इजराइल का क्रिस्टालनाख्त नरसंहार
––ब्रूस न्यूबर्गर
(गाजा के अस्पताल पर हमले के साथ इजराइल का हत्या अभियान जारी है : 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने गाजापट्टी की ओर से हजारों रोकेट से इजराइल पर ताबड़तोड़ हमला किया जिससे 1400 इजराइली मारे गये। यह हमला जैसे इजराइल के लिए बहाना बन गया और उसने हमास के नाम पर गाजा में बसे फिलिस्तीनी जनता का कत्लेआम शुरू कर दिया। पिछले एक महीने से इजरायल फिलिस्तीनी जनता से उस हमले का बदला ले रहा है जिसे हमास ने अंजाम दिया है। अब तक इजराइल 10,000 से अधिक फिलिस्तीनी लोगों को मौत के घाट उतार चुका है और 25,000 से अधिक फिलिस्तीनी घायल हो चुके हैं। इजराइल ने उनकी बिजली, पानी और रसद की आपूर्ति काट दी है और गाजा में बसे 23 लाख फिलिस्तीनी लोगों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया है।
कई अन्तरराष्ट्रीय समुदाय और अरब देशों ने युद्ध–विराम की अपील की जिसे इजरायल ने ठुकरा दिया है और अपने आका अमरीका की शह पाकर लगातार गाजापट्टी में बम बरसा रहा है। गाजा के एक अस्पताल पर हमला करके उसने करीब 500 लोगों को मार दिया जिसमें निर्दोष दुधमुहें बच्चे तक शामिल हैं। जब खून से लतपथ उनकी लाश की मार्मिक तस्वीर दुनिया के सामने आयी तो दुनिया भर की शान्तिप्रिय जनता दुख और गुस्से से भर गयी। अस्पताल में वे लोग भी मौजूद थे जो पहले से घायल और विस्थापित थे। उन्हें भी नहीं बख्शा गया। इजरायली हमले से फिलिस्तीनी जनता में काफी गुस्सा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने गाजा अस्पताल पर हुए घातक हवाई हमले की कड़ी निन्दा की और कहा कि “मैं पीड़ितों के परिवारों के साथ हूँ। अस्पताल और चिकित्साकर्मी अन्तरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत संरक्षित हैं।” इस हमले के खिलाफ हजारों लोगों ने ईरान के तेहरान में, ब्रिटेन और फ्रांस के दूतावासों के बाहर तथा मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका सहित अन्य कई देशों में विरोध प्रदर्शन किया। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने एक दिन के “सार्वजनिक शोक” का ऐलान किया और हमले के लिए इज़रायल और उसके सहयोगी अमेरिका को दोषी ठहराया। लेबनान के ईरान समर्थित हिजबुल्लाह संगठन ने गाजा अस्पताल हमले की निंदा के लिए “क्रोध दिवस” का आह्वान किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अस्पताल पर हुए हमले को “अभूतपूर्व” करार दिया। उन्होंने कहा कि गाजा में 115 स्वास्थ्य सुविधाओं पर हमला किया गया है, जिससे शहर के अधिकांश अस्पताल नहीं चल रहे हैं।–– सम्पादक)
7 नवम्बर, 1938 को, एक 17 वर्षीय जर्मन यहूदी छात्र पेरिस में जर्मन वाणिज्य दूतावास में आया और जर्मन वाणिज्य दूत से बात करने के लिए कहा। जब उसे बताया गया कि वे यहाँ नहीं हैं तो हर्शेल ग्रिनस्पैन एक छोटे ओहदेवाले अधिकारी, अर्न्स्ट वोम रथ से बात करने के लिए राजी हो गया। जब अधिकारी सामने आया तो ग्रिनस्पैन ने पिस्तौल निकाली और उसके पेट में गोली मार दी। दो दिन बाद गोली लगाने से वोम रथ की मौत हो गयी।
वोम रथ की मौत की खबर जर्मनी में उस समय पहुँची जब नाजी पार्टी के नेता म्यूनिख में 1923 की बीयरहॉल पुश्च (हिटलर के असफल तख्तापलट अभियान) की सालगिरह मना रहे थे। नाजी प्रचार मंत्री, जोसेफ गोएबल्स, नाजी अधिकारियों के रात्रिभोज जमावड़े के सामने अचानक भाषण देने के लिए उठ खड़ा हुआ। उसने इस हत्या को एक अनुचित हमला बताते हुए इसकी निन्दा की और हत्या का दोष समूचे यहूदी समुदाय पर मढ़ दिया। भाषण रिकॉर्ड नहीं किया गया था लेकिन गोएबल्स ने अपनी डायरी में लिखा था कि उनकी बातों का जोरदार तालियों से स्वागत किया गया था।
रात्रिभोज में शामिल नाजी अधिकारियों ने तुरन्त फोन पर एसएस और देश भर की अन्य सशस्त्र इकाइयों में अपने नाजी सहयोगियों को यहूदी समुदाय के खिलाफ हिंसक कार्रवाई की तैयारी के लिए सूचित किया। कुछ ही दिनों में सैकड़ों सिनागोग नष्ट कर दिये गये, हजारों यहूदी दुकानों को तबाह कर दिया गया और यहूदी घरों पर हमले किये गये। सैकड़ों यहूदियों की हत्या कर दी गयी और 30,000 यहूदी पुरुषों को पकड़कर जर्मनी के तीन मुख्य यातना शिविरों में भेज दिया गया। मेरे परिवार के सदस्यों सहित कुछ यहूदियों को उनके घरों से निकाल दिया गया। इस बीच, नाजी सरकार और प्रेस ने जर्मन वाणिज्यिक अधिकारी की हत्या के लिए पूरे जर्मन यहूदी समुदाय की निन्दा का ढोल पीट दिया। उन्होंने दावा किया कि हिंसक नरसंहार आक्रोशित जर्मन जनता की “सहज प्रतिक्रिया” थी और आपराधिक यहूदी आचरण के लिए उचित पुरस्कार था। यह झूठ था। आगजनी, लूटपाट और हत्या की योजना नाजी पार्टी के नेताओं और वर्दीधारी नाजी आतंकवादियों द्वारा बनायी गयी थी और उनके ही द्वारा इसे अंजाम दिया गया था।
न तो नाजी सरकार ने, और न ही उसके पालतू प्रेस ने 1933 और 1938 के बीच लागू किये गये उन 400 से अधिक यहूदी विरोधी कानूनों और फरमानों को मुद्दा बनाया, जिन्होंने जर्मन यहूदियों के जीवन को असहनीय रूप से नारकीय बना दिया। इनमें 1935 के न्युरेमबर्ग कानून का पारित होना भी शामिल था जिसने यहूदियों से उनकी जर्मन नागरिकता छीन ली तथा यहूदियों और गैर–यहूदियों के बीच यौन सम्पर्क को गैरकानूनी घोषित कर दिया। न्युरेमबर्ग “रक्त कानून” के कारण सैकड़ों यहूदी पुरुषों पर मुकदमा चलाया गया, जिनमें से कई लोगों को कथित तौर पर ऐसे सम्बन्ध रखने के लिए कारावास की सजा सुनाई गयी। इसने जर्मन यहूदियों के विरुद्ध लगातार नस्लीय कुत्सा–प्रचार की बाढ़ को भी तेज कर दिया।
जर्मन जनता को उस खास दहशत से भी पूरी तरह अनजान रखा गया जिसने ग्रिनस्पैन को वोम रथ की हत्या के लिए उकसाया था। अक्टूबर 1938 के अन्त में जर्मनी में रहने वाले 12,000 पोलिश यहूदी आप्रवासियों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया और उनको सिर्फ पहने हुए कपड़ों के साथ ही पोलैण्ड भेज दिया गया। 12,000 निर्वासित लोगों में से 8,000 को पोलैण्ड में प्रवेश करने से मना कर दिया गया और उन्हें पैसे, भोजन या पर्याप्त आश्रय के बिना ठण्डे मौसम में पोलिश सीमा पर फँसा छोड़ दिया गया। उनमें हर्शेल ग्रिनस्पैन के माता–पिता जिन्देल और रिव्का और उनकी बहन बर्टा भी शामिल थीं, जिन्होंने पेरिस में अपने भाई को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगायी थीय “हर्शल, हमें एक पैसा भी नहीं मिला।” ये वे तात्कालिक परिस्थितियाँ थीं जिन्होंने युवा हर्शल को निराशा की ओर धकेल दिया। उसने एक बन्दूक खरीदी और हत्या का विचार मन में लेकर जर्मन वाणिज्य दूतावास चला गया।
जर्मन फासीवादी मीडिया ने उस नाजी सन्देश को बार–बार दोहराया जो क्रिस्टालनाख्त नरसंहार को उचित ठहराता था–– यहूदी इसी के लायक हैं।
इजराइल/फिलिस्तीन अक्टूबर 2023
7 अक्टूबर को हमास आतंकवादियों ने इजरायली सैन्य कर्मियों और नागरिकों की क्रूर हत्याओं को अंजाम दिया। इजरायली सरकार और मीडिया तथा अमरीकी सरकार और मीडिया–– लगभग बिना किसी अपवाद के–– इन सचमुच भयानक हमास कार्रवाइयों की निन्दा करने में जुटे थे, बिना यह समझाने का प्रयास किये कि उन्हें उकसाने वाले कारण क्या थे। उन्होंने जानबूझकर जमीन से बेदखली, मौत, तबाही, हत्या और अपमान के सात दशकों के इतिहास का नाम तक नहीं लिया, उनको नजरअन्दाज कर दिया और दबा दिया, जिस दौरान फिलिस्तीनियों को इजरायली सरकार द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाइयों के कारण नारकीय स्थितियों में जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। भले ही ये कार्रवाइयाँ 7 अक्टूबर की हत्याओं को उचित नहीं ठहराती हैं, लेकिन वे उनकी वजह तो स्पष्ट करती ही हैं। इस इतिहास को छिपाकर इजरायली और अमरीकी सरकारें फिलिस्तीनी लोगों को हत्यारों के रूप में चित्रित करना चाहती हैं ताकि उनके खिलाफ आगे की जानलेवा कार्रवाइयों को उचित ठहराया जा सके। नेतन्याहू सरकार और उसके अमरीकी समर्थकों ने इस तथ्य को छुपाया है कि पिछले कई दशकों में 2023 का साल फिलिस्तीनियों के लिए सबसे घातक रहा है। इसके अलावा, नेतन्याहू सरकार और उसके अमरीकी समर्थक हमास की निन्दा करते हैं, लेकिन कई दशक पहले फतह के धर्मनिरपेक्ष नेतृत्व के बरक्स हमास को सत्ता पाने में मदद करने में इजरायल और अमरीका की क्या भूमिका रही, इस बारे में उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है।(2) जैसा कि नेतन्याहू ने 2019 में अपनी दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी से कहा था “जो लोग फिलिस्तीनी राज्य की सम्भावना को नाकाम करना चाहते हैं, उन्हें हमास को मजबूत करने और हमास को धन मुहैया करने का समर्थन करना चाहिए। यह हमारी रणनीति का हिस्सा है।”(3)
यह एक अपरिहार्य तथ्य है कि फिलिस्तीनी जनता ने पिछले 75 वर्षों में अपने प्रति इजरायलियों द्वारा किये गये दुर्व्यवहारों के खिलाफ जब भी विरोध की कार्रवाई की है, तब–तब उन्हें शैतान के रूप में पेश किया गया और दंडित किया गया। आज नेतन्याहू सरकार द्वारा फिलिस्तीनी लोगों को उसी तरह शैतान बनाया जा रहा है जैसे गोएबल्स, हिटलर और तमाम नाजी नेताओं ने यहूदियों को वहशी बताया था। इन लोगों ने भी फिलिस्तीनियों का बयान करते समय साफ तौर पर नस्लीय और विस्फोटक भाषा, नाजी जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है।
अपनी पीठ फेर लेना और खुली छूट दे देना
नवम्बर 1938 के जर्मन क्रिस्टालनाख्त नरसंहार और 2023 में गाजा पर किये जा रहे जानलेवा हमले के बीच केवल यही समानताएँ नहीं हैं। जुलाई 1938 में जर्मन यहूदियों के सामने आने वाले संकट पर चर्चा के लिए फ्रांसीसी रिसॉर्ट शहर एवियन–लेस–बेन्स में एक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। सभा में संयुक्त राज्य अमरीका, इंग्लैण्ड, फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों सहित 32 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने उस सम्मेलन में एक निजी मित्र तो भेजा लेकिन कोई आधिकारिक अमरीकी प्रतिनिधि नहीं भेजा। उस समय जर्मन यहूदियों के साथ किये जा रहे भयानक व्यवहार पर सार्वजनिक रूप से आलोचना के बावजूद, केवल एक देश–– डोमिनिकन रिपब्लिक ही पर्याप्त संख्या में यहूदी शरणार्थियों को लेने के लिए सहमत हुआ। एवियन में सम्मेलन के बाद हिटलर ने यह घोषणा करते हुए खुशी जतायी कि “कोई भी यहूदियों को नहीं चाहता।” हिटलर आश्वस्त हो सकता था कि जर्मनी द्वारा यहूदियों पर अपना हमला जारी रखने और तेज करने पर उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। कुछ महीनों बाद क्रिस्टालनाख्त नरसंहार के लिए रास्ता साफ हो गया।
इजराइल में, फिलिस्तीनियों पर आक्रामक और हिंसक हमले, इजरायली बस्तियों का निर्माण, इजरायली उपनिवेशियों ने (कुछ स्थानों पर संयुक्त राज्य अमरीका के ईसाई फासीवादी सम्प्रदायों के सदस्यों की सहायता से) फिलिस्तीनियों पर बेलगाम जानलेवा हमलों को बढ़ावा दिया, यहाँ तक कि मुस्लिमों के पवित्र स्थान अल–अक्सा मस्जिद का विध्वंश भी किया जिसके विरोध में अमरीका और यूरोपीय सरकारों से बहुत कम तीखे शब्द सुनने को मिले हैं। साफ तौर पर नेतन्याहू सरकार ने इससे यह निष्कर्ष निकाला कि इजरायल को फिलिस्तीनियों के साथ जो चाहे करने की खुली छूट है! इजरायली सरकार द्वारा इस्लाम के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक के बार–बार सार्वजनिक अपमान का मकसद उकसावे के अलावा और क्या हो सकता है?
वे इसी का इन्तजार कर रहे थे
10 नवम्बर, 1938 को 30,000 यहूदी पुरुषों को जर्मन पुलिस और गेस्टापो एजेण्टों ने उठा लिया और यातना शिविरों में भर दिया। मेरे दादाजी उनमें से एक थे। उनमें से एक व्यक्ति जिसको उठाया गया और 10 नवम्बर को दचाऊ भेजा गया, और जो महाविनाश से बच गया, उसने वर्षों बाद एक साक्षात्कार में कहा कि उसे क्रिस्टलनाख्त नरसंहार से पहले दचाऊ में बन्द कैदियों ने बताया था कि बंदियों की एक बड़ी आमद के मद्देनजर शिविर का विस्तार किया गया था। यह इस बात का सबूत है कि नाजी सरकार को क्रिस्टालनाख्त जैसी घटना की आशंका थी।(4) 9 नवम्बर की रात को जब वोम रथ की मौत की खबर म्यूनिख पहुँची, तो हिटलर और गोएबल्स को नरसंहार का आह्वान करने का निर्णय लेने में बहुत कम समय लगा। जाहिर है कि नाजियों को पेरिस में एक जर्मन यहूदी छात्र के कृत्य की उम्मीद नहीं थी, लेकिन वे उनके निरन्तर उत्पीड़न की प्रतिक्रिया की अच्छी तरह से उम्मीद कर सकते थे जो बड़े पैमाने पर, हिंसक दमन के लिए एक उपयोगी बहाना हो सकता था। और वे स्पष्ट रूप से उस हिंसा को अंजाम देने की कार्रवाई के लिए तैयार थे।
इसी तरह, हलाँकि नेतन्याहू सरकार को हमास द्वारा बनायी जा रही खास योजनाओं के बारे में पता नहीं होगा, लेकिन इजरायली सरकारी अधिकारी फिलिस्तीनियों के बीच बढ़ते आक्रोश और हताशा की भावना को नहीं भूल सकते थे, जिनके वेस्ट बैंक के गाँवों को उपनिवेशियों द्वारा लगातार तबाह किया जा रहा था, जिनके लोगों की भारी तादाद में हत्या की जा रही थी, जिनके धार्मिक स्थल को नष्ट–भ्रष्ट किया जा रहा था। आज की इजरायली सरकार ने ऐसी जवाबी कार्रवाई का अनुमान कैसे नहीं लगाया होगा जबकि नेतन्याहू और दूसरी इजरायली सरकारों के प्रतिनिधि सार्वजनिक रूप से और बार–बार अपनी ही भूमि से फिलिस्तीनियों की नस्लीय सफाई की तेज रफ्तार के साथ इजरायली बस्तियों का निर्माण जारी रखने के अपने इरादे की घोषणा कर रहे थे? और, जैसाकि एलन पप्पे ने बर्कले लॉ स्कूल में अपनी हालिया बातचीत में कहा था कि हमास ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि आज जब हजारों फिलिस्तीनी राजनीतिक कैदी इजरायल की जेलों में बन्द हैं तो वह चुपचाप बैठा नहीं रहेगा?(5)
उन्हें बाहर भगाओ
नाजी सुरक्षा एजेंसियों में से एक का प्रमुख रेनार्ड हेड्रिक, जो 1941 के बाद, नरसंहार का मुख्य वास्तुकार बन गया था, उसने स्वीकार किया कि 1938 में यहूदियों को जर्मनी छोड़ने के लिए मजबूर करना और जीवन को असहनीय बना देना कि वे जर्मनी से भागने पर राजी हो जाएँ, उस समय की नाजी नीति थी। नवम्बर 1938 तक कई यहूदियों ने भारी दबाव के बावजूद, जर्मनी में रहने का विकल्प चुना। आखिरकार, यह उनका घर और उनके माता–पिता और दादा–दादी का घर था, एक ऐसा देश जिसके साथ उनकी पहचान थी, एक ऐसी भूमि जिसके लिए उन्होंने कई मायनों में योगदान दिया था। आखिरकार वे जर्मन थे और उन्हें रहने का अधिकार था। मेरे अपने परिवार में कई लोगों का यही रवैया था।
कई फिलिस्तीनियों के लिए फिलिस्तीन में रहना एक प्रतिरोध की कार्रवाई रही है। इसलिए, जिस तरह नाजियों ने जर्मन यहूदियों के ऊपर उत्पीड़न को नाटकीय रूप से बढ़ाना जरूरी समझा, वैसे ही लिकुड फासीवादियों ने भी, जो अब इजराइल पर शासन करते हैं, फिलिस्तीनी समुदाय पर दबाव बढ़ा दिया है। हिटलर सरकार का मानना था कि क्रिस्टालनाख्त ने उन्हें यहूदियों को बेदखल करने और उन्हें जर्मनी से बाहर निकालने का लाभ दिया था। यातना शिविरों में रखे गये यहूदी पुरुषों पर दबाव डाला गया था कि शिविरों से रिहा होने के लिए वे अपनी सम्पत्तियाँ नाजी राइख के नाम कर दें। अब इजरायली सरकार का मानना है कि फिलिस्तीनियों को फिलिस्तीनी भूमि से बाहर निकालने की खुली कार्रवाई करने के लिए उसे फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार और हिंसा करने, उनके घरों को तबाह करने, उनकी सम्पत्ति जब्त करने, उनके बच्चों को मारने का लाइसेंस मिल गया है। यह बात इजरायली संसद (कनेसेट) के एक दक्षिणपंथी सदस्य अमीर वीटमैन ने एक पेपर में कही थी, जिसमें गाजा की नस्लीय सफाई का प्रस्ताव दिया गया था, यह देखते हुए कि हमास के 7 अक्टूबर के हमलों के मद्देनजर “आज एक अनूठा और दुर्लभ अवसर” है।
आइए इस अपराध के स्रोत के बारे में बात करें
नवम्बर 1938 के क्रिस्टालनाख्त के बादय सामूहिक हत्याओं और सिनागोग जलाने, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों, पिटाई और यहूदी पुरुषों को यातना शिविरों में कैद करने के बाद, कोई उम्मीद कर सकता था कि बड़े, “लोकतंत्र”, ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमरीका जैसे अमीर उपनिवेशवादी देश यहूदियों के लिए अपने दरवाजे खोलने के लिए दौड़ पड़ेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके विपरीत, 1938 में अमरीकी वीजा की प्रतीक्षा सूची में 1,39,163 जर्मन यहूदी थे जबकि केवल 19,552 वीजा मंजूर हुए थे और उनमें से 7,818 अमरीकी वीजा तो जारी ही नहीं किये गये। और स्थिति लगातार बिगड़ती गयी। सितम्बर 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ (और जबकि अमरीका और जर्मनी अभी तक युद्ध में शामिल नहीं थे) यहूदियों के लिए खतरे बढ़ गये। सीधे तौर पर इस अत्यन्त निराशाजनक स्थिति का सामना करते हुए, अमरीकी विदेश विभाग के नेताओं ने यहूदी आप्रवासन के लिए नयी बाधाएँ खड़ी कर दीं। 1940 में अमरीकी सहायक विदेश सचिव ब्रेकिनरिज लॉन्ग ने जर्मनी में अमरीकी वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों को एक ज्ञापन जारी कर उन्हें सलाह दी कि, “हम संयुक्त राज्य अमरीका में आप्रवासियों की संख्या को अनिश्चित काल की अस्थायी अवधि के लिए विलम्बित और प्रभावी ढंग से रोक सकते हैं। हम अपने वाणिज्य दूतों को इस रास्ते में हर तरह से बाधा डालने, अतिरिक्त साक्ष्य को जरूरी बताने और विभिन्न प्रशासनिक उपकरणों का सहारा लेने की सलाह देकर, जो वीजा देने को स्थगित कर दें, ऐसा कर सकते हैं। “मई 1939 में यूरोप में फासीवाद से बचने की कोशिश कर रहे 900 यात्रियों वाले जहाज सेण्ट लुइस को क्यूबा और संयुक्त राज्य अमरीका में उतरने से रोक दिया गया और उन्हें यूरोप लौटने के लिए मजबूर किया गया, जहाँ अन्तत: इसके कई यात्रियों को नाजियों ने पकड़ लिया और मार डाला। अमरीकी विदेश विभाग की देरी की रणनीति के कारण, यूरोप के फासीवादी शासन के शरणार्थियों के लिए आरक्षित 90 प्रतिशत कोटा स्थान कभी नहीं भरा गया। 1,90,000 यहूदी और अन्य लोग जिन्हें बचाया जा सकता था, उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया। इसके अलावा, पोलिश मृत्यु शिविरों में सामूहिक हत्याओं की बहुत ही विश्वसनीय रिपोर्टों को अमरीकी खुफिया के यूरोपीय प्रमुख और बाद में सीआईए निदेशक एलन डलेस द्वारा महत्वहीन बताकर खारिज कर दिया गया था। संयुक्त राज्य अमरीका और ब्रिटेन ने लगातार ऑशविट्ज की ओर जाने वाली रेल पटरियों पर बमबारी करने से इनकार कर दिया, जबकि उनके पास वहाँ की जा रही सामूहिक हत्याओं के ठोस सबूत थे।(6)
युद्ध के बाद, लगभग 60 लाख यहूदियों का कत्लेआम होने के बाद, यहूदियों के प्रति अमरीकी और ब्रिटिश नीति में बदलाव आना शुरू हो गया। कुछ ही वर्षों में सत्ता के गलियारों में यहूदी राज्य के समर्थन की गूँज सुनाई देने लगी। पूरी दुनिया में क्रान्तियाँ और उपनिवेशवाद–विरोधी विद्रोह उभर रहे थे। चीन में क्रान्ति अच्छी तरह से चल रही थी, दक्षिण पूर्व एशिया सहित एशिया में मुक्ति संघर्ष, और मध्य पूर्व, ईरान और इराक तथा मिस्र और सीरिया में उपनिवेशवाद विरोधी, राष्ट्रवादी सरकारों का उदय, इन तमाम घटनाओं ने ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमरीका के औपनिवेशिक साम्राज्यों को खतरे में डाल दिया। इसी मोड़ पर साम्राज्यवादियों ने फिलिस्तीन में जायोनी राज्य के लिए अपना समर्थन दिया। इसका यहूदी जीवन बचाने से कोई लेना–देना नहीं था, बल्कि यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उस इलाके में साम्राज्यवादी शक्ति के गढ़ के रूप में एक राज्य स्थापित करने के लिए यहूदी जनता की हताशा और यहूदी जायोनी नेताओं की इच्छा का फायदा उठाने की रणनीति थी।
जैसे–जैसे आज अन्तर–साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता तेज हो रही है, खास तौर पर अमरीका तथा रूस और चीन के बीच, हर पक्ष एक दूसरे के खिलाफ सहयोगियों और लाभ को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष कर रहा है, अमरीका इजरायल से चिपक जाएगा और यहूदियों, फिलिस्तीनियों और उस इलाके के अन्य लोगों को अमरीकी साम्राज्य की रक्षा के लिए पीड़ा के नारकीय दौर में घसीट लाएगा। आज जबकि लाखों लोग सत्ता में बैठे जायोनीवादियों की निर्मम बर्बरता पर उचित रूप से क्रोधित और पीड़ित हैं, किसी को भी यह नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए कि यहाँ कुत्ता कौन है और दुम कौन है। अमरीकी हथियारों तथा राजनीतिक और आर्थिक समर्थन के बिना, इजरायली सरकार अपनी नस्लवादी और नरसंहारक नीतियों को लागू नहीं कर सकती थी। जायोनी परियोजना की शुरुआत से ही साम्राज्यवादियों ने इजराइल के समर्थन के लिए अपने जायोनी सहयोगियों के सामने अरब जनता का दमन करने की शर्त रखी। और जायोनीवादी अपने अमरीकी सहयोगियों के समर्थन में मध्य अमरीका सहित अन्य कार्रवाइयों को अंजाम देने के इच्छुक रहे हैं।(7) वर्षों पहले, जायोनीवाद के संस्थापकों में से एक थियोडोर हर्जल ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से अपनी अपील में उपनिवेशवाद के समर्थन में काफी खुले तौर पर सामने आया था, जब उनका समर्थन करते हुए लिखा था–– “और इसलिए मुझे विश्वास करना चाहिए कि यहाँ इंग्लैण्ड में जायोनीवाद का विचार, जो एक औपनिवेशिक विचार है, जिसे इसके वास्तविक और सबसे आधुनिक रूप में आसानी से और जल्दी से समझा जा सकता है।”
क्रिस्टालनाख्त और नरसंहार
1938 के क्रिस्टालनाख्त और आज फिलिस्तीनियों पर इजरायली हमले के बीच इस तुलना का प्रस्ताव करते हुए, कुछ लोगों ने मुझसे कहा है कि पिछले 75 वर्षों में फिलिस्तीनियों ने क्रिस्टालनाख्त जैसी कई कार्रवाइयों को बर्दाश्त किया है। और यह सच है। लेकिन जो चीज इस क्षण को अलग बनाती है, वह है जो 1938 के क्रिस्टालनाख्त को ऐतिहासिक रूप से इतना महत्वपूर्ण और चिन्ताजनक बनाती है–– क्रिस्टालनाख्त अन्तत: सर्वनाश की दिशा में एक बड़ा कदम था। जर्मन यहूदियों पर क्रूरतापूर्वक अत्याचार करके और उन्हें बेदखल करकेय जर्मन लोगों को इस भीषण क्रूरता में झोंककरय यहूदियों के विरुद्ध नस्लवादी प्रचार को तेज करके, नाजियों ने मृत्यु शिविरों का मार्ग प्रशस्त किया जिनका राज कई वर्षों बाद खुला। आज के इजरायली हमले के साथ–साथ फिलिस्तीनियों पर एक शातिर राजनीतिक हमला भी हुआ है जो सम्भावित रूप से नरसंहार का रास्ता खोलता है। यही कारण है कि गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों पर बढ़ते हमलों का विरोध करने के लिए सबसे दृढ़ कार्रवाई की शीघ्र और तत्काल आवश्यकता है।
हमें कभी नहीं भूलना चाहिए
हमें 1930 और 1940 के दशक के दौरान अमरीका और इजराइल के अन्य वर्तमान यूरोपीय सहयोगियों द्वारा निभायी गयी शर्मनाक भूमिका को कभी नहीं भूलना चाहिए जब यहूदी लोगों का भाग्य अधर में लटका हुआ था और जब सभी साम्राज्यवादी शक्तियों ने अपने राष्ट्रीय और साम्राज्यवादी हित के आगे यहूदियों के भाग्य के बारे में किसी भी विचार को दरकिनार कर दिया था। यह इतिहास हमें इस औपनिवेशिक/साम्राज्यवादी व्यवस्था के चरित्र और इसके प्रमुख गॉडफादर, संयुक्त राज्य अमरीका के बारे में बहुत कुछ बताता है। इससे हमें यह पता चलना चाहिए कि उनका असली मकसद न तो लोकतंत्र है और न ही मानवाधिकार। यह पूँजीवादी–साम्राज्यवादी व्यवस्था पूरी मानवता की दुश्मन है–– यहूदियों और फिलिस्तीनियों की दुश्मन है, और व्यापक रूप से दुनियाभर की जनता की दुश्मन है। समस्त मानवता की रुचि इसके खिलाफ एकजुट होने में और साम्राज्यवाद के जानलेवा संकट से मुक्त, एक अलग दुनिया का निर्माण करने में है।
निष्कर्ष के तौर पर
1) इस संकट का कोई भी स्वीकार्य समाधान, शान्ति का कोई रास्ता तब तक हासिल नहीं किया जा सकता, न ही इसे स्वीकार किया जा सकता, जब तक कि यह यहूदियों और फिलिस्तीनियों के पूर्ण अधिकारों को प्राप्त करने पर आधारित न हो।
2) मैं जो कह रहा हूँ उसका यह अर्थ कतई नहीं लगाया जाना चाहिए कि यहूदी महज साम्राज्यवाद की “कठपुतली” थे। लेकिन अमरीकी साम्राज्यवाद की प्रमुख सम्पत्ति और सैन्य ताकत ने इसे लाभ पहुँचाया है और अमरीकी साम्राज्यवाद ने अपने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सबसे विचित्र क्रूरतापूर्ण और निन्दनीय चालों में खुद को सक्षम साबित कर दिया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अरब लोगों पर जायोनी उत्पीड़न यहूदियों की इच्छा का परिणाम नहीं है, बल्कि यहूदियों के एक वर्ग की इच्छा का परिणाम है, जो इजरायली राज्य को साम्राज्यवाद की जरूरतों के अनुसार ढालने के लिए नस्लवादी विचारधारा को अपनाते हैं। कई यहूदियों ने इसका विरोध किया और अब भी करते हैं। यहूदी–विरोधी यहूदियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन भारी शक्ति साम्राज्यवादी देशों के पास है। उनसे उनके अपराधों का हिसाब माँगा जाना चाहिए! उन्हें और इजराइल में उनके नेतन्याहू–परस्त साझेदारों को फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ और अधिक अपराध करने से रोका जाना चाहिए।
3– मानवीय समानता और सहयोग पर केंद्रित एक नयी, न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के लिए संघर्ष–– जायोनीवाद या हमास का संकीर्ण, कुरूप, क्रूर साम्प्रदायिक पागलपन नहीं–– यही यहूदियों, फिलिस्तीनियों और पूरी मानवता के लिए जरूरी कार्यभार है।
फिर कभी किसी के साथ ऐसा न हो!
टिप्पणियाँ
1– मार्च 1938 में नाजी न्याय मंत्री ने फैसला सुनाया कि यौन अपराधों के दोषी सभी यहूदियों को जेल से रिहा होने पर एक यातना शिविर में भेज दिया जाएगा। मेरे पिता के चचेरे भाई, मैक्स होल्जर को 1938 में ऐसे यौन अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था और जर्मन जेल में पाँच साल की सजा सुनायी गयी थी। 1943 में रिहा होने पर उन्हें ऑशविट्ज भेज दिया गया जहाँ टाइफाइड से उनकी मृत्यु हो गयी।
2– स्टीफन जून्स द्वारा लिखित अमरीका’स हिडेन रोल इन हमास’ राइज इन पावर देखें।
3– पीस, ए फॉरगॉटेन वर्ड, रिन्यू इट्स क्लेम इन द होली लैण्ड, न्यू यार्क टाइम्स, 22 अक्टूबर, 2023।
4– हैरी हैंकिन के साथ साक्षात्कार, होलोकॉस्ट मौखिक इतिहास परियोजनाय अक्टूबर 17, 1991, सैन फ्रांसिस्को, सीए।
5– यूसी बर्कले लॉ स्कूल में एलन पप्पे का भाषण, 19 अक्टूबर, 2023। पप्पे के अनुसार 1967 के बाद से दस लाख फिलिस्तीनियों को किसी न किसी समय इजरायल में कैद करके रखा गया है, जो वास्तव में चैंका देने वाली संख्या है!
6– टैलबोट, डेविड द डेविल्स चेसबोर्ड : एलन डलेस, सीआईए, एन्ड द राइज ऑफ अमरीकाज सीक्रेट गवर्नमेण्ट (किण्डल लोकेशंस 1056–1058)। हार्परकोलिन्स। किण्डल संस्करण।
7– ग्वाटेमाला नरसंहार में इजराइल की भूमिका देखें, मिडिल ईस्ट मॉनिटर, 5 अक्टूबर, 2015।
(साभार : मन्थली रिव्यू, अनुवाद–– दिगम्बर)
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