जून 2023, अंक 43 में प्रकाशित

106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय के प्रति बिहार सरकार का शत्रुवत व्यवहार –– पुष्पराज

बिहार की राजधानी पटना में 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय को नष्ट कर एक हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से एक नूतन संग्रहालय स्थापित किया गया है। इस नूतन संग्रहालय को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताते हैं। एक राजकीय संग्रहालय को उजाड़कर सोसायटी एक्ट के तहत एक नूतन संग्रहालय को स्थापित करने की दरकार क्यों हुई? क्या देश के इतिहासकारों या इतिहास के अध्येताओं ने मुख्यमंत्री से एक नूतन संग्रहालय की माँग की थी?

क्या मुख्यमंत्री अपने प्रदेश में स्थापित एक अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के संग्रहालय के पुरातत्वों को एक एनजीओ के द्वारा संचालित समिति को सौंपकर एक संग्रहालय का इतिहास खत्म करने का अधिकार रखते हैं? क्या बिहार के मुख्यमंत्री खुद इतिहास और पुरातत्व के ज्ञाता हैं कि वे अपनी मर्जी से शताब्दी प्राचीन संग्रहालय का अस्तित्व मिटा कर नया इतिहास रचना चाहते हैं?

 प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर डी–एन झा ने मृत्युशैय्या से हम अनजान को फोन कर बताया था कि अगर पटना संग्रहालय नहीं होता तो मैं इतिहासकार नहीं होता। उन्होंने कहा था कि मैंने जीवन की पहली नौकरी पटना संग्रहालय की मातृ संस्था ‘बिहार रिसर्च सोसायटी’ में की थी और इतिहास के उसी ज्ञान भंडार ने मुझे वैश्विक इतिहास दृष्टि दी थी। वे पटना संग्रहालय और बिहार रिसर्च सोसायटी की अकाल मौत से तड़प उठे थे।

डॉ– सच्चिदानन्द सिन्हा जिन्हें बिहार सरकार सरकारी पत्राचार में ‘बिहार निर्माता’ पुकारती है। काशी प्रसाद जायसवाल जिन्होंने लन्दन, कलकत्ता की रंगीनी, चमक छोड़कर बिहार में पाँव रखकर दुनिया को नयी इतिहास दृष्टि दी। राहुल सांकृत्यायन जिन्होंने दुनिया के प्रथम विश्वविद्यालय ‘नालन्दा विश्वविद्यालय’ में सृजित लुप्त भारतीय ज्ञान को खोजने में दो दशक की कठोर साधना की और बिहार को अपना प्रदेश मानकर उस ज्ञान भंडार को ब्रिटिश हुक्मरानों के हाथों लन्दन भेजने के बजाय, बिहार में सुरक्षित रखने का निर्णय लिया था।

इन 3 महान विभूतियों के सामूहिक उद्यम का खूबसूरत निर्माण है पटना संग्रहालय। बिहार की जनता का “जादूधर”। जिस जादूधर का जादू ढूँढ़ते हुए प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी नरभसा गये थे, उस जादूधर के जादू को एक मुख्यमंत्री निगल जाएगा। कितना आश्चर्यजनक है कि इस जादूघर के जादू को लूटकर हुक्मरान अपने ड्रीम प्रोजेक्ट का कीर्तिमान कायम कर रहे हैं।

2017 में पटना संग्रहालय के शताब्दी वर्ष में प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर, इरफान हबीब पूर्व राज्यपाल (दिवंगत) सिद्धेश्वर प्रसाद के समर्थन से पटना संग्रहालय बचाओ समिति का गठन कर पटना संग्रहालय को बचाने का अभियान शुरू किया गया था। पटना स्थित कला एवं शिल्प महाविद्यालय के आर्टिस्ट स्टूडेण्ट और कवियों के साथ पटना संग्रहालय के समक्ष अलग–अलग दिवस दो बार धरना आयोजित किया गया था। तब उस धरने को द हिन्दू ने महत्व के साथ प्रकाशित किया था। पटना संग्रहालय बचाओ समिति की ओर से बिहार के मुख्यमंत्री और भारत सरकार के संस्कृति मंत्री को पत्र भेजकर पटना संग्रहालय से पुरातत्वों के स्थानान्तरण को रोकने की माँग की गयी थी। मुख्यमंत्री ने पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की, पर तत्कालीन केन्द्रीय संस्कृति मंत्री डॉ–महेश शर्मा ने पत्र को गम्भीरता से लिया था। जल्दी ही बिहार सरकार का भाजपा के साथ गठबन्धन हो गया। प्रधानमंत्री ने पटना आगमन पर अपनी आँखों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सपनों के संग्रहालय का अवलोकन क्या किया, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने पुरातत्वों के गैर–कानूनी स्थानान्तरण के खिलाफ संस्कृति मंत्रालय की जाँच पर रोक लगा दी।

विनाश और विकास की वैज्ञानिक दृष्टि से, समाजशास्त्रीय व्याख्या से जो अवगत हैं, वे विनाश की शर्त पर किसी विकास के पक्षधर नहीं हो सकते हैं। पटना संग्रहालय की कब्र पर स्थापित बिहार संग्रहालय को बिहार की शान कहना शर्मनाक है। पटना संग्रहालय बचाओ अभियान ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शान को प्रदेश की शान मानने से इनकार किया है।

 पटना संग्रहालय बचाओ अभियान को एक आंशिक सफलता सरकार की उस घोषणा से मिली थी कि 2017 में पटना संग्रहालय के सबसे बड़े दानदाता राहुल सांकृत्यायन की पुत्री जया सांकृत्यायन के द्वारा मुख्यमंत्री को प्रेषित पत्र के बाद सरकार ने राहुल सांकृत्यायन संग्रह को पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखने का फैसला लिया था।

2023 के मार्च के प्रथम सप्ताह में बुरी खबर मिली कि बिहार सरकार ने 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय का स्वामित्व सोसायटी एक्ट के द्वारा संचालित एनजीओ बिहार संग्रहालय समिति को सौंप दिया है। 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय को एक अवकाश प्राप्त नौकरशाह के द्वारा संचालित बिहार संग्रहालय समिति नामक एनजीओ को सुपर्द करना जुल्म है। बिहार सरकार की यह कार्रवाई इतिहास, पुरातत्व की राष्ट्रीय सम्पदा के लिए खतरनाक है।

 मुख्यमंत्री का इतिहास प्रेम देखिए कि पटना संग्रहालय से अधिकतम पुरातत्वों के स्थानान्तरण के बाद मुख्यमंत्री ने पटना संग्रहालय के पुनरुद्धार की घोषणा की। संग्रहालय की पहचान जिन पुरातत्वों से थी, उन पुरातत्वों को संग्रहालय से जबरन हटाकर खोखला हुए संग्रहालय भवन को सुरंग से जोड़ने का क्या मतलब है? संग्रहालय की गरिमा को खत्म करने वाले मुख्यमंत्री सुरंग बनाकर संग्रहालय के उद्धार की घोषणा कर रहे हैं! सुरंग का प्रवेश मार्ग और स्वचालित सीढ़ी बनाने के लिए पटना की सबसे खूबसूरत ईमारत (हेरिटेज बिल्डिंग) पटना संग्रहालय भवन के पिछले हिस्से को तोड़ने की योजना है।

 12 मार्च 2023 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर में पटना संग्रहालय के अपर निदेशक के हवाले से खबर छपी है कि पटना संग्रहालय के मेन बिल्डिंग को रिनोवेट कर यू आकार दिया जाएगा। यह खबर चिन्ताजनक है। इंडो–सारा–सैनी शैली से निर्मित पटना की सबसे खूबसूरत इमारत जिसके सौन्दर्य से अविभूत होकर लोग उसे “जादूधर” के नाम से पुकारते हों। उस जादूघर को इंडो–सारा–सैनी शैली के स्थापत्य से अनभिज्ञ बिहार सरकार के भवन विभाग के इंजीनियरों की निगरानी में रिनोवेशन उसके सौन्दर्य को नष्ट करेगा। इस जादूघर के सौन्दर्य और गरिमा को बचाना समाज और राष्ट्र की जिम्मेवारी है।

हम दावे के साथ कह सकते हैं कि पटना संग्रहालय से बिहार संग्रहालय को जोड़ने के लिए सुरंग बनाने का निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिवालियापन का प्रतीक है। गरीब प्रदेश में 373 करोड़ की लागत से बेवजह सुरंग बनाने की योजना जनता के पैसों की बर्बादी है। इस सुरंग के निर्माण से इतिहास, पुरातत्व और संग्रहालय का रत्तीभर भी विकास सम्भव नहीं है। इस सुरंग निर्माण योजना को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए।

महात्मा बुद्ध के अस्थि कलश, 20 करोड़ वर्ष प्राचीन 53 फीट लम्बा देश का सबसे बड़ा फॉसिल्स ट्री, प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय की वह लुप्त ज्ञान सम्पदा जो राहुल सांकृत्यायन के द्वारा तिब्बत से लायी गयी, 6 हजार से ज्यादा दुर्लभ पांडुलिपियों में सुरक्षित है। मोहनजोदड़ो के पुरातत्वों, सबसे बड़े पुरामुद्रा बैंक, यक्षिणी और बुद्धिस्ट पुरातत्वों की वजह से पटना संग्रहालय दुनिया में विशिष्ट और चर्चित रहा है।

ज्ञात हो कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन पटना संग्रहालय के सबसे बड़े दानदाता हैं और दानदाता की पुत्री जया सांकृत्यायन ने पटना संग्रहालय की रक्षा के लिए 2017 और 2023 में अब तक मुख्यमंत्री के पास दो बार पत्र भेजे हैं।

7 मार्च 2023 को बिहार सरकार के द्वारा जारी अधिसूचना में पटना संग्रहालय के सबसे बड़े दानदाता महापंडित राहुल सांकृत्यायन से प्राप्त पुरातत्वों के बारे में किसी तरह का जिक्र न करना और मुख्यमंत्री के पास दानदाता की पुत्री के द्वारा प्रेषित दो पत्रों का कोई जवाब नहीं देना, दानदाता परिवार से मुख्यमंत्री की संवादहीनता से महापंडित से प्राप्त पुरातत्वों के सन्दर्भ में सरकार की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है।

पटना संग्रहालय के अधिग्रहण के बावजूद कला संस्कृति विभाग के सचिव के द्वारा मीडिया से प्रचारित किया गया कि राहुल सांकृत्यायन कलेक्शन सुरक्षित है, सन्देह उपस्थित करता है। गैर कानूनी तरीके से 106 वर्षीय राजकीय संग्रहालय का स्वामित्व एनजीओ के हाथों में सौंपने के बाद राहुल सांकृत्यायन कलेक्शन का भविष्य क्या होगा? बिहार संग्रहालय समिति के महानिदेशक (मुख्यमंत्री के सलाहकार और पूर्व मुख्य सचिव) अंजनी कुमार सिंह क्या बौद्ध दर्शन, पालि, तिब्बती के ज्ञानी हैं कि उनकी ज्ञान आभा से महापण्डित कलेक्शन का उद्धार सम्भव है। बिहार की हिन्दी, अंग्रेजी मीडिया ने कैबिनेट का दर्जा प्राप्त मुख्यमंत्री के सलाहकार अंजनी कुमार सिंह को इतिहास और पुरातत्व के बड़े विशेषज्ञ की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश की है। यह एक किस्म का भ्रामक प्रचार है। पटना संग्रहालय के उजाड़ने को जायज बताने वाली बिहार की मीडिया इतिहास के शत्रुओं के पक्ष में झूठ और अन्धविश्वास को बल प्रदान कर रही है। आखिर बिहार के पत्रकार बिहार की सबसे बड़ी ऐतिहासिक विरासत को उजाड़ने वाले नौकरशाह अंजनी कुमार सिंह को किस तरह जगदीश चन्द्र माथुर साबित कर पाएँगे।

बिहार के मुख्यमंत्री ने अगर राजकीय खर्च से एक संग्रहालय स्थापित करने का सपना ही देखा था तो उस संग्रहालय की स्थापना सोसायटी एक्ट से क्यों की गयी? जनता के वोट से चुनी गयी सरकार लोकतंत्र को क्यों एनजीओ तंत्र में परिणत करना चाहती है? एक ऐसा एनजीओ जिसकी स्थापना काल से लेकर अब तक रग–रग में अंजनी कुमार सिंह नामक नौकरशाह शामिल हो। संग्रहालय की स्थापना के लिए इतिहास, पुरातत्व का ज्ञान आवश्यक नहीं है। आवश्यक यह है कि 81 बैच के आईएएस अंजनी कुमार सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे अन्तरंग दोस्त हैं। सब जानते हैं कि अंजनी कुमार सिंह का नाम चारा घोटाले की सीबीआई जाँच के दायरे में शामिल है।

एनजीओ को बनाया कॉरपोरेट

10 रुपये के टिकट पर यक्षिणी को पटना संग्रहालय में देखने वाली बिहार की गरीब जनता 100 रुपये के टिकट पर यक्षिणी से मिलने बिहार संग्रहालय क्यों जाएगी? जाहिर है कि यक्षिणी को 10 गुणा अधिक कीमत पर दिखाने का व्यापार करने वाले एनजीओ बिहार संग्रहालय समिति को अंजनी सिंह ने अपने बेहतर व्यापार नीति से कॉरपोरेट में तब्दील कर दिया है। देश को यह जानना जरूरी है कि प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इतिहास को नष्ट करने के मामले में नरेन्द्र दामोदर मोदी से कितना पीछे हैं?

महापंडित राहुल सांकृत्यायन का अनादर

 बिहार सरकार अगर महापंडित राहुल सांकृत्यायन की पुत्री के पत्रों की उपेक्षा कर रही है तो मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या दानदाता परिवार पटना संग्रहालय में स्थित सांकृत्यायन कलेक्शन के बेहतर उपयोग के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार करे। जाहिर है कि दानदाता ने जिस संग्रहालय को दान दिया। उस संग्रहालय को निजी हाथों में सौंपने के बाद दानदाता परिवार के पास दान सामग्री वापस करने का अधिकार प्राप्त है। दानदाता परिवार और महापंडित राहुल सांकृत्यायन के दुनिया भर के अध्येता पटना संग्रहालय के निजीकरण के बाद राहुल सांकृत्यायन संग्रह सहित तमाम स्थानान्तरित पुरातत्वों की सुरक्षा के प्रति चिंतित और परेशान हैं।

दानदाता सांकृत्यायन परिवार की ओर से आपत्ति दर्ज कराने के बावजूद पटना संग्रहालय का स्वामित्व कॉरपोरेट सदृश एनजीओ को सौंपना अलोकतान्त्रिक, अवैधानिक और पूर्णत: तानाशाही पूर्ण कदम है। ब्रिटिश शासन में जेल से रिहा होते ही राहुल सांकृत्यायन भारत के लुप्त ज्ञान सम्पदा की खोज में तिब्बत की यात्रा में निकल जाते थे। ब्रिटिश शासन की कड़ी निगरानी से छुपकर 4 साहसिक, तकलीफदेह यात्राओं में राहुल सांकृत्यायन काष्ठ और तालपत्रों में दर्ज भारतीय ज्ञान को बहुत मुश्किल से साथ लाने में सफल हुए थे। ज्ञान के खोज की वह यात्रा राहुल सांकृत्यायन को विश्व के दूसरे यात्रियों से अलग स्थापित करती है। इस यात्रा की महत्ता पर इतिहास–विज्ञान की विश्व की शिखर शोध संस्थाओं में शोध हो रहे हैं।

पटना संग्रहालय के स्वामित्व का अधिग्रहण क्यों?

पटना संग्रहालय का स्वामित्व स्थानान्तरण के साथ गजट में इस बात का जिक्र है कि अन्तरराष्ट्रीय मानक से पटना संग्रहालय को व्यवस्थित करने के लिए पटना संग्रहालय को बिहार संग्रहालय समिति नामक एनजीओ के हाथों सुपुर्द किया जा रहा है। इस गजट में इस बात का जिक्र नहीं है कि किस कानून के तहत 106 वर्ष प्राचीन राजकीय संग्रहालय का स्वामित्व एनजीओ को सौंपा गया। जाहिर है कि देश में ऐसा कोई कानून उपलब्ध ही नहीं है, जिससे एक राजकीय संग्रहालय का स्वामित्व एक एनजीओ को सौंप दिया जाये।

जिस संग्रहालय की संस्थापक बिहार रिसर्च सोसायटी के इतिहास शोध और जर्नल को वैश्विक स्थान प्राप्त हो, उस प्रसिद्ध इतिहास शोध संस्थान से सम्पन्न पटना संग्रहालय को क्षेत्रीय मान कर उसे अन्तरराष्ट्रीय मानक प्रदान करने की घोषणा सरकार के बौद्धिक पिछड़ापन को प्रदर्शित करता है। पटना संग्रहालय की स्थापना काल के क्यूरेटरों ने अविभाजित भारत मे चप्पे–चप्पे से ढूँढ कर पुरातत्वों का संग्रह किया था। लेकिन बिहार संग्रहालय के कोई क्यूरेटर अब तक बिहार संग्रहालय के लिए एक भी पुरातत्व संग्रहित करने में सफल नहीं हो पाये। पटना संग्रहालय के क्यूरेटरों के द्वारा संग्रहित पुरातत्वों को अवैधानिक तरीके से बिहार संग्रहालय में प्रदर्शित करना अगर भारतीय पुरातत्व संरक्षण कानून का उलंघन है तो संग्रहालयों के अन्तरराष्ट्रीय मानक को भी कलंकित करता है।

बिहार सरकार पटना संग्रहालय का स्वामी नहीं है

 ब्रिटिश शासन काल में स्थापित पटना संग्रहालय का बिहार सरकार केयर टेकर है, स्वामी नहीं है। बिहार सरकार जिस संग्रहालय की संस्थापक नहीं हो, जिन पुरातत्वों का स्वामित्व बिहार सरकार के पास नहीं हो, उस संग्रहालय के पुरातत्वों को पहले एनजीओ को सौंपना, फिर उस ऐतिहासिक संग्रहालय के स्वामित्व को दूसरे हाथों में सौंपना बिहार सरकार की अकर्मण्यता, तानाशाही और इतिहास विरोधी कार्रवाई है।

संग्रह या पुरावशेष संविधान के समवर्ती सूची का विषय है। पुरावशेष और कलानिधि संरक्षण अधिनियम के अनुसार किसी भी पुरावशेष के स्टेटस में किसी भी प्रकार का परिवर्तन भारत सरकार के सक्षम प्राधिकार की अनुमति के बिना असंवैधानिक है। इसी तरह किसी भी पुरावशेष का स्वामित्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारत सरकार का है। पटना संग्रहालय को प्राप्त 80 प्रतिशत संग्रह ऋण या उपहार स्वरूप या सशर्त उपहार के रूप में प्राप्त है। ऋण के रूप में प्राप्त सामग्री को दोबारा किसी को ऋण के रूप में देना नियमानुकूल नहीं है, वह भी मूल स्वामी की अनुमति के बिना।

व्यक्ति के रूप में पटना संग्रहालय को जिस एक व्यक्ति से 6 हजार से ज्यादा पुरातत्व और कलानिधि प्राप्त हुए, वह दानदाता राहुल सांकृत्यायन हैं। 2007 में बिहार रिसर्च सोसायटी का अधिग्रहण करते हुए नीतीश कुमार की सरकार ने विधि विभाग से राय लिये बिना बिहार रिसर्च सोसायटी को राहुल सांकृत्यायन की तिब्बत यात्रा से प्राप्त पांडुलिपियों को दानदाता परिवार से सहमति, स्वीकृति के बिना पटना संग्रहालय को सौंप दिया था। जाहिर है कि बिहार के मुख्यमंत्री अपने जिन नौकरशाह को कबीना दर्जा देकर सलाहकार बनाये हुए हैं, उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारत सरकार और राहुल सांकृत्यायन से दान में प्राप्त पुरातत्वों के स्वामित्व और उनके साथ जुड़े कानूनी मसलों से मुख्यमंत्री को अनभिज्ञ रखा।

पटना संग्रहालय के प्रति बिहार सरकार का शत्रुवत रवैया बिहार निर्माता सच्चिदानन्द सिन्हा, महान इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल, महापंडित राहुल सांकृत्यायन के त्याग, समर्पण और उनकी विरासत का घोर अपमान है। पटना संग्रहालय परिसर में नव–निर्मित इमारतों से मुख्य संग्रहालय भवन के सौन्दर्य की समीक्षा के लिए भारतीय स्थापत्यकला और संग्रहालय विज्ञान से जुड़े उच्च स्तरीय संस्थान के विशेषज्ञ समूह की निगरानी जरूरी है। पटना संग्रहालय से स्थानान्तरित हजारों पुरातत्वों को बिहार संग्रहालय से तत्काल पटना संग्रहालय में पुनर्वसित किया जाना चाहिए। ज्ञात हो कि ब्रिटिश काल के दौरान पटना संग्रहालय में नेशनल क्वाइन कमिटी गठित कर 28 हजार क्वाइन संग्रहित किया गया था। पटना संग्रहालय के सभी क्वाइन गैर–कानूनी तरीके से बिहार संग्रहालय में स्थानान्तरित कर दिये गये हैं।

यह एसओपी केवल धोखा है

भारत सरकार के महालेखाकार नियंत्रक (कैग) ने पटना संग्रहालय के पुरातत्वों की सुरक्षा के मसले पर 2014–15 में गम्भीर आपत्ति जतायी थी। कैग की उक्त रिपोर्ट में एक्सेशन रजिस्टर गायब होने और बहुत सारे पुरातत्वों का भौतिक सत्यापन न होने का जिक्र किया था। कैग की रिपोर्ट के आलोक में सकारात्मक कार्रवाई के बजाय, पटना संग्रहालय से देश के सबसे बड़े क्वाइन बैंक को खाली कर देने और पुरातत्व संरक्षण कानून की अवहेलना करते हुए एसओपी (स्टैण्डर्ड ओपरेटिंग प्रोसीजर) के आधार पर यक्षिणी सहित हजारों पुरातत्वों को सोसायटी एक्ट से संचालित बिहार संग्रहालय में भेजने से इन दुर्लभ पुरातत्वों की सुरक्षा पर खतरा बढ़ गया है। एसओपी के आधार पर एक शताब्दी प्राचीन संग्रहालय के लगभग 60 हजार पुरातत्वों को स्थानान्तरण की सजा क्यों दी जा रही है?

भारतीय सौन्दर्य शास्त्र और मूर्ति कला में सबसे खूबसूरत प्रतिमा दीदारगंज यक्षिणी के एक अन्तरराष्ट्रीय पुरातत्व प्रदर्शनी में यूरोप से वापसी के बाद नेशनल म्यूजियम दिल्ली में रखा गया था, लेकिन संसद में बहस के बाद पटना संग्रहालय को यक्षिणी का अपना घर बताते हुए मुआवजा सहित केन्द्र सरकार ने यक्षिणी को पटना संग्रहालय में पुनर्वसित किया था। अगर 1989 में केन्द्र सरकार को नेशनल म्यूजियम से यक्षिणी को मुआवजा के साथ पटना संग्रहालय भेजना पड़ा तो यक्षिणी सहित तमाम पुरातत्वों का राज्य पोषित स्थानान्तरण इतना सहज कैसे हो गया। गृह मंत्रालय, सीबीआई और उच्च स्तरीय निगरानी में बिहार संग्रहालय में स्थित पुरातत्वों को अपने कब्जे में ले और अगर किसी पुरातत्व, किसी क्वाइन में हेराफेरी हुई है तो दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाये।

पटना संग्रहालय बनाम राजनीतिक दलों की भूमिका और मुख्यमंत्री परस्त पत्रकारिता

पटना संग्रहालय को बचाने के लिए 2017 में मुख्यमंत्री को प्रेषित राहुल सांकृत्यायन की पुत्री जया सांकृत्यायन के पत्र को देश के प्रमुख अंग्रेजी अखबारों और बिहार के सभी हिन्दी अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। 2017 में द हिन्दू, एशियन एज, द वायर ने ‘पटना संग्रहालय बचाओ अभियान’ को विशेष तवज्जो दिया था। इस साल 2023 में जब जया सांकृत्यायन ने मुख्यमंत्री, उप–मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य सचिव को अलग–अलग पत्र भेजा तो बिहार के अखबारों ने ज्यादा महत्व नहीं दिया। टेलीग्राफ ने जया सांकृत्यायन के पत्र को प्रमुखता से प्रकाशित किया, लेकिन द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, आउटलुक ने इस बार अपनी कोई भूमिका नहीं निभायी। मुख्यमंत्री के समर्थन में सभी अंग्रेजी अखबारों के प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली। जया सांकृत्यायन के पत्र की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया ने देहरादून से प्रकाशित की, लेकिन पटना संस्करण के प्रमुख ने चुप्पी रखी।

जया सांकृत्यायन के पत्र को निष्प्रभावी करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री से कृतज्ञ एक ब्रांड चैनल पत्रकार ने दिल्ली से पटना आकर बिहार संग्रहालय के पक्ष में प्रशस्ति जारी किया। “अखबार नहीं आन्दोलन” की घोषणा के साथ पत्रकारिता करने वाले बिहार के एक दैनिक ने बिहार संग्रहालय के प्रमुख अंजनी कुमार सिंह को बिहार के उद्धारक के रूप में प्रस्तुत किया।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने अखबारों में बयान जारी कर पटना संग्रहालय के स्वामित्व को एनजीओ को सौंपने के पीछे तस्करी और निजी व्यापार की सम्भावना प्रकट की। भाकपा माले, भाकपा, माकपा ने पटना संग्रहालय को बचाने के पक्ष में कोई भूमिका लेने से इनकार कर दिया। वाम पार्टियों ने चुनावी तालमेल को प्राथमिकता देने की वजह से पटना संग्रहालय को बचाने के पक्ष में संघर्ष करने से इनकार कर दिया। बिहार में सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा, माले के राज्य सचिव से कहा गया कि पटना संग्रहालय को बचाने का मतलब मुख्यमंत्री को गिराना नहीं है। वाम दलों के मौन का अनुसरण करते हुए सभी लेखक संगठनों ने चुप्पी कायम रखी। उम्मीद है कि इतिहास की रक्षा के लिए देश जागेगा और सब कुछ लुट जाने से पहले लोग पटना संग्रहालय को बचाने के लिए आगे आयेंगे। 

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