येदियुरप्पा की डायरी : भ्रष्टाचार का काला चिट्ठा
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कोर कमेटी के सदस्य सुरजेवाला ने कर्नाटक के भाजपा प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर भाजपा के केन्द्रीय कमेटी, राष्ट्रीय और केन्द्रीय नेताओं, जजों और वकीलों को 1800 करोड़ रुपये रिश्वत देने का आरोप लगाया। येदियुरप्पा पर अन्य नेताओं, कैबिनेट मन्त्रियों और विधायकों से 2690 करोड़ रुपये रिश्वत वसूलने का भी आरोप लगा। सुरजेवाला ने कारवाँ पत्रिका की उस रिपोर्ट को आधार बनाया जिसके साक्ष्य येदियुरप्पा की डायरी से लिये गये थे और जिस डायरी पर येदियुरप्पा के हस्ताक्षर थे। 2019 के चुनाव के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन आरोपों को खारिज कर दिया।
कारवाँ पत्रिका के मुताबिक, येदियुरप्पा ने इस डायरी में सभी भुगतानों को दिनांक और हस्ताक्षर के साथ नोट किया है। डायरी के विवरण के मुताबिक येदियुरप्पा ने ये सभी भुगतान वर्ष 2009 में किये थे। जबकि मई 2008 में येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद सम्भाला था। कर्नाटक में येदियुरप्पा को बहुमत के लिए कुल 113 सीटें चाहिए थीं। लेकिन उन्हें 110 सीटें ही मिली। उन्होंने सरकार बनाने के लिए 6 निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ गठबन्धन किया और इनमें से 5 को कैबिनेट में प्रमुख पद भी दिये।
डायरी की प्रविष्ठि के मुताबिक येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री बनने के छ: महीने बाद ही भाजपा की केन्द्रीय कमेटी को एक हजार करोड़ रुपये दिये। मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री बनने के बदले येदियुरप्पा ने भाजपा के कोर कमेटी को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने वित्तमंत्री अरुण जेटली और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को 150–150 करोड़ रुपये, गृहमंत्री राजनाथ सिंह को 100 करोड़, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को 50–50 करोड़ रुपये दिये। इन सभी की प्रविष्ठि डायरी में हस्ताक्षर के साथ दर्ज है। इसके अलावा जजों को 250 करोड़ रुपये और वकीलों को 50 करोड़ रुपये देने की प्रविष्ठि भी दर्ज है। लेकिन डायरी में किसी वकील या जज का नाम नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक येदियुरप्पा की इस डायरी की कॉपी 2017 से भाजपा सरकार और आयकर विभाग के पास है। आयकर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस डायरी की जाँच प्रवर्तन निदेशालय से कराने के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली के पास एक नोट भेजा था। लेकिन इस डायरी के पन्नों में खुद अरुण जेटली और उनकी पार्टी के केन्द्रीय कमेटी के सदस्यों के नाम थे। जाहिर है कि इसके बाद वित्तमंत्री इस नोट पर कोई कार्यवाई क्यों करते? 2004 से 2013 के बीच अरुण जेटली कर्नाटक के पार्टी इंचार्ज थे और इस दौरान हुए चुनावों में पार्टी को देख रहे थे। येदियुरप्पा ने यह कहकर अपना पीछा छुड़ाया कि उन्हें डायरी लिखने की आदत नहीं है। जाँच एजेन्सियों ने यह कहकर कि हेंडराइटिंग जाँच के लिए मूलप्रति होना जरूरी है, मामले को रफा–दफा किया और आगे की कार्यवाही बन्द कर दी गयी। क्या इतने बड़े मामले को यूँ ही बन्द करना कुछ और इशारा नहीं करता। अगर डायरी की मूल प्रति नहीं भी है, फिरभी इतने बड़े रिश्वत के आरोप सरकार पर लगे हैं तो उसे इस मामले की जाँच क्यों नहीं करानी चाहिए?
येदियुरप्पा ने लिखा है कि “मुझे मुख्यमंत्री बनाने में जी जर्नादन रेड्डी की मुख्य भूमिका है।” दरअसल रेड्डी ने येदियुरप्पा की बहुमत के लिए विपक्षी नेताओं को मनाने का काम किया था। डायरी के मुताबिक रेड्डी ने 8 नेताओं को 150 करोड़ रुपये दिये। इसके बदले रेड्डी को 2008 की येदियुरप्पा सरकार में पर्यटन, संरचना विकास मंत्री का पद दिया गया। रेड्डी कर्नाटक के धनी राजनीतिज्ञों में से एक हैं। रेड्डी के ऊपर खनन माफियाओं और फ्रॉड कम्पनियों से रिश्वत लेने जैसे कितने ही आरोप हैं। रेड्डी 2011 में तीन साल की जेल भी काट चुके हैं।
इन सब के साथ डायरी में तमाम स्रोतों से वसूले गये पैसे का भी हिसाब है। इस एंट्री में 26 लोगों का नाम है, जिसमें पाँच करोड़ से 500 करोड़ तक प्राप्त किये गये हैं। कुल मिलाकर 2690 करोड़ रुपये वसूले गये और जिसमे से 1800 करोड़ बाँट डाले गये।
कारवाँ पत्रिका की रिपोर्टिंग से ऐसा लगता है कि इस भ्रष्टाचार में वे लोग शामिल हैं जो आज देश के सबसे बड़े पदों पर आसीन हैं। इनके हाथों में रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, पीएमओ और देश की बागडोर है। जजों और वकीलों को भी रिश्वत दिये गये हैं जो न्याय और कानून के रखवाले माने जाते हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए येदियुरप्पा ने अपने बेटे की स्टील कम्पनी को फायदा पहुँचाने के लिए सरकारी स्टील कम्पनी के निर्यात को रोककर उसके लौह अयस्क की कीमत कम करवा दी थी। येदियुरप्पा अवैध खनन के मामले में 2011 में जेल जा चुके हैं। भाजपा ने भी येदियुरप्पा से किनारा कर लिया था। लेकिन येदियुरप्पा को भाजपा ने दुबारा पार्टी में शामिल कर लिया। क्यांेकि वह कर्नाटक के लिए भाजपा के तुरुप के इक्के हैं। साथ ही उन्हें भाजपा को खुश करना आता है। यह उनकी डायरी के पन्नों से पता चलता है।
क्या ऐसी वारदातों के बाद लोगों का भरोसा व्यवस्था पर कायम रह पायेगा? येदियुरप्पा की डायरी के पन्ने की कॉपी ने पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाया है। पर कानून, न्यायालय, सरकार सब मौन है। ऐसी मूक व्यवस्था पर भरोसा करें तो कैसे? जब यह व्यवस्था अपना न्याय नहीं कर पा रही है, तो आम जनता की समस्याओं का क्या करेंगी?
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