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सामाजिक-सांस्कृतिक

एक आधुनिक कहानी एकलव्य की

–– सुन्दर सरुक्कई इन दिनों एक शिक्षक होना बहुत मुश्किल है। संस्थानों का विध्वंस, जो इस सरकार की प्रमुख चिन्ता प्रतीत होती है, उसकी शुरुआत शिक्षा से ही हुई। अस्थायी भर्ती, आरक्षण पर सवाल उठाने तथा भय और... आगे पढ़ें


दिल्ली की सत्ता प्रायोजित हिंसा : नये तथ्यों की रोशनी में

अब तक सामने आये तथ्यों से यह साफ हो चुका है कि फरवरी के अन्तिम सप्ताह में हुई हिंसा सत्ता द्वारा मुख्य रूप से केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा थी। दिल्ली विधानसभा चुनावा के समय से ही भाजपा... आगे पढ़ें


हमारा जार्ज फ्लायड कहाँ है?

हमारा जार्ज फ्लायड कहाँ है?

–– सुहास पालशीकर क्या भारत के सार्वजनिक जीवन में भी कोई जार्ज फ्लायड जैसी परिघटना होगी? निश्चय ही, यह महज अन्याय की एक घटना के खिलाफ फूट पड़ने वाले आक्रोश तक की ही बात नहीं है बल्कि एक... आगे पढ़ें


राजनीतिक अर्थशास्त्र

घिसटती अर्थव्यवस्था की गाड़ी और बढ़ती बेरोजगारी

घिसटती अर्थव्यवस्था की गाड़ी और बढ़ती बेरोजगारी

पूरी दुनिया में आर्थिक महामन्दी की धमक सुनाई दे रही है। इसे लेकर अर्थशास्त्री लगातार चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन सरकारें मन्दी को स्वीकार करने या मन्दी दूर करने के लिए अपनी लुटेरी व्यवस्था में बदलाव करने के... आगे पढ़ें


राजनीति

लोकतंत्र की हत्या के बीच तानाशाही सत्ता का उल्लास

देश में निर्दोष आन्दोलनकारियों पर सरकारी दमन की खबरें अखबारों की सुर्खियाँ बन गयी हैं। विरोध की उनकी आवाज को खामोश करने के लिए पुलिस उन्हें प्रताड़ित कर रही है और झूठे केस में फँसाकर जेल मे बन्द... आगे पढ़ें


साहित्य

मीर तकी मीर : ‘पर मुझे गुफ्तगू आवाम से है’

मीर तकी मीर : ‘पर मुझे गुफ्तगू आवाम से है’

(फरवरी 1723 – सितम्बर 1810) –– विजय गुप्त मीर की उस्तादी के बारे कोई लिखे भी तो कैसे लिखे? वहाँ तो जिन्दगी के कई रंग हैं। रंगों की कई छायाएँ हैं। युग का गर्दो–गुबार है, बवण्डर है। प्रकाश... आगे पढ़ें


कहानी

भीड़

मेरे कमरे की खिड़की एक चैराहे की ओर खुलती है, जिस पर पूरे दिन पाँच अलग–अलग सड़कों से आने वाले लोगों का ताँता लगा रहता है, बिलकुल वैसे ही जैसे बोरियों से आलू लुढ़क रहे हों। वे आवारागर्दी... आगे पढ़ें


श्रद्धांजलि

सियासी कुटिलताओं के बीच एक सदाशय ‘योद्धा सन्त’ स्वामी अग्निवेश

सियासी कुटिलताओं के बीच एक सदाशय ‘योद्धा सन्त’ स्वामी अग्निवेश

स्वामी अग्निवेश के निधन से देश की जनतांत्रिक शक्तियों ने एक ऐसे मित्र को खो दिया जिसने समाज में व्याप्त हर तरह की बुराइयों, धार्मिक पाखण्ड, अन्धविश्वास और वैज्ञानिक सोच और हाशिये पर पड़े लोगों पर हो रहे... आगे पढ़ें


व्यंग्य

हिन्दू–हृदय सम्राट राज कर रहे हैं कृपया बाधा उत्पन्न न करें

दिवाली का त्यौहार आने वाला है। लेकिन देशवासियों को इस दुख भरे साल में दो बार दिवाली मनाने का मौका मिला। घरों की साफ–सफाई और कार्तिक माह की फसल आने की खुशी में मनाया जाने वाला यह त्यौहार... आगे पढ़ें


साक्षात्कार

क्या हमारे समाज में भाईचारे और एकजुटता की भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं?

(विश्व–प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति राय ने दलित कैमरा पोर्टल को एक लम्बा साक्षात्कार दिया है। इसमें उन्होंने अमरीका और यूरोप में चल रहे नस्लवाद विरोधी आन्दोलन से लेकर भारत में कोरोना की स्थित तक पर अपने विचार जाहिर किये... आगे पढ़ें


विचार-विमर्श

अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है?

अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है?

–– इलीनोर रसेल, मार्टिन पार्कर जून 1348 में, इग्लैण्ड में लोगों ने रहस्यमयी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में शिकायत कीं। उन्होंने सिरदर्द, बदन दर्द, और जी मिचलाने जैसे हलके और अस्पष्ट बीमारी के लक्षणों को महसूस किया। इसके... आगे पढ़ें


क्या है जो सभी मेहनतकशों में एक समान है?

––चूक चर्चिल सभी मेहनतकश लोगों में कौन–सी चीज समान है, भले ही उनके तथाकथित नस्ल या चमड़ी के रंग अलग–अलग हों? एक ऐसी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के वर्चस्व के मातहत उनका एक अनिश्चित अस्तित्व, जहाँ सारी सत्ता... आगे पढ़ें


बुनियादी बदलाव के लिए जन–संघर्षों का दामन थामना होगा

भारतीय राजनीति आज एक संकट से गुजर रही है। संसद से सड़क तक भविष्य को लेकर एक बेचैनी मौजूद है। उदारवादी और संसदीय राजनीति के जरिये जनता में छोटे–मोटे सुधार की गुंजाइश खत्म होती जा रही है। संसदीय... आगे पढ़ें


लोकतंत्र के पुरोधाओं ने लोकतंत्र के बारे में क्या कहा था?

आज जब लोकतंत्र का पतन अपने चरम पर है, हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इसके पुरोधाओं ने इसकी क्या व्याख्या की थी? हम जानते हैं कि उनके विचारों के प्रसार से सदियों से चली आ... आगे पढ़ें


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समाचार-विचार

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