया और इसके चलते साम्राज्यवादी खेमें में दरार पड़ती नजर आयी। जी–7 की बैठक कई मुद्दों को हल करने में असफल रही। पर्यावरण की समस्या, ईरान से सम्बन्ध, इजराइल–फिलिस्तीन टकराव और रूस को फिर से इस समूह का सदस्य बनाये जाने जैसे मसलों पर कोई निर्णय नहीं हो सका। इन मामलों को सुलझाने को लेकर ट्रम्प का रवैया बेहद… आगे पढ़ें

अमरीकी धमकियों के प्रति भारत का रूख, क्या विश्व व्यवस्था में बदलाव का संकेत है?

अमरीकी धमकियों की परवाह न करते हुए, 5 अक्टूबर को भारत ने रूस के साथ एस–400 मिसाइल की खरीद के समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसके अलावा दोनों देशों ने आठ और समझौतों या सहमति ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर किये और भविष्य में दूसरे बहुत से समझौतों के लिए रास्ते खोले। ईरान के मामले में भी भारत ने यही आचरण करते हुए अमरीकी धमकियों के आगे आत्मसमर्पण नहीं किया। हालाँकि भारत चाहकर भी 4 नवम्बर तक ईरान से तेल आयात को शून्य पर नहीं ला सकता था, जैसी अमरीका की इच्छा थी। इसके विपरीत वह ईरान से तेल आयात जारी रखने की घोषणा कर चुका है। अमरीका विरोधी कुछ देशों को सबक सिखाने के लिए ट्रम्प प्रशासन ने 2017 में काउन्टरिंग अमरीका एडवर्सरीज  सैंक्सन एक्ट (सीएएटीएसए) बनाया था। यह कोई अन्तरराष्ट्रीय कानून नहीं है बल्कि अमरीका का घरेलू कानून है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्वीकृति मिलना तो दूर, उसकी किसी बैठक… आगे पढ़ें

इजराइल का क्रिस्टालनाख्त नरसंहार

––ब्रूस न्यूबर्गर (गाजा के अस्पताल पर हमले के साथ इजराइल का हत्या अभियान जारी है : 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने गाजापट्टी की ओर से हजारों रोकेट से इजराइल पर ताबड़तोड़ हमला किया जिससे 1400 इजराइली मारे गये। यह हमला जैसे इजराइल के लिए बहाना बन गया और उसने हमास… आगे पढ़ें

एशिया में अफीम की खेती और साम्राज्यवादी नीतियाँ

एक जमाने में अफीम ब्रिटेन के कभी न अस्त होने वाले सूरज को ऊर्जा प्रदान करने वाला सबसे बड़ा स्रोत हुआ करता था। दरअसल, अफीम और उसके द्वारा किये गये विनाश की कहानी ब्रिटेन के वैश्विक शक्ति के रूप में उदय की दास्तान है। 19वीं सदी में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के जरिये भारत पर धीरे–धीरे काबिज हो रहे ब्रिटेन को दो समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। ब्रिटेन को तब तक चीन की चाय का चस्का लग चुका था और इस वजह से उसे वहाँ से भारी मात्रा में इसका आयात करना पड़ रहा था। दिक्कत यह थी कि चीन को चाय के निर्यात के बदले में ब्रिटेन में बनी वस्तुओं के बजाय चाँदी चाहिए थी। इस तरह चाय के चक्कर में ब्रिटेन की चाँदी चीन पहुँच रही थी और उसका खजाना खाली हुआ जा रहा था। दूसरी तरफ, भारत में बढ़ते भौगोलिक दायरे के कारण ईस्ट इण्डिया कम्पनी… आगे पढ़ें

कोरोना काल में दक्षिण चीन सागर का गहराता विवाद

कोरोना महामारी के वैश्विक प्रसार के बाद दो महत्त्वपूर्ण चीजें एक समानुपात में बढ़ी हैं–– कोरोना महामारी से निपटने में अमरीका की असफलता और चीन के खिलाफ अमरीका की उग्रता। दक्षिणी चीन सागर विवाद इसी एकतरफा उग्रता का परिणाम है और लगता है कि जैसे यह दूसरे शीत युद्ध का प्रस्थान बिन्दु हो। अभी हम दक्षिणी चीन सागर विवाद के दूसरे चरण से रूबरू हैं। पहला चरण 2017 में आया था। जब चीन ने अन्तरर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने से इनकार कर दिया था। चीन ने न्याय प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लिया था। उसका तर्क था कि यह विवाद इस न्यायालय के दायरे में ही नहीं आता। पहले चरण में चीन हावी था और इस क्षेत्र में और ज्यादा मजबूत होता गया। चीन के साथ विवाद के दूसरे वास्तविक पक्ष वियतनाम, मलेशिया, फिलिपीन्स, ताइवान, ब्रूनेई चीन के साथ आपसी बातचीत से मुद्दे को हल करने का रास्ता अपनाकर… आगे पढ़ें

क्या लोकतन्त्र का लबादा ओढ़े अमरीका तानाशाही में बदल गया है?

––जॉन डब्ल्यू व्हाइटहैड “गरीब और दबे कुचले लोग बढ़ते जा रहे हैं। नस्लीय न्याय और मानवाधिकार बचे नहीं हैं। उन्होंने एक दमनकारी समाज बनाया है और हम सब इच्छा न होते हुए भी उनके साथी हैं। उनका इरादा बचे हुए लोगों की चेतना का सत्यानाश करके शासन करने का है। हमें थपकियाँ दे–देकर समाधि में सुलाया जा रहा है। उन्होंने हमें हमसे ही अलग कर दिया है और दूसरों से भी। हमारा ध्यान सिर्फ अपने फायदे पर ही रहता है।” ––दे लिव (1988), जॉन कारपेंटर। हम दो दुनिया में रहते हैं, आप और मैं। एक दुनिया, जिसे हम देखते हैं (देखने के लिए ही बने हैं) और फिर दूसरी दुनिया, जिसे हम महसूस करते हैं (कभी–कभी इसकी एक झलक ले लेते हैं)। इसमें दूसरी वाली दुनिया सरकार और उसके प्रायोजकों (स्पाँसर) द्वारा संचालित प्रचार और गढ़ी गयी वास्तविकता से कोसों दूर है, प्रचार में मीडिया भी शामिल है। वास्तव में,… आगे पढ़ें

गाजा नरसंहार पर हिलेरी क्लिंटन के बयान का विरोध

फिलिस्तीन की गाजा पट्टी में इजरायल द्वारा किये जा रहे नरसंहार को अब छ: महीने से ज्यादा हो चुके हैं। दुनियाभर के इनसाफपसन्द लोगों और मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले समूह इस नरसंहार और कत्ल–ओ–गारत को तुरन्त रोकने की माँग लगातार उठा रहे हैं। बावजूद इनके, इस तबाही के रुकने के कोई आसार अभी नजर नहीं आ रहे हैं। इसी साल 19 फरवरी को जर्मनी के बर्लिन शहर में सिनेमा फॉर पीस द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसी कार्यक्रम में संयुक्त राज्य अमरीका की राजनीतिज्ञ हिलेरी क्लिंटन ने इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी जनता के कत्लेआम पर ऐसा बयान दिया कि कार्यक्रम के दौरान ही श्रोताओ ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया। हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि “अगर युद्धविराम हुआ तो यह हमास के लिए तोहफा होगा क्योंकि इस वक्त का इस्तेमाल वह फिर से खुद को खड़ा करने के लिए करेगा। जो लोग युद्धविराम की बात कर रहे… आगे पढ़ें

गाजा पर इजरायल का हमला : दक्षिणपंथी सरकारों का आजमाया हुआ पैंतरा

गाजा पट्टी की फिलिस्तीनी जनता के उपर 11 दिनों तक मिसाइलों, बमवर्षकों, तोपों से गोले दागने के बाद 21 मई को इजराइल युद्ध विराम के लिए राजी हुआ। इस युद्ध में एक तरफ अमरीका से मिली जेडीएएम (ज्वांइट डायरेक्ट अटैक म्यूनेशन) तकनीकी सहायता, 3.8 बिलियन डॉलर (26,600 करोड़ रुपये) प्रति… आगे पढ़ें

झूठ के सामने दम तोड़ता सच

“मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाउँगी, वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा”। परवीन शाकिर का यह शेर आज के दौर में झूठ और फर्जी खबर का कारखाना बन गयी सोशल मीडिया पर सटीक बैठता है। व्हाट्सएप और फेसबुक पर झूठी खबरें पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती बनी हुई हैं। ब्राजील का चुनाव हो या भारत का, यहाँ तक कि अमरीकी चुनाव भी सोशल मीडिया पर फैले झूठ से प्रभावित हुए बिना नहींं रह सका। विपक्षी उम्मीदवार को नीचा दिखाने के लिए सत्ता पक्ष नये झूठ गढ़ता है। विपक्ष भी दूध का धुला नहींं है, अपनी क्षमतानुसार वह भी झूठ का कारोबार करता है। हमारे देश में पचास प्रतिशत से ज्यादा इण्टरनेट उपयोगकर्ता खबरों के लिए व्हाट्सएप और फेसबुक पर निर्भर रहते हैं। वे इन सोशल एप पर आयी खबर को सच मानते हैं और उसी के अनुसार व्यवहार करते हैं। इसी का नतीजा है कि सिर्फ… आगे पढ़ें

निगरानी, जासूसी और घुसपैठ : संकटकालीन व्यवस्था के बर्बर दमन का हथकंडा

सरकार पिछले कुछ महीनों से सभी दूरसंचार कम्पनियों से उनके सभी ग्राहकों के कॉल रिकॉर्ड्स (सीडीआर) माँग रही है। सरकार यह काम दूरसंचार विभाग (डीओटी) की स्थानीय इकाइयों की मदद से कर रही है, जिसमें दूरसंचार विभाग के अधिकारी कम्पनियों से डेटा माँगते हैं। जबकि सीडीआर की जानकारी सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस (एसपी) या इससे बड़े स्तर के अधिकारी को ही दी जा सकती है और एसपी को इसकी जानकारी हर महीने जिलाधिकारी को देनी पड़ती है। प्रमुख दूरसंचार कम्पनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने बताया कि सीडीआर की जरूरत के कारणों के बारे में दूरसंचार विभाग ने कुछ नहीं लिखा है। जो सुप्रीम कोर्ट के मानदण्डों का सीधा–सीधा उल्लंघन है। यह निजता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) का भी हनन करता है, जो प्रत्येक नागरिक का मूलभूत अधिकार है। सीडीआर की सुविधा के जरिये कॉल करने वाले और कॉल प्राप्त करने वाले व्यक्ति का… आगे पढ़ें

पश्चिम एशिया में निर्णायक मोड़

––राकेश सूद अरब स्प्रिंग के बाद, अन्दरूनी और बाहरी क्षेत्रों में नये तरह के काले बादलों ने पश्चिमी एशिया के फिलिस्तीन और इजराइल के लम्बे संघर्ष को ढंक लिया है। इराक से शुरू हुए इस्लामी राज्य और उसकी उपशाखाओं के खिलाफ लड़ाईय सीरिया संघर्ष जो अमरीका, रूस, ईरान और तुर्की के बीच चल रहा हैय गोलान हाइट्स में इजराइल और ईरान के बीच ताजा मुठभेड़ और यमन में गृह युद्ध जहाँ सऊदी अरब और ईरान की भागीदारी ने पुराने क्षेत्रीय दोषपूर्ण सीमारेखा को उजागर करते हुए तनाव बढ़ाया है। व्यापक संघर्ष की बढ़ती आशंका प्रथम विश्व युद्ध के बाद खींची गयी सीमाओं को पलटने का खतरा पैदा कर सकती है। अमरीका की वापसी इस अस्थिर परिस्थिति में, 8 मई को नयी अनिश्चिततायें जुड़ गयीं जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की कि अमरीका जॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) से बाहर निकल रहा है। ईरानी विदेश मंत्री जावेद जारिफ के… आगे पढ़ें

पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने यूक्रेन युद्ध को अपरिहार्य बना दिया

सोवियत संघ के विघटन और आर्थिक संकट से घिरे रूस के पुन: उभार से पूरी दुनिया में और खासतौर पर पूर्वी यूरोप में एक नये शक्ति सन्तुलन के निर्माण की शुरुआत हो गयी जो अभी जारी है। मौजूदा रूस–यूक्रेन युद्ध इसी का हिस्सा है। यह युद्ध संकटग्रस्त पश्चिमी साम्राज्यवादियों (अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा, जापान) द्वारा रूस पर नकेल कसे रखने की कोशिशों का परिणाम है। यूक्रेनी रणक्षेत्र में नाटो और रूस एक बार फिर टकराव की स्थिति में हैं। रूस के दो लाख से ज्यादा सैनिक यूक्रेन में घुसे हुए हंै और उन्होंने यूक्रेन के शहरों को घेर लिया है। यूक्रेन के शासकों की नव–नाजी सोच और खुद को नाटो का खिलौना बना लेने के चलते यूक्रेन इन दैत्याकार महाशक्तियों के टकराव का अखाड़ा बन गया है। नाटो द्वारा रूस की घेराबन्दी रूस का सबसे विकसित, विशाल पश्चिमी हिस्सा भौगोलिक रूप से खुला हुआ है। इतिहास में रूस… आगे पढ़ें

पेरू का संकट : साम्राज्यवादी नव उदारवादी नीतियों का अनिवार्य परिणाम

पिछले महीनों में पेरू की जनता शानदार ऐतिहासिक उथल–पुथल में व्यस्त रही। फिल्मी नायिकाओं की पोशाकों की तरह राष्ट्रपति बदले गये। नवम्बर महीने में तीन राष्ट्रपति बदले गये। जून से ही जनता और सेना आमने–सामने हैं। शासक भयभीत हैं, उनका राज बेराज हो चुका है। 19 नवम्बर को कांग्रेस ने फ्रंसिसकी सजस्ती को राष्ट्रपति का पद सौंप दिया है। देखते हैं, वे कितने दिन टिकते हैं। व्यवस्था ने जनता का विश्वास खो दिया है लेकिन जनता के पास अभी इसका कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं जिसे जनता का विश्वास हासिल हो। त्रासदी यह है कि जनता के पास भी ऐसा कोई नेता नहीं जो सबको स्वीकार हो। भविष्य तो नजूमी ही जाने लेकिन पेरू की जनता ने अपने देश में लागू साम्राज्यवादी नव उदारवादी व्यवस्था को जबरदस्त चोट पहुँचायी है। एक दशक तक पेरू की आर्थिक वृद्धि के चमत्कार का लातिन अमरीका में खूब… आगे पढ़ें

पेरू में तख्तापलट

सम्पदा है जहाँ, अमरीका की गन्दी चाल है वहाँ––– 7 दिसम्बर, 2022 को अमरीका ने पेरू में चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करवा दिया। 2021 में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गये राष्ट्रपति पेद्रो कास्तियो को उनके राष्ट्रपति भवन से गिरफ्तार करके 18 महीने की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। इससे पहले उन्हें दो बार पद से हटाने की असफल कोशिशें की गयी थीं। अब उनकी जगह पूर्व उप–राष्ट्रपति दिना बेलुरते को गद्दी पर बैठाया गया है। पेद्रो कास्तियो, पहले देहात के एक स्कूल में शिक्षक थे। उन्होंने देश के संसाधनों के जनहित में इस्तेमाल के मुद्दों पर आन्दोलन चलाया। इससे राष्ट्रीय राजनीति में उनकी जगह बन गयी। अपने राजनीतिक जीवन में आगे बढ़ते हुए पेद्रो एक वामपंथी पार्टी ‘पेरू लिब्रे’ के नेतृत्व के पद पर पहुँच गये। इसी पार्टी की तरफ से उन्होंने जून 2021 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा। चुनाव में पेद्रो ने ताम्बे की खदानों समेत… आगे पढ़ें

प्रतिबन्धों का मास्को पर कुछ असर नहीं पड़ा है, जबकि यूरोप 4 सरकारें गँवा चुका है: ओरबान

हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने शनिवार 23 जुलाई 2022 को कहा कि सच्चाई यह है कि आर्थिक और राजनीतिक संकटों के चलते यूरोप चार सरकारें गँवा चुका है जबकि रूस पर लगे प्रतिबन्ध मास्को के संकल्पों को कमजोर नहीं कर पाये हैं। “पश्चिम की रणनीति चारों पहियों में पेंचर वाली किसी कार की तरह है––– प्रतिबन्ध मास्को को डिगा नहीं पाये हैं। यूरोप आर्थिक और राजनीतिक संकट में है और चार सरकारें इसकी शिकार हो चुकी हैं–– ब्रिटेन, बुल्गारिया, इटली और एस्तोनिया––– जनता को कीमतों में तेज बढ़ोतरी झेलनी पड़ेगी। और दुनिया के बड़े हिस्से ने जान–बूझकर हमारी तरफदारी नहीं की। चीन, भारत, ब्राजील दक्षिण अप्ऱीका, अरब जगत, अप्ऱीका–– हर कोई इस युद्ध से अलग हो गया है, उनकी रुचि अपने खुद के मामलों में है” ओरबान ने ये बातें रोमानिया के शहर वेलतस्नाद में एक भाषण देते हुए कही। ओरबान यहाँ तक कह गये कि “यूक्रेन का टकराव… आगे पढ़ें

फ्रांस का येलो–वेस्ट आन्दोलन

फ्रांस में ईंधन–शुल्क में बढ़ोतरी के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन की शुरुआत 17 नवम्बर 2018 को अलग–अलग शहरों में हुई, जो कुछ महीनों तक जारी रहा। हालाँकि पेट्रोल व डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी अन्य देशों में भी हुई है, लेकिन वहाँ की जनता ने फ्रांस जितना व्यापक विरोध नहीं किया। फ्रांस में लोगों ने पीली जैकेट पहनकर अपना रोष जताया, जिसे येलो–वेस्ट आन्दोलन का नाम दिया गया। लोगों ने आरोप लगाया कि सरकार के इस फैसले से उनका जीवन स्तर गिर जायेगा। पेट्रोल व डीजल की कीमतों में वृद्धि के लिए सरकार ऐसे–ऐसे बहाने कर रही है, जिनका जमीनी धरातल पर सच्चाई से दूर–दूर का वास्ता नहीं, जैसे–– इससे प्रदूषण कम होगा, अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, जबकि सरकार ने साल 2007–08 में डीजल से चलने वाली गाड़ियों को खरीदने के लिए प्रोत्साहन दिया था और कहा था कि देश में प्रदूषण विरोधी डीजल उपलब्ध है, जिससे… आगे पढ़ें

फ्रांसीसी साम्राज्यवाद के खिलाफ अफ्रीका में संघर्ष की नयी लहर

अफ्रीकी देश नाइजर में सेना के कुछ हिस्सों ने देश के राष्ट्रीय दिवस, 3 अगस्त 2023 से ठीक पहले नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बजौम को सत्ता से हटा दिया। जनता भी सेना के समर्थन में उतर आयी। उसने “फ्रांस मुर्दाबाद” के नारे लगाये। फ्रांसीसी दूतावास को भी निशाना बनाया गया, खिड़कियों को तोड़ दिया और दीवारों में आग लगा दी गयी। बजौम घर में ही नजरबन्द कर लिये गये। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने साम्राज्यवादी अहंकार में कहा कि वे “फ्रांस और उसके हितों के खिलाफ किसी भी हमले को बर्दाश्त नहीं करेंगे”। यदि किसी को चोट लगी है, तो जवाबी कार्रवाई “तत्काल और बिना समझौता किये” की जाएगी। उन्होंने नाइजर जनता को धमकाने की कोशिश की। यूरोपीय देशों के घबराये हुए नागरिकों को अफरा–तफरी में आपातकालीन उड़ान की उम्मीद में जर्जर हवाईअड्डे की ओर जाते देखा गया। नाइजर की राजधानी नियामी का दृश्य ऐसा था जैसे उसे नयी… आगे पढ़ें

बर्मा में सत्ता संघर्ष और अन्तरराष्ट्रीय खेमेबन्दी

एक फरवरी को बर्मा में सेना ने फिर से सत्ता पर जबरन कब्जा जमा लिया। उसने बन्दूक की नोक पर नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की सरकार को उसकी बची–खुची आंशिक सत्ता से भी बेदखल कर दिया। हालाँकि, सत्ता पूरी तरह एनएलडी के पास नहीं थी, सेना के साथ उसकी… आगे पढ़ें

बहुत हो चुका ओली जी! अब विश्राम कीजिए….

(नेपाल में गहराता राजनीतिक संकट) (नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली द्वारा संसद भंग करने की सिफारिश से उत्पन्न राजनीतिक संकट अभी बरकरार है। इस संकट को हल करने में न्यायपालिका की भूमिका भी संदिग्ध है। अब वहाँ के जनगण की एक मात्र उम्मीद जनान्दोलन से ही रह गयी है। जनयुद्ध से हासिल हुई अनमोल उपलब्धियों–– राजाशाही का अन्त, लोकतंत्र, संघीय ढाँचा और संविधान को बचाने का एकमात्र रास्ता जनान्दोलन ही है।) नेपाल के राजनीतिक रंगमंच पर पिछले कुछ महीनों से जो अश्लील नाटक चल रहा था, उसके पहले खण्ड का पटाक्षेप 20 दिसम्बर को प्रतिनिधि सभा के विघटन के साथ हो गया। यह सारा कुछ इतने अप्रत्याशित ढंग से हुआ कि इस नाटक के किरदार भी हैरत में आ गये। पहली बार यह देखने में आया कि कोई प्रधानमंत्री, जिसके पास लगभग दो–तिहाई बहुमत हो, वह खुद ही संसद को भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति से करे। इस पूरे नाटक… आगे पढ़ें

बोलीविया में तख्तापलट : एक परिप्रेक्ष्य

दिसम्बर 1973 में, मंथली रिव्यू के सम्पादक पॉल एम स्वीजी, जिन्होंने चिली की कई यात्राएँ की थीं और वे सल्वाडोर अलेन्दे के मित्र थे, उन्होंने चिली में सैन्य तख्तापलट के बारे में “चिली : द क्वेश्चन ऑफ पावर” शीर्षक से एक लेख लिखा था जिसमें बताया था कि “चिली की त्रासदी इस बात की पुष्टि करती है कि क्या होना चाहिए था और जो कई लोगों को स्पष्ट था कि समाजवाद के लिए शान्तिपूर्ण रास्ते जैसी कोई चीज नहीं होती है।” निश्चित रूप से उनका यह मतलब नहीं था “कि समाजवाद के लिए संघर्ष में केवल हिंसक साधन ही उचित और प्रभावी होते हैं, “बल्कि यह कि “समाजवाद के रास्ते में हिंसक टकराव अवश्यम्भावी है”–– यह हमेशा प्रतिक्रियावादी ताकतों द्वारा शुरू की जाती है जो अपनी शक्ति को खतरे में पड़ा देखते हैं। “इसका अर्थ है कि समाजवादी रणनीति और रणकौशल के सभी चरणों में हिंसक टकराव का मुद्दा केन्द्रीय… आगे पढ़ें

बोलीविया में नस्लवादी तख्तापलट

10 नवम्बर को बोलीविया में इवो मोरालेस की चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर दिया गया। इवो मोरालेस देश के पहले मूल निवासी राष्ट्रपति थे। वे पिछले 14 साल से देश की सत्ता सम्भाल रहे थे। 20 अक्टूबर को उन्हें चैथी बार देश का राष्ट्रपति चुना गया था। उन्होंने 46–35 प्रतिशत मत प्राप्त करके अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी कार्लोस मेसा को 10 प्रतिशत से अधिक मतों से हराया था। विपक्षी दक्षिणपन्थी और नस्लवादी पार्टियों, पुलिस और सेना के गठजोड़ ने उनकी जीत स्वीकार नहीं की और पूरे देश में अराजकता और खून–खराबे का माहौल तैयार कर दिया। विरोधियों ने उनकी हत्या करने पर 50 हजार डॉलर का ईनाम घोषित कर दिया। 8 नवम्बर को सेना अध्यक्ष विलियम कलीमान ने देश की जनता को खून–खराबे से बचाने के बहाने उनसे देश छोड़कर चले जाने की धमकीभरी गुजारिश की। 10 नवम्बर को मोरालेस मैक्सिको के राष्ट्रपति आनेस मैनुअल लापेज के आग्रह पर उपराष्ट्रपति… आगे पढ़ें

ब्राजील की लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर धुर दक्षिणपंथी ताकतों का कब्जा

28 अक्टूबर को ब्राजील में अन्तिम दौर का चुनाव परिणाम आया। इसमें विवादास्पद धुर दक्षिणपंथी नेता जेर बोल्सोनारो की जीत हुई। वामपंथी झुकाव रखने वाली वर्कर्स पार्टी के नेता फर्नाडो हदाद को कुल मतों का 44 प्रतिशत प्राप्त हुआ वहीं बोल्सोनारो को 56 फीसदी मत मिले। 7 अक्टूबर को हुए पहले दौर के चुनाव में भी बोल्सोनारो ने विभिन्न पार्टियों के 13 उम्मीदवारों में 46 प्रतिशत मत पाकर बढ़त बना ली थी जबकि हदाद को 29 फीसदी मत ही मिले थे। नये राष्ट्रपति कंजर्वेटिव सोशल लिबरल पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। उनकी पार्टी के नाम में “लिबरल” शब्द भले ही दिखायी देता हो लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय से यही झलकता है कि आम जनता के लिए उनके दिल में कोई जगह नहीं है। उनका आक्रामक रवैया अमरीका में हुए पिछले चुनावों में ट्रम्प द्वारा अपनाये गये रवैये से भी ज्यादा घृणित और उग्र था।… आगे पढ़ें

भारत–अमरीका 2–2 वार्ता के निहितार्थ

27 अक्टूबर को भारत–अमरीका के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिए मंत्रीस्तरीय वार्ता सम्पन्न हुई। यह 2–2 वार्ता की अगली कड़ी थी। वार्ता में भारत की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर तथा अमरीका की ओर से माइक पोम्पियो और मार्क एस्पर ने हिस्सा लिया। वार्ता के बाद दोनों देशों ने भारत–अमरीका मूलभूत विनिमय और सहयोग समझौता (बेसिक एक्सचेंज एण्ड कॉपरेशन एग्रीमेण्ट, बीईसीए) पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते का केन्द्रीय बिन्दु दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में “पारस्परिकता” स्थापित करना है। इसे मोदी सरकार की भारी सफलता बताया गया है। समझौते के अनुसार दोनों देश किसी भी खास समय पर किसी स्थान सम्बन्धी खुफिया जानकारी, सेटेलाइट की तस्वीरें और नक्शे एक दूसरे के साथ साझा करेंगे। दावा है कि इससे भारत की अमरीकी भू–स्थानिक खुफिया प्रणाली तक पहुँच बन जाएगी। सशस्त्र ड्रोनों, मिसाइलों, स्वचालित प्रणालियों और हथियारों की सटीकता बढ़ जायेगी। इसे ऐसे… आगे पढ़ें

भारत–इजराइल साझेदारी को मिली एक वैचारिक कड़ी 

–– अनुपमा कटकम  26 अगस्त, 2019 को, इण्डो–इजरायल फ्रेण्डशिप एसोसिएशन नामक एक अल्प–ज्ञात संगठन ने मुम्बई विश्वविद्यालय में यहूदीवाद और हिन्दुत्व पर एक बातचीत की मेजबानी की। मुख्य वक्ता डॉ– सुब्रमण्यम स्वामी थे, जो राज्यसभा सदस्य हैं और गदी ताउब, जो हिब्रू विश्वविद्यालय येरुशलम में प्रोफेसर हैं आयोजन का प्रचार… आगे पढ़ें

भूटानी शरणार्थी और भारत सरकार की आपराधिक उदासीनता

(भूटान की जेलों में राजनीतिक बंदियों की संख्या कितनी है, यह पता करना बहुत मुश्किल है। भूटान सरकार इस बारे में कोई जानकारी नहीं देती, पर ह्यूमन राइट्स वाच नामक संस्था ने भूटान की जेलों में बन्द 37 राजनीतिक बंदियों के बारे में जानकारी जुटायी है जिनमें से 24 को आजीवन कारावास और शेष को 15 से 43 वर्ष की सजा मिली है। 13 मार्च को जारी अपनी रिपोर्ट में इस अन्तरराष्ट्रीय संस्था ने बताया है कि इनमें से अधिकांश ल्होत्सम्पा (नेपाली मूल के भूटानी नागरिक) हैं जिन्हें नागरिकता कानून के खिलाफ 1990 में चले आन्दोलन के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। इनकी संख्या 32 है। शेष सारचोप समुदाय के हैं और वे ‘द्रुक नेशनल कांग्रेस’ (डीएनसी) के सदस्य हैं। नागरिकता कानून तथा शाही सरकार की अन्य दमनकारी नीतियों का विरोध करने की वजह से एक लाख से भी अधिक नागरिकों को देश निकाला की सजा भुगतनी पड़ी और… आगे पढ़ें

भोजन, खेती और अफ्रीका : बिल गेट्स को एक खुला खत

दुनियाभर में खाद्य सम्प्रभुता और न्याय पर केन्द्रित हमारे 50 संगठन चाहते हैं कि आप जानें कि अफ्रीकी किसानों और संगठनों द्वारा व्यावहारिक समाधानों और नयी खोजों की कोई कमी नहीं है। हम आपको थोड़ा पीछे हटकर सोचने और जमीन पर मौजूद लोगों से सीखने के लिए आमन्त्रित करते हैं। –– अफ्रीका में खाद्य सम्प्रभुता के लिए गठबन्धन प्रिय बिल गेट्स, हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स के डेविड वालेस–वेल्स के द्वारा लिखे सम्पादकीय में तथा एक अन्य सम्बन्धित अखबार के लेख में भी आपका कृषि और खाद्य असुरक्षा की वैश्विक स्थिति पर टिप्पणी करते हुए विशेष रूप से उल्लेख किया गया था। दोनों लेखों में, आपने कई ऐसे दावे किये हैं जो गलत हैं और जिनको चुनौती देने की जरूरत है। दोनों जगह आपने स्वीकार किया है कि आज दुनिया, पृथ्वी के सभी निवासियों को भरपेट खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करती है, फिर भी आप मूलत: कम… आगे पढ़ें

मध्य–पूर्व एशिया : पतन की ओर अमरीका 

3 जनवरी 2020 को अमरीका ने ईरान के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को बगदाद के अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ड्रोन हमले में मार दिया था। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने इराक स्थित दो अमरीकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हुए एक दर्जन से अधिक मिसाइलें दागी और यह बताया कि इस हमले में 80 अमरीकी आतंकवादी मारे गये, हालाँकि अमरीका ने किसी भी प्रकार की क्षति से इनकार किया है। अन्तरराष्ट्रीय मंच पर किसी देश ने पहली बार अमरीकी सैनिकों को खुले तौर पर अमरीकी आतंकवादी कहा है। मध्य–पूर्व के देशों में अमरीका का पुरजोर विरोध करने के मामले में ईरान कोई कसर नहीं छोड़़ रहा है। तमाम आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये जाने के बावजूद भी ईरान ने घुटने नहीं टेके हैं। सुलेमानी की हत्या की जवाबी कार्रवाई के बाद ट्रम्प ने ईरान के 52 सांस्कृतिक स्थलों पर हमला करने की धमकी दी थी जिसकी खुद अमरीका सहित पूरी दुनिया में… आगे पढ़ें

महामारी के बावजूद 2020 में वैश्विक सामरिक खर्च में भारी उछाल

1988 को आधार वर्ष माने तो कोविड–19 महामारी के बावजूद दुनियाभर के देशों ने 2020 में सर्वाधिक सैन्य खर्च किया है। हमेशा की तरह ही इनमें अमरीका पहले स्थान पर है। यह तथ्य स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (एसआईपीआरआई) की हालिया रिपोर्ट, ट्रेंड्स इन वर्ल्ड मिलिटरी एक्सपेंडीचर, 2020 पर आधारित… आगे पढ़ें

यमन का गृहयुद्ध और साम्राज्यवादी गिरोह का हमला

यमन में 2015 से हुति विद्रोहियों और सऊदी अरब समर्थित सरकार के बीच गृह–युद्ध चल रहा है जिसमे अब तक 10 हजार से अधिक लोग मारे गये हैं और 15 हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं। हुति सिया मुसलमान हैं जिन्हे ईरान का समर्थन हासिल है जो की एक सिया देश है जबकि यमन सरकार को सऊदी अरब और उसके अन्य सहयोगियों का समर्थन है। ईरान और सऊदी अरब मध्य–पूर्व में अपना अपना वर्चस्व चाहते हैं। हुति यह मानते हैं की यमन सरकार ने उनका सही तरीके से विकास नहीं किया है इसलिए उन्होंने 2004 से ही विद्रोह करना शुरू कर दिया था और 2014 में उन्होंने यमन की राजधानी साना पर कब्जा कर लिया था। जिससे 2015 में गृह युद्ध की शुरुआत हो गयी थी। 2015 में गृह–युद्ध शुरू होने के बाद से सऊदी अरब ने हुति इलाकों पर बमबारी करनी शुरू कर दी– सऊदी अरब ने यमन… आगे पढ़ें

यूक्रेन में अमरीका और नाटो का हर दाँव असफल

इस साल जून महीने की शुरुआत में यूक्रेन ने रूस पर पलटवार किया। इस जवाबी हमले में रूस की अपेक्षा यूक्रेन को कहीं ज्यादा नुकसान हुआ और रूस ने भारी संख्या में यूक्रेनी सेना को दिये गये नाटो के घातक हथियारों को नष्ट कर दिया। रूस–यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए पन्द्रह महीने से अधिक समय हो गया है। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरेशिया की जमीन का सबसे बड़ा युद्ध बन गया है। हम सभी जानते हैं कि इस युद्ध में परदे के पीछे से अमरीका और नाटो छद्म युद्ध लड़ रहे हैं और उनका उद्देश्य है कि रूस की सैनिक ताकत को कमजोर करके उसे एक शक्तिहीन देश में बदल दें जिससे भविष्य में वह उनके खिलाफ खड़ा न हो सके। इसके साथ ही रूस–चीन सहित उन देशों को सबक सिखाया जाये जो बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करके दुनिया पर अमरीकी वर्चस्व को कमजोर करना चाहते… आगे पढ़ें

यूक्रेन संकट : अमरीकी चौधराहट वाली विश्व व्यवस्था में चौड़ी होती दरार

रूस का यूक्रेन पर हमला वैश्विक महत्त्व की घटना है और 21वीं सदी के इतिहास का एक निर्णायक मोड़ है। यह विश्व समीकरण में बदलाव की शुरुआत का संकेत है। इसके साथ ही यह हमला यूक्रेनी जनता पर कहर बरपा रहा है और 21वीं सदी के सबसे बड़े शरणार्थी संकट को जन्म दे रहा है। यूक्रेन संकट ने साफ कर दिया है कि अब दुनिया दो शक्तिशाली खेमों में बँटती जा रही है। अमरीकी चौधराहट वाली एकध्रुवीय व्यवस्था इतिहास की चीज बनती जा रही है। एक ओर अमरीकी गिद्ध के साथ यूरोपीय भेड़िये, जापानी लकड़बग्घा और ऑस्ट्रेलियाई कंगारू है तो दूसरी ओर रूसी भालू के साथ चीनी ड्रैगन है। यूक्रेन पर हमले के बाद बाइडेन के सम्बोधन में आत्मविश्वास की कमी और घबराहट देखी गयी, जो यूक्रेन मामले में अमरीकी खेमे की कमजोरी का स्पष्ट संकेत थी। शुरू में नाटो और अमरीका की चुप्पी को समझा जा सकता है। नाटो… आगे पढ़ें

रूस का बढ़ता वैश्विक प्रभाव और टकराव की नयी सम्भावना

आज रूस एक वैश्विक ताकत है, इस बात से इनकार करना मुश्किल है और इस बात पर भी यकीन नहीं आता कि 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद वह एक कमजोर देश में तब्दील हो गया था। उस दौर में उसकी अर्थव्यवस्था की हालत डावाँडोल थी।… आगे पढ़ें

रूस–चीन धुरी और अमरीकी खेमे के बीच बढ़ती दुश्मनी के भावी परिणाम

फरवरी के अन्तिम सप्ताह में ‘फॉरेन पॉलिसी जरनल’ ने एक लेख छापा–– “वाशिंगटन मस्ट प्रीपेयर फॉर वार विद बोथ रशिया एण्ड चाइना”। इसके लेखक मैथ्यू क्रोएनिग ‘स्कोक्राफ्ट सेन्टर फॉर स्ट्रेटेजी एण्ड सिक्यूरिटी–अटलांटिक काउंसिल’ के लिए काम करते हैं और अमरीका द्वारा रूस और चीन की घेरेबन्दी की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि यूक्रेन में बड़े स्तर पर युद्ध होने की स्थिति में इसकी सीमा से लगे सात नाटो देशों पर खतरा बहुत बढ़ जायेगा तथा रूसी हमले के अगले निशाने–– पोलैण्ड, रोमानिया या तमाम बाल्टिक राष्ट्र होंगे। अमरीकी सेना के पूर्व कमाण्डर फिलिप डेविडसन जो भारत–पाक कमाण्ड से हैं, उनका मानना है कि “चीन अगले 6 वर्षों में ताइवान पर कब्जा कर सकता है–––यदि चीन ताइवान पर नियन्त्रण कायम करने में सफल हो जाता है, तो वह अमरीकी नेतृत्व वाली एशियाई व्यवस्था को खतरा पहुँचाकर उसे कमजोर कर देगा।” इन तथ्यों से लगता है कि अमरीकी रणनीतिकार मानते… आगे पढ़ें

रूस–यूक्रेन युद्ध की ताजा स्थिति

24 फरवरी, 2022 को रूस और यूक्रेन के बीच इसलिए युद्ध छिड़ गया क्योंकि अमरीका और नाटो की घेरेबन्दी से चिन्तित रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। इस युद्ध को शुरू हुए लगभग एक साल हो गये हैं। इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोपीय महाद्वीप का सबसे बड़ा सैन्य संघर्ष माना जा रहा है। हमेशा की तरह यह युद्ध जनता के लिए भयावह दु:ख और विनाश लेकर आया है। इससे रूस और यूक्रेन की जनता पर ही कहर नहीं बरपा है, बल्कि रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबन्धों की वजह से अमरीका, कनाडा और यूरोपीय देशों की अर्थवयवस्था को भी बड़ा झटका लगा है, क्योंकि वे पहले से ही आर्थिक मन्दी और कोरोना महामारी से उपजे संकट का शिकार हैं। पिछले एक साल, इस युद्ध के खिलाफ रूस, यूक्रेन और यूरोपीय देशों सहित दुनिया के अन्य हिस्सों की जनता ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है। इससे साफ पता… आगे पढ़ें

लातिन अमरीका के मूलनिवासियों, अफ्रीकी मूल के लोगों और लातिन अमरीकी संगठनों का आह्वान

कोविड–19 ने पूरी दुनिया में जो संकट पैदा किया है उसने आबया–याला यानी लातिन अमरीकी लोगों को एक चैराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। व्यवस्था के सड़ने के बदतरीन इजहारों के खिलाफ जनता के संगठन प्रतिरोध के हिरावल हैं। हम एक चैतरफा संकट से गुजर रहे हैं जिसने जीवन को उसके सभी रूपों समेत खतरे में डाल दिया है। कोविड–19 एक ऐसे समय में महामारी बना है जब पूँजीवादी संकट घनीभूत हो रहा था और आर्थिक ताकतें कॉर्पाेरेट लाभ दर बहाल करने के लिए मजदूर वर्ग को मजबूर करने की बार–बार कोशिश कर रही थीं। यह स्वास्थ्य प्रणालियों के कमजोर पड़ने, जीवन की परिस्थितियों के बिगड़ने और नव उदारवादी बदलाओं के चलते सार्वजनिक क्षेत्र के विनाश के साथ–साथ घटित हुआ है। विदेशी ऋण, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों और सम्प्रभुता के खिलाफ साम्राज्यवाद के स्थायी उत्पीड़न से पीड़ित हम लोग बहुत गम्भीर परिणामों वाले एक परिदृश्य की ओर बढ़ रहे हैं। एक… आगे पढ़ें

वह शख्स जिसके नक्शेकदम पर चलता है नेतन्याहू

––क्रिस बैम्बेरी, अगर कोई एक नेता है जिसका वर्तमान इजरायली प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू अनुसरण करता है, तो वह है जीव जाबोटिंस्की, जिसने संशोधनवादी यहूदीवाद की स्थापना की जो नेतन्याहू की लिकुड पार्टी का वैचारिक आधार है। इजराइल में 2005 से ही, जाबोटिंस्की को सम्मानित करने के लिए (हिब्रू कैलेंडर के अनुसार, 29 तम्मुज, 4 अगस्त 1940 को उसकी मृत्यु का दिन) एक स्मृति दिवस मनाया जाता है। 2017 के उस समारोह में नेतन्याहू ने कहा–– “मेरे पास जाबोटिंस्की की रचनाएँ हैं, और मैं उन्हें अक्सर पढ़ता हूँ।” उसने अपने श्रोताओं को याद दिलाया कि वह अपने कार्यालय में उस यहूदी नेता की तलवार रखता है। 2023 की स्मृति सभा में नेतन्याहू ने कहा–– “जाबोटिंस्की के लेखन में “द आयरन वाल” को शामिल किये जाने के सौ साल बाद भी हम इन सिद्धान्तों को सफलतापूर्वक लागू करना जारी रखे हुए हैं। मैं ‘जारी’ कह रहा हूँ क्योंकि अपने दुश्मनों के खिलाफ… आगे पढ़ें

वेनेजुएला : तख्तापलट की अमरीकी साजिशों के बीच चरमराता हुआ एक देश

वेनेजुएला का संकट गहरा होता जा रहा है। राष्ट्रपति निकोलस मादुरो (यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी) का तख्ता पलटने की समूची पटकथा वाशिंगटन में लिखी जा चुकी है और उस पटकथा के अनुसार अलग–अलग किरदार अपने अभिनय में लगे हैं। 21 जनवरी को विपक्षी गठबन्धन ‘यूनिटी कोलिशन’ के नेता खुआन गोइदो ने खुद को अन्तरिम राष्ट्रपति घोषित किया और अमरीका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, बेल्जियम सहित अनेक पश्चिमी देशों ने और ब्राजील, कोलम्बिया, पेरू, चीली आदि कुछ लातिन अमरीकी देशों ने खुआन गोइदो को अपना समर्थन दे दिया। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने फटाफट इस स्वघोषित राष्ट्रपति को मान्यता दे दी। इस घटना के साथ ही मादुरो सरकार ने अमरीका के साथ अपने कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त कर दिये। साथ ही आदेश दिया कि अमरीकी राजनयिक 72 घण्टे के अन्दर देश छोड़कर चले जायें हालाँकि इस आदेश को न तो अमरीका ने माना और न मादुरो सरकार ने इसे तूल ही दिया।… आगे पढ़ें

वेनेजुएला के चुनाव में मादुरो की पुनर्वापसी

1998 की बोलिवेरियन क्रान्ति के बाद से ही वेनुजुएला काँटे की तरह साम्राज्यवादी अमरीका की आँखों में चुभता रहा है। इस क्रान्ति ने अमरीकापरस्त सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया और ह्युगो शावेज के नेतृत्व में नयी सरकार बनी। वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था तेल पर ही निर्भर है। नयी सरकार ने तेल की कमाई से जनहित योजनाओं को लागू किया। इसलिए बोलिवेरियन क्रान्ति के बाद ही जनता को रोटी, शिक्षा और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएँ बेहतर मिलनी शुरू हुर्इं। 1998 से लेकर आज तक, साम्राज्यवादी अमरीका क्रान्ति से पहले जैसी स्थिति की पुर्नस्थापना करने की जी–जान से कोशिश कर रहा है। अमरीकी सत्ता में चाहे जो हों डेमोक्रेटिक या रिपब्लिक, उनकी विदेश नीति पर खास फर्क नहीं पड़ता। वह केवल अपने मंसूबे पूरे करना चाहता है। और अमरीका अपनी कोशिश को लोकतंत्र की पुनर्बहाली, या तानाशाही का अन्त, जैसी मनमोहक शब्दावली में पेश करता है। इस लेख में हाल ही… आगे पढ़ें

वेनेजुएला संकट : आन्तरिक कम बाहरी ज्यादा है

वेनेजुएला दोहरे संकट से गुजर रहा है। पहला, देश के भीतर खाने के सामान और दवाओं का अभाव है। दूसरा, खुआन गोइदो के नेतृत्व में सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। खुआन गोइदो को अमरीका ने अन्तरिम राष्ट्रपति के तौर पर स्वीकार कर लिया है। अमरीका के सुर में सुर मिलाते हुए तमाम यूरोपीय देश भी खुआन गोइदो के साथ हैं, लेकिन निर्वाचित राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने इसे अमरीका की तख्तापलट की साजिश बताया है। उन्होंने कहा कि अमरीका वेनेजुएला में वही सब करना चाहता है, जो उसने वियतनाम और इराक में किया। मादुरो ने हाल ही में अमरीकी जनता के नाम एक खुला पत्र लिखा कि उनके वाशिंगटन में बैठे प्रतिनिधि लोकतंत्र और मानवाधिकारों के नाम पर वेनेजुएला के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि भले ही हमारी और आपकी विचारधारा अलग हो, पर हम भी आप जैसे ही लोग हैं। वेनेजुएला… आगे पढ़ें

शासन के खूनी तांडव के बीच सूडान में विरोध प्रदर्शन

सूडानी डॉक्टरों ने जून के पहले सप्ताह में यह कहकर दुनिया में खलबली मचा दी कि पिछली सोमवार को सूडान के अर्ध सैनिक बलों ने राजधानी खार्तूम में विरोध प्रदर्शन के दौरान जमकर खूनी तांडव किया। सैनिकों ने 70 से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार किया। सरकारी दमन के चलते 100 लोग मारे गये और 700 से अधिक लोग घायल हुए। सूडान की सरकार ने मीडिया पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया है, जिससे लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुँच पा रही है। सरकारी अत्याचार के चलते वहाँ से दूसरे देशों को पलायन कर रहे लोगों से छिटपुट जानकारी मिल रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बलात्कार और हत्या की खबरों को सही बताया लेकिन कितने व्यापक पैमाने पर हिंसा फैलाई गयी, इसका पता नहीं लग सका। दशकों तक सेना ने सूडान की जनता पर क्रूरतापूर्वक अत्याचार किया और मई में दर्जनों प्रदर्शनकारियों की हत्या कर कर दी। इसके बाद अब… आगे पढ़ें

सउ़दी अरब की साम्राज्यवादी विरासत

–– यानिस इकबाल सउ़दी अरब जैसे एक निरंकुश सुन्नी राजतन्त्र को वैश्विक ‘लेकतन्त्र’ के तथाकथित पैरोकार पश्चिम का पुरजोर समर्थन क्यों मिल रहा है? यह सवाल शायद ही पूछा जाता हो। जब तेल और हथियारों के व्यापार का मामला आता है तो उदारवादी लोकतन्त्र और धार्मिक कट्टरवाद के उ़परी तौर पर दिखायी देनेवाले बेमेल स्वरूप पर तुरन्त ही पर्दा डाल दिया जाता है। यह रवैया सिर्फ पश्चिम के दोगलेपन को ही जाहिर नहीं करता है। इसकी जड़ें उस ऐतिहासिक प्रक्रिया में हैं जिसके तहत बड़ी ताकतों ने सउ़दी अरब को साम्राज्यवादी हितों की चैकी और क्रान्तिकारी विचारधाराओं के खिलाफ दीवार के रूप में खड़ा किया था। वहाबी पंथ के स्थापक शेख मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब (1703–92) उन्नीसवीं सदी के एक किसान थे, जिन्होंने खजूर की खेती और पशुपालन छोड़कर स्थानीय इलाकों में सातवीं सदी की शुद्ध आस्थाओं की तरफ वापस जाने के प्रचार के लिए खुद को समर्पित कर दिया… आगे पढ़ें

सऊदी अरब के तेल संस्थानों पर हमला: पश्चिमी एशिया में अमरीकी साम्राज्यवाद के पतन का संकेत

14 सितम्बर को सऊदी अरब के दो सबसे बडे़ तेल संस्थानों, अबकैक तेल शोधन संयंत्र और खुरैश तेल क्षेत्र पर ड्रोन विमानों और क्रूज मिसाइलों से जबरदस्त और सटीक हमला हुआ। इससे सऊदी अरब का 50 प्रतिशत से ज्यादा तेल उत्पादन ठप्प हो गया। नतीजतन दो दिन में ही दुनिया… आगे पढ़ें

सऊदी–ईरान समझौता : मध्य–पूर्व की राजनीति में बड़ा बदलाव

मध्य–पूर्व के दो प्रतिद्वन्द्वी देशों–– सऊदी अरब और ईरान ने लम्बे समय की दुश्मनी के बाद एक–दूसरे की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। दोनों देशों ने मार्च में चीन की मध्यस्थता में एक समझौते पर दस्तखत भी किया जिसके तहत वे दो महीने के अन्दर अपने–अपने दूतावास खोल देंगे और राजनयिक, व्यापारिक और सुरक्षा सम्बन्ध स्थापित करेंगे। दोनों देशों ने मध्य पूर्व में स्थिरता और सुरक्षा पर जोर देने का वादा किया है। इस समझौते पर अलग–अलग देशों और संस्थाओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एण्टोनियो गुटेरेस ने इस समझौते के लिए चीन का शुक्रिया अदा किया है। अमरीका ने भी इस समझौते पर सतर्क टिप्पणी करते हुए कहा है कि वह भी मध्य–पूर्व में शान्ति चाहता है जबकि इजराइल के पूर्व प्रधानमंत्री नफताली बेनेट ने इस फैसले को इजराइल के लिए खतरनाक बताया है क्योंकि ईरान के परमाणु कार्यक्रमों की वजह से वह ईरान पर… आगे पढ़ें

हथियारों की नयी होड़ : दुनिया एक बार फिर तबाही की ओर

हाल ही में अमरीका ने इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स (आईएनएफ) सन्धि से हाथ पीछे खींचने का फैसला किया है और रूस पर यह आरोप लगाया है कि रूस के क्रूज मिसाइल बनाने से इस सन्धि की शर्तों का उल्लंघन हुआ है। लेकिन रूस ने इस आरोप को साफ तौर पर नकार दिया है। अमरीका ने रूस को 6 महीने का चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर रूस अपने क्रूज मिसाइलों को नष्ट नहीं करता है तो अमरीका इस सन्धि से बाहर हो जायेगा। अमरीका की इस कार्रवाई से परमाणु हथियारों की नयी होड़ शुरू हो जायेगी। जबकि गैर–परमाणु हथियारो की होड़ जारी है। जब शीत युद्ध अपने आखिरी दौर में था, तब हथियारों की होड़ को खत्म करने के लिए अमरीका और सोवियत संघ ने 1987 में नाभिकीय हथियारों से सम्बन्धित एक समझौता किया था, जिसे आईएनएफ सन्धि के नाम से जाना जाता है। इस सन्धि के तहत अमरीका… आगे पढ़ें

हथियारों की बढ़ती होड़ विश्व शान्ति के लिए खतरा

स्टॉकहोम इण्टरनेशनल पीस रिसर्च इन्स्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का कुल सैन्य खर्च 2017 के मुकाबले 2.6 फीसदी बढ़कर 2018 में 1822 अरब डॉलर हो गया था जो दुनिया के कुल जीडीपी का 2.1 फीसदी है। हर साल सैन्य खर्च के साथ–साथ हथियारों का कारोबार भी तेजी से फल–फूल रहा है। स्टॉकहोम इण्टरनेशनल पीस रिसर्च इन्स्टीट्यूट ने बीबीसी को बताया कि हर साल हथियारों का 100 अरब डॉलर का अन्तरराष्ट्रीय कारोबार होता है। सैन्य खर्च के मामले में अमरीका, चीन, सउदी अरब, भारत और फ्रांस पाँच सबसे बडे़ देश हैं। कुल सैन्य खर्च में इन पाँच देशों की हिस्सेदारी 60 फीसदी है। अमरीका के नेतृत्व वाला नाटो जो कई देशों का सैन्य संगठन है, कुल सैन्य खर्च में उसका हिस्सा 53 फीसदी है। अमरीका अकेले ही दुनिया के कुल सैन्य खर्च का 36 फीसदी खर्च करता है। हथियारों के उत्पादन और निर्यात के मामले में भी अमरीका सबसे… आगे पढ़ें

‘जल नस्लभेद’ : इजराइल कैसे गाजा पट्टी में पानी को हथियार बनाता है

–– नैंसी मुर्रे गाजा पट्टी में इजरायल की जल नीतियों को कोई कैसे समझा सकता है–– पृथ्वी पर सबसे घनी आबादी वाले स्थानों में से एक–– जहाँ इजरायल ने 2005 में अपनी 21 बस्तियों को खाली कर दिया था? और तब से, गाजा वासियों को भूमि पर लगातार कब्जे के रूप में इजरायल के सैन्य कब्जे का अनुभव नहीं हुआ है। इसके बजाय, उन्हें अपने स्वास्थ्य और जीवन के लिए एक अस्तित्वगत खतरे का सामना करना पड़ा है जिसे इजरायली इतिहासकार इलान पप्पे ने कई अन्य लोगों के साथ “बढ़ता हुआ नरसंहार” कहा है।  इजराइल की लगभग 16 साल लम्बी नाकाबन्दी और पाँच प्रमुख सैन्य हमलों के कारण गाजा के लिए स्वच्छ जल आपूर्ति गम्भीर रूप से सीमित रही है जिसकी तेजी से बढ़ती आबादी में आधे बच्चे हैं। इस पर सवाल उठता है कि क्या गाजा पट्टी एक “रहने योग्य स्थान” है या बनी रहेगी। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि केवल 25… आगे पढ़ें