जून 2023, अंक 43 में प्रकाशित

पहाड़ में नफरत की खेती –– अखर शेरविन्द

“साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है। उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्जा आती है, इसलिए वह ––– संस्कृति का खोल ओढ़कर आती है।”

––प्रेमचन्द (साम्प्रदायिकता और संस्कृति)

जिस उत्तराखण्ड में देवताओं के जागरों में सैय्यद नाचता हो, अब्दुल घरभूत बन जाता हो, न जाने कितने गाँवों में गुरु का झण्डा पूजा जाता हो, अरदास होती हो, जिस धरती के महानायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाली फौजियों ने पेशावर में निहत्थे पठानों पर गोली चलाने के अंग्रेजों के आदेश को ठुकरा कर साम्प्रदायिक भाईचारे कि मिसाल पेश की हो, वहीं की हवा में आजकल एक जहर घुल रहा है। दिलों में दूरियाँ बढ़ाने वाला साम्प्रदायिकता का जहर। धर्मान्तरण, यूनिफॉर्म सिविल कोड, लव जिहाद और सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर लैंड जिहाद और मजार जिहाद, जैसे जुमलों से साम्प्रदायिकता की फसल को खाद–पानी देने का काम जारी है। नफरत की फसल यूँ परवान चढ़ गयी है कि इसी देश में जन्मी उर्दू भाषा तक कुछ लोगों को बर्दाश्त नहीं हो रही।

बीते 7 अप्रैल 2023 को देहरादून की जिलाधिकारी के सामने एक अजीबो–गरीब शिकायत आयी। आईसीएसई बोर्ड के एक स्कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे के पिता मनीष मित्तल ने शिकायत की कि अपनी स्कूल की पाठ्यपुस्तक में उर्दू में माँ और पिता के लिए शब्द पढ़ने के बाद उनके बच्चे ने उन्हें ‘अम्मी और अब्बू’ कहा। मित्तल ने कहा कि जब उन्होंने अपने बेटे को उन्हें अब्बू और अम्मी कहते सुना तो वे चैंक गये। एक अंग्रेजी पाठ्यपुस्तक के पहले अध्याय में अम्मी और अब्बू का प्रयोग माता और पिता के लिए किया गया है। यह किताब देश भर में आईसीएसई बोर्ड के स्कूलों में पाठ्यक्रम का एक हिस्सा रही है लेकिन किसी ने आपत्ति नहीं जतायी। सम्भवत: उत्तराखण्ड में किसी ने पहली बार आपत्ति की। मित्तल ने कहा कि अंग्रेजी किताबों में अम्मी और अब्बू का इस्तेमाल अनुचित और शरारतपूर्ण है। हिन्दी की किताबों में माता और पिता का और उर्दू की किताबों में अम्मी और अब्बू का इस्तेमाल होना चाहिए। मित्तल ने किताब में इन शब्दों के इस्तेमाल को ‘धार्मिक आस्था पर हमला’ बताते हुए किताब पर पाबन्दी लगाने की माँग की। उन्होंने कहा कि अभी सिर्फ नये शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हुई है और तत्काल कार्रवाई से इस तरह की ‘धर्म–विरोधी प्रथाओं’ को रोका जा सकता है। मौका देख हिन्दू वाहिनी भी मामले में कूद पड़ी। उसने भी इस किताब को पाठ्यक्रम से हटाने की माँग की। जाँच की बात कर निष्कर्षों के आधार पर आगे की कार्रवाई की बात हुई तो मामला कुछ ठण्डा पड़ा।

नफरत का यह जहर शहरों तक ही नहीं, बल्कि दुर्गम पहाड़ों तक फैल चुका है। अप्रैल में ही एक और घटना हुई। देहरादून जिले के त्यूणी तहसील के दारागाड़, सुनीर गाँव, चाँटी, अटाल, हिड़सू, अणू प्लासू, लखवाड़, चाँदनी, मेन्द्रथ डण्डोली, पुरटाड (धनराश), हनोल (बिवलाड़ा) आदि में पीढ़ियों से रह रहे वनगुज्जर परिवारों को रुद्र सेना नामक संगठन से जमीन खाली करने की धमकियाँ मिलने लगी। त्यूणी के वन गुज्जर समाज के मोहम्मद रमजान, शमशेर अली, अशरफ अली, सूफी नूर अहमद, अली शेर, शमशाद और अमीर हम्जा को 15 अप्रैल 2023 को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग के अध्यक्ष जस्टिस नरेन्द्र कुमार जैन को पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने तत्काल प्रभाव से वन गुज्जरों को सुरक्षा मुहैया कराने और मामले की न्यायिक जाँच के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को सिफारिश की और अशान्ति फैलाने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की माँग की। उत्तराखण्ड के हरिद्वार, देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रूद्रप्रयाग और चमोली, अल्मोडा, नैनीताल और उधमसिंह नगर समेत विभिन्न जिलों में वन गुज्जर समाज कई दशकों से आबाद हैं। इनमें से हजारों परिवारों के पास राज्य सरकार की ओर से प्रदान किये गये वन परमिट भी हैं। पूर्व में सैकड़ों वन गुज्जर परिवारों का केन्द्र सरकार और राज्य सरकार पुनर्वास भी कर चुकी है।

वन गुज्जरों ने अपनी शिकायत में कहा कि लम्बे समय से कुछ असामाजिक तत्व समाज में अशान्ति फैलाने की नीयत से वन गुज्जर समाज को निशाना बना रहे हैं। गुज्जरों को उनके धार्मिक, शैक्षिक कार्यों से रोका जा रहा है। साथ ही अपनी निजी सम्पत्तियों में निवास करने वाले वन गुज्जरों को भी क्षेत्र से बेदखल करने ओर सामाजिक बहिष्कार करने तक की धमकी दी जा रही है। वन गुज्जर समाज की ओर से शैक्षिक कार्य के लिए बनाये गये केन्द्रों को तोड़ा जा रहा है।

पिछले कुछ समय से क्षेत्र के कुछ असामाजिक तत्व रैली निकाल कर ओर सोशल मीडिया में वीडियो और कुछ फोटो डाल कर उन्हें यहाँ से चले जाने की धमकी दे रहे हैं। त्यूणी तहसील के अन्तर्गत पड़ने वाले कई गाँवों में साम्प्रदायिक विद्वेष का माहौल बनाकर वन गुज्जरों का सामाजिक उत्पीड़न किया जा रहा है। रूद्र सेना के अध्यक्ष राकेश तोमर ने 10 अप्रैल 2023 तक उन्हें क्षेत्र खाली करने की धमकी दी और यह भी कहा कि अगर क्षेत्र खाली नहीं किया तो वे अशान्ति फैला देंगे। इससे त्यूणी क्षेत्र में अशान्ति फैलने का खतरा उत्पन हो गया है। औरतें–बच्चे तक दहशत में आ गये हैं। हैरत की बात यह है कि राकेश तोमर वह व्यक्ति है जिसने पाँच–छह सौ करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले में करीब डेढ़ साल जेल की सजा काटी है।

अब अपनी जान, माल, इज्जत–आबरू की हिफाजत के लिए 5 अप्रैल 2023 को वन गुज्जरों ने देहरादून की जिला अधिकारी और पुलिस कप्तान को शिकायत दर्ज करायी। जिला अधिकारी ने एसडीएम चकराता और पुलिस कप्तान ने त्यूणी थाना इंचार्ज को मामले का संज्ञान लेने को कहा। वन गुज्जर भी थाना प्रभारी से मिले, उसके बाद देहरादून में कुछ सामाजिक संगठनों ने जिला प्रशासन से मुलाकात कर राकेश तोमर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की बाबत पत्र दिये। 10 अप्रैल को राकेश तोमर ने रैली तो नहीं निकाली, मगर फिर एक वीडियो जारी करके देहरादून जाने और जिला प्रशासन से शिकायत करने वाले गुज्जरों को भला–बुरा कहा। वन गुज्जरों का इलजाम है कि स्थानीय प्रशासन भी कुछ क्षेत्र के असामाजिक तत्वों के दबाव में आकर छानी के रूप में बनाये गये शिक्षा के केन्द्रों को ध्वस्त कर रहा है। जिला प्रशासन ने बिना नोटिस के आठ स्थानों सुनीर गाँव, चाँटी, हेडसु, पलासु, मझोग, कालसी और पुरटाड आदि में सभी शिक्षा केन्द्रों को ध्वस्त कर दिया। इससे वन गुज्जरों के बच्चों की शिक्षा–दीक्षा प्रभावित हो गयी है। यही नहीं, उन्हें कब्रिस्तान में तदफीन करने ओर नमाज पढ़ने से भी रोका गया। यह तब है जब नैनीताल हाईकोर्ट में 2019 में दायर जनहित याचिका पर 17 मार्च 2021 को हुए आदेश के बाद 10 जून 2021 को गठित समिति ने साफ कहा कि वन गुज्जरों के विरुद्ध की जा रही वैधानिक कार्रवाई जैसे अतिक्रमण हटाना इत्यादि पर रोक लगायी जानी चाहिए। जब मामला शासन और उच्च न्यायलय में विचाराधीन है तो स्थानीय प्रशासन या व्यक्ति विशेष कैसे मकानों और शिक्षा केन्द्रों (मदरसों) आदि को बिना वैध नोटिस दिये ध्वस्त कर रहा है। क्या यह संविधान और उच्च न्यायलय के आदेशों की अवहेलना नहीं है?

इन शिकायतों का भी लगता है कोई असर नहीं पड़ रहा। 20 अप्रैल को उत्तराखण्ड की चकराता तहसील के हनोल में इसी रुद्र सेना ने एक धर्म सभा की जिसमें अल्पसंख्यकों के विरुद्ध आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। इस सम्मेलन में अल्पसंख्यकों के सफाये और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान किया गया। स्थानीय प्रशासन ने धर्म सभा की इजाजत इस शर्त के साथ दी थी कि रमजान के महीने में कोई भी घृणा फैलाने वाला भाषण नहीं दिया जाएगा और ऐसा कोई काम नहीं किया जाएगा कि अल्पसंख्यकों की भावनाएँ आहत हों। पुलिस की मौजूदगी में यह धर्म सभा हुई और पुलिस ने इसकी वीडियोग्राफी भी की। सम्मेलन के वीडियो साफ करते हैं कि वहाँ कहा गया कि देवभूमि में किसी गैर सनातनी को बसने नहीं दिया जाएगा। विश्व में तब तक किसी किस्म की शान्ति नहीं बनी रह सकती, जब तक कि हर जिहादी का सफाया न कर दिया जाये। इस दौरान हिन्दू रक्षा सेना के अध्यक्ष प्रबोधा नन्द गिरी भी मौजूद रहे। सम्मेलन में शामिल होने के पते फेसबुक में लाइव दिखते रहे। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता हठयोगी महाराज कहते हुए दिखाई दिये कि अगर सन्त और महात्मा जिहाद को खत्म करने की बात करते हैं तो क्या यह गलत है। अगर वे लोकतान्त्रिक तरीके से यह कहते हैं तो इसका देश की हर सरकार और नागरिक को समर्थन करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक हजार मजारें ध्वस्त करने का आदेश देने के लिए बधाई देना चाहते हैं। धर्म सभा के आयोजक रुद्र सेना के राकेश तोमर ने दावा किया कि धर्म सभा का मुख्य उद्देश्य सरकार से महासू देवता की भूमि जौनसार बावर क्षेत्र में गैर हिन्दुओं द्वारा अवैध रूप से कब्जाई गयी जमीनों को मुक्त कराने की अपील करना था। साथ ही सरकार से यह माँग की गयी कि राज्य के हर मन्दिर के पाँच किलोमीटर के दायरे में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित हो। कार्यक्रम की इजाजत देने वाली चकराता की एसडीएम युक्ता मिश्रा ने कहा कि वह चारधाम की ड्यूटी से लौटने के बाद ही कुछ कह सकेंगी। वहीं देहरादून के एसपी ग्रामीण कमलेश उपाध्याय ने कहा कि यह पूरा कार्यक्रम पुलिस की मौजूदगी में हुआ। कार्यक्रम की वीडियोग्राफी की गयी है और इसे लेकर पुलिस को अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है। राज्य में किसी को भी शान्ति और सद्भावना का माहौल बिगाड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस मामले में अब तक किसी किस्म की कार्रवाई की खबर नहीं है।

प्रदेश में नगर निकाय के बाद देश में लोकसभा चुनाव भी है। 2022 के विधानसभा चुनाव ने तराई में भाजपा के लिए खतरे की घण्टी बजा दी थी कि उसका 2019 का जनाधार खिसकने लगा है। हरिद्वार लोकसभा सीट में भाजपा 14 में से आठ विधानसभा सीटें हार गयी थी जबकि नैनीताल–ऊधमसिंह नगर सीट में 14 में से उसने छह सीट गँवा दी थी। अल्मोड़ा–पिथौरागढ़ लोस क्षेत्र में उसे पाँच, टिहरी में तीन और गढ़वाल में एक सीट पर हार का सामना करना पड़ा। अब साफ लगता है कि अतिक्रमण हटाने, समान नागरिक संहिता, धर्मान्तरण, लैंड जिहाद, लव जिहाद जैसे मुद्दे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिये सत्ता पर काबिज रहने के अभियान का हिस्सा है और उसे सत्ता के बड़े केन्द्रों से संरक्षण मिल रहा है। यह सब तब हो रहा है जबकि 17 जुलाई 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने तहसीन पूनावाला की याचिका पर भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी कर कहा था कि हर जिले में एसपी रैंक अधिकारी का ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए नोडल ऑफिसर बनाया जाये। ऐसे इलाकों और लोगों की पहचान हो जिनसे हिंसा की आशंका है। ऐसी जगहों और लोगों पर खास चैकसी बरती जाये। जरूरत पड़ने पर तुरन्त भीड़ को खदेड़ा जाये। सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से भड़काऊ मैसेज या वीडियो फैलाने पर रोकथाम के लिए जरूरी कदम उठाये जायें। ऐसे मैसेज फैलाने वालों पर आईपीसी की धारा 153 ए (समाज में वैमनस्य फैलाने) के तहत केस दर्ज हो। भीड़ की हिंसा से जुड़े मुकदमों की फास्ट ट्रैक सुनवाई हो और उनका छह महीने में निपटारा हो।

इसके पहले 2017 में लॉ कमीशन ने 267वीं रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा था, “हेट स्पीच कोई भी लिखा या बोला हुआ शब्द, इशारा, कोई प्रस्तुति हो सकता है जिसे देखकर या सुनकर डर पैदा हो या हिंसा को बढ़ावा मिले।” हमारे देश में भड़काऊ भाषण देने पर इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 153ए और 153एए के तहत केस दर्ज किया जाता है। कई मामलों में धारा 505 भी जोड़ी जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों का पालन हुआ हो या नहीं लेकिन उत्तराखण्ड में एक खास किस्म की विभाजनकारी सोच को प्रोत्साहन देने की योजनाबद्ध कोशिशें जारी हैं।

ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी जारी है। देश भर का एक आँकड़ा साफ कर देता है कि आखिर नफरत का कारोबार बेहिचक क्यों जारी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में वर्ष 2020 में हेट स्पीच के 1,804 मामले दर्ज हुए, लेकिन ऐसे मामलों में सजा महज 20 फीसद को हुई। यह तो नफरत फैलाने वालों का हौसला बढ़ाने वाला ही आँकड़ा लगता है। खैर 17 दिसम्बर 2021 को उत्तराखण्ड के हरिद्वार में हुई धर्म संसद के मामले ने बहुत तूल पकड़ा था। वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली की याचिका पर 12 जनवरी 2022 को कोर्ट ने हरिद्वार और दिल्ली में हुए धर्म संसद में दिये गये भड़काऊ भाषणों के मामले पर केन्द्र, उत्तराखण्ड और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया था कि दोनों कार्यक्रमों में जिस तरह के भाषण दिये गये, वे आईपीसी की कई धाराओं के खिलाफ थे। इनमें वक्ताओं ने खुलकर मुस्लिम समुदाय के संहार की बातें कही, लेकिन पुलिस ने कोई गिरफ्तारी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद उत्तराखण्ड पुलिस हरकत में आयी और यति नरसिंहानन्द समेत कई लोगों की गिरफ्तारी हुई।

उत्तराखण्ड में मजार जिहाद को लोगों के मन में बिठाने की कोशिशें लम्बे समय से शुरू हो गयी थीं। इन कोशिशों का असर मई 2022 में अल्मोड़ा जिले के दूरस्थ मानिला के दुनैणा गाँव में दिखा। गाँव में स्थानीय लोगों ने मजदूरों द्वारा बनायी गयी एक दरगाह को तोड़ कर ध्वस्त कर दिया। जुलाई 2022 को भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य तरुण विजय ने ट्वीट कर देहरादून के फॉरेस्ट रेंजर्स कॉलेज में बरसों से मौजूद दरगाह पर सवाल खड़े किये और उसे वन विभाग के संरक्षण में इस्लामीकरण करार दिया। अगस्त में पाँचजन्य ने कॉर्बेट में पाखरो टाइगर सफारी के नाम पर 167 की इजाजत की जगह छह हजार से ज्यादा पेड़ों के अवैध कटान और अवैध निर्माण के घोटाले के बरक्स मजार का मुद्दा खड़ा करना शुरू किया।

हाल में एक ऐसा प्रचार अभियान चला जिससे लगा कि प्रदेश के जंगलों में शायद अवैध मजारें ही मजारें हो गयी हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा ने इसे मजार जिहाद या लैंड जिहाद का नाम दिया। मुख्यमंत्री ने कुमाऊँ में बयान दिया कि प्रदेश के जंगलों में जो एक हजार मजारें और अन्य अवैध धार्मिक ढाँचे बने हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। सीएम का यह बयान मीडिया की सुर्खियाँ बना। लेकिन जब वन विभाग के प्राथमिक सर्वे की रिपोर्ट आयी तो पता चला कि प्रदेश के जंगलों की जमीनों पर अवैध मजारों से ज्यादा तो अवैध मन्दिर हैं। प्राथमिक रिपोर्ट धारणा के अनुरूप न पाकर वन विभाग के वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के अभियान के नोडल अधिकारी मुख्य वन संरक्षक वन पंचायत और सामुदायिक वानिकी डॉ पराग मधुकर धकाते ने वनाधिकारियों को फिर से सर्वे का नया प्रारूप भेज तीन दिन में रिपोर्ट देने को कहा, लेकिन तब से कई हफ्ते बीत गये मगर आधिकारिक तौर पर कोई भी अवैध धार्मिक स्थलों का विस्तृत ब्योरा देने को तैयार नहीं। वहीं वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी कहा कि वनों में अवैध ढाँचों का निर्माण धार्मिक मुद्दा नहीं है, बल्कि वन भूमि पर अवैध अतिक्रमण का मसला है। सरकार का इरादा 1980 से पहले के ढाँचों को छेड़ने का नहीं है, लेकिन नये बन रहे अवैध ढाँचे चाहे किसी पंथ से सम्बन्धित हों वन विभाग उन्हें ध्वस्त करेगा। मगर इस बयान की भी जल्द पोल खुल गयी। 15 मई को ऊपरी सियासी दबाव कहें या मनमानी, वन विभाग और पुलिस विभाग की संयुक्त टीम ने रामनगर में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बिजरानी रेंज के आमडण्डा स्थित हिन्दू–मुस्लिम एकता की प्रतीक थपली बाबा की दरगाह को ध्वस्त कर दिया। मजार के मुजाबिर अशरफ अली के मुताबिक मजार 140 साल पुरानी थी और प्रशासन ने उन्हें कोई नोटिस भी नहीं दिया गया। कार्रवाई की भनक लगते ही भारी संख्या में लोग वहाँ इकट्ठा हो गये। लोगों ने प्रदेश सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इसी तरह बाबा नत्थनपीर की 200 वर्ष पुरानी मजार भी ध्वस्त कर दी गयी। प्रदेश सरकार की अतिक्रमण विरोधी मुहिम के विरोध में जगह–जगह प्रदर्शन होने लगे। कई जगह तो डर के मारे प्रभागीय वनाधिकारी ग्रामीणों का ज्ञापन लिये बगैर ही अपने कार्यालय से भाग गये। दावा किया गया कि इन मजारों के नीचे कोई मानव अवशेष नहीं मिले। हालाँकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कब्र खोदने के लिए समुचित कानूनी इजाजत ली गयी या नहीं और क्या जो अवशेष मिले उनकी फॉरेंसिक जाँच की गयी।

वन भूमि पर अतिक्रमण को लेकर किये गये सर्वे के बाद उत्तराखण्ड वन विभाग ने सैकड़ों वन खत्तों, वन गोठों, वन ग्रामों और टोंगिया गाँवों में पारम्परिक रूप से वनवासी पशुपालक समुदायों को बेदखली के नोटिस थमा दिये। पहला निशाना मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखने वाले करीब सैकड़ों वन गुज्जरों को बनाया गया। उनके अस्थायी डेरों के चारों और खाइयाँ खोद दी गयीं। बुलडोजरों से उन्हें ढहा दिया गया। वन गूजर वे लोग हैं जिनके वनों पर अधिकारों को ब्रिटिश राज तक ने मान्यता दी थी। वन गूजर ट्राइबल युवा संगठन ने वैध नोटिस दिये बिना, 72 घण्टे की अवधि में वन गुज्जरों के डेरों, बाड़ों को हटाने की कार्रवाई का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण की आड़ में ऐसी धार्मिक संरचनाओं को भी ध्वस्त किया जा रहा है जिनको नियम–13 के अन्तर्गत ग्रामसभा ने साक्ष्य के रूप में जिला और उपखण्ड स्तरीय समिति में चित्र के रूप में पेश किया गया है। अतिक्रमण की आड़ में वन गुज्जरों के बाड़ों, खत्तों को भी ध्वस्त किया गया और उनके पक्ष को भी नहीं सुना जा रहा।

इसी बीच वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी और चेतना आन्दोलन के शंकर गोपाल ने वन गूजरों की जंगलों से दखली के नोटिस और उनके उत्पीड़न के मामले में मुख्य सचिव और वनाधिकार की राज्य स्तरीय अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष डा– एस एस संधू और प्रमुख सचिव वन आर के सुधांशु को एक पत्र लिखा। उन्होंने वनाधिकार कानून और सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों का हवाला देकर कहा कि वनों में पारम्परिक तौर पर रहने वाले समुदायों ने अगर वनाधिकार के तहत दावा किया है उनके दावों के निस्तारण के बिना बेदखली वनाधिकार का आपराधिक उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि भारतीय वन कानून (उत्तरांचल संशोधन 2001) के तहत वन विभाग में प्रभागीय वन अधिकारी से नीचे के स्तर का अधिकारी वन भूमि से बेदखली का नोटिस नहीं दे सकता, लेकिन प्रदेश में वन दारोगा या उससे भी नीचे के अधिकारी नोटिस जारी कर रहे हैं। 25 मई को पीसीसीएफ वन पंचायत पराग पधुकर धकाते ने वन विभाग की गलती मान ली कि वन वासियों को बेदखली के जो नोटिस दिये जा रहे हैं वे गैरकानूनी हैं क्योंकि रेंज ऑफिसर और वन दरोगा तक नोटिस दे रहे हैं। इससे यह साफ हो गया कि सरकार को लोगों के बीच एक खास धारणा बनाने की इतनी जल्दी थी कि उसने कानूनी पक्षों पर गौर ही नहीं किया या जानबूझकर उनकी अनदेखी की। एक अनुमान के मुताबिक सरकार की बेदखली की कार्रवाई जारी रही तो उत्तराखण्ड में करीब दस लाख लोगों की आबादी प्रभावित होगी। छोटी आबादी वाले विधानसभा क्षेत्रों वाले उत्तराखण्ड में यह तादाद कम नहीं। वन खत्तों और वन ग्रामों के लोगों के बीच बढ़ते आक्रोश और कानूनी, सियासी नफा–नुकसान को देख मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बयान दिया कि वन ग्राम, गोट, खत्ते, टोंगिया और भूमिहीनों की बसासतों से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। मगर सिंचाई विभाग की जमीन में बसे हुए लोगों के बाबत कुछ नहीं कहा गया। नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चमोली, टिहरी आदि के कई क्षेत्रों में गाँधी ग्राम, हरी ग्राम, इन्दिरा ग्राम बसाये गये हैं, ये भी बेनाप भूमि और वन भूमि में काबिज हैं। इन पर भी उजड़ने का खतरा मण्डरा रहा है। उन जमीनों के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया जो खाम या केन्द्र सरकार की भूमि हैं और वहाँ भी लोग वर्षों ही नहीं, बल्कि देश की आजादी के पहले से बसे हुए हैं। ये लोग भूमि के अधिकार से वंचित दलित हैं, जो वहाँ कभी मजदूरी करने आये थे। सरकार इस मामले में अब कुछ बचकर बोल रही है लेकिन इसके बावजूद नफरत फैलाने की मुहिम खत्म नहीं हुर्इं हैं और व्हाट्स एप और अन्य अनौपचारिक माध्यमों से यह जारी है।

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