जून 2023, अंक 43 में प्रकाशित

बच्चे काम पर जा रहे हैं

(राजेश जोशी की यह कविता बहुत मार्मिक है। इसे पढ़ते हुए आँखों से आँसू छलक जाते हैं और मन गुस्से से भर उठता है। वह दृश्य सामने आ जाता है, जब फटे–पुराने कपड़े और टूटी हुई चप्पल पहने छोटे–छोटे बच्चे काम पर जाते हैं। यह बहुत दुखद अनुभव है। वे अधभूखे या खाली पेट ही काम पर जाते हैं क्योंकि घर में खाना जैसी कोई चीज नहीं है। इतना ही नहीं, काम पर मालिक की गालियाँ उन पर बरसती रहती हैं। बच्चे इस पीड़ा को कैसे सहते होंगे, यह सोचकर मन पसीज जाता है।)

 

कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं

सुबह सुबह

बच्चे काम पर जा रहे हैं

हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह

भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना

लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्यों जा हैं बच्चे?–––

 

क्या अन्तरिक्ष में गिर गयी हैं सारी गेंदें

क्या दीमकों ने खा लिया है

सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्या काले पहाड़ के नीचे दब गये हैं सारे खिलौने

क्या किसी भूकम्प में ढह गयी हैं

सारे मदरसों की इमारतें

क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन

खत्म हो गये एकाएक

 

तो फिर बचा ही क्या इस दुनिया में?

कितना भयानक होता अगर ऐसा होता

भयानक है लेकिन इससे भी यह

कि हैं सारी हस्बमामूल

पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए

बच्चे, बहुत छोटे–छोटे बच्चे

काम पर जा रहे हैं।

–– राजेश जोशी

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