देश के बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में
मध्य प्रदेश के अलीराज जिले के गिराला गाँव में झगेले अपनी पत्नी फूला के साथ रहता है, उसके तीन बच्चे हैं। जिनमें एक बच्चा पूरी तरह से कुपोषित है और 15 दिन की लड़की के शरीर पर कपड़े़ के नाम पर फटा बिस्तर मात्र है। उसी गाँव में बच्चों का वजन करने पर पाया गया कि 398 बच्चों का वजन औैसत से कम है और 250 बच्चे कुपोषित हैं। उस गाँव में जब किसी की तबियत खराब होती है तो मरीजों को खाट पर 3 किलोमीटर पैदल ले जाना पड़ता है। इलाज की व्यवस्था न होने के कारण यहाँ महिलाओं की प्रसूति घर पर ही होती है। महिलाएँ ऐनिमिया की शिकार हैं। जब इसका कारण तलाशा गया तो पता चला कि वहाँ बेरोजगारी चरम पर है और जीविका का मुख्य साधन खेती है, लेकिन खेती की बदहाल स्थिति के कारण पेट भरना मुश्किल है। इसके साथ ही आदिवासियों की जमीनों पर लगातार कब्जे हो रहे हैं, जिसके कारण रोजी–रोटी की समस्या भयावह होती जा रही है और लोग नरक जैसा जीवन जीने पर मजबूर हैं। कुछ महिलाएँ अपना पेट पालने के लिए वेश्यावृत्ति तक करने पर मजबूर रहे हैं। उनके बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में आकर जान गवाँ रहे हैं, मध्य प्रदेश के शहरी कुपोषण की बात करंे तो स्थानीय अस्पताल में एक दिन में छ: बच्चे भर्ती हुए जिसमें से दो बच्चों की मौत हो गयी। ग्वालियर जिले में पाँच कुपोषण निदान केन्द्र हैं, जिसमें लगातार कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। सच्चाई यह है कि मध्य प्रदेश देश में शिशु मृत्यु दर में अव्वल है। आँगनवाड़ी केन्द्रों में पोषाहार के नाम पर बच्चों को पानी से भी पतली दाल दी जाती है। आँकडों के अनुसार जनवरी 2016 से 2018 के बीच राज्य में 57,000 बच्चों ने कुपोषण के कारण दम तोड़ दिया। महिला और बाल विकास विभाग को 2003–2004 से 2014–2015 तक के संयुक्त बजट के लिए 2,50,486 करोड़ रुपये मिले जो सरकार ने खर्च ही नहीं किये। आज भी मध्य प्रदेश में कुपोषण से 92 बच्चे हर रोज दम तोड़ देते हैं। ढाई दशक पहले सर्वोच्च न्यायालय ने कुपोषण समाप्ति के लक्ष्य तक पहँुचने के सम्बन्ध में कहा था कि मध्य प्रदेश में 1,36000 आँगनबाड़ी केन्द्रों की जरूरत है, लेकिन आज प्रदेश में केवल 96,000 केन्द्र हैं। इसलिए अगर एक आँगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा 40 बच्चों तक खाना पहुँचाने को लक्ष्य मान लंे तो 40,000 केन्द्रों का होने का मतलब है कि 16 लाख बच्चे सरकार की पहुँच से दूर हैं। प्रदेश में अकेले श्योपुर जिले में ही बीते कुछ दिनों में ही 70 से ज्यादा बच्चों की मौत कुपोषण से हो चुकी हैं और इस जिले में 19,724 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल में 26,164 बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं, यहाँ के कारोबारी शहर इन्दौर में भी करीब 22,326 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, मध्य प्रदेश का एक भी जिला ऐसा नहीं है जहाँ कुपोषित बच्चों का आँकडा़ हजारों में न हो। आँकडों़ के मुताबिक प्रदेश में 13 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं। दरअसल, कुपोषण मध्य प्रदेश के लिए कोर्ई नया विषय नहीं है, यहाँ हर साल हजारों बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है। यह बात और है कि सरकार या सिस्टम इन मौतों को बीमारियों से जोड़कर किनारा कर लेती है और कोई भी जरूरी कदम नहीं उठाती।
पिछलें साल ‘द वायर’ की जाँच में सामने आया कि श्योपुर जिले के कराहल ब्लाक में एक लाख की आबादी है, लेकिन एक ही अस्पताल है और उसमें एक ही डॉक्टर है। बाल स्वास्थ्य पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रशान्त दूबे के अनुसार “कुपोषित बच्चे जिस समुदाय से आते हैं वहाँ अधिकतर भोज्य पदार्थ माँसाहार है, इसलिए उन्हें अण्डे दिये जा सकते हैं।” इस पर इन्दौर के कलेक्टर पी नरसिंह ने जिले में प्रयोग करके देखा और पाया कि यदि कुपोषित बच्चों को हफ्ते में दो अण्डे भी दिये जायें तो उनमें काफी हद तक प्रोटीन की कमी को पूरा किया जा सकता है। लेकिन अपने ही कलेक्टर द्वारा किये गये प्रयोगांे को सरकार ने नहीं माना और कहा कि हम शाकाहार के समर्थन वाली सरकार हैं अण्डे नहीं दिये जा सकते। यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया। वास्तव में शाकाहार तो एक बहाना है, क्योंकि इसी सरकार के कार्यकाल में माँस उत्पादन दो गुना हुआ है। इसी सरकार ने झबुआ और आदिवासी क्षेत्रों में पायी जाने वाली कड़कनाथ मुर्गे की प्रजाति के प्रचार पर करोड़ो रुपये खर्च किये। शाकाहार के समर्थन वाली यह सरकार झूठी है। यह कुपोषण की आड़ में मुनाफाखोरी और दलाली को बढ़ावा देने वाली सरकार है। कुपोषण का बहुत बड़ा कारण बेरोजगारी है, मनरेगा में एक प्रतिशत लोगों को ही सौ दिन का रोजगार मिला। फलस्वरूप लोग काफी संख्या में रोजगार की तलाश में पलायन कर गये और मजदूरी की तलाश में दर–दर भटकने पर मजबूर हैं, तंगहाली के कारण उनके बच्चों को भर पेट खाना नहीं मिल पाता है और वे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।
कुपोषण मध्य प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में फैला हुआ है, अगर उत्तर प्रदेश की बात करंे तो राज्य का बहराइच जिला देश के कुपोषण के शिकार जिलों में प्रथम स्थान पर है। सरकारी आँकड़ों पर गौर करंे तो इस जिले में 53 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में शहरी और ग्रामीण इलाकों में कुपोषण की स्थिति गम्भीर होती जा रही है, जाँच में पाया गया कि जिले में पाँच साल तक के 5 लाख 37 हजार बच्चों में से करीब 33 प्रतिशत अति कुपोषित पाये गये हैं। बाल विकास परियोजना के 4499 आँगनबाड़ी केन्द्रों पर दो श्रेणियों में इन बच्चों का वजन लिया गया। नवजात से लेकर तीन साल के बच्चों में अति कुपोषितों की संख्या 27,489 रही तीन साल से पाँच तक के आयु वर्ग में 14,360 बच्चे अति कुपोषित पाये गये हैं और यहाँ पर 1.23 लाख बच्चे कुपोषित हैं। आखिर इतने बच्चों के कुपोषण के क्या कारण हैं? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वे इलाहाबाद के कुपोषित बच्चों को पौष्टिक आहार की व्यवस्था करें लेकिन वह इलाहाबाद का नाम बदलने में व्यस्त हैं।
मुम्बई, केवल महाराष्ट्र की नहीं पूरे देश की शान मानी जाती है। वहाँ पर पालिका स्कूलों की हालत यह है कि उसमें पढ़ने वाले 34 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं, सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे सान्ताक्रुज, पालघर, कोलाबा और चेम्बूर में हैं। यदि आँकड़ांे की मानंे तो 2013–2014 में 30,461 बच्चे कुपोषित थे, उसके बाद ये आँकड़ा बढ़कर 2015–2016 में 1,30,680 हो गया। मिड डे मील में जो भोजन बच्चों को दिया जाता है उसमें लगातार कटौती की जा रही है। साल 2015–2016 में पहली कक्षा से लेकर पाँचवी तक बच्चों का मिड डे मील का बजट 32 करोड़ था, जो 2016–2017 में घटकर 21 करोड़ ही रह गया।
सामाजिक कार्यकर्र्ता डॉ जितेन्द्र चतुर्वेदी का कहना है कि भारत के “ग्रामीण क्षेत्रों की 70 प्रतिशत किशोरियाँ एनिमिया की शिकार हैं, उनकी 18 साल के अन्दर शादी कर दी जाती है, जिससे वह कुपोषित बच्चों को जन्म देती हैं। भारत को भले ही युवाओं का देश कहा जाये लेकिन यहाँ बच्चों की स्थिति देखकर कोई उम्मीद नहीं बँधती है, भारत आज भी कुपोषित और भूखा है। आज देश के 38.4 फीसदी बच्चों को पौष्टिक खाना नहीं मिलता है, इस लिए कुपोषण आज भी भारत के लिए अभिशाप बना हुआ है।
सारी घटनाओं को विश्लेषण करने पर पता चलता है कि कुपोषण देश में महामारी की तरह फैला हुआ है, जिसको रोकना असम्भव सा हो गया है, देश के चिराग काल की गाल में समाते जा रहे हैं। कितनी बड़ी बिडम्बना है कि आजादी के 71 साल के बाद भी कुपोषण एक दैत्य की तरह मँुह बाये खड़ा है, जिसका मुख्य कारण है गरीबी। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक देश की 80 प्रतिशत जनता 20 रुपये प्रतिदिन पर जीने को मजबूर है। आज देश में रोटी का सवाल सबसे बड़ा सवाल है, दूसरी तरफ देश के धन्नासेठों की आमदनी दिन दोगुनी रात चैगुनी बढ़ती जा रही हैै। सरकार देश के बच्चों की लाशों की कीमत पर सरकारी कोष का उपयोग मूर्तियाँ बनवाने, बुलेट ट्रेन चलाने तथा हथियार खरीदने में कर रही है। किसी भी देश के बच्चे उस देश का भविष्य होते हैं, अगर देश के बच्चे ही कुपोषित होगें तो देश का भविष्य क्या होगा? इसकी हम कल्पना कर सकते हैं।
––ज्योति गुप्ता
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