अप्रैल 2022, अंक 40 में प्रकाशित

हम इस फर्जी राष्ट्रवाद के सामने नहीं झुकेंगे

मैं पिछले 20 साल से बच्चों को पढ़ा रहा हूँ। मैं एक मुसलमान हूँ, यह बात हरदम मेरे दिमाग में घूमती रहती है।

पिछले कुछ सालों से हमारे देश पर एक फर्जी राष्ट्रवाद का भूत सवारी गाँठ रहा है और असली देशभक्तों को ठिकाने लगाने पर आमादा है। हमारे देशभक्त होने की परिभाषाएँ बहुत नीचे गिरा दी गयी हैं। हमारी देशभक्ति का पैमाना गले में विशेष गमछा डाले उपद्रवी तय करने लगे हैं। एक विशेष धार्मिक नारे के उच्चारण से हमारी भारतीयता तय की जाने लगी है। मुझे लगता है कि भविष्य में नौकरी पाने, मेडिकल या अन्य सरकारी सुविधाओं वाले आवेदन पत्रों से राष्ट्रीयता का कॉलम हटाकर वहाँ यही नारा लिख देना चाहिए।

दरअसल हमने आज तक राष्ट्रवाद की यही सीधी परिभाषा सीखी थी––

अपने देश के प्रति वफादारी, संविधान में लिखी बातों का पालन करना, कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से अरूणांचल तक बसे सभी भारतीयों को एक समझना, किसी भी रूप में देश के यानी देश की जनता के हितों को सबसे ऊपर मानकर सेवा करना।

1947 से ही हमें यह बातें कर्तव्य बताकर घोट–घोटकर पिलायी गयीं और हमने इनका पालन किया। हालाँकि नकली देशभक्तों को फिर भी इस देश के मुसलमानों की वफादारी पर शक रहा। आतंकवाद के फर्जी आरोप लगाकर कितने ही मुसलमानों को 10–20 साल जेलों में सड़ाया गया और कोई सबूत न मिलने पर बाइज्जत रिहा किया गया। जाने किस शक के चलते सेना में उनके नाम की कोई रेजिमेंट नहीं बनायी गयी। इसके वाबजूद सैंकडों अब्दुल हमीद इस देश पर कुर्बान हुए।

2014 से फर्जी राष्ट्रवाद की बेशर्मी खुलेआम हो रही है। इस आतंकवादनुमा राष्ट्रवाद ने तीन आवरण गढ़े हैं जिन्हें लगभग सरकारी संरक्षण प्राप्त है–– गाय, जय श्री राम, धर्मान्ध हिन्दुत्व। इसकी आड़ में मई 2015 से दिसम्बर 2018 तक 12 राज्यों में कम से कम 44 लोगों की हत्याएँ की जा चुकी हैं जिसमें 36 मुसलमान हैं। इसी दौरान 20 राज्यों में 100 से अधिक अलग–अलग घटनाओं में करीब 280 लोग घायल हुए। (ह्यूमन राइट्स वाच) 18 मार्च 2016 को गौ आतंकियों के एक समूह ने दो मुस्लिम चरवाहों की हत्या कर दी। झारखण्ड निवासी 35 वर्षीय मजलूम अंसति और 12 वर्षीय इम्सियाज खान को मारकर शवों को पेड़ों से लटकाया गया था। एक सर्वेक्षण कहता है कि पहले पाँच साल के मुकाबले 2014 से 2018 के बीच सत्ता में चुने गये नेताओं के भाषणों में साम्प्रदायिक भाषा के उपयोग में लगभग 500 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है।

इस फर्जी राष्ट्रवाद का शिकार अल्पसंख्यकों के अलावा दलित और प्रगतिशील बुद्धिजीवी भी हो रहे हैं। गुजरात में दलितों को नंगा करके पीटा गया। हरियाणा में जबरन दो युवकोंे को गोबर खिलाया और मूत्र पिलाया गया। हरियाणा में ही घर में गोमांस खाने के आरोप में दो महिलाओं का बलात्कार किया गया और दो पुरुषों की हत्या कर दी गयी। सितम्बर 2015 में गौ आतंकियों ने उत्तर प्रदेश में 50 वर्षीय अखलाक की हत्या की।

भारतीय संगठन फैक्ट चैकर के सहयोगी हेट क्राइम ब्रांच ने जनवरी 2009 और अक्टूबर 2018 के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों की 254 घटनाएँ दर्ज कीं जिनमें कम से कम 91 लोग मारे गये और 579 घायल हुए इनमें 90 प्रतिशत हमले 2014 के बाद हुए।

अप्रैल 2017 में राजस्थान में गौ आतंकियों ने 55 वर्षीय दूध उत्पादक किसान पहलू खान की हत्या कर दी। झारखण्ड में 2017 में गौ आतंकियों द्वारा अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या की गयी। दिसम्बर 2018 में यूपी के बुलन्दशहर में गौ आतंकियों ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सहित दो लोगों की हत्या की। 2018 में यूपी के हापुड़ में कासिम को गौ आतंकियों द्वारा मारा गया जिसमें पुलिस भी शामिल थी। मार्च 2016 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में गौ आतंकियों द्वारा मस्तान को मारा गया।

इन इनसानों की हत्याएँ गाय नामक पशु के नाम पर हुई। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम का या उनके जयकारों का उपयोग राष्ट्रवादी आतंकी लोगों की जान लेने के लिए करने लगे। भारत जैसे देश में जहाँ राम–कृष्ण सबके हैं जिन्होंने खुद मानवता को सन्देश दिया हो, उनके नाम का इस्तेमाल हत्या जैसे जघन्य अपराधों में इससे ज्यादा धर्म विरोधी काम क्या हो सकता है।

मैं कई मुसलमानों को अपने काम की शुरुआत राम के नाम से करते देखता था तो गर्व महसूस होता था कि हमने राम की भूमि पर जन्म लिया। हम बचपन से राम को एक परिवारिक खुदा की तरह देखते थे। उनकी लक्ष्मण, सीता और हनुमान के साथ मुस्कुराती फोटो आती थी जो बहुत अच्छी लगती थी। अब धनुष पर तीर चढ़ाये उनका गुस्सैल फोटो देखकर डर लगता है। अब यदि कहीं जय श्री राम का जयकारा सुनायी देता है तो लगता है किसी की हत्या हो गयी हो। गौ आंतकियों द्वारा की गयी सभी हत्याओं में जय श्री राम का उद्घोष किया गया था। जैसे कठमुल्ला आतंकवादी अल्लाह हु अकबर का उद्घोष किसी की हत्या करने में करते हैं। मुझे अब दोनों एक जैसे लगने लगे हैं। दोनों से एक जैसा डर लगता है।

कोरोना काल की शुरुआत में मुझे अन्दाजा भी नहीं था कि भारत जैसे देश में इसका ठीकरा मुसलमानों पर फोड़ा जायेगा। लेकिन यहाँ के सत्ताधारी लोगों ने राष्ट्रवाद को निराश न करते हुए मुस्लिम जमातियों पर इल्जाम लगाये और प्रशासन ने काईवाई करते हुए जमात में शामिल सभी को जेलों में भी ठूसा। इसकी आड़ में राष्ट्रभक्तों ने गरीब मजलूम मुसलमानों को पीटने का जो खेल शुरू किया और वह भी श्री राम के उद्घोष पर, वह बहुत घिनौना था। समझदार हिन्दू इन हरकतों से कितना शर्मसार होते होंगे।

अब तो गले में विशेष गमछा डाले आतंकी लगभग हर किसी को जय श्री राम बोलने पर मजबूर करने लगे हैं। इन लम्पटों ने भगवान को भी अपने मातहत बना लिया। शायद इन्हीं के दबाव में सुप्रीम कोर्ट के जज ने सबसे विवादित स्थल का न्याय करते हुए बहुसंख्यक समाज की भावनाओं का ख्याल रखने की बात कही थी। आप सोचिये अगर कोई किसी की हत्या करता है और ज्यादा आदमी लाकर कोर्ट में कहे हमारी भावनाएँ हत्यारे के साथ हैं तो क्या आप उनके हक में फैसला देंगे ? शायद नहीं। न्याय प्रणाली सबूतोें के आधार पर चलती है, भावनाओं पर नहीं।

न्याय की क्या बात करें जब नागरिकता पर ही सवाल उठने लगे हों। अब तो हर रोज खुलेआम कहा जाता है जो जय श्री राम बोलेगा उसे ही भारतीय माना जायेगा। इस देश का संविधान सभी को अपने धर्म का पालन, प्रचार और प्रसार का हक देता है। बेशऊर लोग न्याय व्यवस्था का सरेआम अपमान करें, किसी भी भारतीय को पाकिस्तान जाने का आदेश दें, इसे मैं पसन्द नहीं करता। तुम जबरदस्ती जय श्री राम और गाय हत्या की राजनीति करके लोगों की नागरिकता का पैमाना तय करोगे। लोगों के चूल्हों पर चढ़े पतीलों मेें झाँककर तुम तय करोगे कि उसे क्या खाना है ? लोगों के बाथरूमों में घुसकर तुम फैसला करोगे, उसे कच्छा–टॉवल लपेटकर बदलना चाहिए ? तुम कौन हो जो मेरे मुस्लिम नाम से चिढ़कर मुझसे जबरन राम का नारा लगवाओगे ? तुम कौन हो जिसके कहने से मैं अपना खाना बदल लूँ ? तुम कौन हो जो मेरे पहनावे पर उँगली उठाओ ? तुम कौन हो जो मेरी शरिअत में दखलदांजी करो ?

वास्तव में तुम बेशऊर लोग हो, उपद्रवी हो, आतंकवादी हो। तुम मुझे या मेरे देश को बनाने वाले नहीं हो। मैं तुम्हें बर्दाशत नहीं करूँगा। मैं तो क्या खुद समझदार हिन्दू भी तुम्हेेंं बर्दाशत नहीं कर सकते।

अगर मेरे ऊपर मेरा धर्म जबरदस्ती थोपा जाएगा तो मैं उसे भी बिलकुल नहीं मानूँगा। ये तुम्हारा लम्पट राष्ट्रवाद तो बहुत छोटी चीज है। अपने अब तक के 20 साल के शैक्षणिक कार्यकाल में मुझे अब तक नहीं लगा कि कोई मेरी नागरिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा सकता है। लेकिन पाकिस्तान चले जाओ जैसे शब्द अब आये दिन सुनने को मिल रहे हैं। यह चलने वाला नहीं है। मुठ्ठीभर लम्पट दुनिया की दिशा नहीं मोड़ सकते जो दुनिया यहाँ पहुँच चुकी है कि अपनी पत्नी की सहमति के बिना सम्भोग बलात्कार माता जाता है। उस दुनिया में सवा अरब लोग तुम्हारी तानाशाही ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं कर सकते। इस मुल्क से तुम्हारी विदाई के दिन तक मेरी आँखें जरूर खुली रहेंगी।

––मो– इरफान सिद्दकी

Leave a Comment

लेखक के अन्य लेख

राजनीति
सामाजिक-सांस्कृतिक
व्यंग्य
साहित्य
समाचार-विचार
कहानी
विचार-विमर्श
श्रद्धांजलि
कविता
अन्तरराष्ट्रीय
राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
अवर्गीकृत
जीवन और कर्म
मीडिया
फिल्म समीक्षा