अमेजन के जंगलों में भयावह आग
इन दिनों अमेजन वर्षावन धूँ–धूँ कर जल रहा है, यह आग बीते 15 अगस्त से ब्राजील के 9500 से अधिक नये जंगलों को राख में तब्दील करती जा रही है। हालत भयावह है और अमेजन घाटी से सटे हुए जंगल बहुत तेजी से आग के हवाले हो रहे हैं। जिसने बहुत ही कम समय में लाखों पेड़ों को जलाकर राख कर दिया है, इस आग ने अमेजन घाटी में रहने वाले लाखों वन्यजीव और मानव जीवन को भी खतरे में डाल दिया है। इस साल अब तक, वैज्ञानिकों ने ब्राजील में 74,000 से अधिक आग लगने की घटना दर्ज की हैं। पिछले साल ब्राजील में 40,000 के लगभग आग लगने की घटनाएँ दर्ज की गयी थीं, लेकिन इस वर्ष लगभग दोगुनी हो गयी है। ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च ने 2018 की इसी अवधि में जंगल की आग में 83 फीसदी की वृद्धि दर्ज की। 2013 से शोधकर्ताओं… आगे पढ़ें
आईपीसीसी की जलवायु संकट पर नयी रिपोर्ट: विनाश की ओर बढ़ती मानव जाति
जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों के कारण हमारी धरती और पूरी मानव सभ्यता पर तबाही का खतरा मंडरा रहा है। पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र का जलस्तर ऊपर उठ रहा है। पीने का पानी जहरीला होता जा रहा है। भारी वर्षा और सूखा दुनिया भर में तबाही मचा रहे हैं। खेती उजड़ती जा रही है। जीवों की कई प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गयी हैं। यदि यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब पूरी मानव सभ्यता बर्बाद हो जायेगी। 8 अक्टूबर 2018 को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी नयी रिपोर्ट जारी करके चेतावनी दी। इस रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक दुनिया का तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री तक बढ़ जायेगा। तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से एक डिग्री पहले ही बढ़ गया है। जिसके परिणाम पूरी दुनिया में… आगे पढ़ें
आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट : धरती पर जीवन के विनाश की अन्तिम चेतावनी
जलवायु परिवर्तन पर अन्तरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट ‘जलवायु परिवर्तन–2021: भौतिक विज्ञान के आधार पर’ जारी हो हुई। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण धरती के करोड़ों प्रजातियों के पेड़–पौधों, जीव–जन्तुओं और इनसानों का अस्तिव संकट में है। ओजोन परत की दरार चैड़ी हो रही है, समुद्री जल में तेजाब की मात्र बढ़ रही है। वातावरण में नाइट्रोजन और फास्फोरस का चक्र असन्तुलित हो गया है। पृथ्वी तेजी से गर्म होती जा रही है। ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र का जलस्तर बढ़ना, हरे–भरे इलाकों का रेगिस्तान में बदलना, जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों का लुप्त हो जाना, कहीं बाढ़ और कहीं सूखे का प्रकोप धरती के गर्म होने का ही परिणाम है। जलवायु परिवर्तन के चलते ही खेती के फसल चक्र में भी परिवर्तन हो रहे हैं। जलवायु संकट को लेकर आज पूरी दुनिया में तीखी बहसें चल रही हैं। मुद्दा यह है कि… आगे पढ़ें
कुडानकुलम नाभिकीय संयंत्र : मौत का कारखाना
हाल ही में भारत सरकार ने अमरीकी मूल की सामाजिक कार्यकर्ता कासा एलिजाबेथ को कुडानकुलम पर कला प्रदर्शनी लगाने के आरोप में देश से निकाल दिया और दुबारा भारत आने पर रोक तक लगा दी। एलिजाबेथ पिछले 14 सालों से तमिलनाडु के पांडिचेरी में रह रही थी। वह ‘पांडीआर्ट’ नाम से एक एनजीओ चलाती हैं, जिसमें वह विभिन्न सामाजिक विषयों पर कला प्रदर्शनी आयोजित करती हैं। कुछ समय पहले उन्होंने कुडानकुलम नाभिकीय संयंत्र के दुष्प्रभावों पर एक कला प्रदर्शनी आयोजित की थी जिसके बाद से वह सरकार के निशाने पर आ गयीं, उनके वीजा को गैर–कानूनी घोषित कर दिया गया। यहाँ तक कि उनके भारत आने पर एयरपोर्ट से ही उन्हें वापस जाने को विवश कर दिया गया। जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेर्नाेविल, थ्रीमाइल आइलैंड और फुकोसिमा जैसे भयंकर नाभिकीय हादसों की अनदेखी कर कुडानकुलम नाभिकीय संयंत्र की प्रशंसा करते हुए इसे देश को समर्पित कर रहे हों, तो… आगे पढ़ें
कोप–24 में जलवायु समस्या पर समझौतावादी रवैया
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कांफ्रेन्स का 24वाँ (कोप–24) सम्मेलन पर्यावरण संकट का हल निकाल पाने में सफल न हो सका। यह सम्मेलन 2 से 15 दिसम्बर 2018 को पोलैण्ड के केटोवाइस शहर में आयोजित किया गया था। दुनियाभर में पर्यावरण के मुद्दे पर चल रहे छोटे–बड़े हजारों आन्दोलनोंं का दबाव ही था जिसके चलते इस सम्मेलन में इस समस्या पर विचार–विमर्श किया गया कि 2015 के उस विवाद को कैसे निबटाया जाये जो पेरिस जलवायु समझौते में गरीब और अमीर देशों के बीच कार्बन उत्सर्जन की सीमा तय करने को लेकर पैदा हो गया था। हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर अन्तरराष्ट्रीय पैनल (आईपीसीसी) की उस रिपार्ट को सऊदी अरब, अमरीका, कुवैत और रूस खारिज कर चुके हैं जिस रिपोर्ट में कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ठहराये गये देशों में इनका भी नाम था। कोप–24 में बीच–बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गयी। सम्मेलन में यह… आगे पढ़ें
कोप–27 जलवायु संकट सम्मेलन
(जलवायु परिवर्तन से निपटनेे में पूँजीवादी व्यवस्था एक बार फिर असफल) सम्मेलन का मेजबान मिस्र का तानाशाह अब्देल फतह अल–सिसी ही क्यों ? जलवायु परिवर्तन पर 27 वीं वार्ता (कोप–27) मिस्र देश के प्रसिद्ध प्रायद्वीप माउंट सिनाई और लाल सागर के बीच स्थित शर्म–अल–शेख शहर में आयोजित की गयी। सिनाई प्रायद्वीप पर स्थित यह शहर (शर्म–अल–शेख) तफरीह के लिए एक बढिया जगह है। दुनियाभर से लगभग 100 राष्ट्राध्यक्षों और 45,000 प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया। मिस्र के तानाशाह अब्देल फतह अल–सिसी इस सम्मेलन के मेजबान थे, जो साम्राज्यवादियों के जाने–पहचाने पिट्ठू है। अमरीका ने 2013 में एक भयावह खूनी तख्तापलट के बाद अल–सिसी को मिस्र के तख्त पर बैठाया था। अल–सिसी की सरकार मिस्र में लोकतान्त्रिक मूल्यों को एक–एक कर कुचल चुकी है। प्रेस, अभिव्यक्ति, विरोध–प्रर्दशन और आन्दोलन करने की आजादी केवल नाममात्र की बची है। यही कारण है कि शर्म–अल–शेख में पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरोध–प्रर्दशन करने की… आगे पढ़ें
जलवायु परिवर्तन के चलते लू के थपेड़ों से आयी दुनिया की सामत
1992 ब्राजील के रियो दी जनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन में फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि “कल बहुत देर हो जायेगी” जो कि हो गयी है। अब गलतियाँ दोहराने का वक्त नहीं है। बल्कि दुनिया के सभी देशों की सरकारों को और वहाँ की जागरूक जनता को जलवायु परिवर्तन… आगे पढ़ें
जलवायु संकट के लिए अमीर दोषी क्यों?
(स्वीडेन की ग्रेटा थनबर्ग अभी 16 साल की स्कूली छात्रा हैं। वह पर्यावरण की एक जुझारू कार्यकर्ता हैं। उन्होंने स्वीडेन की संसद के सामने पर्यावरण के लिए हड़ताल करके आन्दोलन की शुरुआत की थी। यह आन्दोलन अब तक 125 देशों में फैल चुका है। 24 मई 2019 की हड़ताल में 1600 शहरों से स्कूली छात्रों ने भाग लिया। 27 सितम्बर को अगली विश्वव्यापी हड़ताल की घोषणा हो चुकी है। सभी जगह के स्कूल के प्रतिनिधि तैयारी में जुट गये हैं। स्कूली आन्दोलनकारियों का कहना है कि “कोई भी इतना छोटा नहीं होता कि बदलाव न ला सके” और उससे पहले कि “धरती बुरी तरह से तपने लगे पर्यावरण के लिए हड़ताल करो।”) ग्रेटा थनबर्ग, 16 साल की स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता हैं उन्होंने वैश्विक “जलवायु संकट की स्कूल हड़ताल” आन्दोलन को प्रेरित किया था, उन्हें जनवरी की वार्षिक “वर्ल्ड इकनोमिक फोरम” स्विट्जरलैंड के दावोस में पूँजीपतियों और मशहूर हस्तियों की बैठक… आगे पढ़ें
पर्यावरण का विनाश करने वाली वोक्सवैगन माफी के लायक नहीं
भारत ने पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने के लिए बदनाम वोक्सवैगन कम्पनी पर आर्थिक दण्ड के रूप में कानूनी कार्रवाई की थी और इस पर 500 करोड़ का जुर्माना लगाया था। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का हैरान करने वाला फैसला आया। कोर्ट ने 500 करोड़ रुपये के आर्थिक दण्ड पर रोक लगा दी। क्या यह फैसला पर्यावरण और मानव जाति के भविष्य कोे देखते हुए अनुचित नहीं लगता? 5–6 साल पहले पर्यावरण को प्रदूषित करने के लिए कार निर्माता कम्पनी वोक्सवैगन चर्चा में रही थी। इस कम्पनी ने अपनी डीजल कारों में एक ऐसे उपकरण का इस्तेमाल किया था जो कारों से होने वाले हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को कम करके दिखाता था, जबकि वास्तव में उसकी मात्रा तय सीमा से कई गुना ज्यादा थी। इससे पर्यावरण भयानक रूप से प्रदूषित हुआ था। इसीलिए लगभग सभी देशों ने इस कम्पनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की। इस जालसाजी के चलते… आगे पढ़ें
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को रोको नहीं तो दुनिया प्लास्टिक के ढेर में बदल जायेगी
आज पीने के पानी से लेकर हमारे शरीर तक में प्लास्टिक के कणों की भारी संख्या में मौजूदगी हमारे लिए गम्भीर खतरा बनती जा रही है। दूध–दही, चीनी, शहद से लेकर अन्य खाद्य सामान प्लास्टिक के पैकेट में पैक होकर आ रहे हैं, जिनमें भारी संख्या में प्लास्टिक के कणों की मौजूदगी से सम्पूर्ण जीवन चक्र संकट में है। खाद्य पदार्थों और पानी के माध्यम से ये प्लास्टिक के कण हमारे शरीर में चले जाते हैं जो कैंसर सहित और अन्य घातक बीमारियों को जन्म दे रहें हैं। प्लास्टिक कचरे के बारे में हमें सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि आज हमारी जमीन, नदियाँ और समुद्र प्लास्टिक कचरे के ढेर से पटते जा रहे हैं। प्लास्टिक कचरे की मौजूदगी हमारे परिस्थितिकीय तंत्र के सन्तुलन को बिगाड़ रही है। अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून के मुताबिक पिछले 10 सालों में प्लास्टिक कचरे का उत्पादन 40 प्रतिशत बढ़ गया है। प्लास्टिक कचरे के उत्पादन की… आगे पढ़ें
हवा में जहर कौन घोल रहा है ?
प्रदूषण में अव्वल और हमेशा सुर्खियों में रहने वाली राजधानी दिल्ली, हर साल की तरह इस साल भी दुनियाभर में सबसे प्रदूषित शहर बनी रही। यह खुलासा हाल में प्रकाशित ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट’ में किया गया है। इसके साथ कलकत्ता दूसरे और मुम्बई चैदहवे स्थान पर हैं। जनवरी 2023 की शुरुआत में राजधानी में ‘औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (एक्यूआई) साढ़े सात सौ के पार चला गया, जो सेहत के लिए जानलेवा है। दिल्ली–एनसीआर में भी कमोवश यही हाल था, जो निर्धारित साठ की सीमा से काफी ज्यादा है। एक्यूआई के जरिये 2–5 माइक्रोन से बारीक धुएँ के कणों को मापा जाता है जो सीधे फेफड़े से होते हुए दिल के जरिये खून में मिल सकते हैं और साँस सम्बन्धी कई बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। ऐसी हवा के सम्पर्क में आते ही आँखों में जलन और साँस लेने में भारीपन लगने लगता है। चिन्ता की बात यह… आगे पढ़ें
‘स्वच्छ भारत’ में दुनिया की सबसे जहरीली हवा
2014 में सत्ता सम्हालने के बाद मोदी सरकार ने “स्वच्छ भारत अभियान” और “स्मार्ट सिटी” बनाने का जबरदस्त प्रचार किया था। प्रचार की हालत यह थी कि प्रधानमंत्री से लेकर गली–मोहल्लों का वार्ड मेम्बर तक स्वच्छता सन्देश पर भाषण देते नजर आ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मोदी सरकार भारत को चमकाकर ही दम लेगी। वित्तीय वर्ष 2021 के बजट में स्वच्छ भारत अभियान के लिए रिकार्ड 1–41 लाख करोड़ रुपये दिये गये थे। इतने भारी भरकम बजट के बाद लग रहा था कि साल 2022 तो निश्वय ही चमकते भारत का साल होगा लेकिन सच यह है कि इस साल में भारत ने गन्दगी में रिकार्ड बनाये हैं। साफ–सुथरे घर, साफ पानी तो दूर, आम जनता के लिए साफ हवा भी दुर्लभ हो गयी है। मार्च 2022 में स्विट्जरलैण्ड की संस्था आईक्यूएआईआर ने विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट जारी की थी। यह संस्था हवा में मौजूद पीएम 2–5… आगे पढ़ें