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संपादकीय
नवउदारवादी दौर में देशभक्ति और राष्ट्रवाद के छल–छद्म
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देशभक्ति बनाम अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर फरवरी माह में जो बवंडर उठा था उसका धूल–गुबार अब काफी हद तक छँट गया है। यह सच्चाई आज सबके सामने है कि 9 फरवरी को जेएनयू के एक कार्यक्रम में कुछ लोगों द्वारा भारत–विरोधी और पाकिस्तान समर्थक नारे लगाते हुए जिस विडियो को कुछ समाचार चैनलों पर बार–बार दिखाकर देशभर में उन्मादी माहौल बनाया गया था, वह विडियो ही फर्जी था। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने हाफिज सईद के जिस ट्वीटर सन्देश के हवाले से यह बयान दिया था कि जेएनयू की घटना को पाकिस्तानी आतंकी संगठन का समर्थन प्राप्त है, उस ट्वीटर अकाउंट को भी गृहमंत्रालय के अधिकारियों ने ही फर्जी बताया। जिन तीन छात्रों पर राजद्रोह का मुकदमा लाद कर गिरफ्तार किया गया था, उन्हें जमानत मिल गयी। केन्द्र सरकार और संघ परिवार द्वारा तमाम मनगढ़न्त और झूठे आरोपों के जरिये जेएनयू को बदनाम करने और देशद्रोही साबित करने के सभी प्रयास विफल हो गये। पूरे प्रकरण ने देशभक्ति और राष्ट्रवाद की दो परस्पर विरोधी अवधारणा को लेकर पुराने विवाद को दुबारा खोल दिया। इस मुद्दे को लेकर देश में जो खेमाबन्दी हुई और तर्क–कुतर्क का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसका देश के भविष्य... आगे पढ़ें