सितम्बर 2020, अंक 36 में प्रकाशित

चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह

शाम का रंग फिर पुराना है
जा रहे हैं बस्तियों की ओर फुटपाथ
जा रही झील कोई दफ्तर से
नौकरी से लेकर जवाब
पी रही है झील कोई जल की प्यास
चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह
फेंक कर कोई जा रहा है सारी कमाई
 
पोंछता आ रहा कोई धोती से खून
कमजोर पशुओं के शरीर से आरे का खून
 
शाम का रंग फिर पुराना है
छोड़ चले हैं एक और गैरों की जमीन
छज्जे वाले
जा रहा है लम्बा वादा
झिड़कियों का भण्डार लादे
 
लम्बे सायों के साथ साथ गधों पर
बैठे हैं शिशु
 
पिताओं के हाथ में कुत्ते हैं
माताओं की पीठ पीछे बँधे पतीले हैं
पतीलों में माओं के बच्चे सोये हैं
 
जा रहा है लम्बा वादा
कंधों पर उठाये झोंपडी के बाँस
भूख के मारे यह कौन चीख रहा है ?
ये किस भारत की जमीन रोकने जा रहे हैं ?
 
नौजवानों को कुत्ते प्यारे हैं
वे कहाँ पालें
महलों के चेहरों का प्यार ?
 
वे भूखों के शिकार छोड़ चल पड़े हैं
किन्हीं गैरों की जमीन की ओर
 
जा रहा है लम्बा वादा
इनकों क्या पता है ?
कितने बँधे कीलों के साथ
जलाये जाते हैं रोज लोग
जो छोड़ भी नहीं सकते
बस्तियों को किसी रोज
जा रहा है साथ–साथ
बस्ती के पेड़ों का साया
पकड़ रहा है गृहासक्त पशुओं के पैर
घर के वियोग में तड़पते प्यार के पैर
जा रहा है लम्बा वादा
जा रहा है लम्बा वादा
हर जगह 
                    –– लाल सिंह दिल 
 
 

 

 

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