अपने लोगों के लिए
अफ्रीकी–अमरीकी महिला उपन्यासकार और कवि मार्गरेट वाकर (1915–1998) की राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कविता––
अपने उन लोगों के लिए
जो गाते हैं हर कहीं अपनी दासता के गीत
निरन्तर : अपने शोकगीत और पारम्परिक गीत
अपने विषाद गीत और उत्सव–गीत,
जो दोहराते आ रहे हैं प्रार्थना के गीत हर रात
किसी अज्ञात ईश्वर के प्रति,
घुटनों पर बैठकर आर्त्त भाव से
किसी अदृश्य शक्ति के सामनेय
अपने उन लोगों के लिए
जो देते आ रहे हैं उधार अपनी सामर्थ्य वर्षों से,
बीते वर्षों और हाल के वर्षों और सम्भावित वर्षों को भी,
धोते, इस्तरी करते, खाना पकाते, झाड़ू–पोंछा करते
सिलाई, मरम्मत करते, फावड़ा चलाते
जुताई, खुदाई, रोपनी, छँटाई करते, पैबन्द लगाते
बोझा खींचते हुए भी जो न कमा पाते, न चैन पाते हैं
न जानते और न ही कुछ समझ पाते हैंय
बचपन में अलबामा की
मिट्टी और धूल और रेत के अपने जोड़ीदारों के लिए
आँगन के खेल–कूद बपतिस्मा और धर्माेपदेश और चिकित्सक
और जेल और सैनिक और स्कूल और ममा और खाना
और नाट्यशाला और संगीत समारोह और दुकान और बाल
और मिस चूम्बी एंड कम्पनी के लिएय
तनाव और कौतूहल से भरे उन वर्षों के लिए
जब हम दाखिल हुए स्कूल में पढ़ाई के लिए
क्यों के कारणों और उत्तरों और कौन–से लोग
और कौन–सी जगह और कौन–से दिन को
जानने के लिए, उन कड़वे दिनों को याद करते हुए
जब हमें पहली बार मालूम हुआ कि हम
अश्वेत और गरीब और तुच्छ और भिन्न हैं
और कोई भी हमारी परवाह नहीं करता
और किसी को हम पर अचम्भा नहीं होता
और कोई भी समझता ही नहीं हमेंय
उन लड़कों और लड़कियों के लिए
जो इन सबके बावजूद भी पलते रहे बढ़ते रहे
आदमी और औरत बनने के लिए
ताकि हँसें और नाचें और गाएँ और खेलें और
कर सकें सेवन शराब और धर्म और सफलता का,
कर सकें शादी अपने जोड़ीदारों से और
पैदा करें बच्चे और मर जायें एक दिन
उपभोग और एनीमिया और लिंचिंग सेय
अपने उन लोगों के लिए जो कसमसाते हैं
भीड़भाड़ में शिकागो की सड़कों पर और
लेनॉक्स एवेन्यू में और न्यू ओरलीन्स की
परकोटेदार गलियों में, उन गुमशुदा
वंचित बेदखल और मगन लोगों के लिए
जिनसे भरे हैं शराबखाने और चायखाने और
अन्य लोग जो मोहताज हैं रोटी और जूतों
और दूध और जमीन के टुकड़े और पैसे और
हर उस चीज के लिए जिसे कहा जा सके अपनाय
अपने उन लोगों के लिए,
जो बाँटते फिरते हैं खुशियाँ बेपरवाह होकर,
नष्ट कर देते हैं अपना समय काहिली में,
सोते हैं भूखे–प्यासे, बोझा ढोते चिल्लाते हैं,
पीते हैं शराब नाउम्मीदी में,
जो बँधे हुए, जकड़े और उलझे हैं हमारे ही बीच के
उन अदृश्य मनुष्यों की बेड़ियों में
हमारे ही कंधों पर होकर सवार जो
बनते हैं सर्वज्ञानी और हँसते हैंय
अपने उन लोगों के लिए जो
करते हैं गलतियाँ और टटोलते
और तड़फड़ाते हैं अंधेरों में
गिरजाघरों और स्कूलों और क्लबों
और समितियों, संस्थाओं और परिषदों
और सभाओं और सम्मेलनों के,
जो हैं दुखी और क्षुब्ध और ठगी के शिकार
और जिन्हें निगल लिया है धनपशुओं
और प्रभुता के भुक्खड़ जोंकों ने,
जिन्हें लूटा जा रहा है
राज्य के हाथों प्रत्यक्ष बल–प्रयोग से
और छला जा रहा है झूठे
भविष्यवक्ताओं और धार्मिक मतवादियों द्वाराय
अपने उन लोगों के लिए
जो जुटे हैं इकट्ठा हैं प्रयासरत हैं
एक ऐसे बेहतर मार्ग के निर्माण के लिए
जो कि बाहर निकाल सके उन्हें
भ्रमजाल से, पाखंड और गलतफहमी से,
जो प्रयासरत हैं एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए
जो जगह दे सके तमाम लोगों, तमाम शक्लों
तमाम आदमों और ईवों
और उनकी बेहिसाब पीढ़ियों को भीय
एक नयी पृथ्वी का उदय होने दो।
पैदा होने दो एक और दुनिया को।
एक रक्तिम शान्ति को
अंकित हो जाने दो आसमान पर।
साहस से भरी अगली पीढ़ी को आने दो आगे,
होने दो संवर्द्धन एक ऐसी आजादी का
भरा हो अनुराग जिसमें जन–जन के लिए।
राहत से भरी हुई सुन्दरता को
और उस शक्ति को जो निर्णयकारी हो
हो जाने दो स्पन्दित हमारी आत्माओं में
और खून में हमारे।
आओ कि अब लिखे जायें गीत प्रयाण के,
जिनमें तिरोहित हो जायें शोक के गीत।
अब हो जाना चाहिए उद्भव तत्क्षण
इनसानों की एक प्रजाति का
और सम्भाल लेना चाहिए जिम्मा शासन का उसे।
(अंग्रेजी से अनुवाद–– राजेश चन्द्र)
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