महामारी के बावजूद 2020 में वैश्विक सामरिक खर्च में भारी उछाल
1988 को आधार वर्ष माने तो कोविड–19 महामारी के बावजूद दुनियाभर के देशों ने 2020 में सर्वाधिक सैन्य खर्च किया है। हमेशा की तरह ही इनमें अमरीका पहले स्थान पर है। यह तथ्य स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (एसआईपीआरआई) की हालिया रिपोर्ट, ट्रेंड्स इन वर्ल्ड मिलिटरी एक्सपेंडीचर, 2020 पर आधारित है।
2020 में हर देश महामारी के चलते थोपे गये लॉकडाउन और दुर्दशा से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिश कर रहा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है ये कोशिशें भी सरकारों को सैन्य खर्च में पहले से ज्यादा रकम झोंकने से नहीं रोक पायी।
26 अप्रैल, 2021 को प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है–– 2020 में वैश्विक सैन्य खर्च 1,981 अरब डॉलर रहा है जो 1988 के बाद सबसे ज्यादा है। अधिकतम खर्च वाले पिछले सालों, 2019 और 2011 का सटीक हिसाब पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के पास उपलब्ध है, जिससे पता चलता है 2020 का वैश्विक सैन्य खर्च 2019 की तुलना में 2.6 प्रतिशत और 2011 की तुलना में 9.3 प्रतिशत ज्यादा है।
रिपोर्ट में दर्ज है कि पिछले दशक में वैश्विक सैन्य खर्च लगभग 10 प्रतिशत बढ़ा है। यह बढ़ोतरी उस साल में भी हुई है जब दुनिया के “सकल घरेलू उत्पाद में 4.4 प्रतिशत गिरावट आयी।” वैश्विक सैन्य बोझ यानी वैश्विक सैन्य खर्च 2020 में 0.2 बिंदु बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 2.4 प्रतिशत हो गया।
इसमें यह भी कहा गया है कि इस बढ़ोत्तरी के चलते “2009 के वित्तीय और आर्थिक संकट के बाद सैन्य बोझ में सबसे ज्यादा वार्षिक वृद्धि हुई है।”
इसमें भी दक्षिणी कोरिया और चिली जैसे कुछ देशों ने अपने योजनागत सैन्य खर्च के कुछ हिस्से को महामारी से मुकाबला करने में इस्तेमाल करने का फैसला किया जबकि रूस, ब्राजील जैसे देशों ने अपने सैन्य मद में योजना से “काफी कम खर्च किया।”
पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट का कहना है कि सैन्य मद में सबसे ज्यादा खर्च अमरीका ने किया है। कुल वैश्विक सैन्य खर्च का 39 प्रतिशत अमरीका ने किया है। खर्च में वृद्धि दर के हिसाब से भी अमरीका सबसे ज्यादा वृद्धि वाले दस देशों में शामिल है, इससे ज्यादा वृद्धि दर केवल जर्मनी और दक्षिणी कोरिया की रही है जिनका सैन्य खर्च अमरीका की तुलना में बहुत कम है।
अमरीका के सबसे नजदीकी “प्रतियोगी” चीन ने सैन्य मद में उसकी तुलना में 2020 में लगभग तीन गुना कम खर्च किया है, हालाँकि, चीन ने कुल वैश्विक सैन्य खर्च का 13 प्रतिशत खर्च किया है। बीजिंग ने अर्थव्यवस्था पर सैन्य बोझ बढ़ाने की कीमत पर सैन्य खर्च नहीं बढ़ाया क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था उन गिनी–चुनी अर्थव्यवस्थाओं में से एक थी जिसकी वृद्धि दर 2020 में भी सकारात्मक थी।
भारत, रूस और ब्रिटेन भी सैन्य मद में सर्वाधिक खर्च करने वाले पाँच देशों में शामिल हैं, जबकि इनका प्रतिरक्षा बजट, अमरीका की तो बात ही क्या चीन की तुलना में भी बहुत कम है। सैन्य मद में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले 10 देशों में सऊदी अरब ऐसा इकलौता देश है जिसका प्रतिरक्षा खर्च 2020 में घटा है।
नाटो के सदस्य देशों ने अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत सैन्य मद में खर्च करने की आपसी सहमति बना रखी है, आर्थिक गिरावट के साथ–साथ सैन्य मद में खर्च की लगातार बढ़ोत्तरी ने नाटो के कुछ सदस्य देशों को अपना यह वायदा पूरा करने में मदद की है, पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के मुताबिक 2019 में 12 में से केवल 9 सदस्य देश ही ऐसा कर पाये थे। फ्रांस तो 2009 के बाद पहली बार 2019 में इस औसत को छू पाया।
पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने अलग–अलग देशों के हथियार और सैन्य खर्च की जाँच पड़ताल के लिए एक कार्यक्रम चलाया था, इस शोध कार्य में काम करने वाले शोधकर्ता डिएगो लोपेज दा सिल्वा (ब्राजील), नान तियन (दक्षिणी अफ्रीका), अलेक्सान्द्रा मार्कस्ताइनर (ऑस्ट्रिया/जर्मनी) का कहना है कि इस रिपोर्ट के तथ्य 2020 के क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सैन्य खर्च और 2011–20 के दशक के खर्च के रुझान को उजागर करते हैं। ये आँकड़े पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अपडेटेड मिलिटरी एक्सपेंडीचर डाटाबेस से लिये गये हैं जिसमें हर देश द्वारा सैन्य मद में खर्च के 1949–2020 की अवधि के आँकड़े उपलब्ध हैं।
2020 के 15 सबसे ज्यादा सैनिक खर्च करने वाले देश
रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा सैन्य खर्च करने वाले 15 देशों ने इस मद में कुल 1,603 अरब डॉलर खर्च किये हैं और यह कुल वैश्विक सैन्य खर्च का 81 प्रतिशत है। 2019 और 2020 के दौरान सूची की बनावट और इसमें शामिल देशों के क्रम में फेरबदल हुआ है। सबसे उल्लेखनीय है तुर्की की जगह इजराइल का इस सूची में शामिल होना और ब्रिटेन का सऊदी अरब से ऊपर जगह पाना क्योंकि सऊदी अरब के सैन्य खर्च में 10 प्रतिशत की कमी आयी है जिसके चलते 2020 में वह पाँचवें स्थान पर खिसक गया। अमरीका (10 प्रतिशत कमी), ब्रिटेन (4.2 प्रतिशत कमी) और इटली (3.3 प्रतिशत कमी) इसमें अपवाद थे। 2011–20 के दशक में चीन ने सैन्य खर्च में 76 प्रतिशत बढ़ोतरी की जो इन 15 देशों में सबसे ज्यादा थी। दक्षिणी कोरिया (41 प्रतिशत), भारत (34 प्रतिशत), ऑस्ट्रेलिया (33 प्रतिशत) और इजराइल (32 प्रतिशत) इस सूची के दूसरे ऐसे देश हैं जिनका सैन्य खर्च 2011–20 के दशक में काफी बढ़ा है।
अमरीका
2020 में अमरीका ने सैन्य बजट में 778 अरब डॉलर खर्च किये, यह दुनिया का सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश रहा। इसने वैश्विक सैन्य खर्च का 39 प्रतिशत खर्च किया है। 2020 में अमरीका ने अपनी सेना पर लगभग उतना खर्च किया है जितना उसके बाद के 12 देशों का कुल सैन्य खर्च था। 2020 में अमरीका का सैन्य बोझ बढ़कर जीडीपी का 3.7 प्रतिशत हो गया है जो पिछले साल की तुलना में 0.3 प्रतिशत ज्यादा है। हालाँकि 2019 की तुलना में उसका खर्च 4.4 प्रतिशत बढ़ा है। 2010–17 के दौरान लगातार सैन्य खर्च में गिरावट के बाद 2020 तीसरा ऐसा साल था जब अमरीका ने लगातार खर्च बढ़ाया। 2018–20 के दौरान बढे़ हुए खर्च का श्रेय शोध और विकास तथा अमरीकी नाभिकीय हथियारों के आधुनिकीकरण जैसी दीर्घकालिक परियोजनाओं और बड़े पैमाने पर हथियारों की खरीददारी को दिया जा सकता है। चीन और रूस से तथाकथित रणनीतिक खतरा और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रम्प द्वारा सेना का पुनर्निर्माण जिसे वे खस्ताहाल मानते थे, इसकी मुख्य चालक शक्ति रहे हैं।
चीन
2020 में चीन दूसरा सबसे ज्यादा सैनिक खर्च करने वाला देश रहा। इसने वैश्विक सैन्य खर्च का 13 प्रतिशत खर्च किया है। 2020 में सेना पर खर्च किये गये 252 अरब डॉलर इसकी जीडीपी का 1.7 प्रतिशत था जो 2019 की तुलना में 1.9 प्रतिशत ज्यादा था। चीन का सैन्य खर्च पिछले 26 सालों में लगातार बढ़ा है, चीन की दीर्घकालिक सैन्य आधुनिकीकरण और विस्तार प्रक्रिया इसका कारण है। चीन के राष्ट्रीय प्रतिरक्षा मन्त्रालय के अनुसार 2020 की बढ़ोत्तरी का कारण कुछ हद तक ‘ताकत की राजनीति’ से चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पैदा हुआ कथित खतरा है।
भारत
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में भारत का सैन्य बजट 72.9 अरब डॉलर था जो 2019 की तुलना में 2.1 प्रतिशत और 2011 की तुलना में 34 प्रतिशत ज्यादा था। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ मौजूदा विवाद और चीन के साथ शुरू हुआ नया सीमा–विवाद तथा एशिया और ओसियानिया क्षेत्र में मुख्य क्षेत्रीय शक्ति के रूप में सामान्यत: चीन के साथ प्रतिद्वन्दिता इस बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण रहे हैं।
रूस
पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में रूस का सैन्य खर्च 61.7 अरब डॉलर था जो 2019 की तुलना में 2.5 प्रतिशत और 2011 की तुलना में 26 प्रतिशत ज्यादा था। 2017 और 2018 में लगातार गिरावट के बाद रूस के सैन्य बजट में 2019 और 2020 में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। 2017 से पहले रूस का सैन्य खर्च लगातार 18 साल तक बढ़ता रहा है। 2020 में भी बढ़ोत्तरी के बावजूद ऐसा लगता है कि रूस के सैन्य खर्च पर कोविड–19 महामारी के आर्थिक परिणाम का तात्कालिक असर पड़ा है। वास्तव में 2020 में रूस का सैन्य खर्च प्रस्तावित सैन्य बजट की तुलना में 6.6 प्रतिशत कम रहा है।
नाटो
रिपोर्ट के अनुसार नॉर्थ अटलान्टिक ट्रीटी आर्गेनाईजेशन (नाटो) के सदस्य देशों का 2020 में कुल सैन्य खर्च 1,103 अरब डॉलर रहा है। सबसे ज्यादा सैन्य खर्च करने वाले 15 देशों में से 6 नाटो के सदस्य हैं–– अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली और कनाडा।
इन 6 देशों का योगदान नाटो के सैन्य खर्च का 90 प्रतिशत और वैश्विक सैन्य खर्च का 50 प्रतिशत है।
इसमें यह भी कहा गया है कि 2019 और 2020 में 15 सबसे खर्चीलें देशों में से चीन के अलावा सबका सैन्य बोझ बढ़ गया है। 2020 में कोविड–19 महामारी के आर्थिक दुष्प्रभाव के चलते लगभग सभी देशों की जीडीपी में गिरावट आयी थी। सैन्य खर्च चाहे बढ़ा हो या घटा हो, 2020 में ज्यादातर देशों में इसके चलते सैन्य बोझ बढ़ गया। चोटी के 15 देशों में सऊदी अरब, रूस, इजराइल और अमरीका पर सबसे ज्यादा बोझ पड़ा।
क्षेत्रीय रुझान
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में दुनिया के पाँच क्षेत्रों में से जिन दो में सैन्य खर्च का भारी संकेन्द्रण हुआ है वह हैं अमरीकी महाद्वीप (उत्तरी और दक्षिणी अमरीका में 43 प्रतिशत) और एशिया तथा ओसियानिया (27 प्रतिशत) जो अपने आप में वैश्विक सैन्य खर्च के दो–तिहाई से भी ज्यादा है। 19 प्रतिशत सैन्य खर्च करने वाला यूरोप, तीसरे स्थान पर है। अफ्रीका ने सबसे कम क्षेत्रीय खर्च किया है, विश्व के कुल सैन्य खर्च का केवल 2.2 प्रतिशत। मध्यपूर्व के सीमित उपलब्ध आँकड़ों से पता चलता है कि यहाँ के देशों ने 2020 के वैश्विक सैन्य खर्च का 9 प्रतिशत खर्च किया है।
मध्यपूर्व
इसमें कहा गया है कि सबसे ज्यादा सैन्य खर्च का बोझ झेलने वाले 10 देशों में से पाँच मध्यपूर्व के देश हैं–– ओमान (जीडीपी का 11 प्रतिशत), सऊदी अरब (8.4 प्रतिशत), कुवैत (6.5 प्रतिशत), इजराइल (5.6 प्रतिशत) और जॉर्डन (5 प्रतिशत)। सबसे ज्यादा बोझ वाले बाकी पाँच देश हैं अल्जीरिया (6.7 प्रतिशत), अजरबैजान (5.4 प्रतिशत), अर्मेनिआ (4.9 प्रतिशत), मोरक्को (4.9 प्रतिशत) और रूस (4.3 प्रतिशत)।
(साभार काउन्टरकर्रेंट्स कलेक्टिव, अनुवाद–– अमित इकबाल)
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