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संपादकीय
पेरिस जलवायु सम्मेलन : धरती के विनाश पर समझौता
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की 21वीं वार्षिक बैठक 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर तक पेरिस में सम्पन्न हुई। इस बैठक में उन साम्राज्यवादी देशों का समूह भी शामिल था जो धरती की तबाही के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं और वे देश भी, जो जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों के सबसे ज्यादा शिकार हुए हैं और जलवायु परिवर्तन के लिए बिलकुल भी जिम्मेदार नहीं हैं। इस तरह, दो ध्रुवान्तों पर खड़े सबल और निर्बल, विनाशक और भुक्तभोगी, दोषी और निर्दोष, सभी एक सुर में बतकही करते हुए सहमति तक पहुँच गये। जाहिर है कि इस सफलता का श्रेय अमरीकी चैधराहट वाले साम्राज्यवादी समूह को है जो विकासशील और निर्धन देशों के हित में दबाब बनाने और अड़ंगेबाजी करनेवाले देशों की एकता तोड़कर उन्हें अलग–अलग करके अपने पीछे खड़ा करने में कामयाब रहा।
जलवायु समझौते के घोषणापत्र में इस संकट को लेकर झूठी चिन्ताएँ हैं, लुभावने नारे हैं, मोहक वादे हैं, शब्दों की बाजीगरी है और चुनावी भाषणों को मात देनेवाले ‘‘यह करेंगे, वह करेंगे’’ जैसे जुमलों की भरमार है। इसमें ऐसी तमाम अच्छी बाते हैं, जिनके विपरीत आचरण करना ही दुनिया–भर के नवउदारवादी शासकों का धर्म है। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा कि इस समझौते में ‘‘किसी के लिए... आगे पढ़ें