दिसंबर 2018, अंक 30 में प्रकाशित

सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर राजनीति

––दीप्ति

इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और हैप्पी टू ब्लीड जैसी संस्थाओं ने मिलकर केरल उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये उस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की थी,  जिसके अनुसार 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का सबरीमाला मन्दिर में प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया गया था। 28 सितम्बर 2018 को सर्वाेच्च न्यायालय ने 5 सदस्यीय कमिटी में 4 सदस्यों के बहुमत से केरल उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया। और सबरीमाला मन्दिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के मन्दिर जाने पर लगी रोक को समाप्त कर दिया। फैसला देते वक्त मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, “धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है और उम्र के आधार पर महिलाओं के मन्दिर प्रवेश पर रोक लगाना धर्म का हिस्सा नहीं है।”

सबरीमाला मन्दिर केरल का एक प्रमुख तीर्थ है। इसका निर्माण 1200 ई– के लगभग हुआ था। प्रत्येक मलयाली महीने के शुरू के पाँच दिन मन्दिर खुलता है। इससे अलग मकर सक्रान्ति, बैसाखी और 15 नवम्बर से 26 दिसम्बर तक चलने वाली लम्बी यात्रा में मन्दिर खुलता है। बाकी समय यह मन्दिर बन्द रहता है। इसके प्रमुख तंत्री का मानना है कि परम्परा के अनुसार 1500 वर्षों से मन्दिर में महिलाओं का परवेश वर्जित है, जबकि 20 साल पहले तक, विशेष तीन पूजाओं को छोड़कर मन्दिर की मासिक पूजा में महिलाएँ शामिल हो सकती थीं।

सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का आम लोगों और श्रद्धालुओं ने स्वागत किया है, जबकि भाजपा जैसे कुछ राजनीतिक दल और उनके जन संगठन इस फैसले के विरोध में हैं। वे मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश को फिर से प्रतिबंधित करने के लिए सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन संगठनों का मानना है कि इस मामले में सर्वाेच्च न्यायालय ने मन्दिर की परम्पराओं और धार्मिक आस्थाओं को ध्यान में नहीं रखा। उनका मानना है कि रजस्वला महिलाएँ मन्दिर में प्रवेश कर उस को अपवित्र कर देंगी, जिससे भगवान अयप्पा की शक्तियाँ कम हो सकती हैं। वे कहते हैं कि माहवारी के समय महिलाएँ अपवित्र हो जाती हैं। लेकिन सोचने वाली बात है कि माहवारी महिलाओं के लिए जरूरी प्राकृतिक क्रिया है। यह किसी महिला की खुद की इच्छा या अनिच्छा से संचालित नहीं होता।

किशोरावस्था में लड़के और लड़कियों के शरीर में कुछ प्राकृतिक बदलाव होते हैं। इससे लड़कियों का शरीर गर्भधारण के लिए तैयार होता है और उन्हें मासिक रक्तस्राव होने लगता है, जिससे तय होता है कि अमुक महिला गर्भधारण कर सकती है या नहीं। गर्भधारण के बाद माहवारी बन्द हो जाती है क्योंकि उसी खून से नये शिशु का शरीर बनता है। धर्मध्वजाधारियों के हिसाब से माहवारी के रक्त से बनने वाला शिशु का शरीर पवित्र है, लेकिन वह महिला अपवित्र है, जो उसे जन्म देती है और इसी के चलते उसका किसी भी पवित्र जगह पर आना–जाना वर्जित है।

आज महिलाओं के नाम के साथ रोज ही कुछ न कुछ उपलब्धियाँ जुड़ रही हैं, फिर भी उन्हें समाज में परम्पराओं और धार्मिक आस्थाओं के नाम पर दोयम दर्जे का व्यवहार झेलना पड़ता है। मन्दिरों में प्रवेश को लेकर महिलाएँ काफी लम्बे समय से संघर्ष कर रही हैं। इसमें महिलाओं को सफलता भी मिल रही है। लेकिन महिलाओं की असली समस्या मन्दिरों में प्रवेश को लेकर नहीं है, बल्कि महिलाओं के साथ होने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार और उनके शोषण से जुड़ी है। इसका कारण समाज में व्याप्त पुरुषवादी सोच है जो महिलाओं को कभी एक उपयोगी वस्तु तो कभी एक अछूत वस्तु की तरह देखती है। इस भेदभाव के लिए धर्म और परम्पराओं का ही सहारा लिया जाता है। उन्हें विज्ञान और तर्क के आगे खड़ा कर दिया जाता है। फिर भी सर्वाेच्च न्यायालय के इस फैसले से महिलाओं के संघर्ष को कुछ बल ही मिला है। किसी महिला को कब और कहाँ जाना चाहिए या किस उम्र में जाना चाहिए, ये उनके विवेक पर निर्भर होना चाहिए न कि परम्पराओं या धार्मिक आस्था के आधार पर।

सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने के विरोध में सड़कों पर उतर रहे धर्मध्वजधारियों का मानना है कि परम्परा और आस्था के साथ न्यायालय को छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। परम्परा कोई स्थायी चीज नहीं। समाज में हो रहे परिवर्तन के हिसाब से परम्पराओं और धार्मिक आस्थाओं में बदलाव होते रहे हैं। एक समय पर सती प्रथा, नरबली, पशुबली या अश्वमेघ यज्ञ, जैसी कई परम्पराएँ और धार्मिक अनुष्ठान होते रहते थे, लेकिन आज इन सबको ही खराब माना जाता है। ये समाज में होने वाले बदलाव के साथ खत्म हो गये और इनकी जगह नयी परम्पराओं ने ली। परम्पराओं को बनाने और बदलने का काम समाज अपने हित–अहित के अनुसार करता है।

सबरीमाला मन्दिर के मुद्दे में आस्था और विश्वास से ज्यादा प्रभाव राजनीतिक पार्टियों का है। देश के दोनों ही बड़े राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए भुना रहे हैं। राजनीतिक दल जनता को उसके असली मुद्दों से भटकाने के लिए इस तरह के गैर–जरूरी मुद्दों को उठते रहते हैं जिससे जनता धर्म, जाति, लिंग और सम्प्रदाय के नाम पर एक–दूसरे के साथ तो लड़ती रहे, पर सरकार की जनविरोधी नीतिओं के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष न कर सके।

केरल राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की हालत ठीक नहीं है। इसलिए दोनों ही दल केरल के हिन्दू मतदाताओं को हिन्दू धर्म की रक्षा के नाम पर एकजुट करके अगले चुनाव के लिए वोट पाने का आधार तैयार कर रहे हैं। जैसाकि वे पहले ही गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में कर चुके हैं और अब उसी तरह का धार्मिक उन्माद केरल में भी शुरू करने की कोशिश की जा रही है। केरल की भाजपा इकाई के प्रमुख पी एस श्रीधरन पिल्लै का एक वीडियो दिखाया जा रहा है जिसमें वे कथित रूप से इस मुद्दे को पार्टी का एजेंडा बता रहे हैं और इसे अपने कार्यकर्ताओं को केरल में आधार तैयार करने का स्वर्णिम अवसर बता रहे हैं। वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक तरफ तीन तलाक जैसे महिला विरोधी रिवाज पर कानून के जरिये रोक लगाकर अपनी सरकार की पीठ थपथपा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश के फैसले पर सर्वाेच्च न्यायालय को धर्म के बीच में न पड़ने की धमकी दे रहे हैं। इन दोनों ही उदाहरणों से हम देख सकते हैं कि राजनीतिक दलों की असली मनसा क्या है?

केरल जो इस समय बाढ़ से होने वाली तबाही को झेल रहा है। यह बाढ़ पिछले सौ सालों में होने वाली सबसे बड़ी तबाही है जहाँ 500 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। बहुत सारे लोग लापता हैं। किसानों के खेत पानी से भरे हुए हैं। लाखों लोगों का रोजगार खत्म हो गया है। वहाँ जनजीवन को सामान्य होने में अभी न जाने कितना समय लगने वाला है। लेकिन दुर्भाग्य ही है कि वहाँ की जनता इन राजनीतिक दलों के झूठे मुद्दों के बहकावे में आकर अपने असली जरूरतों–– रोटी, कपड़ा और आवास की माँगों के लिए सड़कों पर आने के बजाय राजनीतिक दलों के नकली मुद्दों के लिए सड़कों पर है।

आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता के असली और नकली मुद्दों के बीच के फर्क को समझने की है। हमारे लिए असली समस्या रोजी–रोटी, शिक्षा, चिकित्सा, यातायात और आवास की है या मन्दिर, मस्जिद के निर्माण की या महिलाओं के इन में प्रवेश करने की? आज बहुत जरूरी हो गया है कि हम अपनी असली समस्याओं को समझें और इनके खिलाफ एकताबद्ध होकर सड़कों पर उतरें।               

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